Thursday, December 17, 2009

साहित्यिक चोरी

किसी साहित्यिक पत्रिका मे लेख या कहानी भेजना और ब्लाग पर लिखने मे अन्तर सिर्फ़ यह है कि वहां संपादक का दखल रहता है और यहां परम स्वतंत्र न सिर पर कोऊ , न कोई दुरुस्ती करने वाला, न गलतियां निकालने वाला ,न रिजेक्ट कर खेद सहित वापस करने वाला ।अब तो खैर पत्रिका वाले भी रचना वापस नही भेजते है वे या तो छापते है या फाड़ फैंकते है ।रचनाये खेद सहित वापस की जातीं थी तब की बात है एक सम्पादक ने 'एक साहित्यकार की कहानी ,इस टीप के साथ वापस कर दी कि "चूँकि ऐसी रचना पूर्व में मुंशी प्रेमचंद लिख चुके हैं इसलिए वे इसे प्रकाशित नहीं कर सकेंगे -इस बात का उन्हें खेद है ।- वे साहित्यकार अभी तक यह नहीं समझ पाये की सम्पादक के खेद की वजह ==नहीं छाप सकना था =या ==मुंशी जी द्वारा लिखा जाना था

।चोरियाँ नाना प्रकार की होती है और चोरी के तरीके भी भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं -रुपया पैसा जेवर आदि की चोरी के नए नए तरीके सिनेमा विभिन्न चेनल और सत्यकथाओं ने प्रचारित व प्रसारित कर दिए हैं -चैन चुराना दिल चुराना आदि पर जबसे फिल्मी दुनिया का एकाधिकार हुआ है -आम आदमी इस प्रकार की चोरियों से महरूम हो गया हैएक कवि ने एक कविता लिखी -उन्होंने प्रकाशनार्थ भेजने के पूर्व अपने मित्र को बतलाया -मित्र ने पूछा छप तो जायेगी -कवि बोले =यदि संपादक ने मेघदूत न पढा होगा तो छप जायेगी और अगर मेरे दुर्भाग्य से उन्होंने पढा होगा तो संपादक को बहुत खेद होगा

।एक दिन एक मित्र मुझसे पूछने लगे -यार इन संपादकों को कैसे मालूम हो जाता है की रचना चोरी की हुई है क्या जरूरी है की सम्पादक ने कालिदास -कीट्स- शेक्सपीयर प्रेमचन्द- शरत आदि सभी को पढा हो। मैने कहा =जरूरी तो नही है मगर वे लेख देख कर ताड़ जरूर जाते हैं । रचना का लिखा कोई वाक्यांश चतुरसेन के सोना और खून से है या नहीं यह भलेही संपादक न बता पाएं मगर यह जरूर बतला देंगे की यह वाक्यांश इस लेखक का नही हो सकता ।

चोरी के मुकदमे में चोर के वकील अक्सर यह प्रश्न पूछा करते हैं की इस प्रकार के जेवरात ग्रामीण अंचलों में पहने जाते है इससे यह सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है की जेवर फरियादी के नहीं वल्कि चोर के है -जेवरात की तरह साहित्यिक विचार एक दूसरे से मेल खा सकते है -बात वही रहती है और अंदाजे बयाँ बदल जाता है -दूसरों के साथ बुरा व्यबहार न करने की बात हजारों साल पहले विदुर जी ने कही अत्म्प्रतिकूलानी ......समाचरेत । फ़िर वही बात अंग्रेज़ी में डू नोट डू ..... अदर्स ।कही गयी । बात वही थी भाषा बदल गयी अंदाजे बयाँ बदल गया । क्या मुज़्तर खैराबादी और बहादुरशाह जफर के खयालात मिलते जुलते नहीं थे ? दोनों के कहे हुए शेर पढ़ कर देख लीजिये। क्या फैज़ अहमद फैज़ और मजरूह सुल्तानपुरी की रचनाओं में समानता नहीं है ? आदमी कन्फ्यूज्ड हो जाता है की ये लिखा किसने है ।

आम तौर पर चोर चोर मौसेरे भाई होते है और दिल के चोर आपस में रकीब होते है क्योंकी दिल एक चुराने वाले दो तो दुश्मनी स्वाभाबिक है -ऐसी बात साहित्य के मामले में नहीं है वे न तो आपस में मौसेरे भाई होते है न दुश्मन होते है वे तो आपस में प्रतिद्वंदी होते है -तूने हजार साल पहले की में से चुराया तो में ईसा पूर्व की में से चुराउगा ।और वैसे भी किसी एक किताब की नकल करदी तो वह चोर ग्रन्थ कहलाता है और अगर २५ किताबों मे से दो दो पेज लिये तो वह शोध ग्रन्थ कहलाता है ।

अत: जो ग्रन्थ लुप्त हुए जा रहे है तो उनमे से कुछ लेकर हम अपने नाम से लिख कर पाठको पर उपकार ही तो करेंगे क्योकि साहित्य के अथाह भंडार से पाठक प्राय अनजान है और सबसे बड़ी बात कोई रोकने टोकने वाला नही है ।यह किसी पर व्यंग्य नही है ।न मेरा यह उद्देश्य है कि कोई ऐसा लिखता होगा ।लेकिन कभी कभी किसी किसी को बुरा लग जाता है

पटैलों के एक सम्मेलन मे एक व्यक्ति ने कह दिया कि पटेल चोर है ।रामपुरा का पटैल उठा और उस व्यक्ति की पिटाई करने लगा _उसने कहा मैने किसी का नाम नही लिया किसी गांव का नाम नही लिया मैने तो केवल यही कहा था कि पटैल चोर है । पटैल ने कहा अच्छा बेटा जैसे कोई जानता ही नही है कि किस गांव का पटैल चोर है ।

इसीलिए कहा गया है ==यदि नहीं कहा गया हो तो अब में कह देता हूँ ==साहित्यिक चोरी चोरी न भवति

Friday, December 4, 2009

अन्ध विश्वास

एक बिटिया मे मुझसे अन्ध-विश्वास पर लिखने को कहा । अपनी बात शुरु करने के पूर्व, मै इस विषय से असमबद्ध, दो बातें कहना चाहूंगा । बात है कब्रिस्तान/श्मशान की, । एक सज्जन की पत्नी का निधन (स्वर्गबास) हो जाने पर उसे दफ़नाया/जलाया जा रहा था ।पति फ़ूट्फ़ूट कर रो रहा था । उसकी हालत देखी नही जा रही थी । किसी ने उसके कन्धे पर हाथ रख कर कहा -हमे न मालूम था तुम इतना प्रेम करते थे कितना रो रहे हो -रोता हुआ पति चुप हो गया बोला -अजी यह तो कुछ भी नही है आप मुझे उस वक्त देखते जब घर से मैयत उठाई जा रही थी, उसके मुकाबले मे तो, ये कुछ भी नही है ,उस वक्त देखते मुझे, ये तो कुछ भी नही है ।

दूसरी बात ,एक बाप अपनी म्रत नन्ही बालिका के लिये रोया करता था ।एक दिन बच्ची उसके सपने मे आई बोली हम सब सहेलियों के साथ खेलते हैं वहां परियां भी होती है रात को हम केंडिल लाइट मे स्वादिष्ट खाना खाते है किन्तु आप रोते हो वे आंसू मेरी मोमबत्ती बुझा देते है ,मुझे अंधेरे मे खाना पडता है और सब सहेलियां मुझ पर हंसती है ,मुझे बहुत कष्ट होता है । बाप ने उस दिन से रोना बन्द कर दिया ।

विश्वास और अन्धविश्वास के मध्य कोई विभाजन रेखा खीचना मुश्किल है ,एक का अन्धविश्वास दूसरे का विश्वास हो सकता है क्योंकि यह दुनिया बडी विचित्र है ""किसी की आखिरी हिचकी किसी की दिल्लगी होगी ""की मानिन्द ।

मै एक कव्वाली सुन रहा था ""तुम्हे दानिश्ता महफ़िल मे जो देखा हो तो मुजरिम हूं/नजर, आखिर नजर है ,बे इरादा फ़िर गई होगी।""कव्वाल के लिये बे-इरादा सही मगर जिसने उन्हे देखते हुये देखा होगा , उनकी नजर मे तो कव्वाल की नजर बा-इरादा हो सकती है ।

और एक बात, मै लेख लिखूं , कुल मिला कर दस विद्वान पढेंगे और निश्चित ही वे सब अन्धविश्वासी नही होंगे ।मगर ये जो व्यापार बडे पैमाने पर जारी है ,बीमारियां मिटाने , बुरी नजर से बचाने , रोजगार मे सफ़लता दिलाने ,धन सम्पत्ति को घर मे स्थिर करने और भी न जाने क्या क्या करोडों का व्यवसाय, लाखों लोग प्रतिदिन देख, सुन व समझ रहे है और (तथा कथित ) लाभ भी ले रहे है । उसमे मेरा लेख "नक्कार खाने मे तूती की आवाज " नही हो जायेगा ? ये नक्कारखाना क्या ?तबला तो आप सब ने देखा है उसी का बडा भाई होता होगा नगाडा, उसे ही नक्कार कहते होगे और तूती बिल्कुल छोटी सी बांसुरी से भी छोटी होती होगी । खैर ।मै एक बार पहले भी निवेदन कर चुका हूं कि धन वर्षा करने वाले यंत्र ,मैने बहुत अध्ययन किया है , असर कारक होते है ,हन्ड्रेड परसेन्ट ये आपके घर धन की वर्षा कर सकते है बशर्ते कि आप इन्हे बना कर बेचें ।

ओशो से किसी ने पूछा बिल्ली रास्ता काटे तो क्या समझना चाहिये । बोले-यही समझना चाहिये कि बिल्ली कहीं जा रही है ।बात खत्म ।अन्धविश्वास कोई नया नही है बहुत गहरी जडे हैं इसकी । बिल्ली, सर्प, नेवला, अंग का फ़रकना , छिपकली का ऊपर गिरना, कौआ का सिर पर बैठ जाना ,घोडे की नाल की अंगूठी ,नीबू मिर्च घर के दरवाजे पर टांगना (बोले इसमे अपना नुक्सान क्या है ),और भी न जाने क्या क्या । जिसमे सर्प को लेकर तो खूब दोहन किया फ़िल्मों ने । नाग एक जाति होती है ,उस जाति मे राजा भी हुए है "नर नाग सुर गंधर्व कन्या रूप मुनि मन मोहहीं ।सर्प को नाग भी कहा जाता है तो इस सर्प को उस नाग जाति से जोड दिया ।जैसे नामो के आगे "सिंह " लगता है सिंह शेर को भी कहते है ।पुराने लोगों को मालूम होगा आजकल तौल का माप किलो होता है वैसे ही पहले सेर होता था , पहले क्विंटल नही मन होता था तो लोग कहा करते थे चालीस सेर का एक मन होता है , मन बडा चंचल है,चंचल मधुवाला की बहिन है, मधुवाला को दिल का दौरा पडा था ,दिल एक मंदिर है ,मंदिर हरिद्वार मे बहुत हैं ,हरिद्वार मे संगम है ,संगम मे राजकपूर है ,राज हिन्दी मे शपथ लेने मना करते है आदि इत्यादि । देखो कहां से कहां पहुंच गये ।

हां तो अन्धविश्वास- जो बीमारियों को दैवीय प्रकोप समझते थे अब धीरे धीरे दूर होता जारहा है ,सर्प के बारे मे भी भ्रांतियां नही के बराबर है ,बिल्ली वगैरा को आजकल कोई मानता नही । कुछ दिन पहले मैने पढा एक पुराने नीम के पेड मे से दूध गिररहा है ,लोग इकट्ठा हो गये मेला लग गया किसी जन्मांध की आंख अच्छी हो गई ,किसी ने गले पर लगा लिया तो उसका केंसर अच्छा हो गया,कमाल है ।एक दिन वे कहने लगे साह्ब बडा चमत्कार है इधर से मरीज को खटिया पर डाल कर ले गये थे उन्होंने जल छिड्का ,उधर से मरीज दौडता हुआ आया ,मेला लग रहा है चमत्कार हो रहा है तुम भी चलो । अब मै उनसे कैसे कहूं कि मैने तो ऐसे-ऐसे चमत्कार सुने है कि "" कल तलक सुनते थे वो विस्तर पे हिल सकते नही/आज ये सुनने मे आया है कि वो तो चल दिये।

एक व्यक्ति श्रद्धा और विश्व्वास से एक ग्रंथ पढता है दूसरे के लिये वही अंध विश्वास हो सकता है ।स्वर्ग नर्क को अन्ध विश्वास कहने वालो के बुजुर्ग आज भी स्वर्गबासी या स्वर्गीय हैं ।किसने देखा, किसकी मानें, किसकी नही ""उतते कोउ न आवही जासे पूछूं धाय /इतते सबही जात हैं भार लदाय लदाय ""
अदालत मे गवाह पेश होते है वे तीन तरह के होते है एक पूर्ण विश्वसनीय , दूसरे पूर्ण अविश्वसनीय और तीसरे वे जो न पूरी तरह से विश्वसनीय है न अविश्वसनीय है ,ये बडे तकलीफ़देह होते है इनकी बातो से सच निकालना वैसा ही है जैसे भूसे के ढेर से दाने चुनना ।विश्वास और अन्धविश्वास के मध्य भी कुछ ऐसी ही स्थिति है ।

