Monday, March 23, 2009

aur pahad toot gaya

मैं एक पारिवारिक पत्रिका पढ़ रहा था /उसमे विबिध सामग्री रहती है /लायब्रेरी से घर ले आया /बड़ी उपयोगी बातें होती हैं -एक उपयोगी विधि थी ,रात के बचे चावलों का उपयोग /सुबह मैंने देखा एक किलो चावल पके हुए रखे हैं ,जो रेसिपी ;के मुताबिक उपयोग करने रात को पका कर फ्रीज़ में रख दिए गए थे /फ्रीज़ भी गज़ब की उपयोगी चीज़ है इसमें बस्तु तब तक रखी जा सकती है तब तक की वह फैकने लायक न हो जाये

उस पत्रिका में एक लेख था -उसमे क्या हरेक में होता है ,हर दूसरा लेख स्त्री विमर्श पर ,हर तीसरी कविता महिला उत्पीडन पर और हर चौथी कहानी पुरुष प्रधान समाज पर /लगता है जैसेसाहित्य ;में ,भक्तिकाल ,बीरगाथाकाल ,रीतिकाल हो चुके है वैसे ही शायद आज का साहित्य पुरुषप्रधानसमाज काल होगा /खैर

तो उसमे एक लेख था जो भावावेश में ,क्रोधित या दुखी होकर लिखा गया था लेख बड़ा था किन्तु उसका मंतव्य केवल मात्र इनता था कि -पत्नी द्वारा पति को साहब शब्द प्रयोग करना गुलामी मानसिकता का प्रतीक होता है ,इसमें साहब और नौकर के सम्बन्ध जैसी बू आती है ,ऐसे प्रयोग वर्जित होना चाहिए ,पति पत्नी का मित्र होता है साहब नहीं /

यदि किसी के अहम को चोट न लगे तो मेरा विनम्र निवेदन यह है कि =
प्रात: नौ बजे से शाम छै:बजे तक ,फाइलों से माथापच्ची करने ,परिवार को ज़रूरियत मुहैया करने कि लिए पसीना वहाने बाले को यदि पत्नी ने साहब शब्द का प्रयोग कर दिया तो न तो वह दयनीय हुई ,न सोचनीय और न उसने कोई अहसान किया है /तांगे में जुतने वाले घोडे को भी खुर्रा किया जाता है सहलाया जाता है पीठ थपथपाई जाती है तो पति नमक प्राणी भी इन्सान है /

जब हम भी कह देते हैं कि मैडम घर पर नहीं है ,या श्रीमती जी बाज़ार गई हैं तो पत्नी ने अगर कह दिया कि साहब घर पर नहीं है तो वह कौनसे उत्पीडन का शिकार हो गई /पति को अगर स्वामी कह दिया तो वह शब्दार्थ की द्रष्टि से ,साहित्य की द्रष्टि से या मानसिकता के लिहाज़ से उपयुक्त ही है /जो है उसको वह कहना अपराध नहीं है /

युद्धसिंहजी ने किसी नवाब को गधा कह दिया ,मान हानी का दावा ,युद्धसिंह पर जुर्माना /युद्ध सिंह का अदालत से निवेदन .हुकम आयन्दा किसी नवाब को गधा नहीं कहूंगा /पण म्हारो यो अरज छै कि किसी गधे को तो नवाब साहिब कह सकूं /या में तो अपराध णी बणे /जज ने किताबें देखी दफा ५०० बगैरा, बोले नहीं /युद्धसिंह जी ने भरे इजलास में ,नवाब साहिब की ओर मुखातिब होकर ,मुस्करा कर कहा ;नवाब सा'ब= न म स का र/


खैर मूल बात =पति शब्द का शाब्दिक अर्थ ही होता है स्वामी /यथा महीपति ,भूपति ,करोड़पति आदि ,/वास्तब में पति स्वामी होता है किन्तु वह पत्नी का नहीं बल्कि गृह का स्वामी होता है और पत्नी गृह स्वामिनी /स्वामी को स्वामी और स्वामिनी को स्वामिनी कह देने पर किसके सम्मान को कहाँ ठेस लग गई /आगंतुक गृह स्वामी को तलाश करने आया है और अगर पत्नी ने कह दिया कि साहब घर पर नहीं तो कौनसा पहाड़ टूट गया /इसमें कहाँ तो पत्नी का आत्मसम्मान कम हो गया और कहाँ वह सोचनीय हो गई /क्या आगंतुक से यह कहा जाता कि बृजमोहन घर पर नहीं है या कि मेरा आदमी घर पर नहीं है =

