Saturday, January 23, 2010

तिलक समारोह

तो साब लडकी पसंद आगई कुंडली मिल गई - अब आप शादी किस स्तर की चाहते है ?
अरे स्तर काहे का साहब -हम अपनी बहू थोड़े ही ,बेटी ले जा रहे है ।
मगर फिर भी
आपने भी तो कुछ संकल्प किया होगा
हमारा तो पाँच तक का इरादा है
अरे सा’ब पाँच में तो क्लर्क -पटबारी तक नहीं मिलते -
पाँच के साथ पूरा सामान भी तो दे रहे है ।
सामान तो अलग रहता ही है ।कौन सा नया काम कर रहे हो ।सामान दे रहे हो तो अपनी लड़्की को दे रहे हो । आप ऐसा करो, दस और सब सामान करदो
ज्यादा हो जायेगा साहब, इसके बाद मेरी दो बेटियां और है सर पर
ये आपकी समस्या है आप जाने
ठीक है साहब जैसी आपकी मर्जी
हां एक बात और हम बरात लेकर आयेंगे बस का ,ट्रेन का किराया स्वागत ,बरात ठहराना आपको मेह्गा पडेगा,आप एक काम करो लडकी को लेकर यही आजाओ अपन मैरिज हाल बुक बुक कर लेंगे एक डेड के आस पास खर्च आएगा वह आप वहन कर लेना और रिसेप्शन देंगे उसका आधा आधा अपन कर लेंगे ।

मगर सा’ब आपके तो हजार पांच सौ आदमी होंगे हमारे तो दस बारह लोग ही इतनी दूर आपायेंगे
सो तो है मगर यही तो हो रहा है आज कल
ठीक साहब

हां एक बात और कैश हमे एक मुश्त टीका मे चाहिये हमे भी तो कुछ बन्दोबस्त करना है
आपकी मर्जी ,हमको तो देना ही है कभी लेलो ।

टीका बिभिन्न स्थानो में अलग अलग नाम से जाना जाता है कही तिलक समारोह, कही रिंग सेरेमनी,कहीं इंगेजमेन्ट , कही सगाई उद्देश्य सबका एक ही है कि शादी के पहले लडकी वालो से पैसे लेना ताकि रकम खरीदना और भी बहुत इन्तजाम करना । टीका में लड़के के पूरे परिवार को कपडे मगाये जाते है । मिठाई ,फल लड्की वाला स्वेच्छा से लाता है । टीका होते ही लडका दूल्हाराजा हो जाता है ।हर मां की इच्छा होती है कि उसका बेटा बड़ा अफ़सर बने ,अमीर घराने में उसका रिश्ता तय हो ,कैकैई ने भी तो हर मां की तरह अपने बेटे भरत को टीका ही मांगा था ।मगर देखिये आज लड़की का नाम सुमित्रा ,कौशल्या, जानकी मिल जायेगा मगर कैकैई नाम कोई नही रखता -ऐसा कौनसा गुनाह किया उसने ,बेटे का हित ही चाहा ,यह बात कही जा सकती है कि उसने दूसरे बेटे को बनबास मांगा ,जो आवाश्यक भी था राजा को हस्तक्षेप रहित राज्य करना चाहिये , उसने हमेशा के लिये नही केवल एक निश्चित अवधि के लिये मागा था क्योंकि १२ साल तक कोई, किसी स्थान पर ,स्थान के मालिक की जानकारी मे, कब्ज़ा रखता है तो विरोधी आधिपत्य ( एडवर्स पजैशन ) का अधिकारी हो जाता है ।

मै कहां की बात कहां ले जाता हूं ,हां तो टीका मे सारे परिवार के कपड़े ,मिठाई,फल ,ड्राय फ्रूट ,के अलावा, लडके वालों के रिश्तेदारों से, लडकी के पिता की मिलनी करबाई जाती है ,गले मिलो और हाथ मे लिफ़ाफ़ा देते जाओ ,बेचारा डरता डरता लिफ़ाफ़ो की तरफ़ देखता रहता है कम न पड़ जाये ,पैसे तो है मगर लिफ़ाफ़ा खरीदने तो बाजार जाना पडेगा और लड़्के वाला ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलनी कराना चाहता है।हर पास या दूर के रिश्तेदार ,पहिचान वाले को बुला बुला कर मिलनी कराता है ।
मैने सुना है मिलनी पहले भी होती थी मगर पहले लडके के मामा से लडकी के मामा की , फूफा से फूफ़ा की ,चाचा से चाचा की , ,जीजा से जीजा की मिलनी कराई जाती थी । ऐसे ही एक आयोजन मे एक लडका नशे में बिल्कुल टुन्न हो रहा था मिलनी वाले स्थान पर पहुंचा और बोला में दूल्हे का यार ,दुलहन के यार को बुलाओ मै भी मिलनी करूंगा ।