Saturday, November 21, 2009

मेरा तो हो ही जाये -पुनर्जन्म

किसी का होता हो या न होता हो मेरा तो हो ही जाये पुनर्जन्म । मजा आता है ।कभी ऊंट बने किसी पहाड के नीचे खडे है ,कभी बैल बने फिर रहे हैं न लाज न शर्म ।बीच सडक पर बैठे है कार वाला हार्न बजा रहा है नहीं हट रहे ।कभी गधा बन गये बीच चौराहे पर पंचम स्वर मे ढेचू ढेचू कर रहे है और कभी कुत्ता ,+ वैसे भी कर तो यही सब कुछ रहे हैं मगर फ़िर और आजादी रहेगी । इसलिये मेरा तो हो ही जाये ।
ऊंट का तो ये है कि इसके द्वारा पेडों को ठूंठ करना निश्चित है और इसका किसी करवट बैठ्ना अनिश्चित है ।
बैलों का हमारे इधर हाट भरता है लोग उसे मेला भी कहते है ,मोटर सायकल और जीप (जनरल परपज व्हीकल, जीपीव्ही से अब केवल जीप रह गया है ) के प्रचलन से पूर्व घोडों का बाजार लगता था ,शाम को व्यापारी हिसाब लगाते थे किसको कितना प्रोफ़िट हुआ ।एक व्यक्ति घोडा बेचने लाया ऊंचा पूरा ,हवा से बातें करने वाला (यह मुहावरा है ,हमारे यहां मुहावरे बहुत होते हैं ,सभी भाषा में होते होंगे ) सबके घोडे बिकगये उसके पास कोई ग्राहक न आया यह सोच कर कि ,बहुत महगा होगा न जाने क्या कीमत मांगेगा? शाम को एक ग्राहक आया ,कीमत पूछी ,बोला ट्रायल ले लूं -ले लो ,उसने घोडा इधर उधर घुमाया ,एड लगाई और नौ दो ग्यारह ।(यह एक गणितीय मुहावरा है ,गणित मे मुहावरे बहुत है , तीन पांच करना,निन्यानवे का फ़ेर , चौरासी की चक्कर ,छ्त्तीस का आंकडा ,वैसे तो गाने भी बने है एक दो तीन आजा मौसम है रंगीन , एक दो तीन चार भैया बनो होशियार ,एक ने गिनती शुरु की तो वह तो गिनती ही चली गई वो तो बीच मे "तेरा करुं दिन गिन गिन के इन्तजार आजा ..शब्द आगया नही तो चार पांच सौ पर जा कर रुकती ) खैर ,बेचारा घोडे का व्यापारी देखता रह गया ।रात को सब हिसाब लगाने लगे किसको कितना मुनाफ़ा हुआ । इससे पूछा तो ये बोला भैया मैने तो नो प्रोफ़िट नो लौस में दे दिया ।
गधा केवल इस लिये गधा होता है क्योंकि वह गलत धारणा (ग....धा....) रखता है सब रखते हैं मै भी रखता हूं । एक दिन शाम को हमें(बहुबचन) बाजार जाना था ,मैने कहा तुम आगे चलो मैं ताला लगा कर आता हूं ,बोलीं नही मै तो तुम्हारे पीछे ही चलूंगी और गाने लगी "तुम्हारे सग मै भी चलूंगी पिया जैसे पतंग पीछे डोर""मैने कहा तुम लोग आगे बढ्ना क्यों नही चाह्ते ,कहा देखिये गधा कितनी ही लातें मारे धोबी उसके पीछे ही चलता है ।यह बात भी सही है कि मेरे यहां कपडे धोने वाला पांच छै दिन से नही आरहा था ।
कुत्ते के वाबत सुना है इसे स्वर्ग मे प्रवेश नही करने देते ,कही कही हवाईजहाज और कही होटल मे भी मुमानियत है ।एक कुत्ते को हवाई जहाज मे एड्मीशन नही दिया तो सुना है उसकी मालिकिन अभिनेत्री ने भी यात्रा निरस्त करदी ठीक उसी तरह जैसे धर्म्रराज युधिष्टिर ने स्वर्ग जाने से इन्कार कर दिया था ।मगर मैनेजर के मना करने के बाद भी एक अभिनेत्री नही मानी और कुत्ते को होटल मे ले ही गई ।क्या नाम था उस अभिनेत्री का ,शायद जीनत अमान या कोई और ,खैर लावारिस फ़िल्म की बात है अब कुत्ता, हरीमिर्च और अमिताभ बच्चन ।क्या उत्पात मचाया है कुत्ते ने कि कुछ न पूछों ।वैसे भी आप कहां कुछ पूछ रहे है ।पूरे होट्ल को तहस नहस कर डाला ।साखाम्रग की यह अधिकाई, साखा ते साखा पर जाई की तरह इस टेविल से उस पर और उससे इस पर ।यूं की.....मजा आ गया जिन्दगी का । इसलिये मेरा तो हो ही जाये ।
बहुत पहले मैने टीवी पर देखा ,एक लड्की अपने आप को पिछले जन्म की नागिन बतला रही थी और एक युवक के वाबत कह रही थी कि यह मेरा नाग है हम नाग नागिन का जोडा रहता था तो एक नेवले ने हमको मार दिया था मजेदार बात ये कि वह नागिन लडकी ,उस युवक की पत्नी को नेवला बतला रही थी ,भाइ कमाल है और एक बात -
यह भी टीवी पर ही देखा ,एक लड्की के वाबत (यह दूसरा किस्सा है ) बतलाया जा रहा था कि यह पिछले जन्म मे नागिन थी क्योकि इसके आगे बीन बजाओ तो वह मारने दौड्ती है ।यार आप आफ़िस जाने घर से निकलें और कोई आपके आगे बीन बजाने लगे कैमरा मैन फ़ोटो खीचने लगे और अगर आप उसे मारने हाथ उठाओ तो वे कहें देखिये, गौर से देखिये, नाग फ़न फ़ैला रहा है ,अच्छा भला आदमी पागल हो जाये दस दस बीन बाले ,दस दस कैमरा मेन,बच्चों की भीड ,वो बच्ची मारने नही दौडेगी तो क्या लड्डू बांटेगी ।

Friday, October 30, 2009

डाक्टर न बने तो क्या हुआ

प्रेम-पत्र के पश्चात मैने कुछ लिखा नही ,लिखना सम्भव भी नही होता - इसके पश्चात तो सुनना और भुगतना ही होता है ,मगर मेरी तो तबीयत खराब हो गई थी ।मैने अपने एक परिचित से पूछा यार कोई अच्छा सा चिकित्सक तुम्हारी नजर मे हो तो बताओ -वे तपाक से बोले फलां डाक्टर को बताओ ,फिर अपने हाथ का अंगूठा और तर्जनी के पोरों को मिलाते हुये बोले ,ए-वन ! मेरा तो उन्ही का इलाज चल रहा है , तीन साल से , जुकाम का ।

डाक्टर बनना बहुत ही कठिन है ,प्री फिर पांच साल - फिर प्री -फिर पीजी और डाक्टर बनना बहुत ही सरल है फीस भेजो ,पत्राचार से घर बैठे डाक्टर बन जाओ ।मेरा न जाने कहां से इन्हे पोस्टल पता मालूम हो गया ।दोसाल तक लगातार पत्र व फार्म आते रहे कि घर बैठे काहे के डाक्टर बनना चाह्ते हो तमाम तरह की पैथी के नाम लिखे थे ।

एलोपैथी मे परेशानी ये कि गेल्युसल कहूं या जेल्युसल ,जेरीफोर्ट कहूं या गेरीफोर्ट ,आयुर्वेदिक दबाओं के वारे में तो शरद जोशी जी ने कहा ही था कि इनके नाम ऐसे है जैसे कोई कन्या स्कूल का हाजिरी रजिस्टर हो -बसन्तकुसमाकर ,स्वर्णमालिनी,अश्वकंचुकी और यूनानी के नाम बाप रे ""खमीरागावजवांअम्बरीजबाहिरवालाखास" एक दबा का नाम लिखो तब तक सरकारी डाक्टर तीन मरीज निबटा चुके ( निबटा चुके ,मतलब तीन पेशेन्ट के प्रिस्क्रिप्शन लिख चुके ,क्या करें, एक एक वाक्य के कई कई तो अर्थ होते है)

तो गरज ये कि दो साल तक मेरे पास पत्र आते रहे, अन्त में उन्होने सोचा कि किस बेवकूफ से पाला पड गया ।
अकबर बीरबल के किस्से मशहूर है ,मेरे पास एक किताब है ""अकबर बीरबल विनोद "" लगता है इन्हे कोई काम ही नहीं था अकबर बेतुके सवाल करते और बीरबल बातुके जवाब देते।एक मर्तवा बीरबल के पिता आये ,बीरबल उन्हे महल ले गये ,अकबर के बेतुके सवाल शुरु हो गये -तुम्हारे गावं मे कितने कौए हैं,आसमान मे कितने तारे हैं ,प्रथ्वी का बीचोंबीच कहां है , पिताजी चुप ,बार-बार प्रश्न, मगर कोई रिस्पांस नही,’अकबर झुंझला गये ,किस मूर्ख से पाला पड गया ।बीरबल को बुलाया पूछा क्यों बीरबल किसी मूर्ख से पाला पड जाये तो क्या करना चाहिये बीरबल ने कहा हुजूर वो ही करना चाहिये जो मेरे पिताजी कर रहे हैं ।

तो उन्होने ने भी सोचा किस मूर्ख से पाला पड गया यह लाइफ मे कभी डाक्टर नही बन सकता और वही हुआ भी मै फिर कभी डाक्टर नही बन पाया और आज भी बेडाक्टर हूं
वो तो मैं बन जाता अगर पैसे होते ।उन्होने तो कहा था कि १० हजार मे सिनाप्सिस और ५० हजार मे थीसिस लिखूंगा ,वाकी किसके घर नियमित सब्जी पहुंचा कर हाजिरी देना है व किसको थ्रीस्टार में ठ्हराकर एक बार पार्टी व गिफ्ट देना है यह तुम जानो ।

मानद उपाधि तो मुझे मिलने ही क्यों लगी ।

गरज ये कि मैं डाक्टर नही बन पाया मगर इतना जरूर है मैं अपने गले मे स्टैथ्स्कोप लट्का सकता हूं क्योंकि ऐसा कोई कानून नहीं है जो मुझे मना कर सके । मोटर सायकल पर सवार हो कर कोई हैलमेट न पहने तो उसका चालान हो सकता है किन्तु कोई सायकल पर सवार हो कर हैलमेट पहने तो उसका चालान कैसे होगा ! कानून की भी बडी विचित्र माया है । अपनी भारतीय दण्ड संहिता को ही लो ,एक अपराध ,यदि उसको करने की कोशिश की ,प्रयास किया तो गिरफ़्तार ,चालान भी और सजा भी , किन्तु यदि उस अपराध को घटित कर दिया तो पुलिस का आई जी भी गिरफ़तार नहीं कर सकता सजा का तो प्रश्न ही नहीं । मतलब अपराध के प्रयास _कोशिश मे सजा और अपराध करदो तो कोई सजा नही ।कुल मिलाकर नतीजा यह कि मैं स्टेथस्कोप पहन सकता हूं ।

Sunday, September 27, 2009

प्रेम-पत्र

एस एम् एस और ई मेल युग के पूर्व का समय प्रेम-पत्र का स्वर्णकाल कहलाता है बड़ा क्रेज़ था प्रेम-पत्र का ,बड़े चाव से लिखे-पढ़े जाते थे सिनेमा ने भी इनका खूब उपयोग व उपभोग किया है फूल तुम्हे भेजा है ख़त में,, तो मुगले आज़म में सलीम ने फूल में ही पत्र रख कर नेहर के माध्यम से भेजा राजकुमार ने तो पाकीजा में केवल इतना भर लिखा था,, की आपके पाँव देखे ......जमीन पर मत उतारियेगा ,,मगर पाकीजा जी ने तो उस पत्र को चांदी की डिबिया में ही रख लिया । रखते हैं साहब बड़े सम्हाल कर रखते हैं ,जीवन पर्यन्त रखते हैं ,तभी तो मरने की बाद ""चन्द फोटो और चन्द हसीनों के खतूत " निकलते हैं देखिये =ये मेरा प्रेम पत्र पढ़ कर कि तुम नाराज़ न होना , क्यों भैयाजी क्यों नहीं होंगे नाराज़ जब तू अनर्गल कुछ तो भी लिखेगा लड़किया -लड़के पत्र लिखते थे तो ,,लिखते थे, चला जा रे लेटर कबूतर की चाल ,क्यों भैया कबूतर से ज्यादा तेज़ चाल वाला और कोई पक्षी नज़र नहीं आया ,उस पर तुर्रा ये की पत्र के अंत में लिखा जाता था ""खत लिख रहा हूँ या लिख रही हूँ जो भी स्थिति रही हो खैर , तो खत लिख रही हूँ खून से स्याही न समझना अरे तू जब नीले पेन से लिख रही है तो कैसे न समझना ?

एक बात और उस ज़माने में प्रेम-पत्र कैसे लिखें नामक किताब भी उपलब्ध थी , ठीक हारमोनियम शिक्षा ,तबला गाईड ।बांसुरी शिक्षा ,सावरी मन्त्र ,सेवडे का जादू की तरह एक श्रीमानजी के पास वह किताब थी । उसमे से छांट कर एक प्रेम पत्र लिख कर भेजा गया ,बड़ी उम्मीद थी उत्तर की उत्तर तो आया मगर छोटी सी स्लिप के रूप में, लिखा था "उत्तर के लिए कृपया पेज ९८ के पत्र क्रमांक १२२ का अवलोकन करने का कष्ट करें" ।शिक्षा का भी अभाव था तो प्रेमिकाएं या पत्नियाँ पोस्ट मेन से ही पत्र लिखवा लिया करती थी ""ख़त लिखदे संवरिया के नाम बाबू कोरे कागद पे लिखदे सलाम आदि इत्यादि॥

छोटे छोटे बच्चे ,प्यारे प्यारे बच्चे, दुलारे बच्चे, कापियों और किताबों में पत्र रख कर आपस में आदान प्रदान किया करते थे "" नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है ?"" बोले चिट्ठी है फलां ने दी है फलां के पास पहुँचाना है ।ऐसी बात भी नहीं कि ख़त चोरी छिपे ही भेजे जाते हों ,कुछ बच्चियां ख़त ऐलानियाँ भेज कर गाती भी थी ""हमने सनम को ख़त लिखा ,ख़त में लिखा ......." और खत मे क्या लिखा है वे न भी बतलाना चाहे तो भी "खत का मन्जमू भाप लेते है लिफ़ाफ़ा देख कर "" फिर इन्क्वारी भी होती है "" तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किसका था न था रकीब तो आखिर वो नाम किसका था ?"" जवाब देना मुश्किल हो जाता है ।

उस ज़माने मे एक बात जरूर मह्सूस की गयी कि यदि किसी से प्रेम हो जाये तो उसे अनेतिक सम्बन्ध या नाज़ायज सम्बन्ध कहा जाता था किन्तु प्रेम पत्र को किसी ने अनैतिक प्रेम पत्र या नाज़ायज प्रेम् पत्र कहा हो ऐसा मुझे ध्यान नही है ।

मैंने सुना है
एक बिलकुल सत्य घटना ,कल्पना नहीं ,फ़साना नहीं ,हकीकत उस स्वर्णकाल की बात है ,श्रीमानजी को मोहल्ले की किसी से इकतरफा इश्क हो गया हो जाता है साहिब, एकतरफा डिक्री की तरह ,मालूम तब होता है जब कोर्ट से कुर्की वारंट आजाता है ,तो श्रीमान जी ने प्रेम पत्र लिखे ,कागज़ नहीं मिला तो बच्चों की पुरानी कापी किताबे रखी थी उनमे ही लिख डाला ,भेजने की हिम्मत हुई नहीं --अब क्या हुआ कि बच्चों ने रद्दी मोहल्ले के हलबाई को बेचदीं ,अब इत्तेफाक देखिये उन महिला ने समोसे मंगवाए तो वह कागज़ समोसे में लिपटा उनके पास पहुँच गया ।कुछ लोगों की आदत होती है कि मिठाई या नमकीन जिस कागज़ में या अखवार में आया है उसको पढने लगते हैं ऐसे आदत क्यों होती है यह तो पता नहीं मगर होती है ,किसी फिल्म में नसरुद्दीनशाह को भी ऐसे ही पढ़ते दिखलाया गया है शायद उस फिल्म का नाम है जाने भी दो यारो खैर

अब देखिये जनाब क्या हंगामा वरपा है ,जितना कि उस वक्त भी न बरपा होगा जब थोड़ी सी पी ली है ,उससे भी ज्यादा 'कि सिर्फ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नहीं "" और ’हंगामा’ फिल्म से भी ज्यादा
अब जो श्रीमान जी की ठुकाई पिटाई उस महिला और श्रीमान जी की श्रीमती जी द्वारा की गई तो यूं समझो के मज़ा आगया जिंदगी का तब मैंने नेक सलाह लोगों को दी थी कि अव्वल तो शादी शुदा होते हुए किसी से प्रेम न करे और अगर करे भी तो मोहल्ले की किसी महिला से न करे और अगर करे तो उसे पत्र न लिखे और अगर पत्र भी लिखे तो बच्चो की कापियो मे न लिखे और अगर लिखे भी तो उसे रद्दी वाले को न बेचे

Tuesday, September 22, 2009

क्या मैंने गलत कहा ?

