Wednesday, October 29, 2008

आज की जरूरत ब्रद्धाश्रम

ब्रद्ध का परिवार और परिवार का ब्रद्धों के जीवन में ,आवश्यक -अनावश्यक, उचित -अनुचित जो भी हो उस हस्तक्षेप की प्राचीन मनोवृत्ति बदलते परिवेश के साथ पल्लवित व पुष्पित होती गई , स्वार्थपरता ने पारस्परिक संभाषण और परामर्श के मार्ग अवरुद्ध किए ,वार्तालाप होता भी है तो वह तत्क्षण पूर्णिमा के उद्वेलित सिन्धुबारि में परिवर्तित हो जाता है /

मंदोदरी ने रावण से कहा था ""सुत कहुं राज समर्पि बन जाई भजिय रघुनाथ "" राजा सत्यकेतु ने प्रतापभानु को जिम्मेदारी सौंपी "" जेठे सुतहि राज नृप दीन्हां,हरि हित आपु गवन बन कीन्हां "" तो राजा मनुने बरवस राज सुतहिं तब दीन्हां ,नारी समेत गवन बन कीन्हां "" और जिन्होंने नहीं किया इतिहास हमें समझाइश देता है कि बादशाहों को पुत्रों ने या तो कैद में डाल दिया या उनकी हत्या कर दी गई/

जिस ब्रद्ध के पैर कब्र में लटके हों [ये एक मुहाबरा है ] जो पके आम के तुल्य कभी भी टपक जाय [ ये भी एक मुहाबरा है ] मरघट जिसकी बाट जोहता हो [ ये भी एक मुहाबरा है ][और मुहाबरे मुझे याद नहीं हैं ] ऐसे मुहाबरों से सुसज्जित और सुशोभित की मानसिकता और मानसिक रोगों में उर्बरक का कार्य करने वाली ब्रद्धावस्था का व्यक्ति मानसिक रोगी होकर क्रन्दोंमुख रहकर परिवार की शान्ति भंग न करे ,इसलिए इन्हे ब्ब्रद्धआश्रम के आश्रित करदेना समीचीन है /

मैं देश की संस्कृति के विपरीत नहीं /मात पिता गुरु नवहि माथा के विरुद्ध नहीं -बुजुर्गों की क्षत्रछाया में परिवार फले फूले इसके ख़िलाफ़ नहीं -औलाद बाप की सेवा करे इससे बडा पुन्य नहीं =इस पुन्य के बदले हम ब्रद्ध पर अन्याय तो नहीं कर रहे ? ब्रद्ध के वाबत धारणा है कि वह उदास रहे ,कम बोले ,निर्वाक और निस्पंद रहे [ऐसा किसी फ़िल्म में बताया भी है शायद ] माला फेरे ,भजन करे इसके बरखिलाफ वह फिल्मी गाना गाने लगे ,किसी गाने पर कमर हिलादे ,ठुमका लगा दे [बच्चन जी की बात अलग है ] तो वह स्वम हास्यास्पद तो होगा ही ,उसे किन किन उपमाओं से बिभूषित कर लज्जित किया जाएगा कल्पनातीत है /वह स्वम भी लज्जाजनक व्याकुलता अनुभव करेगा और अपनी स्वतंत्रता और मनोगत दबी इच्छाओं का हनन कर दिल की प्रसन्नता को उदासीनता के आवरण में रख कर आयु और स्वस्थ्य की भित्तिमूल का ध्वंस करेगा /

ब्रद्धावस्था की अपेक्षा है कि कोई उनसे बात करे उनके ज़माने के उनसे किस्से सुने /बुजुर्गों को अपनी युवावस्था के किस्से सुनाने की बहुत उत्सुकता रहती है जो स्वाभाविक है /सम्पाती ने अपनी जवानी के किस्से सुनाये ""हम द्वो बन्धु प्रथम तरुनाई ,गगन गए रवि निकट उडाई /""तो जाम्बंत कहने लगे ""बलि बांधत प्रभु वाढेऊ सो तनु बरनि न जाय , उभय घरी मह दीन्ही सात प्रदच्छिन जाय "" पहले फुरसत थी आज होमबर्क़ करें ,ओवर टाईम ड्यूटी करें कि इनकी सुनें /

