Tuesday, February 24, 2009

ढूंढो ढूंढो रे साजना

इस संसार में चर, अचर, सचराचर जितने प्राणी हैं उनमें एक जीव ऐसा भी है जिसे सजन कहा जाता है /यह सजन इस संसार में कुछ न कुछ ढूँढने के लिए ही अवतरित हुआ है /अब से चालीस- पचास साल पहले उससे कहा गया = ""ढूंढो ढूंढो रे साजना मेरे कान का बाला"" = अपनी इस खोज में वह सफल हो ही नहीं पाया था तब तक दूसरा आदेश प्रसारित हो गया ="" कहाँ गिर गया ढूंढो सजन बटन मेरे कुरते का"" =सिद्ध बात है उसमें भी वह असफल रहा तभी तो लगभग सभी म्यूजिक चैनल उनकी पुनाराब्रत्ति कर रहे है, बिल्कुल पत्र -स्मरण पत्र -परिपत्र और अर्ध शासकीय पत्र की तरह /आप ही बताइए कान का बाला और बटन यदि सजन को मिल गया होता तो वह टी वी पर क्यों बार बार, लगातार गाती =क्या पागल हुई है ? ऐसे ही में एक औरत को देखता हूँ, चिल्लाती है =""हाय मेरी कमर"" -दबाई लगती है- मुस्कराती है, मगर एक घंटे बाद फिर =हाय मेरी कमर =आखिर ऐसी कैसी दबाई है -दस साल से देख रहा हूँ =इलाज परमानेंट होना चाहिए
ऐसी बात नहीं है कि वह कुछ ढूंढता ही न हो ,ढूँढता है / आधुनिक संगीत में सुर-ताल, लय, गाना किस राग पर आधारित है तथा गाने के बोल के अर्थ ढूँढता है -हस्त रेखाओं में भविष्य और जन्मपत्री में भाग्य ढूँढता है -राजनीती में चरित्र और आधुनिक पीढ़ी में संस्कार ढूँढता है -वर्तमान समस्याओं का समाधान हजारों साल पुराने ग्रंथों में ढूँढता है /कुछ लोगों की आदत होती है की वे कुछ न कुछ ढूंढते ही रहते है -कहते है ढूँढने में हर्ज़ ही क्या है /

कुछ लोग अपनी दैनिक दिनचर्या को त्याग कर, जीवन का उद्देश्य ढूंढते है / हम कौन हैं ?क्या हैं? कहाँ से आए है?कहाँ जायेंगे ? क्या लाये थे ?क्या ले जायेंगे आदि-इत्यादि , और इस चक्कर में या तो वे कार्यालय देर से पहुँचते हैं ,या उनकी टेबिल पर फाइलों का अम्बार लग जाता है /उनकी पत्नियां सब्जी और आटे के पीपे का इंतज़ार करती रहती हैं / में कौन हूँ -कहाँ से आया हूँ क्यों आया हूँ ==अरे तू तू है घर से दफ्तर आया है काम करने आया है -बात ही ख़त्म /
कुछ लेखक लेख लिखकर डाक में डालकर चौथे दिन से पेपर में अपना नाम ढूढने लगते हैं ,उधर संपादक महोदय उस लेख को पढ़ते हैं तो टेबिल की दराज़ में सरदर्द की गोली ढूँढने लगते हैं और अगर छाप दिया तो पाठक क्या ढूडेगा कुआ या खाई /

इस धरती पर स्वर्ग और नरक ढूँढने वाले हजारों हैं जिनको यहाँ उपलब्ध नहीं हो पता है -वे ऊपर है इसी कल्पना करके जीवन जैसा जीना चाहिए वेसा जी नहीं पाते ,किसी ने कहा है =तू इसी धुन में रहा मर के मिलेगी जन्नत -तुझ को ऐ दोस्त न जीने का सलीका आया = इससे अच्छे तो कार्यालय के कर्मचारी होते हैं जिनका बॉस जब गुस्सा होता है और कहता है -गो टू हेल -तो वे सीधे अपने घर चले आते हैं /

कुछ लोग प्राप्त की उपेक्षा करके, अप्राप्त को प्राप्त कर सुख ढूँढने की चाह रखते हैं, तो, कोई तनाव ग्रस्त -हताश -उदास -निराश -चिंतित व्यक्ति परिश्रम खेल व्यायाम मित्र- मंडली, हँसी- मजाक को नज़र अंदाज़ कर, नींद की गोलियां ढूंढते है /कुछ युवक खेलना बंद करके जवानी में बुढापा और कुछ बुजुर्ग मनोरंजन को अपना साधन बना कर बुढापे में युवावस्था ढूंढते है /

कुछ लोग मूड ठीक करने और गम ग़लत करने क्या ढूँढ़ते है आप सब को पता है =मधुशाला= गन्ने के रस वाली नहीं -हरिबंश जी की मधुशाला भी नहीं बल्कि मधुशाला याने मयखाना =मुझे पीने का शौक नहीं पीता हूँ गम भुलाने को =मगर होता इसके बिल्कुल विपरीत है ==आए थे हँसते खेलते मयखाने की तरफ़ -जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए /
मजेदार बात देखिये ऐसी बात तक बताई जाती है कि ""कहते है उम्रे-रफ्ता कभी लौटती नहीं -जा मयकदे से मेरी जवानी उठा के ला ""अब जो मयखाने में जवानी ढूँढेगा उस का क्या होगा /एक जवानी और पडी मिलेगी कहीं नाली में /
सार बात यह कि सजन को जो ढूंढ़ना चाहिए वह न ढूंढ कर ,जो नहीं ढूँढना चाहिए वह ढूंढता है ,इसी लिए वह अभी तक सजन है नहीं तो कभी का सज्जन बन चुका होता /

Saturday, February 7, 2009

पुत्रदान क्यों नहीं

जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है विवाह और विवाह का एक महत्वपूर्ण अंग है कन्यादान / पाणिग्रहण ,सप्तपदी ,पांच और सात वचन तो समझ में आते हैं क्योंकि वह वर -वधु दोनों का मिला जुला कार्यक्रम है ,किंतु कन्यादान का रिवाज़ कब व कैसे प्रचलित हुआ ?