कभी कभी सोचता हूँ मुझे नहीं कहना चाहिए था , फिर विचार आता है कि कह दिया तो कह दिया , उस वक्त परिस्थिति ही कुछ ऐसी थी ,आगया कहने में , फिर सोचता हूँ , ऐसा न हो कि उनकी भविष्य की जिन्दगी बर्वाद होजाय , फिर सोचता हूँ , हो जाये तो हो जाये वैसे कौनसी आबाद है यद्यपि कह कर मैंने अपनी मानसिक उलझनें बढा ली हैं =दर-असल बात यह थी कि =
एक युवती ( पत्नी ) आयु लगभग ३५ -३६ ,जमीन पर अधलेटी अवस्था में , पति के क्रोधी स्वाभाव से परिचित , रो - रो कर कह रही थी आज मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगी तुम मुझे मार डालोगे स्थान पत्नी का मायका , पति एक हाथ से पत्नी के बाल पकडे हुए दूसरे , हाथ से कभी गला दबाता ,कभी चेहरा दबाता और कभी थप्पड़ मारता ,पत्नी गिडगिडा रही थी , तुम रोज़ मुझे कमरे में बंद करके मारते हो ,मैंने मायके में अभी तक नहीं बताया, आज तुम मुझे यही मार रहे हो ,एक दो दिन बाद चली चलूंगी ,आज तुम बहुत गुस्से में हो , चली तो तुम रस्ते में ही मार कर फैंक दोगे
लोकलाज भी क्या चीज है ,बुढिया माँ और बूढा बाप चुप-चाप हैं ,यह और कोशिश कर रहे हैं कि बाहर मोहल्ले का कोई सुन न ले खैर
तो मैंने उससे कहा
तुझे मार डालेगा !अरे तू जिन्दा ही कब है जो तुझे मार डालेगा मुर्दों को नहीं मारा जाता मगर तू तो फिल्म क्रांतिबीर के नाना पाटेकर की डायलोग बनी हुई है ""भगवान् ने हाथ दिए लगे फैलाने ,मुह दिया लगे गिडगिडाने "" क्या तुम्हे तंदूर में फिकने ,मार खाने , रसोई गेस दुर्घटना में मरने हेतु हाथ ,पाँव ,नाखून ,दांत देकर भेजा गया है
तू कहती है तुझे कमरे में दरवाज़ा बंद करके मारता है दीवार फिल्म नहीं देखी क्या ? एक बार तू बनजा अमिताभ ,दरवाज़ा बंद कर ,सांकल चडा , ताला लगा और चाभी फैंक कर कह ""पीटर ले ये चाभी , तेरी जेब में रखले ,अब मैं तेरी जेब से चाभी निकाल कर ही ताला खोलूंगी
अरी शोषित उपेक्षित ,, तुझसे तो ’चालबाज ’' की श्रीदेवी अच्छी ,मालूम है उसने अनुपमखैर से क्या कहा था " ले त्रिभुवन ये चूडी पहनले ,कल तक तेरे हाथ में चाबुक था और मेरे हाथ में चूडियाँ आज मेरे हाथ में चाबुक है , ले पहिन चूडियाँ
फिर ये तो देख तुझे मार कौन रहा है ? तुझ पर हाथ कौन उठा रहा है ? मालूम है ‘आन ‘ में शत्रुघ्नसिन्हा ने जैकी श्राफ से क्या कहा था ?" सुन बालिया औरत पर हाथ उठाना नामर्द की पहली निशानी है" देखले जीना है तो जी , वरना रोज रोज मरने से एक दिन मर ही जा मगर ऐसे मरना की कम से कम चार महिलाओं को जीने का मार्ग बतला जाना
मैंने सुना है
श्रीमानजी की शादी हुई पहले ही दिन यानी पहली ही रात जैसे ही नवबधु ने घूंघट उठाया ,गाल पर एक जोरदार थप्पड़ ,बधू रुआंसी होकर बोली ""कईं अन्नदाता की भयो ,म्हार से कुणसी गलती हो गई ""बोले -यह तो बिना कोई गलती किये का है ,गलती की तो फिर समझ लेना


एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि कहते है चींटी भी दब जाने पर काट लेती है ,लेकिन ये विशिष्ठ ऐतिहासिक परंपरा न जाने कब से चली आ रही है अब इस ऐतिहासिक बर्बरता और हिंसा के लिए किसे दोष दिया जाय वैसे तो हम कहते फिरते हैं दूसरों के साथ वह व्यबहार न करो जो अपने लिए पसंद न हो बिदुर जी ने भी कहा ""आत्म प्रतिकूलानि परेशां न समाचरेत "" बाइबिल में कहा गया ""डू नोट डू अन्टू अदर्स ""सिकंदर ने पुरु से राजाओ जैसा व्यव्हार किया आज भी एक मंत्री पूर्व मंत्री से राजाओ जैसा व्यव्हार करता है किन्तु स्त्री ! वह तो अपनी है , दूसरों के साथ अच्छा व्यव्हार करने की बात कही गई है
ये माना की कई लोग ऐसे भी होते है वे किसी से ही सद्व्यवहार नहीं करते है पत्नी बेटा पडौसी कोई भी हो
मैंने सुना है
एक श्रीमानजी एक दिन प्रात :काल बरामदे में बैठे किसी किताब में तल्लीन थे ,उनके परिचित निकले पूछा कहिये किव्ला क्या हो रहा है ?तल्लीनता में व्यवधान !क्रोध आगया आजाता है ,शंकरजी को भी कामदेव के ऊपर आगया था ,राम ने भी "अस कही रघुपति चाप चडावा "" तो इनको भी आगया , बोले तेरा सर हो रहा है, दिखाई नहीं देता किताब पढ़ रहा हूँ कौन सी किताब पढ़ रहे हो ? एक तो व्यवधान ऊपर से जिरह यानी कूट परीक्षण यानी क्रोस एक्जामिनेशन बोले तू नहीं समझेगा यार तू जा फिर भी हुज़ूर ? क्रोध की सीमा पार ""व्यवहार शास्त्र " पढ़ रहा हूँ तेरे बाप ने भी इस किताब का नाम सुना है ?
मेरा आशय केवल मात्र इतना है की कभी कभी मुंह लगने पर भी आदमी का क्रोध बढ़ जाता है और वह अपना आपा खो देता है लेकिन हमेशा ही तनाव में या क्रोधित रहना कि पत्नी घर में अशांति और बैचेनी महसूस करे ,एक अज्ञात भय और असुरक्षा की भावना उसमे रहे ऐसा तो नहीं होना चाहिए इसीलिये मैंने उपरोक्त बात कह दी थी ,वरना मेरा आशय घरों में अशांति फैलाने का नहीं था

Sunday, September 20, 2009

कृपया मार्गदर्शन करें

मेरे साथ बड़ी दिक्कत होगई ,मैं कम्प्यूटर में कुछ जानता नहीं और इन्टरनेट की साइड खुलना बंद हो गई ,कम्प्यूटर इन्टरनेट कनेक्ट बतलाता था - मैं जहाँ इस वक्त हूँ वहां कोई जानकार भी नहीं है झालावाड राजस्थान जिले की छोटी सी तहसील पिरावा , केवल एक दुकान ,तो मैंने उन्हें जाकर प्रॉब्लम बतलाई ,बोले ठीक कर दूंगा ,वे आये और डब्बा (सी पी यूं ) उठाकर ले गए ,दूसरे दिन वापस इन्टरनेट भी कनेक्ट और साइड भी खुलने लगी

वे चतुर सुजान बोले ,मैंने फोर्मेट कर दिया है ,मुझे क्या पता ये क्या होता है मैंने सोचा अब कोई लेख लिख डालें पहले मैंने गुलाम अली साहिब की ग़ज़ल सुनना चाही जो मेरे कंप्यूटर में थी ,जैसे ही ग़ज़ल सुनना चाही मीडिया प्लेयर पर सन्देश आया……not be a sound device installed or it may not bhee functioning properly मैंने सोचा मत सुनो ,कुछ लिखें , गूगल का ट्रांसलेशन खोल कर कुछ लिखा और जैसे ही मैं अपने डाक्यूमेंट पर लेगया तो वहां हर शब्द की जगह चोकोर डब्बे जैसे कुछ बन गए कुछ इस तरह के ()()()()()()( गोल नहीं बल्कि चौकोर )

अब इतनी क्षमता तो है नहीं कि डायरेक्ट ब्लॉग पर लिखदूं ,पहले तो डाक्यूमेंट पर सेव कर दुरुस्ती करता था फिर सोचा लेख न सही टिप्पणी ही सही ,कुछ ब्लॉग खोले तो ब्लॉग तो खुले लेकिन लेख या रचना की जगह वही ०००००००००० अब क्या तो पढू और क्या टिप्पणी करूं ,भाई मेरे कंप्यूटर का फॉण्ट उन चतुर सुजान ने फोर्मेट करके गायब कर दिया तो ,तो क्या हुआ दूसरे के कंप्यूटर में तो होगा ,डायरेक्ट टिप्पणी लिख दूंगा मगर नहीं तो मुझे एक किस्सा याद आगया

एक पटेल थे अंधे ,पास के गाव में समधी के यहाँ गए ,बातें करते खाना खाते अँधेरा हो गया , पटेल ने कहा अब चलें , समधी ने कहा लालटेन ले जाओ पटेल पटेल ने कहा क्यों मजाक उडाते हो ,हमें लालटेन से क्या मतलब है ,समधी ने कहा ये बात नहीं अँधेरे में तुमसे कोई टकरा न जाये इसलिए खैर पटेल लालटेन लेकर चल पड़े ,लेकिन वही हुआ ,"रास्ते में उनसे मुलाकात हुई , जिससे डरते थे वही बात हुई "" एक सज्जन रस्ते में पटेल से टकरा गए पटेल ने कहा भैया हम तो जानमान अंधे हैं पर तुमऊ का अंधे हौ जो हमनते टकरा रहे हौ - बोले दादा माफ़ करियो अँधेरे में कछू सूझो नाय पटेल ने कहा जई वास्ते तो हम लालटेन लै कै आए हते , सज्जन ने कहा तौ दादा लालटेन जला तो लेते

खैर सा'ब, वे चतुर सुजान तो एक दिन एक सी डी लेकर आये और ७०-८० फॉण्ट डाल गए मगर मेरी समस्या बरक़रार है मैं साहित्य पढने से वंचित हो रहा हूँ साथ ही टिप्पणी करने से भी ,कृपया कोई सरल सी तरकीब बतलादें ,ताकि में ब्लॉग पढ़ सकूं एक बात और किसी किसी ब्लॉग में यह दिक्कत नहीं भी आरही किन्तु ज्यादातर ब्लॉग पढने में आरही है

Sunday, September 13, 2009

पापा कहते हैं

पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा, एक ने गाया, तो दूसरा गाने लगा डैडी मेरा बड़ा परेशान बेटा बड़ा होकर नाम करे कहीं इसीलिये पिता की सम्बेदना या भावना ,इच्छा ,विचार ,चिंता इस मायने में कि- चाहे वह स्वम बाबू या मास्टर हो लेकिन लड़के को कलेक्टर बनाने की सोचता है ,चपरासी है मगर लडकी के लिए इंजिनियर बर ढूंढ़ना चाहता है , लड़के द्वारा की गई बदतमीजियों पर दूसरों से माफी मांगता रहता है और लडकी के ससुर और लडकी के पति के चरणों में झुक कर बार बार गलतियों की क्षमा प्रार्थना करता रहता है लडकी की शादी में अपनी सारी जमा पूंजी निकाल लेता है और लड़के की अच्छी नौकरी के लिए अपना मकान बेच कर किराये के मकान में रहने लगता है {{यहाँ अच्छी नौकरी के लिए मकान बेचना इससे मेरा तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि रिश्वत देना होती है वो तो क्या है, की कुछ लोग ऐसा धंधा ही करते है ,बेवकूफ बना कर पैसे लेलेते है इस शर्त पर की सेलेक्ट नहीं हुआ तो पैसे वापस

यदि सिलेक्शन म्हणत ,योग्यता अथवा इत्तेफाकन हो जाता है तो उसके पैसे रख लेते है वाकी न होने वालों के पैसे ईमानदारी से वापस कर देते है ,हां कुछ म्हणताना जरूर खा लेते है और वापस पाने वाले को थोडा नुक्सान अखरता भी नहीं है क्योंकि कहावत है " सब धन जातो देख के आधो लीजे बाँट " और भागते भूत की ........." और फिर ये पैसे बहुत अवधि बाद किश्तों में पटाते है क्योंकि अलग अलग फिक्स डिपॉजिट कर देते है व्याज ये खा जाते हैं ,मूल में से कुछ काट कर पक्षकार को वापस कर देते है पक्षकार कोई कोर्ट कचहरी में ही नहीं होते ,

जो आने वाली भोर से डर कर रातें जाग जाग कर काटे वह पिता , ,,,,,,,,,पापा , से डेड हुआ डैडी धरती पर परेशान होने के लिए ही अवातारित

होता है बच्चों की सम्बेदन-शीलता इस मायने में कि उपलब्ध कम मालूम पड़ता हो तो उसकी वजह है डैडी ,दूसरों के पास हम से अधिक सुख सुविधाएँ हैं तो उसका कारण हैं पापा , बेटा कहा रहा था पापा यदि आपने जिन्दगी में किसी नेता की चमचागिरी ही की होती तो आज हमें यूं बेरोजगारी का मुहं नहीं देखना पड़ता आपने हमें महंगे स्कूल में नहीं पढाया , अरे अपने सस्ते ज़माने में दो चार प्लाट ही नगर में लेकर पटक दिए होते

वैसे कहा तो यह जाता है कि There is a woman behind every successful man मगर आज यह कहना विल्कुल सही है कि हर सफल व्यक्ति के पीछे उसका पापा होता है फिर चाहे वह फिल्म नीती हो या राजनीती कुछ डैडी अपने बेटे को कठिन परिश्रम की सलाह देते हैं तो कुछ कहते हैं कि = माना कि कठिन परिश्रम से आज तक कोई नहीं मरा फिर भी रिस्क क्यों ली जाये

मेरी नज़र में ""डैडी या पापा वह ,जो सबकी चिंता करे मगर उनकी चिंता कोई न करे""मैं एक विचार -धारा से परिचित हुआ आज की पीढी के विचार ""हम भी कुछ पुण्य करके आये हैं जो हम आज सफल हैं ,तुम न पालते तो कोई दूसरा पालता क्योंकि जो जन्म देता है वह उसके जीवन की रक्षा, भोजन पानी सबकी व्यवस्था कर देता है पाला पोषा , पढाया लिखाया , तो सब माँ बाप पढाते लिखाते हैं यह विचार धारा जब बुजुर्ग माता पिता के समक्ष क्रोध या आवेश में प्रकट की जाती होगी तब उस पापा पर क्या गुजरती होगी ?