इन्हे चाहिए पुराने लोग ,ऐसे साथी जिनसे ये दिल खोल कर अश्लील से लेकर आध्यात्मिक तक ,राखी से लेकर सुरया तक ,पॉप से लेकर कुंदनलाल सहगल तक अपने जमाने से स्वर्ण युग से वर्तमान के घोर कलयुग तक बातें कर सकें =खुश होकर हंस सकें दुखी होकर रो सकें अपने बिछुडे जीवन साथी के साथ बिताये सुख दुःख की बातें शेयर कर पुलकित या ग़मगीन हो सकें /

कुछ संपन्न ब्रद्ध इन आश्रमों की ओर आकर्षित होकर ,जीवन का आनंद लेना सीख कर ,इन लोगों के साथ कुछ जियें तो इन आश्रमों के प्रति लोगों का द्रष्टिकोण बदल सकता है = बरना तो नगर से दूर बनाये गए ब्रद्ध आश्रमों में कुछ बुजुर्ग उपेक्षित से पड़े हुए ,मरने की वाट जोहते हुए जीते रहते हैं

Tuesday, October 28, 2008

जोक तथा संदेश [१०]

जोक :- राघोगढ़ में बिरजू की दालान में किसान बैठे थे एक किसान कहने लगा दादा मेरी भैंस बीमार हो रही है उसने बीमारी के लक्षण बताये / बिरजू बोले =भैया ऐसी की ऐसी हालत मेरी भैंस की हो गई थी -मैंने तो अलसी का तेल पिला दिया था /
दूसरे दिन सुबह ६ बजे किसान ने बिरजू का दरवाजा खटखटाया
किसान ++बिरजू भइया बिरजू भइया
बिरजू दरवाजा खोलते हुए =काहे का बात है
किसान -दादा तेल पिलाने से मेरे भैंस तो मर गई
बिरजू _भइया मेरी कौन बच गई थी

संदेश +किसी बात को पूरी तरह सुन कर, समझ कर, काम करने की हमारी आदत ही नहीं रही /बच्चा अगर स्कूल से आकर कह दे कि पापा मुझे स्कूल का ब्लेक्बोर्ड दिखाई नहीं देता तो हम भागे भागे -घबराए हुए से -बैचैन से -अनिष्ट की आशंका के भयभीत उसे डाक्टर के पास ले जायेंगे =यह तो हमें डाक्टर के घर जाकर मालूम पड़ेगा कि स्कूल में उसकी सीट के आगे एक बड़ा लड़का बैठ जता है /

दूसरी बात जहाँ ६ आदमी बैठे हों समझ लेना वहाँ सात डाक्टर बैठे हुए है / कभी करके देखना /रेल के डिब्बे में थर्ड क्लास कम्पार्टमेंट में [अब तो खैर उसे सेकेण्ड क्लास कर दिया है -क्या हुआ जो नाम बदल दिया -क्लर्क कार्यालय सहायक हो गए काम वही ,ओवरसीयर सब इंजीनियर कहे जाने लगे /एक गरीब नगर का राजा परेशान चाहता था उसकी प्रजा दूध पिए मगर उपलब्धता के आभाव में बेचारे छाछ पीते थे /एक दिन राजा ने सार्वजनिक घोषणा जारी करदी कि कल से सब लोग छाछ को दूध कहेंगे और दूसरे दिन से उस राजा की प्रजा दूध पीने लगी /]हाँ तो रेल में किसी बीमारी का ज़िक्र कर देना जुकाम से लेकर केंसर तक मिटाने के नुस्खे मिल जायेंगे और वो भी प्रूफ़ के साथ कि फलां अच्छा हुआ =फलां दस माह से विस्तर में पडा था और अब दौड़ लगा रहा है /टूटी हड्डी जोड़ने की दबाई =भइया दबाई नहीं खाओगे तो भी जुड़ेगी उसे तो जुड़ना ही है / एक महाराज जी की धूनी में चिमटा लगा रहता था आग से निकाल कर लाल चिमटा मरीज़ के अंग में छुला देते /एक सज्जन को साइटिका हो गया -डाक्टर ने २१ दिन का ट्रेक्शन बताया /एक दिन महाराज जी के पास से बड़े खुश होकर लौट रहे थे बोले देखो डाक्टर वेबकूफ बना रहे थे =महाराज ने घुटने में दो जगह और एडी में दो जगह चिमटा से जलाया और देखो मैं कितना बढ़िया चल पा रहा हूँ /पाँच दिन बाद एक दिन वे अस्पताल में दिखे पूछा "क्यों बाबूजी "? बोले यार बो घुटना और एडी के जख्म पक गए तो ड्रेसिंग कराने आया था /