या कि मेरा मरद घर पर नहीं है और मानलो पत्नी गुस्से में है ,क्रोधित है ,परेशान है और जैसा कि हम लोग गुस्से में नामुराद ,नामाकूल ,नालायक जैसे शब्दों का प्रयोग कर देते है वैसे ही क्या पत्नी अपने मरद के लिए कहदे कि .......घर में नहीं है /
पति पत्नी एक दूसरे को आदर सूचक शब्दों का प्रयोग करें -करना ही चाहिए /मगर विचारधारा तो यह चल रही है कि हज़ार साल पहले यदि सताया गया ,शोषण किया गया ,दवा कर रखा गया तो उसका बदला आज लिया जाए /

Sunday, March 15, 2009

हम कुछ सोचें

एक दस वर्षीय वालिका मिनी स्कर्ट और टॉप पहने नृत्य कर रही है -उसके माता पिता अपनी होनहार बालिका का नृत्य देख कर आनंद मग्न हो रहे हैं -डेक पर केसेट बज रहा है""कजरारे कजरारे तेरे नैना ""गाने के बोल के अनुसार ही बालिका का अंग संचालन हो रहा है - देश की इस भावी कर्णधार -समाज में नारी समुदाय का नेतृत्व करने वाली बालिका की भाव भंगिमा ने पिता का सर गर्व से ऊंचा उठा दिया है - और पिता की प्रसन्नता देख माताजी भी भाव विभोर हो रही हैं

यह सुना ही था की साहित्य समाज का दर्पण है आज प्रत्यक्ष देख भी लिया -वस्त्रों और अंगों पर लिखा जा रहा फिल्मी साहित्य अब गर्व की वस्तु होने लगी है -

साहित्य और संस्कृति पर विविध रूपों में प्रहार होता रहा है चाहे वह अश्लील गीत हो या द्विअर्थी संबाद हो -पहले द्विअर्थी संबाद का अर्थ व्यंग्य होता था अब वे अश्लीलता का पर्याय है -सवाल यह नहीं है की वे किसने लिखे सवाल ये है की वे चले क्यों

आज का बच्चा बेड बिस्तर समझ जाता है _शायद ""खटिया"" नहीं समझता ,ठंड कोल्ड समझता है मगर ""जाड़ा""नहीं समझ पाता है मगर बेचारे की विवशता है कि गाना सुनना पड़ रहा है उसे ,चाहे वह सरकालेओ का अर्थ समझता हो या न समझता हो /
एक तर्कशास्त्र के प्रकांड पंडित कह रहे थे बच्चे ऐसे गाने सुनते ही क्यों है जब रिमोट उनके हाथ में है तो चेनल बदल क्यों नहीं लेते / माँ बाप देखने ही क्यों देते है ? साहित्य और संस्कृति पर विविध रूपों में प्रहार होता रहा है चाहे वह अश्लील गीत हो या द्विअर्थी संबाद हो -पहले द्विअर्थी संबाद का अर्थ व्यंग्य होता था अब वे अश्लीलता का पर्याय है -सवाल यह नहीं है की वे किसने लिखे सवाल ये है की वे चले क्यों यह बात वे सुनने को तयार नहींएक गाना और चला था "" तू चीज़ बड़ी है मस्त मस्त ""किसी लडकी या नारी को देख कर चीज़ कहना कुत्सित मानसिकता का प्रतीक है -फूहड़ और अश्लील नाच पर सीटी बजा कर हुल्लड मचाने वालों की भाषा संस्कार में आरही है लडके आज उस धुन पर गा रहे हैं और लडकियां उस धुन पर झूम रही हैं -इससे ज़्यादा शर्मनाक क्या हो सकता है
नारी चाहे पत्नी हो -माँ हो बहिन हो पुत्री हो या कोई भी हो उसे तेजस्वनी दामिनी बनाया जासकता है उसे प्रतिभासंपन्न तेजपुंज युक्त और सामर्थ वान बन ने की प्रेरणा दी जा सकती है =अत्याचार और अन्याय -शोषण और उत्पीड़न के विरोध में खडा होना सिखाया जा सकता है -उसे मंत्री से लेकर सरपंच और पंच बन ने तक की प्रेरणा देना चाहिए मगर नारी के प्रति अशोभनीय वाक्यांशों का प्रतिकार होना
चाहिए

वाक एवम लेखन की स्वंत्रता है -जब स्वतंत्रता निरपेक्ष और दायित्वहीन हो जाती है तो स्वेच्छाचारिता हो जाती है वहा यह बात ध्यान में नहीं रखी जाती है की यह स्वतंत्रता विधि सम्मत नहीं है और किसी दूसरे की स्वन्त्न्त्र्ता में बाधक तो नहीं है =ज्ञान और भावों का भण्डार ,समाज का दर्पण -ज्ञान राशी का संचित कोष यदि मानव कल्याणकारी नहीं है तो उसे में साहित्य कैसे कहा जा सकता है /फिल्मी गाने क्या साहित्य की श्रेणी में नहीं आते इस और भी साहित्य कारों का ध्यान आकर्षित होना चाहिए