मुनि श्री तरुण सागर जी ने एक प्रवचन में कहा था कि एक, इकलौता डाक्टर बेटा अपनी माँ का स्वम उपचार कर रहा था जब माँ स्वस्थ हो गई तो बेटे ने दबाओं का बिल माँ को पकडा दिया आज की पीढी को दोष देना भी व्यर्थ है / क्योंकि हो सकता है यह विचार धारा पुरानी रही हो क्योंकि जो शेर मैंने पढा वह भी पुराना ही है ""हम उन किताबों को काबिले जप्ती समझते हैं /कि जिनको पढ़के बेटे बाप को खब्ती समझते हैं ""

Monday, August 31, 2009

रहिये अब ऐसी जगह चलकर

रहिये अब ऐसी जगह चल कर जहाँ मच्छर न हों -पत्नी का यह शायराना अंदाज़ भलेही मुझे अच्छा लगा, किंतु मेरा कहना यह था की जायें तो जायें कहाँ ? उनका कहना यह था की अपने यहाँ जैसे और जितने मच्छर कहीं भी नहीं होंगे, इसलिए मकान या मोहल्ला बदलना ही होगा| मेरा सोच यह है कि शेर -सांप -बिच्छू –मच्छर, आदि से डर कर नहीं वल्कि इंसान -इंसान से डर कर मोहल्लों का परित्याग किया करते हैं |

उनकी परेशानी अस्वाभाविक नही थी -औसत मच्छर से बडे और मक्खी के आकार से कुछ छोटे, आम मच्छर से हट कर यानी ख़ास मच्छर, गोया बहुत ही खतरनाक मच्छर -अगरबत्ती व टीकियों की खुशबू व बदबू को नज़रंदाज़ कर देते है -प्याज काट कर बल्ब के पास लटका दो तो उसके इर्द-गिर्द ऐसे मंडराने लगते हैं जैसे प्याज प्याज न होकर कोई फूल हो और वे स्वयम भँवरे हों - घर में धुआं कर दो तो, वे यथास्थित रहे और आदमी घर से भागने लगे -किसी की आँख में जलन -किसी को आंसू -किसी को छींक -किसी को खांसी | मेरे द्वारा एक दिन धुआं कर देने पर मेरे बीबी बच्चों का मुझ पर नाराज़ हो जाना तो स्वाभाविक था क्यों कि वे मेरे अपने थे , किंतु आश्चर्य बिल्डिंग के अन्य लोग भी नाराज़ नजर आए | दीवालें काली हो रही हैं -कमरों में बैठना मुश्किल है -अजीब किरायेदार आया है -धुआं कितना घातक होता है जानता ही नहीं है -आक्सीजन की कमी हो गयी आदि इत्यादि|

|मच्छरदानी कोई अज़नवी चीज़ नहीं मगर उसके बाबद मेरा सोचना है कि मच्छरदानी -खरीद तो ली मगर इसे बंधोगे कहाँ -अव्वल तो बांस के चार डंडे मिलना मुश्किल , लोहे की रोड लगवाने लायक पलंग नहीं ,दूसरे मकान मालिक दीबारों में कील ठोकने नहीं देगा ,अथवा तो कीलें स्वयम नहीं ठुकेंगी थोडा सा पलस्तर उखाड़ कर टेडी हो जायेंगी और उचट कर ऐसी जगह गिरेंगी की ढूंढते रह जाओगे | और ठोकने वाले का अंगूठा !मरहम पटटी का इंतजाम पहले कर लेना चाहिए |वैसे कायदा तो यह है कि, दीवार में कील ठोको तो कील पत्नी को पकडाओ |

मच्छरदानी बाँध कर सर्ब प्रथम उसके अंदर उपस्थित मच्छरों की समुचित व्यवस्था करने में सब बुद्धिमता विसर्जित हो जाती है | ऐसा मालूम पड़ता है जैसे मच्छर दानी में कोई ताली बजा बजा कर कीर्तन कर रहा हो |इधर ज़ोर की ताली से अपने हाथ लाल, और मच्छर गायब -वह ऊपर मछर दानी के कोने में -और कोने वाले को मारने की कोशिश की तो मच्छर दानी की डोरी टूटी या कील उखडी|चारों तरफ मच्छर दानी गद्दे के नीचे दबाने के बाद समस्या यह की लाईट आफ कैसे करें -लाईट बंद करने गए यानी दो बार मच्छर दानी हटाई और इधर द्रुत वेग से उनकी प्रविष्ठि हुई, फिर रात भर गाते रहिये "जानू जानू री छुपके कौन आया तेरे अंगना " जाली में फंसा वह प्राणी कितना दुर्दांत -खूंखार और आक्रामक हो जाता है -भुक्तभोगी ही जानता है |

पत्नी का यह यह कहना (वह भी गाकर ) कि "नाली बनाने वाले जाने चले जाते हैं कहाँ " और यह भी की " नाली बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई -काहे को नाली बनाई ""और अगर बनवाई तो इसे ढकवाते क्यों नहीं | मैं समझाना चाहता हूँ "तुम सुनहु ग्रह मंत्री स्वरूपा, नाली बनहि बजट अनुरूपा "" और बजट आजायेगा तो ढकवा देंगे| और बजट के अंदर व समय सीमा में कभी काम पूरा होता नहीं है क्यों ?

तो चलो 'फिर दूसरी जगह चलो | मैंने कहा अरे वाह, कल को तुम कहोगी की ऐसी जगह चलो जहाँ हत्या, बलात्कार, चोरी, डकेती, अपहरण, न होते हों |दूसरे नालियों में कचरा सब्जी छिलके तुम डालो ऊपर से शिकायत| इसीलिये तो किसी ने कहा है “”इस आग को कैसे कहें ये घर है हमारा -जिस आग को हम सब ने मिलकर हवा दी है””

Monday, August 17, 2009

भूंख से मरने की नौबत आ ही जाये तो

जब भूंख से मरने की नौबत आ ही जाये तो क्रियाओं और पदार्थों को त्याग कर, बन में चले जाना या निष्क्रिय हो कर समाधिष्ठ योगी बन जाना विकल्प नहीं है क्लेश युक्त जीवन व्यतीत न कर कर्त्तव्य पथ पर चलना आवश्यक है मनुष्य जीवन का लक्ष्य सुख प्राप्त करना है और उसके लिए कर्म आवश्यक है |

एक कहावत है ""जब तक धरती पर एक भी मूर्ख मौजूद है अक्ल्मंन्द भूखों नहीं मर सकता| - ५-५ रुपयों में लकडी के एक एक बालिश्त के टुकड़े बिक जाते हैं, जिनको मात्र घर में रखने से खटमल व मच्छर भाग जाते है, जिनको पुस्तकों की अलमारी में रखने से पुस्तकों को दीमक नहीं लगती है | बाद में मालूम चला उस लकडी को ही दीमक खा गई

आप एक काल्पनिक कम्पनी बनाइये और अखवार में विज्ञापन दीजिये, कि ऐसी कोई चार संख्याएं लिखो जिसका योग २५ हो| कम्पनी का कोई कर्मचारी या संबन्धी इस प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकेगा प्रथम पुरस्कार पाने वाले को १० हजार रूपये का टीवी सेट दिया जायेगा |आपका उद्देश्य प्रविष्ठी भेजने वाले का नाम और पता जानने भर का होना चाहिए अब जो नाम आपके पास आये हैं उन सभी को पत्र भेजिए कि आपने प्रथम पुरस्कार जीता है | सभी लोग ऐसी संख्याएं लिखेंगे जिनका योग २५ आता है ,किन्तु यदि किसी का योग २३ या २० आता है तो उसे भी सूचना भेजिए कि आपने प्रथम पुरुस्कार जीता है| आप दो हज़ार रूपये भेजिए ताकि आपका मॉल पार्सल से भेजा जा सके अब आपका नैतिक कर्तव्य है कि आप पोस्ट बॉक्स नम्बर पोस्ट बेग नम्बर का मोह त्याग कर मोहल्ला बदल लें राशिः ज्यादा हो तो शहर बदल ले देश में शहर बहुत हैं |

किन्ही वकील साहिब के पास जाइये उनसे कोई कानूनी पुस्तक लीजिये (जमीदारी उन्मूलन अधिनियम ही सही ) और उसे सस्ती सी प्रेस पर हलके से कागज़ पर किताब नुमा आकार दीजिये तथा तांगे या सायकल रिक्शा में बैठ कर भोंपू से प्रचार कीजिए कि सरकार ने कानून बनाया है -जिससे किसानों को लाभ होगा किसानों कि वह जमीने, जिनको वे जोत रहे है, और सरकारी कागजात में उन्ही का नाम दर्ज है, और जो उनकी पुस्तैनी है, अब उन्ही की हो जायेगी |उनकी फसल वे काट व बेच सकेंगे| आपके प्रचार से तारीख पेशी करने आये हाट बाज़ार करने आये किसान दो दो रुपयों में वह किताबें खरीद कर ले जायेंगे और अपने गावं में शिक्षाकर्मियों से पेडों तले शिक्षा ग्रहण करने वाले, होनहारों से पढ़वा कर, फूले नहीं समायेंगे | आप गलत भी नहीं है आप तो कह रहे है सरकार ने कानून बनाया है कब बनाया है यह आप कह ही नहीं रहे हैं

अखवार में विज्ञापन दीजिये कि अत्यंत उपयोगी घरेलू उपकरण के विक्रय हेतु विक्रय प्रतिनिधि नियुक्त करना है बेरोजगार स्मार्ट और वाक्पटु को प्रार्थमिकता दी जायेगी| आजकल अधिकांश युवक बेरोजगार है और जो रोजगार से लगे हुए हैं वे पार्ट टाइम जाव की तलाश में रहते हैं क्योंकि चाय, पान, सिगरेट, गुठका ,सिनेमा ,क्रीम, डियोड्रेंट, महंगे हो जाने से घर का खर्च चलता नहीं है| वैसे भी आज का हर युवक अपने को स्मार्ट समझता है करेला और नीम चडा एक तो बेरोजगार ऊपर से स्मार्ट वाक्पटु तो होगा ही ज्यादा से ज्यादा किसी बुक स्टाल से एक दो रुपया रोज पर उपन्यास या फिल्मी पत्रिका लाकर अपना दिन गुजार देता होगा |

जब आप दस हज़ार रूपये मासिक व कमीशन का लालच देंगे, तो वह आवेदन करेगा फिर उसे आपका जवाब मिलेगा कि हमारी समिति के सदस्यों ने आपकी योग्यता और डिग्री आदि देखते हुए सर्वसम्मति से आपको आपके क्षेत्र का विक्रय प्रतिनिधि चुना है आपका मासिक वेतन दस हज़ार होगा और मॉल विक्रय पर १० प्रतिशत कमीशन मिलेगा|विक्रय ५० हज़ार रूपये मासिक तक बढ़ने पर आप कमीशन २५ प्रतिशत हो जायेगा |फिलहाल २० उपकरण आपके शोरूम को भेजेंगे कम्पनी के नियमानुसार आप १५ हज़ार की नगद जमानत भिजवा दीजिये यह राशिः आपकी अमानत रहेगी और जब आप चाहेगे बापस मांग सकते हैं |

हर गरीब मित्र का एक अमीर मित्र जरूर होता है ,यह परिपाटी कृष्ण सुदामा युग से चली आरही है ,तो ऐसे में आपके भाग्य से और उस युवक के दुर्भाग्य से वह अमीर मित्र उस युवक की जरूर आर्थिक सहायता करेगा इसके बाद आपको क्या करना है ,आप स्वम समझदार हैं

एक स्कीम निकालिए १०० रूपये का मॉल ७५ रूपये में मिलेगा पैसे जमा करवाइए ड्रा निकालिए और १०० का मॉल ७५ में बेच दीजिये |देखिये हर धंधे में थोड़ी रिस्क तो उठानी ही पड़ती है अब आप पर लोगों का विश्वास जमेगा बड़े आयटम निकालिए सोफासेट डबलबेड वाशिंग मशीन इत्यादि इत्यादि ,अब आपकी कम्पनी पर लोगों का इतना विश्वास जमेगा कि शायद भगवन पर भी नहीं | अब आप मोटर सायकल ,कार, हेलीकोप्टर .हवाईजहाज.लेपटोप के पैसे जमा करवाइए और अंतर्ध्यान हो जाइये

पत्राचार का कोर्स कर डाक्टर की डिग्री प्राप्त कीजिये |आपने चाहे प्रदेश का नक्षा तक न देखा हो मगर आपको अमेरिका रिटर्न डाक्टर की डिक्री मिल जायेगी |होमोपैथी, नेचुरोपथी, मेग्नेट, एलेक्ट्रोमेग्नेट,यूनानी, ऐलोपथी ,आयुर्वेदिक, प्राकृतिक जिसकी चाहें उसकी |अब आप जीवन से हताश और निराश लोगों का इलाज कीजिये ऐसे रोगी मौत से पहले मरते नहीं और शादी से पहले आत्महत्या करते नहीं, तो आप पर कोई मुकदमा चले इसकी सम्भावना तो है नहीं खाली केप्सूल में पिसी शकर भरिये, शुद्ध दूध से खाने की सलाह दीजिये शुद्ध दूध मिलेगा नहीं और लाभ न होने का इल्जाम आप पर आएगा नहीं ,और जिसके यहाँ शुद्ध दूध होगा वह तो आपसे केप्सूल खरीदेगा ही क्यों वो जीवन से हताश और निराश होगा ही क्यों |

यदि इनसे भी आप भूंख से न बच सकें तो "" लोगों को मूर्ख बनाकर धन कमाने के सौ तरीके ""नामक” मेरी पुस्तक के विक्रय प्रतिनिधि बन जाइये

Wednesday, August 12, 2009

योग से बढकर है योगा

योग तो पुरानी बात है अत उन्होंने योगा करने की ठानी -वैसे भी कुछ लोगों के लिए योगा लाभ की बजाय फेशन की बस्तु ज़्यादा है उनके आधे मोहल्ले और जान पहचान वालों को विदित हो चुका है की श्री मान जी योगा करते हैं फिर भी उनके बच्चों की यही इच्छा रह्ती है की दोराने योगा कोई आए उनसे पापा के वारे में पूछे और वे फक्र से बताएं की पापा इस वक्त योगा कर रहे हैं |

इसके लिए उन्होंने २५ मिनट का समय चुना घर के सब सदस्यों को निर्देश था की इस अवधि में सब चुप रहें - पापाजी डिस्टर्ब न हों इसलिए बडी लडकी कमरे के किवाड़ बंद करके अंदर से सांकल चढा देती और बाहर से छोटी लडकी किवाड़ ठोकती रहती रोटी चिल्लाती रहती पत्नी झुंझलाती रहती और लड़का आवाज़ बंद करके किरकेट मैच देखता रहता - जब वे योगा करने बैठते तो घड़ी सामने रख लेते -शांती से बैठने में इन पच्चीस मिनट में वे ३५ बार आसन बदलते और ७५ मरतबा घड़ी देखले की कब पच्चीस मिनट पूरे हों और वे शबासन में लेटें|

जैसे साल में दो बार नौ दिन तक पारायण करने वाले पहले से ही विश्राम पर निशान लगा देते हैं और आधे घंटे बाद ही शेष बचे प्रष्ठ गिनने लगते हैं फिर बचे हुए दोहे गिनने लगते हैं और जैसे जैसे विश्राम नजदीक आने लगता है उन्हें विश्राम मिलने लगता है -ठीक वैसे ही जैसे जैसे सुई पच्चीस मिनट की और बढ़ती इनकी प्रसन्नता बढ़ने लगती -इनके चेहरे की प्रसन्नता देख कर बच्चे समझते की पापाजी को योगा से ब्लेसनेस प्राप्त हो रही है|

` शबासन उन्हें अत्यन्त प्रिय लगा जैसे अजगर से कह दिया जाए की तुम १५ मिनट चुपचाप पडे रहो या उन शंकर जी से जो "शंकर सहज सुरूप तुम्हारा -लगी समधी अखंड अपारा और =बीते संबत सहस सतासी -तजी समधी संभु अविनासी से कहा जाए तुम दस मिनट का मेडी टेशन 'क्या फर्क पढेगा वैसे ही तो वे यूँ ही दिनरात पलंग पर डले रहते है अब तो शब आसन है -पहले तो पत्नी की टोकाटाकी थी सब्जी ले आते -चक्की पर चले जाते -एकाध बाल्टी पानी भरवा देते आदि इत्त्यादी -अब तो योगा है कोई रोक टोक ही नहीं|

किताबी निर्देशों के मुताबिक वे कमर सीधी करके बैठते मगर आदत के मुताबिक आधा मिनट में ही कमर झुकजाती -ध्यान के क्षेत्र में इसे सुबह लक्ष्ण माना जाता है - बशर्ते कमर ध्यान में डूबने पर झुके मगर यहाँ तो आदतन झुक रही है -शायद दुश्यन्त्जी ने ऐसे ही मोकों के लिए कहा होगा =ये जिस्म बोझ से दबकर दुहरा हुआ होगा -में सजदे में नहीं था आपको धोका हुआ होगा =|

आज उनके पास योगा का सचित्र और विचित्र -प्राचीन और नवीन हिन्दी और अंग्रेज़ी भाषा में बहुत सा साहित्य एकत्रित हो गया है -पतंजली जी ने जितने आसन बताए होंगे उनसे ज़्यादा ये जानने लगे हैं -योगी वशिष्ठ ने योग से जितने लाभ बताए होंगे उनसे ज़्यादा योगा से होने वाले लाभ इन्हेंयाद हैं|

एक दिन मैंने उनसे पूछा की तुम मेरे अज़ीज़ हो -ये किताबी ज्ञान मुझे मत बतलाना -ये तो सब मैंने भी पढ़ सुन रखे हैं -तुम तो यह बतलाओ की तुम्हे हासिल क्या हुआ -क्या उपलब्धी हुई =तो उन्होंने शेर के गले में फंसी हड्डी का किस्सा सुना दिया की अगर शेर के गले में फंसी हड्डी लम्बी चोंच वाला सारस निकाल दे और शेर से पारिश्रमिक या ईनाम मांगे -तो भइया सबसे बडा ईनाम तो यही है की चोंच साबुत बाहर निकल आई इसी प्रकार सबसे बडी उपलब्धी तो यही है की वर्तमान शोर प्रदूषण के युग में हमारा परिवार आधा घंटा चुप रहकर विश्व की सेवा कर रहा है|

शोर से होने वाली हानी के बारे में आम लोगों को जानकार नहीं है -जिनको जानकारी है वे खामोश है -हवाई जहाज -मोटर -ट्रक -रेल फेक्टरी आतिश्वाज़ी पठाके लाउड इस्पीकर फुल आवाज़ में अपने घर में रेडियो या टी वी चलाना इनसे दिल के रोगी को -नवजात शिशु को -अशक्त ब्रद्धों को -गर्भवती महिला को क्या क्या नुकसान होते है हम नहीं जानते =रेलवे लाइन के निकट वाशिंदों को क्या क्या रोग घेर लेते है यह भी हमको पता नहीं है =दीवाली पर पठाके चलाने वाबत सुप्रीम कोर्ट ने क्या निर्देश दिए थे हमने उन्हें कितना माना =बोलने से कितना नुकसान होता है हमें पता नहीं =गंभीर रोगी को डाक्टर बोलने से क्यों मना करता है सोचा नहीं|

उनकी बात मुझे सटीक लगी काश हम भी थोड़ा थोड़ा चुप रहकर वातावरण में फैल रहे शोर प्रदूषण को कम करने में सहायक बनें

Saturday, August 1, 2009

सलाह

अक्लमंद को सलाह की ज़रुरत नहीं और मूर्ख सलाह मानते नहीं |

मुझे सलाह दी गई ,स्वाभाविक है मैं भी नहीं मानूंगा, मगर मैंने उसे निर्देश के तौर पर लिया |निर्देश कुछ इस प्रकार है कि जो अपनी नजरों में खुद को बे-इज्जत करता है, 'वक्त'एक रोज उसकी यही कुत्ता फजीहत करता है...