Friday, October 24, 2008

नारी पूजा

मनु ने कहा ,करें देवता वास करो नारी की पूजा
ह म क र ते तो हैं
दस घर झाडू बर्तन कर ,अपना कमा खाती और
दारू हमें पिलाती
नशे की मार , //और और पीने की इच्छा अपार
मान मनुहार का जब नहीं होता असर
मानने को तैयार नहीं पति-परमेश्वर
पैसे देने को नहीं तत्पर
उसका विद्रोह ,हमारा क्रोध
तो लग जाती है प्रतिष्ठा दावं पर
कभी लातों से कभी घूंसों से .कभी डंडों से कभी जूतों से
पूजा
ह म क र ते तो हैं
चल रहा है अंतहीन सिलसिला
चीखती आवाज़ का ,शोषण के नये अंदाज़ का
जब खुशामद नहीं होती मददगार //,हमारे नशे हेतु ,माग कर नही लाती उधार
तो मजबूरी में हमें लाना पढता है ,जूतों से उसकी त्वचा पर निखार
नये नये उबटन से , पूजा
ह म क र ते तो हैं

Sunday, October 19, 2008

ऐसे कैसे म र द

अब मर्द की शादी मर्द से हो ,कानून में कुछ तो राह मिले
बीरों की इस भारत भू पर , इन मर्दों को सम्मान मिले
उल्टे सीधे जैसे सोयें ,वो काम करें जो मन में है
कानून हमारे हक में है

चेतक घोडे के सवार, महाराणा सर नीचा करके
बीर शिवा भी लज्जा कर, नजरों को कुछ नीचा करके
झांसी की रानी मुस्काकर और फूलन देवी गुस्से से
पुतली बाई करके कटाक्ष हम मर्दों से फिर कुछ पूछे
हम सर को फिर करके ऊंचा ,देंगे जवाब उन बातों का
ये देश है बीर जवानों का अल्वेलों का मस्तानों का
तन फरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
और .कानून हमारे हक में है

एक मर्द कमा कर लाएगा ,दो मर्द बैठ कर खाएँगे
कुछ मर्दों से ताकत पाकर ,सीमा पर लड़ने जायेंगे
हम वो उनको दिखलायेंगे जो बात हमारे मन में है
कानून हमारे हक में है

Tuesday, October 14, 2008

पत्नी पीड़ा

चार दिन से सब्जी नहीं ,बिन साबुन नहाते हैं
ये बाज़ार जाते नहीं ,ब्लॉग में सर खपाते हैं
चश्मे का नम्बर बढ़ा और सर्वाइकल में दर्द
कमर को धनुषाकार बनाए जाते हैं

ज़्यादा बैठेंगे .डायबिटीज हो जायेगी
लीवर की तो बात ही क्या आंत सिकुड़ जायेगी
एक शक्ति जो मेरी नजर में थोड़ी है
और भी घट जायेगी
फिर असगंध और बिधारा भी काम नहीं आयेगी

इधर में दाल बघारती हूँ ,उधर वो शेखी बघारते हैं
बिना पढ़े कविताओं पर टिप्पणी कर आते हैं
दर दर की ठोकरें खाते हैं ,फिर भी कमेन्ट नहीं पाते है
इनके ब्लॉग पर कोई आता नहीं तो मुझ पर झल्लाते हैं

कमेन्ट को भीख ऐसे मागते हैं जैसे ये जन्म जात याचक है
ब्लॉग को सौत भी तो नहीं कह सकती ,क्योंकि यह तो पुरूष बाचक है
हाँ वो कह सकती हूँ जिस पर सरकार तयार हुई जा रही है
और आई पी सी में से धारा तीन सौ सतहत्तर हटाई जा रही है

Sunday, October 12, 2008

बहनों कुछ तो पहनो

बहनों कुछ तो पहनो
हम इतिहास दुहरायें ,दु :शाशन कपड़े खींचे
और कृष्ण बचाने आयें
हम उनके दर्शन पायें

बंद मिलें फिर चालू हों ,भूंकों को कुछ व्यबसाय मिले
भारत की प्यारी बसुधा पर ,फिर कपास के फूल खिले
तपोभूमि पर देवभूमि पर,देवी का कुछ तो बेश लगे
अब कुछ तो आचरण ऐसे हों ,गौतम नानक का देश लगे

जब युद्ध की काली छाया थी ,तब भी त्याग किया तुमने
तुमने जेवर दे डाले थे ,हथियार खरीदे थे हमने
माना कि देश संकट में है ,नदियों की बाढ़ सुनिश्चित है
हम सब का त्याग भी बाजिब है ,
पर इतना त्याग क्या जायज़ है