Tuesday, January 12, 2010

सरप्राइज इन्स्पेक्शन

मै अज्ञातबास पर ,मध्यप्रदेश के गुना नगर मे, बोहरा बागीचा स्थित अपने घर मकान नम्बर १२१ में पन्द्रह दिन के लिये गया था ।कोई कह सकता है बल्कि कहना ही चाहिये कि यह कैसा अज्ञातबास ।

यह उसी तरह का अज्ञात बास है जिस तरह आज-कल सरकारी कार्यालयों मे सरप्राइज इन्सपेक्शन होते है । पीए साहब का ( पिये हुये साहब का नही बल्कि उनका एक असिस्टेंट होता है उसका ) अर्ध-शासकीय पत्र आता है ( ईमेल की सुविधा होते हुए भी )कि सरकिट हाउस ( या डाक बंगला जो भी वहां पर उपलब्ध हो )मे दो कक्ष आरक्षित करा दिये जायें, बड़े साहब परिवार सहित सरप्राइज इन्स्पेक्शन को पधार रहे है ।लंच मे क्या क्या होना चाहिये यह या तो अर्ध-शासकीय पत्र मे ही लिख दिया जाता है अथवा फ़ोन पर सूचित कर दिया जाता है ।

चूंकि चपरासी से लेकर छोटे साहब तक सभी को यह पता रहता है कि दिनाक इतने को आकस्मिक निरीक्षण होना है तो उसकी तैयारियां शुरू हो जाती है ।उस दिन चपरासी प्रोपर ड्रेस पहन कर आते है ,फ़ाइलों की धूल झाड़ी जाने लगती है ।बाबू साहेबान को एक टेबिल और टेबिलक्लाथ उपलब्ध होता है तो अक्सर गंदा रहता है उसे धुलवालिया जाता है और उसका फ़टा हुआ भाग अपनी तरफ़ कर बिछा दिया जाता है और बेतरतीब फ़ाइले ठीक से जमा दी जाती है ।

बाबू साहबान को जो टेबिल उपलब्ध होती है उसमे दराज होती है जिसमे शामलाती पेपर भरे रहते है जिन्हे फ़ुरसत मिलने पर संबन्धित फ़ाइलों मे लगा देने का विचार रहता है और चूंकि फ़ुरसत कभी मिलती नही इसलिये इनकी संख्या बढ़्ती रहती है तो कागज दराजों मे रखे नही जाते बल्कि ठूंसे जाने लगते है । ,इन्स्पेक्शन की जानकारी मिलने पर सबसे पहले इन कागजों को एक पोटली मे बांध कर अदर्शनीय स्थल पर रख दिया जाता है क्योंकि ऐसा सुना गया है कि किसी जमाने में बड़े साहब ने दराज खुलवा कर पेंडिंग कागजात की लिस्ट बनवा ली थी और उन कागजात मे कुछ पांच पांच और दस दस के नोट भी मिले थे - जिसके वाबत उनका स्पष्टीकरण यह था कि यह रुपये उनकी तनखा के है जो वे अपनी पत्नी से छुपा कर दफ़तर में दराज मे रखते है ।भुक्तभोगी बडे साहब ने उनका स्पष्टीकरण मान्य किया था ।

सरप्राइज इन्सपेक्शन कराना और पी एस सी की परीक्षा मे समानता इस मामले मे है कि कब क्या जानकारी मांगबैठें या कौनसा प्रश्न पूछ लें ।मध्यप्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा मे रामायण और महाभारत सीरियल के निर्माताओं के नाम पूछे गये वहां तक तो ठीक था ,फ़िल्म शोले मे गब्बरसिंह के पिता का नाम पूछा गया, ऐसे ही इन्सपेक्शन मे हर जानकारी तत्काल उपलब्ध कराने के लिये तैयार रहना होता है ।बडे साहब आते है ,सर्किट हाउस मे विश्राम करते है लंच लेते है और जो भी दर्शनीय स्थल उस क्षेत्र मे हो ,के दर्शन कर सपरिवार वापस लौट जाते है और बाबूसाहबान उनके दर्शन लाभ से बंचित रह जाते है क्योंकि छोटे साहब डाक बंगले पर ही सारी जानकारी दे चुके होते है ।

तो यह तो हुआ सरप्राइज ।इसकी हिन्दी होती है आकस्मिक ,औचक , अचानक । अचानक क्या क्या हो सकता है किसी को पता नही रहता है । अचानक पर से मुझे याद आरहा है कि एक खेल हुआ करता था आंख मिचौनी ।उसमे अचनक कोई पीछे से आकर आंखें अपने हाथो से बन्द कर लेता था ,और जिसकी आंखें बन्द की गई है उसके द्वारा आंखें बन्द करने वाले का सही नाम बतलाने पर ही वह आंख पर से हाथ हटाता था ।पति पत्नी के बीच हर प्रकार का हास परिहास हो सकता है लेकिन यह आंख मिचौनी का खेल पति पत्नी के मध्य वर्जित है ।क्यों है ? यह तो पता नही मगर हो सकता है कि ,इसलिये वर्जित किया गया हो कि मानलो पति ने आकर पीछे से आंखें बन्द की और पत्नी के मुह से कोई और नाम निकल गया तो ?