बात बिलकुल सही है

जब दूसरे मौजूद हैं तो खुद को अपनी नज़रों से क्यों बे-इज्ज़त करना?

कुत्ता फजीहत क्या होती है अनुभव नहीं है ,कभी हुई ही नहीं, लिखा है धोबी का कुत्ता! तो वह तो मैं हूँ ही |मेरा न घर है न घाट |जफ़रजी के शब्दों में कहूं तो मैं न किसी के दिल का करार हूँ, न किसी की आँख का नूर हूँ , मेरा रंग रूप (जो थोडा बहुत पहले कभी रहा होगा) बिगड़ गया है ,मेरा यार मुझसे बिछड़ गया है, मेरा चमन उजड़ गया है (चमन उजड़ गया है ,मतलब , मैं गंजा नहीं हुआ हूँ, वो क्या है ,किसी फिल्म में नाना पाटेकर द्वारा एक गंजे को 'उजड़ा चमन 'शब्द प्रयुक्त किया गया है |,माशाअल्लाह मेरे बाल अभी बचे भी हैं .और मेरे बाल बच्चे भी हैं )

क्या खुद की कमजोरियां बताना ,अपने दुर्गुणों का सार्वजानिक प्रदर्शन , खुद को नज़रों से गिराना है ?

श्रीमानजी कह रहे थे जब मैं अपने जवानी के दिन याद करता हूँ तो मुझे अपने आप से बड़ी नफरत होने लगती है |
क्यों ऐसा क्या किया जवानी के दिनों में ?
बोले -कुछ भी नहीं किया |

टिप्पणी कार भाग ३ को बेहूदगी भरी कहा गया |बेहूदगी कहाँ नहीं है तलाशने वाला चाहिए |इंटरनेट खोल कर देखिये बेहूदगी का अम्बार मिलेगा -इंटरनेट ही क्यों ? आजकल जो टीवी पर सत्य बोलकर इनाम पाने की प्रथा चल रही है जिसमे लड़कियां स्वीकार कर रहीं हैं ,जब वे नाबालिग़ थी तभी .........|शादी शुदा औरत कह रही है की वह पैसों के लिए ........|और उनके पति दर्शकों से मुंह छुपा रहे है |पुरुष यह स्वीकार कर रहे हैं उन्हें वह सब नाम याद हैं जिनके साथ .........| यदि यह बेहूदगी नहीं सभ्यता और संस्कृति है तो मैं अपने लिखे हुए को बेहूदा मानने में कोई लज्जा या संकोच महसूस नहीं करता |

,अपने को दीनहीन दयनीय बताना क्या, खुद को बेईज्ज़त करना है ?|कबीर ने तो कहा जब में बुरा देखने चला तो पाया मुझसे बुरा कोई है ही नहीं |तुलसी दास जी ने कहा यदि मैं अपने सब अवगुण कहने लगूंगा तो कथा बढ़ जायेगी, ग़ालिब साहिब ने कहा यदि मैं शराबी न होता तो लोग मुझे बली समझते , किसी ने कहा 'रोड़ा ह्वे रहु बाट का ताज पाखंड अभिमान |बंगले में साहब के साथ कुत्ता नाश्ता कर रहा हो और बंगले के बाहर कोई लड़का कचरे में से खाने को कुछ ढूंढ रहा हो और अगर वह कहदे कि मुझसे तो यह कुत्ता अच्छा है तो क्या उसने अपने आप को अपनी नज़रों से बेईज्ज़त कर लिया|
ईश्वर के सामने गुनाह कबूल करना क्या अपने को बेइज्जत करना है |

श्रीमानजी ईश्वर के दरबार में गुनाह कुबूल कर रहे थे "मैं पापी हूँ मैंने ये किया ,वो किया आदि |सहसा अहसास हुआ कि पीछे कोई है, देखा एक व्यक्ति खडा था ,पूछा तूने कुछ सुना तो नहीं ,बोला मैंने सब सुना |श्रीमानजी उसे एक तरफ ले गए बोले 'देख किसी को या बात बतला मत देना नहीं तो ठीक न होगा 'फिर उन्होने अपनी एक जेब से नोटों से भरा पर्स निकला और दूसरी से पिस्टल निकाली और 'लगे रहो मुन्ना भाई 'फिल्म के लक्की सिंह की स्टाइल में कहा 'ये वेलेट है ये बुलेट है तू चूज कर|

कोई तय कर ही ले कि बेहूदगी खोजना ही है तो असंभव नहीं है |वैसे सुना है नेपोलियन कहा करता था कि उसकी डिक्शनरी में असंभव शब्द है ही नहीं (अल्ला जाने किस प्रकाशक की डिक्शनरी थी उनके पास ) तलाशने वाले ग्रन्थ ,साहित्यिक लेख ,कविता किसी में से भी बेहूदगी तलाश कर सकते हैं|

एक मैडम के मकान के पास तालाव था ,बच्चे उसमे स्नान करते थे निर्वस्त्र |पुलिस को सूचना दी मुझे क्षोभ होता है |पुलिस ने बच्चों के समझा दिया कि यहाँ के वजाय दो किलोमीटर दूर तलाव है उसमें नहा लिया करो |

पुलिस के पास फिर सूचना आई मुझे क्षोभ होता है |

मगर मैडम वो तो दो किलोमीटर दूर तालाव है वहां नहाने लगे हैं

तो क्या हुआ मैंने दूरबीन खरीद ली है

Friday, July 24, 2009

नानी एक वरदान

मेरे नानाजी का स्वर्गवास हो जाने पर नानी ने स्वम नौकरी न करते हुए मेरी मौसी को अनुकम्पा नियुक्ति के नियमों के अंतर्गत नौकरी दिलवादी और नानी मौसी के साथ रहने लगी |नानी के बीमार होने पर पेंशन की राशिः दबाओं पर खर्च होने लगी तो मौसी ने नानी को अपने साथ रखने से इंकार कर दिया नानी को मेरी माँ अपने यहाँ ले आई |

मेरी माँ ने नानी से कहा कि "अम्मा तूने छोटी को तो नौकरी दिलवादी हमें क्या मिला "" नानी ने कहा मेरे पास तो एक मकान ही है तू ले ले _और मौसी के विरोध करने पर भी माँ ने नानी का मकान बेच कर हमें नया मकान बनवादिया |मकान का निर्माण हो रहा था तब माँ ने नानी से कहा था कि अम्मा मकान पर तेरा ही नाम लिखा जायेगा और ठेकेदार से कह दिया था कि मकान के फ्रंट पर लिख देना ""मातृ छाया "" गलती से कारीगर ने लिख दिया "मात्र छाया ""

मौसी और माँ में झगडा होने लगा |माँ कहती थी तुझे रखना पड़ेगा क्योंकि तुझे नौकरी दिलवाई है ,मौसी कहती थी तूने मकान हड़प लिया है इसलिए तू रख |

विवाद ज्यादा बढ़ ही नहीं पाया था कि छटा पे कमीशन लागू हो गया और नानी की पेंशन बढ़ गई _इधर पापा ने नानी का पेंशन कार्ड बनवा दिया मुफ्त दबायें मिलने लगी |नानी का खर्च भी कम हो गया एक प्याली चाय सुबह, दो रोटी दिन में दो, रोटी रात को | पेंशन का दसवां हिस्सा भी नानी पर खर्च नहीं होता था तो मौसी के यहाँ भेजने का प्रश्न ही खत्म|

|नानी अंगूठा लगा देती है और पापा पेंशन निकाल लाते हैं |

हम चाहते है ईश्वर नानी को शतायु करे

Tuesday, July 14, 2009

दुविधा या द्विविधा

हमारी श्रीमती जी कुछ ज्यादा ही ........(पहले मैं अपना वाक्य, लाइन जरा ठीक करलूं )
""हमारी श्रीमती जी"" मतलब आप श्रीमान जी हैं, वह मेडम हैं तो आप मिस्टर हैं और वे बेगम हैं तो आप बादशाह हैं | यार कितना चीप लगता है अपने आप को श्रीमान कहना ,कोई पूछे आपकी तारीफ और मै कहूं मैं श्रीमान बृजमोहन श्रीवास्तव या माई सेल्फ मिस्टर बृजमोहन,,

हमारे यहाँ तो अपने आप को नाचीज़ कहना, छोटा बतलाना ,और सामने वाले को जनाब कहना यही तरीका रहा है |पूछते भी हैं, जनाब की तारीफ, और अपने वारे में कहते हैं नाचीज़ को, खाकसार को फलां कहते हैं |और कई लोग तो और भी ,कहते हैं ख़ाक-दर-ख़ाक, आपके क़दमों की ख़ाक, नाचीज़ को फलां कहते हैं |दूसरे के मकान को दौलतखाना और अपने मकान को गरीबखाना कहा जाता है |दूसरे द्वारा कही बात को फरमाना और अपनी कही बात को अर्ज़ करना कहा जाता है |सुप्रसिद्ध शायर भी साधारण श्रोता से यही कहते हैं "" अर्ज़ किया है की (ये ट्रांसलेटर छोटी की बना ही नहीं रहा है), सूर कहते रहे 'मो सम कौन कुटिल खल कामी " 'तुलसी कहते रहे धींग धरमध्वज धंधक धोरी 'कबीर ने कहा 'मुझसे बुरा न कोय ' रहीम ने कहा 'जेतो नीचो ह्वे चले तेतो ऊँचो होय ' और आप अपने आप को श्रीमान कह रहे हैं बड़े शर्म की बात है |

कोई अपनी तारीफ करे तो इतराना नहीं चाहिए, घमंड में चूर नहीं हो जाना चाहिए, बल्कि विनम्रता पूर्वक कहना चाहिए की "ये तो हुज़ूर की ज़र्रा नवाजी है वरना मैं किस काविल हूँ ""एक शायर ग़ज़ल पढ़ रहे थे, बोले--. अपनी ग़ज़ल का ये शेर मुझे खास तौर पर पसंद है | एक श्रोता बोला “ ये तो हुज़ूर की ज़र्रा नवाजी है वरना शेर किस काविल है |”

“हमारी श्रीमतीजी” -मैंने सुना है एक वचन के लिए ‘मैं’ और बहु वचन के लिए ‘हम’ का प्रयोग होता है |यह बात जुदागाना है की कहीं की बोली ही ऐसी हो की "" हम बनूँगा प्रधान मंत्री ""| हम शब्द बहु वचन का द्योतक है जैसे कोई कहे हमारा फलां बेंक में खाता है ,मतलब ज्वाइंट अकाउंट होगा |

तो फिर क्या ?” मेरी धरम पत्नी” -ये हम पति पत्नी के बीच में धरम जी कहाँ से आगये क्या फिल्में मिलना बंद हो गई | धरम-पत्नी, धरम-शाला क्या है ये ? अरे पत्नी तो धर्म पत्नी होती ही है उसके बिना कोई धार्मिक कार्य संपन्न हो ही नहीं सकता | करुणा अहिंसा ,प्रेम शील ,दया क्षमा का पालन आम तौर पर पत्नियों द्वारा ही किया जाता है और वे पति को धर्म मार्ग पर लगाये रखती है तो धर्म पत्नी तो वे है ही|

""मेरी पत्नी ""पहली बात राम ने लक्ष्मण से कहा ""मैं अरु मोर तोर तैं माया "" और माया का तो पता ही है आपको ""माया महां ठगनी हम जानी "" दूसरी बात अगर मैं कहूं की फलां जगह मैं “मेरा कोट” पहन कर गया था |कोट पहन कर गया था ही पर्याप्त है | "मेरा कोट " क्या मतलब है ?,मतलब दूसरों का भी पहिनते होगे | मेरी पत्नी ने मुझसे कहा - क्या मतलब है ? मतलब .......|

बड़ी दुबिधा है मेरी कहता हूँ तो माया ,धरम पत्नी कहता हूँ तो धरम प्राजी, श्रीमती, मेडम, बेगम कहता हूँ तो श्रीमानजी ,मिस्टर और बादशाह, हमारी कहता हूँ तो बहु वचन |अब पहली लाइन ही ठीक हो तो आगे बढूँ देखिये करता हूँ कोशिश |

कृपया यही कह देना की यह बकवास किस उल्लू ने लिखी है "किस उल्लू के पट्ठे ने लिखी है" यह मत कहना |

Wednesday, June 24, 2009

टिप्पणीकार (३)

(सोचा होगा बुड्ढा सरक तो नहीं लिया ,अच्छा हुआ, बहुत टायं टायं करता था /असल में कुछ भाग्यशाली बुड्ढे दुनिया में ऐसे भी होते हैं जिनका कोई ठिकाना नहीं होता कुत्ते की तरह एक ने डंडा मार कर भगा दिया , दूसरे ने रोटी दिखा कर बुला लिया वैसे कुछ कुत्तों से घर की रखवाली भी करवाई जाती है कम से कम उनका कोई निश्चित ठिकाना तो होता है /खैर लीजिये
बहुत दिन बाद सही तीसरी किश्त खिदमत में पेश है )

| (जब में यह लिख रहा था तब ये मुझसे कह रहीं थीं ,मानो मेरी बात मत लिखो; कोई ब्लोगर या टिप्पणीकार आकर ठोक जायेगा | मैंने पूछा क्या मेरी पीठ ? नहीं तुम्हारा सर; जूतों और चप्पलों से )



कुछ त्वरित टिप्पणी करते हैं वे रचना पढ़ते जाते हैं और उनका मस्तिष्क स्वचालित यंत्र की तरह साहित्य सृजन करने लगता है |