Thursday, October 9, 2008

बिन फेरे

हम आदम युग में जीते थे /शादी के बंधन में बंधने
अग्नि के फेरे लेते थे

कुछ आउट डेटेड लोगों ने ,फेरों के बंधन में कस कर
जंजीर हमें पहनाई थी ,
उन जंजीरों को तोडेंगे ,हम पंछी बन कर डोलेंगे
दो साल किसी के साथ रहे ,उसकी पत्नी हम हो लेंगे
क़ानून हमारे हक में है

पहले वाली घर हो तो हो , फेरों वाली घर हो तो हो
बेटों वाली भी होवे तो ,उसको रोना है रोये वो
हम पत्नी दर्जा पायेंगे और मेंटेनेंस भुनायेगे
क़ानून हमारे हक में है

शादी की भाषा बदल गई ,पत्नी परिभाषा बदल गई
वेदों वाली उस भाषा को ,कानून की भाषा निगल गई
परिवार का गौरब हमसे है ,माँ बाप का गौरब हमसे है
क़ानून हमारे हक में है

फेरों के बंधन में बाँधा , वेदों की भाषा में बाँधा
दुनिया भर के नाटक करके ,पति ,बेटों का बंधन बाँधा
अब कौन पति और तू कैसा ,बेटे से ज़्यादा है पैसा
चाहें जिसके घर जा बैठें ,पत्नी का दर्जा पा बैठे
क़ानून हमारे हक में है

Monday, October 6, 2008

पछताओगे

सुन मेरे यार /अपना ब्लॉग बनाया मैंने ,कोशिश करी हज़ार
आए कुल पाठक दो चार /और पाठक कैसे आयेंगे ?
बोला- लेखन में दम हुआ तो जरूर आयेंगे
सुन मेरे मित्र /ब्लॉग में डाल्दे मेरा इक चित्र
बोला _पछताओगे /दो चार तो आते हैं मुश्किल से
क्या उन्हें भी भगाओगे ?
मेरे प्रिय मित्र ,कर तू ऐसी करनी
मेरी पत्नी सुमुखी,सुलोचनी ,बिधुबदनी
चंद्रमुखी म्रगसावकनयनी
गौर देह लेती अंगडाई / उसका चित्र प्रविष्ट करो
मेरा इतना काम करो
बोला - और ज़्यादा पछताओगे
इस छोटी सी जिंदगी में क्या तुम
इतने कमेंट्स पढ़ पाओगे??

Saturday, October 4, 2008

ब्रक्षारोपन

कालेज उत्सब में उनको बुलाया
उनके कर कमलों ब्रक्षारोपन करवाया
गड्ढा खुदा था पौधा रखा था ,इन्हे तो केवल आना था
और पौधे से हाथ लगना था
तालिया बजीं ,फ्लश चमका
मिठाइयों की खुशबू से बातावरण महका
सबेरे का अखवार , न फोटो न समाचार
उद्घाटन की केवल लाईने चार
वो भी उठावना और पप्स उपलब्ध के पास
सम्पादक को फोन घुमाया
सर,पेपर में जगह नहीं थी
विज्ञापन ज़्यादा ,हम मजबूर क्या करते
शाम तो टहले ,कालेज आए ,कल का रोपा पौधा उखाड़ आए
और बेचारे क्या करते

Wednesday, October 1, 2008

सान्त्वना

घर में कोहराम ,तीन साल की बिटिया
रोते रोते ये समझाया ,मम्मी तेरी बन गई चिडिया
रोज़ पेड़ पर चिडिया आती /बिटिया मम्मी समझ बुलाती /
जीवन मरण समझ न पाती
.................................
भूल गई बातें सब पिछली ,जनम मरण का भेद समझ कर
रोकर हंसकर ,पढ़कर लिखकर ,बाईस साल गुजारे मिलकर
........................................................
शादी विदा और मन बेटी का =
निर्बल बाप अकेला होगा ,सन्नाटा घर पसरा होगा
कभी अकेला रह न पाया ,मायूसी में मन बहलाया
इस बूढे का अब क्या होगा
रोते रोते आई ,कह गई
पापा तुम हो नहीं अकेले ,आती ही होंगी मम्मी चिडिया बन कर, इसी पेड़ पर /
इसे भी कभी ऐसे ही समझाया था
सोचते हुए
कमज़ोर नज़रों में सूखे आंसू लिए ,
मैं बैठ गया घर की देहरी पर
और सचमुच तलाशने लगा कोई आक्रति
आँगन में लगे आम के पेड़ पर