क्या वेदों में कन्यादान का विधान है ? हो सकता है /पुराणों में दस महादान का वर्णन है उनमें से कन्यादान भी एक दान है /मानस में गोस्वामीजी ने दो विवाह करवाये हैं / एक तो शंकरजी का "" गहि गिरीश कुस कन्या पानी ,भवहि समरपी जानि भाबानी "" दूसरे विवाह में सीताजी का कन्यादान कराया है ""करि लोक वेद विधानु कन्यादान नृप भूषण कियो ""स्वाभाविक है गोस्वामीजी की स्वयं की जैसी शादी हुई होगी वैसा ही उन्होंने वर्णन किया होगा -पुराणों में दस महादानो का वर्णन है इनमें से एक तो हुआ कन्यादान वाकी नौ है --स्वर्ण ,अश्व ,तिल , हाथी ,दासी ,रथ ,भूमी ,ग्रह और कपिला गौ /ध्यान रहे यह सब सम्पत्ति है /स्त्री हमेंशा से संपत्ति मानी जाती रही थी / उसका क्रय विक्रय होता था , उसे गिरवी रखा जाता था , जुए में हारा जीता जाता था तो अन्य संपत्ति के दानो की तरह इस कन्या रूपी संपत्ति के दान की परिपाटी प्रचलित हुई होगी /दान के साथ दान की हुई संपत्ति की स्थिरता के लिए अतिरिक्त द्रव्य समर्पित करने का प्रावधान शास्त्रों में था ताकि दान में दी हुई संपत्ति का रख रखाव आदि किया जाता रहे /इसने कन्यादान मे दहेज़ का रूप धारण कर लिया/

दहेज़ का दूसरा पहलू यह भी रहा होगा कि चूंकि कन्या संपत्ति होती थी पराया धन होती थी इसलिए पिता की जायदाद मे उसका हक नही होता था और चूंकि पुत्र जो कि संपत्ति नहीं होता था उसके हिस्से मे बाप की जायदाद आजाती थी / किंतु फिर भी पुत्री होती तो थी माँ बाप के जिगर का टुकडा -इसलिए पिता अपनी जायदाद से प्राप्त आय मे से एक बडा हिस्सा पुत्रों की सहमति से पुत्री को दे दिया करता था और चूंकि बात भी वाजिव थी इसलिए पुत्र को भी क्यों आपत्ति होने लगी / फिर लडकी चली जाती थी पराये घर और जमीन जायदाद ,खेती बाड़ी-रहती थी पुत्रों के पास /इसलिए बहन को बिभिन्न त्योहारों पर ,भाई दूज , उसके पुत्र पुत्रियों की शादी मे मामा भात , पहरावनी, मंडप आदि के रूप मे संपत्ति की आय मे से कुछ हिस्सा लडकी को पहुंचता रहता था /अब उसका रूप लालची धन्लोलुपों ने विकृत कर दिया है / लडकी के पिता की स्वेच्छा अब लडके के पिता की आवश्यकता हो गई /एक सद्भाविक परम्परा कुरीति हो गई /यह कुरीति गरीब पिता के लिए अभिशाप हो गई /जो स्वम किराए के मकानों मे रहकर ,मामूली -सी नौकरी करके ,अपना पेट काट कर बच्चों को पालता पढाता रहा हो जिसके बेटे बेरोजगार हों और बेटी सयानी उसकी क्या तो संपत्ति होगी और क्या लडकियां हिस्सा लेंगी/

अब सवाल उठता है पुत्र दान का -कल्पना कीजिए चलो किसी ने कर ही दिया पुत्र दान तो फिर क्या ? लडकी तो लडके के घर आजाती है =कई समाज मे तो यह भी है कि लडकी का बाप या बडा भाई -लडकी की ससुराल मे पानी भी नहीं पीता है - -दान कीहुई संपत्ति का थोडा से भी हिस्से का उपयोग वर्जित है -आपको तो पता है कि एक हजार गाय दान मे दी और धोके से एक गाय वापस आगई और उसका पुन दान हो गया तो नरक के दरवाजे खुल गए थे /खैर तो लडकी तो लडके के घर आजाती है अब मानलो लडके का भी दान हो गया तो वह कहाँ रहेगा अपनी ससुराल में यानी घर जवाई - और कन्या का दान कर दिया तो वह मायके में कैसे रहेगी -और यदि लड़का अपने ही घर में रहता है तो उसके माँ बाप उसकी कमाई कैसे खाएँगे -दान किए हुए पुत्र की कमाई घोर अनर्थ हो जाएगा =बडी दिक्कत हो जायेगी/

हो सकता है यह दिक्कत उस वक्त पुत्र दान करने के समय पेश आई हो /

इस लेख का अंत कैसे और किन शब्दों में हो ,इस का उपसंहार मेरी समझ से बाहर हो रहा है /