कुछ टिप्पणी कार सोच कर टिप्पणी देते हैं | वे रचना पढ़ते हैं फिर सोचते हैं ,इतना सोचते हैं कि ,उनको सोचते देखकर ऐसा लगता है जैसे 'सोच ' स्वम् शरीर धारण कर सोच रहा हो |

कुछ चौबीसों घंटे टिप्पणी ही करते रहते है उनके ब्लॉग पर जाओ तो कुछ न मिले और कुछ सिर्फ ब्लॉग ही लिखते रहते है |चार पांच दिन बाद जीरो कमेन्ट ,फिर एक लेख लिख दिया

एक मास्साब थे | हर किसी से ,तूने ताजमहल देखा है /नहीं / कभी घर से बाहर भी निकला करो /हर किसी से /तूने ये देखा है ,वो देखा है कभी घर से बाहर भी निकला करो /बड़ी परेशानी | एक दिन एक युवक ने उन्हें आवाज दी =
मास्साब
क्या है ?
रामलाल को जानते हैं ?
कौन रामलाल ?
कभी घर पर भी रहा कीजिये

मैं एक विद्वान साहित्यकार का ब्लॉग पढ़ रहा था /सैकडों उत्कृष्ठ रचनाये उनके ब्लॉग पर | नियमित लेखक | सहसा एक बहुत ही छोटी सी टिप्पणी पर मेरी नजर गई "" अच्छा लिखा है ,लिखते रहिये आप ""मैंने जानना चाहा ये टिप्पणीकार कौन हैं ,तो मैं उनके घर गया (मतलब ब्लॉग पर ) दो माह पहले ही इन्होने ब्लॉग बनाया है | सच मानिए मुझे उनकी टिप्पणी ऐसे लगी जैसे कोई बच्चा बाबा रामदेव से कह रहा हो ""अच्छा अनुलोम विलोम करते हैं आप 'करते रहिये ' ""

जब मैं विभिन्न ब्लॉग पर बहुत टिप्पणियाँ देख रहा था तो मुझे सहसा एक नवाब साहिब का किस्सा याद आ गया |

एक थे नवाब /दिनभर शेर शायरी लिखते /कमी की कोई चिंता न थी /रईस जादे थे /अपार पुश्तेनी संपत्ति के एकमात्र बारिस / बारिस माने बरसात नहीं ,स्वामी / वो क्या है न कि कुछ लोग ' स " को 'श 'उच्चारित करते हैं
उन्होंने कहा- 'हैप्पी न्यू इयर '
इन्होने कहा -' शेम टू यू '

तो उनकी हवेली की बैठक (दरीखाने ) में रात्रि ८ बजे से ही महफ़िल शुरू हो जाती /एकमात्र शायर नवाब साहिब वाकी १५-२० श्रोता ,साहित्यकार ,गज़लों और शायरी के शौकीन ""वाह वाह /क्या बात है "" की आवाज़ से हवेली गूंजने लगती | रसिक श्रोता ,भावःबिभोर ,भावभीने | इधर बेगम अंदर से पकौडियां तलवाकर भिजवातीं ,समोसे ,मिठाई ,चाय ,काफी ,पान की गिलोरियां |

एक दिन नवाब साहिब सो कार उठे तो पेट में भयंकर दर्द /दोपहर तक और बड़ गया शाम होते होते दर्द से बैचैन होने लगे |इधर दरीखाना लोगों से भरने लगा /बेगम ने कहा नौकर से मना करवा देते है | नहीं बेअदवी होगी ,बदसलूकी होगी ,मुझे ही जाकर इत्तला देना होगा /खैर साहिब -कुरते के अंदर एक हाथ से पेट दवाये नवाब साहिब पहुंचे मनसद पर बैठे और कहा -

आज सुबह से मेरे पेट में बहुत ज्यादा दर्द है -


वाह वाह / क्या बात है / क्या तसब्बुर है /क्या जज्वात है /हुज़ूर ने तो कमाल कर दिया / (हवेली गूंजने लगी )वाह हुज़ूर क्या बात कही है / हुज़ूर ने गजल के लिए क्या जमीन चुनी है / जनाब मुक़र्रर / साहिब मुक़र्रर -इरशाद /
क्या मुखडा है / हुज़ूर तरन्नुम में हो जाये ...........|

Sunday, May 10, 2009

टिप्पणीकार (२)

(एक मई को टिप्पणीकार का पहले भाग लिखा था / पेश-ए-खिदमत है दूसरा भाग /जब गलियां ही खाना है तो यह क्रम तो निरंतर चलेगा ही )



टिप्पणीकार को टिप्पणियाँ देकर, साहित्यकार का, उत्साहवर्धन करना ही चाहिए /जब हम क्रिकेट खिलाड़ियों का हौसला बढाने हजारों मील दूर जा सकते हैं , और यह जानते हुए भी कि , मैच-फिक्सिंग में, हमारा कोई शेयर नहीं है , खिलाडियों का उत्साह बढाते हैं ,वहां न जा सके तो घर में ही टीवी के सामने बैठ कर उत्साह बढाते है /वाह यार क्या (चौका छक्का जो भी हो ) मारा है ,तुझसे यही उम्मीद थी / उनका तो बस नहीं चलता वरना टीवी में घुस कर खिलाडियों की पीठ ठोंक आयें / और वही बैठ कर चाय की फरमाइश करेंगे ,सोफा पर बैठ कर ही रोटी खायेंगे ,टीवी के सामने से नजर नहीं हटायेंगे /बीबियाँ झल्लाएं नहीं तो क्या करें ?



जब पीडा से बाल्मीकि और प्रेरणा से तुलसी बना जा सकता है तो प्रोत्साहन से साहित्यकार क्यों नहीं बना जा सकता ?



और छोटे छोटे बच्चे बच्चियां २२-२२-२४-२४ साल के अपनी पढाई छोड़ कर या पढाई से ध्यान हटा क़र ,कैरियर की परवाह न करते हुए ,या उधर रूचि कर दिखलाते हुए ,यहाँ आकर चाँद -तारों ,हुस्नो-इश्क ,गुलाब जैसा चेहरा गोभी के फूल जैसा चेहरा ,वगैरा वगैरा लिख रहे हैं, बेचारे कितने परेशान हैं दिन-दिन भर कम्प्यूटर पर बैठना पड़ता है और इस वजह से नल, बिजली का बिल जमा करने ,चक्की पर गेहूं पिसवाने, बूढे बाप को भेजना पड़ता है , क्या प्रोत्साहन के हकदार नहीं है ? इन्हें रात दो दो बजे तक इंटरनेट पर बैठना पड़ता है और सुबह नौ बजे तक सोना पड़ता है /बार बार ब्लॉग खोल कर देखना पड़ता है कि कोई टिप्पणी आई क्या और खास तौर पर ........की आई क्या ? होबी अच्छी बात है मगर जीवन पर ,नौकरी पर ,विद्यार्जन पर हावी नहीं होना चाहिए /

यह जानते हुए भी कि सौ ब्लॉग की रचनाएँ पढने पर भी संघ लोक सेवा आयोग या राज्य लोक सेवा आयोग का एक भी प्रश्न हल नहीं कर पायेंगे /अरे, आई-ए-एस और आई-पी-एस की परीक्षा में भारतीय संबिधान के ४२ वे संशोधन ,नौवीं अनुसूची वाबत पूछा जायेगा या यह पूछा जायेगा कि मेडम क्युरी ने कितनी शादियाँ कीं थी /मगर पढ़ते हैं बेचारे कमेन्ट देते हैं कि कोई आकर हमारी कविता को सराह जाये ,क्या सराहना के हकदार नहीं ?

अपनी कविता सबको प्यारी लगती है ,तारीफ़ चाही जाती है =
निज कवित्त केहि लाग न नीका
सरस होइ अथवा अति फीका

वैसे कहते भी हैं अपनी अकल और दूसरों का पैसा ज्यादा दिखता है /कहते तो यह भी है अपना बच्चा और दूसरे की बीबी अच्छी लगती है(मैं नहीं कहता )मैंने तो सुना है पड़ोस के दो छोटे छोटे बच्चे झगड़ रहे थे =


पहला --मेरा डॉगी (कुत्ता ) तेरे डॉगी से सुंदर है /
दूसरा-- नहीं है /मेरा ज्यादा सुंदर है /
पहला - मेरी डॉल तेरी डॉल से सुंदर है /
दूसरा- नहीं है ,मेरी डॉल ज्यादा सुंदर है /
पहला - मेरी मम्मी तेरी मम्मी से सुंदर है

दूसरा - हाँ यह हो सकता है ,पापा भी यही कहते रहते हैं /

तो अपनी कविता सबको प्यारी लगती है और सराहना की हकदार है

वैसे यदि देखा जाय तो कमेन्ट करना सुबोध भी है और सरल भी क्योंकि इसमें जो भाषा ज्यादातर प्रयोग में लाई जाती है वह न तो हिंदी है, न इंग्लिश है न हिंगलिश है =रोमन लिपि कहा जाता है इसे / दादाजी से पूछना (अगर हों तो ? अगर हों तो ईश्वर उन्हें शतायु करे ) वे बतलायेंगे पुराने ज़माने में टेलीग्राम (तार ) इसी लिपि में भेजे जाते थे /अब तो यह टिप्पणी आदि के साथ मोबाईल में एस एम् एस के काम में आती है ,मगर है लिपि भ्रम उत्पादक /


उन्होंने लिखा ==चाचाजी अजमेर गया है
इन्होने पढ़ा == चाचाजी आज मर गया है
रोना धोना कोहराम (कोहराम फिल्म नहीं ) शुरू हो गया /

Friday, May 1, 2009

टिप्पणी कार

एक दिन मैंने ,अपने एक टिप्पणीकार मित्र से पूछा कि कल तुमने जिस कविता पर टिप्पणी दी थी कि ""अति सुंदर भावः प्रधान रचना ""उसमे क्या खासियत थी ? बोले -ध्यान नहीं आ रहा है /मैंने कहा भैया कल ही तो तुमने टिप्पणी की है / बोले - की होगी यार ,भैया रोजाना पचासों कविताओं पर टिप्पणी करना पड़ता है /

वैसे टिप्पणीकार का काम कठिन तो होता है /उसे रचना दो तीन मर्तवा ध्यान से पढना होता है ,उसमे गलतियाँ निकलना ,आक्षेप करना ,कटाक्ष ,आलोचना समालोचना ,करना होती है /उससे मिलते शेर ,शायरी ,कविता ,लेख का हवाला देना होता है और स्वम का मत देना होता है /

यह भी सही है कि आलोचना से साहित्यकार घबराता भी है और डरता भी है /

एक शायर ने कहा है "" हुस्नवाले ( माफ़ करना शायर ने यही शब्द प्रयोग किया है किन्तु किसी को नागवार गुजरे इस लिए शेर में उस शब्द का स्थान में रिक्त छोड़ रहा हूँ ) हां तो -
...........,हर मोड़ पे ,रुक रुक के सम्हालते क्यों हैं
इतना डरते है तो फिर, घर से निकलते क्यों हैं

साहित्यिक पत्रिकाओं में तो टिप्पणी की कोई गुंजाईश ही नहीं होती /ज्यादा से ज्यादा संपादक के नाम पत्र भेजदो ,तो वह तीन माह बाद की पत्रिका में छपता है ,वह भी संपादक की मर्जी छापे या न छापे /मगर यहाँ तो पूरी स्वतंत्रता है /लेखक भी तैयारी के साथ आता है और टिप्पणीकार भी तैयारी के साथ आता है / दौनों ही पक्ष आये हैं , तैयारियों के साथ
हम गर्दनों के साथ हैं ,वो आरियों के साथ

कुछ सज्जन केवल लेखक होते है और कुछ केवल टिप्पणी कार होते है ( वैसे टिप्पणी कार भी टिप्पणी करते करते अन्ततोगत्वा लेखक हो ही जाते है ) और कुछ दोनो ही होते है लेखक और टिप्पणी कार भी /

एक उल्लू बेचने वाला उल्लू बेच रहा था /बडा उल्लू पचास का बच्चा उल्लू पॉँच सौ का / कारण ? उसने बताया कि साहब बडा तो केवल उल्लू ही है और छोटा तो उल्लू भी है और उल्लू का पट्ठा भी /(मै लिखता भी हूँ और टिप्पणी भी करता हूँ कोई अपने ऊपर न ले )

कुछ विद्वानों का मानना है कि टिप्पणी से साहित्यकार का उत्साह वर्धन होता है /यदि किसी ने तारीफ (झूंठी ही सही ) करदी तो उत्साहित होकर लिखने लगा और किसी ने बुरी करदी तो हतोत्साहित हो गया / वह क्या साहित्यकार हुआ ? किसी ने मुझे गधा कह दिया और मैं फ़ौरन दुल्लती मरने लगा तो मैं क्या आदमी हुआ ?

यद्यपि ,आमतौर पर साहित्यकार खुद्दार होता है और होना भी चाहिए

जो सर से लेकर पांव तक खुद्दार नहीं है
हाथों में कलम लेने का हकदार नहीं है

पुरानी बात है ,एक शायर महल (किला ,कोठी जो भी हो ) में जाया करते थे ,बादशाह भी शायर थे ,खूब पटती थी /एक दिन बादशाह सलामत ने शायर से पूछा " किवला ,कितने दिन में शेर कह लेते हो ? ( कह लेते हो मतलब लिख लेते हो ,यह शायरों की भाषा है ) शायर बोले ,हुजूर ,जब तबीयत लग जाती है तो एक दो माह में दो चार शेर कह लेता हूँ /बादशाह ने हंसकर फरमाया -जनाब दो चार शेर तो मैं यूं , पैखाने में बैठ कर ही, रोज़ कह लिया करता हूँ /शायर ने तुंरत कहा कि हुज़ूर उनमे वैसी बू भी आती है / और शायर महल छोड़ कर आगये और फिर कभी नहीं गए /

भगवती चरण जी ने जब चित्रलेखा लिखा तो कहा गया कि यह तो एक अंग्रेजी उपन्यास की नक़ल है /अभी दो तीन माह पूर्व एक विद्वान ने ""पाखी "" पत्रिका में लिखा कि मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'फूस की रात 'संसार की सबसे घटिया कहानी है /अब क्या कहें ,है तो है ,भैया अब तुम लिखदो संसार की सर्वश्रेष्ठ कहानी /

खैर लेखक और टिप्पणी कार या आलोचक यह तो साहित्य जगत के दो पहिये हैं ,दो पहियों के बिना गाडी नहीं चल पाती है /पहिये शब्द पर से मुझे याद आरहा है -

जब मेरी शादी हुई थी तब हमारे पंडित जी हमें उपदेश देने लगे -देखो बेटा ,यह गृहस्थी एक गाडी है ,इसमें स्त्री पुरुष दो पहिये हैं इनमे सामंजस्य होना चाहिए /मैंने पूछा पंडित जी यह बताओ कि गाडी में एक पहिया सायकल का और दूसरा ट्रेक्टर का लगा हो तो ? मुझे याद है ,पंडितजी ने मेरी पत्नी की ओर देखा ,मुस्कराए ,और चुप हो गए /

Monday, April 27, 2009

भावार्थ (व्यंग्य )

( दीनहीन,पराधीन ,विचाराधीन ,जीर्णशीर्ण ,जराजीर्ण , जीर्णकाय, जो शब्द उपुयक्त हो वह अथवा गिरती दीवार हूँ ठोकर न लगाना मुझको की मानिंद )
एक बुजुर्ग ==गर्मी का मौसम ==दोपहर का वक़्त = हैण्डपम्प के पास ==एक निवेदन ==प्यास लगी है /

एक ==देख तो बुढऊ,क्या कह रिया हैगा

दो = मैंने तो देखते ही समझ लिया था बुड्ढा बदमाश है

तीन = आँखे तो देखो इसकी /कैसी गिरगिट जैसी है

चार = साला हमसे प्यास बुझाने की बात करता है /

एक =चल वे बुड्ढे माफी मांग

दो =माफी से काम नहीं चलेगा ऐसे नीचों को ;तो पुलिस के हवाले ही करना चाहिए
बुजुर्ग को ऐसे प्रतीत हुआ जैसे किसी कंजूस ने अपनी सारी संपत्ति गवां दी हो जैसे किसी योद्धा ने शूरबीर का बाना पहन युद्ध भूमि से पीठ दिखला दी हो जैसे किसी साधूसम्मत आचरण वाले ने धोखे से मदपान कर लिया हो

"" नयन सूझ नहि सुनहि न काना / कही न सकहि कछु अति सकुचाना /""
सही भी है

""संभावित कहुं अपजस लाहू / मरण कोटि सम दारुण दाहू /""
थाने में
----------
थानेदार =मगर बुड्ढा तो कह रहा है की उसने कहा था प्यास लगी है /

फरियादी =दारोगा जी मतलब तो वही हुआ /जब प्यास लगेगी तभी तो प्यास बुझायेगा

फरियादी दो =दारोगाजी आप साहित्य नहीं समझते क्या ? साहित्य में एक अलंकार होगा है ""पर्यायोक्ति""तुलसी दास जी ने मानस में बहुत प्रयोग किया है / "" सहसबाहु भुज ----------दससीस अभागा ""तक में किसी का नाम नहीं लिया किन्तु चार वेद और छ: शास्त्र का ज्ञाता रावन समझ गया कि अंगद परसुराम वाबत कह रहा है /

फरियादी तीन = आशय और उद्देश्य (इंटेंशन एंड मोटिव )से सारा अपराध शास्त्र भरा पड़ा है आप कानून के जानकर होकर कानून के आशय शब्द का आशय नहीं समझते है

फरियादी चार =दारोगा जी आपने इंटरप्रीटेशन आफ स्टेट्यूट नहीं पढ़ा क्या /इंटरप्रीटेशन का सामान्य सिद्धांत है कि शब्दों को प्रथमत : उसके स्वाभाविक ,साधारण या प्रचलित अर्थ में समझना चाहिए तथा अभिव्यक्तियों और वाक्यों का अर्थान्वयन उसके व्याकरणिक अर्थ में करना चाहिए

फरियादी एक =अरे जब तक ये कानून के रखवालों को कानून की भाषा और साहित्य का ज्ञान नहीं होगा तब तक ऐसे सामाजिक गंदगी को हमें ही साफ करना होगी

और ==""हम सब एक हैं / जो हमसे टकराएगा ,मिट्टी में मिल जायेगा "" का नारा बुलंद हुआ और वहीं थाने में थानेदार के सामने बुड्ढे की ठुकाई पिटाई शुरू हो गई

उस वक्त मुझे शेर याद आरहा था कलीम अज़ीज़ साहेब का sher yaad araha thaa
=
"" अभी तेरा दौरे शबाब है ;अभी कहाँ हिसाबो किताब है /
अभी क्या न होगा जहान में ;अभी इस जहाँ में हुआ है क्या /""

Monday, March 23, 2009

aur pahad toot gaya

मैं एक पारिवारिक पत्रिका पढ़ रहा था /उसमे विबिध सामग्री रहती है /लायब्रेरी से घर ले आया /बड़ी उपयोगी बातें होती हैं -एक उपयोगी विधि थी ,रात के बचे चावलों का उपयोग /सुबह मैंने देखा एक किलो चावल पके हुए रखे हैं ,जो रेसिपी ;के मुताबिक उपयोग करने रात को पका कर फ्रीज़ में रख दिए गए थे /फ्रीज़ भी गज़ब की उपयोगी चीज़ है इसमें बस्तु तब तक रखी जा सकती है तब तक की वह फैकने लायक न हो जाये

उस पत्रिका में एक लेख था -उसमे क्या हरेक में होता है ,हर दूसरा लेख स्त्री विमर्श पर ,हर तीसरी कविता महिला उत्पीडन पर और हर चौथी कहानी पुरुष प्रधान समाज पर /लगता है जैसेसाहित्य ;में ,भक्तिकाल ,बीरगाथाकाल ,रीतिकाल हो चुके है वैसे ही शायद आज का साहित्य पुरुषप्रधानसमाज काल होगा /खैर

तो उसमे एक लेख था जो भावावेश में ,क्रोधित या दुखी होकर लिखा गया था लेख बड़ा था किन्तु उसका मंतव्य केवल मात्र इनता था कि -पत्नी द्वारा पति को साहब शब्द प्रयोग करना गुलामी मानसिकता का प्रतीक होता है ,इसमें साहब और नौकर के सम्बन्ध जैसी बू आती है ,ऐसे प्रयोग वर्जित होना चाहिए ,पति पत्नी का मित्र होता है साहब नहीं /

यदि किसी के अहम को चोट न लगे तो मेरा विनम्र निवेदन यह है कि =
प्रात: नौ बजे से शाम छै:बजे तक ,फाइलों से माथापच्ची करने ,परिवार को ज़रूरियत मुहैया करने कि लिए पसीना वहाने बाले को यदि पत्नी ने साहब शब्द का प्रयोग कर दिया तो न तो वह दयनीय हुई ,न सोचनीय और न उसने कोई अहसान किया है /तांगे में जुतने वाले घोडे को भी खुर्रा किया जाता है सहलाया जाता है पीठ थपथपाई जाती है तो पति नमक प्राणी भी इन्सान है /

जब हम भी कह देते हैं कि मैडम घर पर नहीं है ,या श्रीमती जी बाज़ार गई हैं तो पत्नी ने अगर कह दिया कि साहब घर पर नहीं है तो वह कौनसे उत्पीडन का शिकार हो गई /पति को अगर स्वामी कह दिया तो वह शब्दार्थ की द्रष्टि से ,साहित्य की द्रष्टि से या मानसिकता के लिहाज़ से उपयुक्त ही है /जो है उसको वह कहना अपराध नहीं है /

युद्धसिंहजी ने किसी नवाब को गधा कह दिया ,मान हानी का दावा ,युद्धसिंह पर जुर्माना /युद्ध सिंह का अदालत से निवेदन .हुकम आयन्दा किसी नवाब को गधा नहीं कहूंगा /पण म्हारो यो अरज छै कि किसी गधे को तो नवाब साहिब कह सकूं /या में तो अपराध णी बणे /जज ने किताबें देखी दफा ५०० बगैरा, बोले नहीं /युद्धसिंह जी ने भरे इजलास में ,नवाब साहिब की ओर मुखातिब होकर ,मुस्करा कर कहा ;नवाब सा'ब= न म स का र/


खैर मूल बात =पति शब्द का शाब्दिक अर्थ ही होता है स्वामी /यथा महीपति ,भूपति ,करोड़पति आदि ,/वास्तब में पति स्वामी होता है किन्तु वह पत्नी का नहीं बल्कि गृह का स्वामी होता है और पत्नी गृह स्वामिनी /स्वामी को स्वामी और स्वामिनी को स्वामिनी कह देने पर किसके सम्मान को कहाँ ठेस लग गई /आगंतुक गृह स्वामी को तलाश करने आया है और अगर पत्नी ने कह दिया कि साहब घर पर नहीं तो कौनसा पहाड़ टूट गया /इसमें कहाँ तो पत्नी का आत्मसम्मान कम हो गया और कहाँ वह सोचनीय हो गई /क्या आगंतुक से यह कहा जाता कि बृजमोहन घर पर नहीं है या कि मेरा आदमी घर पर नहीं है =

या कि मेरा मरद घर पर नहीं है और मानलो पत्नी गुस्से में है ,क्रोधित है ,परेशान है और जैसा कि हम लोग गुस्से में नामुराद ,नामाकूल ,नालायक जैसे शब्दों का प्रयोग कर देते है वैसे ही क्या पत्नी अपने मरद के लिए कहदे कि .......घर में नहीं है /
पति पत्नी एक दूसरे को आदर सूचक शब्दों का प्रयोग करें -करना ही चाहिए /मगर विचारधारा तो यह चल रही है कि हज़ार साल पहले यदि सताया गया ,शोषण किया गया ,दवा कर रखा गया तो उसका बदला आज लिया जाए /

Sunday, March 15, 2009

हम कुछ सोचें

एक दस वर्षीय वालिका मिनी स्कर्ट और टॉप पहने नृत्य कर रही है -उसके माता पिता अपनी होनहार बालिका का नृत्य देख कर आनंद मग्न हो रहे हैं -डेक पर केसेट बज रहा है""कजरारे कजरारे तेरे नैना ""गाने के बोल के अनुसार ही बालिका का अंग संचालन हो रहा है - देश की इस भावी कर्णधार -समाज में नारी समुदाय का नेतृत्व करने वाली बालिका की भाव भंगिमा ने पिता का सर गर्व से ऊंचा उठा दिया है - और पिता की प्रसन्नता देख माताजी भी भाव विभोर हो रही हैं

यह सुना ही था की साहित्य समाज का दर्पण है आज प्रत्यक्ष देख भी लिया -वस्त्रों और अंगों पर लिखा जा रहा फिल्मी साहित्य अब गर्व की वस्तु होने लगी है -

साहित्य और संस्कृति पर विविध रूपों में प्रहार होता रहा है चाहे वह अश्लील गीत हो या द्विअर्थी संबाद हो -पहले द्विअर्थी संबाद का अर्थ व्यंग्य होता था अब वे अश्लीलता का पर्याय है -सवाल यह नहीं है की वे किसने लिखे सवाल ये है की वे चले क्यों

आज का बच्चा बेड बिस्तर समझ जाता है _शायद ""खटिया"" नहीं समझता ,ठंड कोल्ड समझता है मगर ""जाड़ा""नहीं समझ पाता है मगर बेचारे की विवशता है कि गाना सुनना पड़ रहा है उसे ,चाहे वह सरकालेओ का अर्थ समझता हो या न समझता हो /
एक तर्कशास्त्र के प्रकांड पंडित कह रहे थे बच्चे ऐसे गाने सुनते ही क्यों है जब रिमोट उनके हाथ में है तो चेनल बदल क्यों नहीं लेते / माँ बाप देखने ही क्यों देते है ? साहित्य और संस्कृति पर विविध रूपों में प्रहार होता रहा है चाहे वह अश्लील गीत हो या द्विअर्थी संबाद हो -पहले द्विअर्थी संबाद का अर्थ व्यंग्य होता था अब वे अश्लीलता का पर्याय है -सवाल यह नहीं है की वे किसने लिखे सवाल ये है की वे चले क्यों यह बात वे सुनने को तयार नहींएक गाना और चला था "" तू चीज़ बड़ी है मस्त मस्त ""किसी लडकी या नारी को देख कर चीज़ कहना कुत्सित मानसिकता का प्रतीक है -फूहड़ और अश्लील नाच पर सीटी बजा कर हुल्लड मचाने वालों की भाषा संस्कार में आरही है लडके आज उस धुन पर गा रहे हैं और लडकियां उस धुन पर झूम रही हैं -इससे ज़्यादा शर्मनाक क्या हो सकता है
नारी चाहे पत्नी हो -माँ हो बहिन हो पुत्री हो या कोई भी हो उसे तेजस्वनी दामिनी बनाया जासकता है उसे प्रतिभासंपन्न तेजपुंज युक्त और सामर्थ वान बन ने की प्रेरणा दी जा सकती है =अत्याचार और अन्याय -शोषण और उत्पीड़न के विरोध में खडा होना सिखाया जा सकता है -उसे मंत्री से लेकर सरपंच और पंच बन ने तक की प्रेरणा देना चाहिए मगर नारी के प्रति अशोभनीय वाक्यांशों का प्रतिकार होना
चाहिए

वाक एवम लेखन की स्वंत्रता है -जब स्वतंत्रता निरपेक्ष और दायित्वहीन हो जाती है तो स्वेच्छाचारिता हो जाती है वहा यह बात ध्यान में नहीं रखी जाती है की यह स्वतंत्रता विधि सम्मत नहीं है और किसी दूसरे की स्वन्त्न्त्र्ता में बाधक तो नहीं है =ज्ञान और भावों का भण्डार ,समाज का दर्पण -ज्ञान राशी का संचित कोष यदि मानव कल्याणकारी नहीं है तो उसे में साहित्य कैसे कहा जा सकता है /फिल्मी गाने क्या साहित्य की श्रेणी में नहीं आते इस और भी साहित्य कारों का ध्यान आकर्षित होना चाहिए

Tuesday, February 24, 2009

ढूंढो ढूंढो रे साजना

इस संसार में चर, अचर, सचराचर जितने प्राणी हैं उनमें एक जीव ऐसा भी है जिसे सजन कहा जाता है /यह सजन इस संसार में कुछ न कुछ ढूँढने के लिए ही अवतरित हुआ है /अब से चालीस- पचास साल पहले उससे कहा गया = ""ढूंढो ढूंढो रे साजना मेरे कान का बाला"" = अपनी इस खोज में वह सफल हो ही नहीं पाया था तब तक दूसरा आदेश प्रसारित हो गया ="" कहाँ गिर गया ढूंढो सजन बटन मेरे कुरते का"" =सिद्ध बात है उसमें भी वह असफल रहा तभी तो लगभग सभी म्यूजिक चैनल उनकी पुनाराब्रत्ति कर रहे है, बिल्कुल पत्र -स्मरण पत्र -परिपत्र और अर्ध शासकीय पत्र की तरह /आप ही बताइए कान का बाला और बटन यदि सजन को मिल गया होता तो वह टी वी पर क्यों बार बार, लगातार गाती =क्या पागल हुई है ? ऐसे ही में एक औरत को देखता हूँ, चिल्लाती है =""हाय मेरी कमर"" -दबाई लगती है- मुस्कराती है, मगर एक घंटे बाद फिर =हाय मेरी कमर =आखिर ऐसी कैसी दबाई है -दस साल से देख रहा हूँ =इलाज परमानेंट होना चाहिए
ऐसी बात नहीं है कि वह कुछ ढूंढता ही न हो ,ढूँढता है / आधुनिक संगीत में सुर-ताल, लय, गाना किस राग पर आधारित है तथा गाने के बोल के अर्थ ढूँढता है -हस्त रेखाओं में भविष्य और जन्मपत्री में भाग्य ढूँढता है -राजनीती में चरित्र और आधुनिक पीढ़ी में संस्कार ढूँढता है -वर्तमान समस्याओं का समाधान हजारों साल पुराने ग्रंथों में ढूँढता है /कुछ लोगों की आदत होती है की वे कुछ न कुछ ढूंढते ही रहते है -कहते है ढूँढने में हर्ज़ ही क्या है /

कुछ लोग अपनी दैनिक दिनचर्या को त्याग कर, जीवन का उद्देश्य ढूंढते है / हम कौन हैं ?क्या हैं? कहाँ से आए है?कहाँ जायेंगे ? क्या लाये थे ?क्या ले जायेंगे आदि-इत्यादि , और इस चक्कर में या तो वे कार्यालय देर से पहुँचते हैं ,या उनकी टेबिल पर फाइलों का अम्बार लग जाता है /उनकी पत्नियां सब्जी और आटे के पीपे का इंतज़ार करती रहती हैं / में कौन हूँ -कहाँ से आया हूँ क्यों आया हूँ ==अरे तू तू है घर से दफ्तर आया है काम करने आया है -बात ही ख़त्म /
कुछ लेखक लेख लिखकर डाक में डालकर चौथे दिन से पेपर में अपना नाम ढूढने लगते हैं ,उधर संपादक महोदय उस लेख को पढ़ते हैं तो टेबिल की दराज़ में सरदर्द की गोली ढूँढने लगते हैं और अगर छाप दिया तो पाठक क्या ढूडेगा कुआ या खाई /

इस धरती पर स्वर्ग और नरक ढूँढने वाले हजारों हैं जिनको यहाँ उपलब्ध नहीं हो पता है -वे ऊपर है इसी कल्पना करके जीवन जैसा जीना चाहिए वेसा जी नहीं पाते ,किसी ने कहा है =तू इसी धुन में रहा मर के मिलेगी जन्नत -तुझ को ऐ दोस्त न जीने का सलीका आया = इससे अच्छे तो कार्यालय के कर्मचारी होते हैं जिनका बॉस जब गुस्सा होता है और कहता है -गो टू हेल -तो वे सीधे अपने घर चले आते हैं /

कुछ लोग प्राप्त की उपेक्षा करके, अप्राप्त को प्राप्त कर सुख ढूँढने की चाह रखते हैं, तो, कोई तनाव ग्रस्त -हताश -उदास -निराश -चिंतित व्यक्ति परिश्रम खेल व्यायाम मित्र- मंडली, हँसी- मजाक को नज़र अंदाज़ कर, नींद की गोलियां ढूंढते है /कुछ युवक खेलना बंद करके जवानी में बुढापा और कुछ बुजुर्ग मनोरंजन को अपना साधन बना कर बुढापे में युवावस्था ढूंढते है /

कुछ लोग मूड ठीक करने और गम ग़लत करने क्या ढूँढ़ते है आप सब को पता है =मधुशाला= गन्ने के रस वाली नहीं -हरिबंश जी की मधुशाला भी नहीं बल्कि मधुशाला याने मयखाना =मुझे पीने का शौक नहीं पीता हूँ गम भुलाने को =मगर होता इसके बिल्कुल विपरीत है ==आए थे हँसते खेलते मयखाने की तरफ़ -जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए /
मजेदार बात देखिये ऐसी बात तक बताई जाती है कि ""कहते है उम्रे-रफ्ता कभी लौटती नहीं -जा मयकदे से मेरी जवानी उठा के ला ""अब जो मयखाने में जवानी ढूँढेगा उस का क्या होगा /एक जवानी और पडी मिलेगी कहीं नाली में /
सार बात यह कि सजन को जो ढूंढ़ना चाहिए वह न ढूंढ कर ,जो नहीं ढूँढना चाहिए वह ढूंढता है ,इसी लिए वह अभी तक सजन है नहीं तो कभी का सज्जन बन चुका होता /

Saturday, February 7, 2009

पुत्रदान क्यों नहीं

जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है विवाह और विवाह का एक महत्वपूर्ण अंग है कन्यादान / पाणिग्रहण ,सप्तपदी ,पांच और सात वचन तो समझ में आते हैं क्योंकि वह वर -वधु दोनों का मिला जुला कार्यक्रम है ,किंतु कन्यादान का रिवाज़ कब व कैसे प्रचलित हुआ ?

क्या वेदों में कन्यादान का विधान है ? हो सकता है /पुराणों में दस महादान का वर्णन है उनमें से कन्यादान भी एक दान है /मानस में गोस्वामीजी ने दो विवाह करवाये हैं / एक तो शंकरजी का "" गहि गिरीश कुस कन्या पानी ,भवहि समरपी जानि भाबानी "" दूसरे विवाह में सीताजी का कन्यादान कराया है ""करि लोक वेद विधानु कन्यादान नृप भूषण कियो ""स्वाभाविक है गोस्वामीजी की स्वयं की जैसी शादी हुई होगी वैसा ही उन्होंने वर्णन किया होगा -पुराणों में दस महादानो का वर्णन है इनमें से एक तो हुआ कन्यादान वाकी नौ है --स्वर्ण ,अश्व ,तिल , हाथी ,दासी ,रथ ,भूमी ,ग्रह और कपिला गौ /ध्यान रहे यह सब सम्पत्ति है /स्त्री हमेंशा से संपत्ति मानी जाती रही थी / उसका क्रय विक्रय होता था , उसे गिरवी रखा जाता था , जुए में हारा जीता जाता था तो अन्य संपत्ति के दानो की तरह इस कन्या रूपी संपत्ति के दान की परिपाटी प्रचलित हुई होगी /दान के साथ दान की हुई संपत्ति की स्थिरता के लिए अतिरिक्त द्रव्य समर्पित करने का प्रावधान शास्त्रों में था ताकि दान में दी हुई संपत्ति का रख रखाव आदि किया जाता रहे /इसने कन्यादान मे दहेज़ का रूप धारण कर लिया/

दहेज़ का दूसरा पहलू यह भी रहा होगा कि चूंकि कन्या संपत्ति होती थी पराया धन होती थी इसलिए पिता की जायदाद मे उसका हक नही होता था और चूंकि पुत्र जो कि संपत्ति नहीं होता था उसके हिस्से मे बाप की जायदाद आजाती थी / किंतु फिर भी पुत्री होती तो थी माँ बाप के जिगर का टुकडा -इसलिए पिता अपनी जायदाद से प्राप्त आय मे से एक बडा हिस्सा पुत्रों की सहमति से पुत्री को दे दिया करता था और चूंकि बात भी वाजिव थी इसलिए पुत्र को भी क्यों आपत्ति होने लगी / फिर लडकी चली जाती थी पराये घर और जमीन जायदाद ,खेती बाड़ी-रहती थी पुत्रों के पास /इसलिए बहन को बिभिन्न त्योहारों पर ,भाई दूज , उसके पुत्र पुत्रियों की शादी मे मामा भात , पहरावनी, मंडप आदि के रूप मे संपत्ति की आय मे से कुछ हिस्सा लडकी को पहुंचता रहता था /अब उसका रूप लालची धन्लोलुपों ने विकृत कर दिया है / लडकी के पिता की स्वेच्छा अब लडके के पिता की आवश्यकता हो गई /एक सद्भाविक परम्परा कुरीति हो गई /यह कुरीति गरीब पिता के लिए अभिशाप हो गई /जो स्वम किराए के मकानों मे रहकर ,मामूली -सी नौकरी करके ,अपना पेट काट कर बच्चों को पालता पढाता रहा हो जिसके बेटे बेरोजगार हों और बेटी सयानी उसकी क्या तो संपत्ति होगी और क्या लडकियां हिस्सा लेंगी/

अब सवाल उठता है पुत्र दान का -कल्पना कीजिए चलो किसी ने कर ही दिया पुत्र दान तो फिर क्या ? लडकी तो लडके के घर आजाती है =कई समाज मे तो यह भी है कि लडकी का बाप या बडा भाई -लडकी की ससुराल मे पानी भी नहीं पीता है - -दान कीहुई संपत्ति का थोडा से भी हिस्से का उपयोग वर्जित है -आपको तो पता है कि एक हजार गाय दान मे दी और धोके से एक गाय वापस आगई और उसका पुन दान हो गया तो नरक के दरवाजे खुल गए थे /खैर तो लडकी तो लडके के घर आजाती है अब मानलो लडके का भी दान हो गया तो वह कहाँ रहेगा अपनी ससुराल में यानी घर जवाई - और कन्या का दान कर दिया तो वह मायके में कैसे रहेगी -और यदि लड़का अपने ही घर में रहता है तो उसके माँ बाप उसकी कमाई कैसे खाएँगे -दान किए हुए पुत्र की कमाई घोर अनर्थ हो जाएगा =बडी दिक्कत हो जायेगी/

हो सकता है यह दिक्कत उस वक्त पुत्र दान करने के समय पेश आई हो /

इस लेख का अंत कैसे और किन शब्दों में हो ,इस का उपसंहार मेरी समझ से बाहर हो रहा है /

Wednesday, January 21, 2009

डाटर्स मेरिज फोबिया

मस्ती में झूमते बारातियों का शानदार स्वागत वी.आय.पी. कुर्सियाँ, टेंट-शामियाना, लाईट डेकोरेशन, मंच व्यवस्था - टीके में ; मांगी गई एक निश्चित धनराशि की प्रथम किश्त के साथ मोटर साइकिल व कर (जैसा अनुवंध हो ), वर के पूरे खानदान के लिए अच्छे व महंगे कपड़े, -द्वाराचार की रस्म पर दूसरी व अन्तिम किश्त, महंगा गर्म सूट रंगीन टी वी, पैर पूजने महंगा आइटम, लडकी को स्वर्ण के जेवर, गृहस्थी के समस्त बर्तन, डबल वेड, सोफा आदि इत्यादि/ - जब भी मेरे मित्र यह सब देखते हैं उनके ह्रदय से एक टीस मिश्रित आह निकलती है ""-इतना सब तो करना ही पडेगा -सभी कर रहे हैं सब जगह होने लगा है"" इतना सब कुछ मैं कैसे कर पाऊंगा/

इतना सब मैं कैसे कर सकूंगा सोच सोच कर उनका जी घबराने लगता है दिल बैठने लगता है ,उनकी तबियत बिगड़ जाती है -डाक्टर आता है नींद का इंजेक्शन , एक दो दिन त्रास शामक औषधियां , और धीरे धीरे वे नार्मल होने लगते है - न तो उनके स्वजन और न ही परिवार जन , न ही चिकित्सक जान पाते हैं की उनकी घबराहट की वजह क्या है - शामक औषधियां अब उनके लिए प्रतिदिन की खुराक हो चुकी है /

मैंने उनकी बीमारी का नाम रखा है डाटर्स मैरिज फोबिया -किसी चिकित्सा शास्त्र या किसी पैथी में ऐसी बीमारी या ऐसे लक्षण नहीं लिखे है यह तो मेरा ही दिया हुआ नाम है -हाइड्रो फोबिया -अल्टो फोबिया - बाथोफोबिया आदि बीमारियों का , चिकित्सा शास्त्र में उल्लेख भी है और उपचार भी = डाटर्स मैरिज फोबिया देश व्यापी अन्य घातक बीमारियों की तरह जानलेवा तो नहीं है इससे मरीज़ मरता तो नहीं है किंतु वह जीता भी नहीं है अधवीच में लटका रहता है त्रिशंकु की तरह /उसके चेहरे पर दुःख शोक और निराशा के भाव साफ दिखाई देने लगते है -वह अन्यमनस्क, व्याकुल व चिडचिडा हो जाता है एकांत की तलाश में रहता है और शोर से घबराता है

जिस प्रकार निर्धन का एक मात्र लक्ष होता है की किसी तरह अमीर हो जाय - जिस प्रकार निरक्षर का एक लक्ष्य होता है की कुछ पढ़ लिख जाय ,उसी तरह पुत्री के पिता का जीवन में एक ही लक्ष्य होता है की किसी तरह इसके हाथ पीले हो जायें ,हाथ पीले हो जायें तो हम गंगा नहा जायें सिर से बोझ उतर जाए, कुछ और लोगों ने कहावतें बना रखी हैं की लड़की की डोली और मुर्दा की अर्थी जितनी जल्दी उठ जाए उतना ही अच्छा होता है =अर्थी वाली बात तो समझ में आती है कि तबतक घर में भयंकर कुहराम मचा रहता है लेकिन लड़की की डोली? -और इन्हे शर्म भी नहीं आती/ लडकी के भावी जीवन से कोई लेनादेना नहीं है इनका - रोज़गार बेरोजगार कम पढ़ा लिखा कैसा भी हो लडकी का पेट तो भर ही देगा मतलब लडकियां मात्र पेट भरने के लिए ही पैदा होती हैं

जहाँ विबाह योग्य वर दिखता है या उसके वारे में पढा सुना जाता है तो कन्यायों के पिता उस पर मुग्ध होकर दौड़ने लगते हैं जिस तरह पतंगे अग्नि की ओर दौड़ते हैं फिर वर की आर्थिक मांगें पूरी न कर सकने के कारण उन्हें वापस लौटना पड़ता है ,जब वर अन्यत्र बिक जाता है तो दुःख से अत्यन्त व्याकुल रहते हैं जैसे संसार के सबसे बडे लाभ से उन्हें बंचित कर दिया गया हो -जिस तरह सारी नदियाँ द्रुत गति व प्रवाह से समुद्र की ओर दौड़ती हैं उसी तरह चारों तरफ से कन्यायों के पिता वर की ओर दौड़ते हैं --पूर्ती कम और मांग ज़्यादा तो मूल्य ब्रद्धि स्वाभाविक है अर्थ शास्त्र का यही नियम है
जहाँ बिना दहेज के शादी हो रही हो -जहाँ लड़का कार और लडके की माँ नकदी व जेवर न मांग रही हो - बिध्युत सज्जा से दूर दिन के उजाले में सादगी पूर्ण तरीके से विवाह सम्पन्न हो रहा हो क्या ऐसा माहोल आज सम्भव नहीं हो सकता
जहाँ लडकी की शादी के लिए मकान व जेवर रहन नहीं रखे जा रहे हों -जहाँ पुश्तेनी खेती की जमीन विक्रय न की जारही हो -जहाँ लडकी के बाप पर दबाव न डाला जा रहा हो की =बरात के स्वागत में कोई कमी रही तो हमसे बुरा कोई न होगा =अमुक राशी या सामान देने पर ही लडकी को ले जाया जायेगा अथवा लडके लो फेरों पर भेजा जाएगा ,क्या युवा पीढी इस ओर ध्यान दे सकती है

जहाँ लडके के बाप के सर पर इतना लोभ सवार न हो रहा हो की प्रसूतिकाल में खिलाये गए हरीला और पिलाए गए दशमूल काड़े से लेकर उच्च शिक्षा पर मय डोनेशन व केपीटेशन फीस पर हुआ व्यय मय व्याज के लडके के बाप से वसूल करना चाहता हो ,विचारधारा में कुछ परिवर्तन सम्भव है/

यदि आज की शिक्षित और युवा पीढी जरा भी इस ओर ध्यान दे तो बहुत से बाप अपने जीवन की बची सांसे चेन से ले सकते हैं/

Thursday, January 15, 2009

कोशिश -ऐ हाइकू

(१)
एक दिन कहने लगीं मै ही मिलती हूँ तुमसे लड़ने दफ्तर का गुस्सा उतरने


प्रेम तुमसे
लडूं किसी और से
कहाँ की तुक
(२)
जब कविता समझ में न आई तो लिख दिया बहुत सुंदर

कमेंट लिखा
बहुत ही सुंदर
कविता या मैं

(३)
मै तो बिचारा दफ्तर गया था अटाला खरीदने वाला गली में मेरे मकान के आगे अटाला ,कबाडा ,व्यर्थ ,बेकार ,अनुपयोगी आउट डेटेड ,पुरानी .जीर्णशीर्ण ,जराजीर्ण ,फालतू चीज़ें खरीदने आवाज़ लगा रहा था

कबाडे वाला
दफतर गये हैं
कल आजाना
(4)
दुर्बल काया के कारण हमेशा हीन भावना से ग्रस्त रहा इसलिए

फोटो खिचाओ
हाथी पे शीर्षासन
उल्टा दिखाओ

(५)
मेरे पूर्वज गरीब दयनीय रहे अब मैं सम्रद्ध हूँ

फोटो बनवा
किसी महाराज का
दादाजी बता
(६)
शिक्षा के महत्त्व से भला किसको इनकार है


पी एच डी को
ससपेंड करते
लगा अंगूठा

Thursday, January 1, 2009

ह्रदय कपाट

शादी की बात
पहली ही रात

ग्रामीण दुल्हन
आधुनिक दूल्हा
प्रेम का पिटारा खोल उठा
फिल्मी डायलोग बोल उठा
तुमने किया है किसी से कभी प्यार
कभी हुई हैं किसी से आँखे चार

साड़ी में लिपटी
घूंघट में सिमटी
जमीन कुरेदती रही
तिरछी नजर स्वामी को देखती रही

पति उतावला
सुनने को बावला
एक क्षद्म परीक्षा
नकारात्मक उत्तर की अपेक्षा
चुप्पी असहनीय थी
स्थिति दयनीय थी

पुन इसरार हुआ
जिया बेकरार हुआ
प्रश्न बार बार हुआ
ह्रदय कपाट खोल उठी
धीरे से बोल उठी

बताती हूँ
जल्दी मत कीजिये
पहले मुझे
गिन तो लेने दीजिये