Saturday, December 4, 2010

सुन साहेबा सुन

यदि अवकाश के दिन सबेरे सबेरे कोई किसी के घर चाय पीने आजाये और अपनी कवितायें ,गजल,लेख सुनाने लगे या फिर कोई सुबह सुबह अपने घर पर चाय के लिये आमंत्रित करे और उनका बेटा गाने लगे ’’उन्हे अपनी रचनायें सुनाना है इसी लिये डैडी ने मेरे तुम्हे चाय पे बुलाया है ’’

सुनना कई प्रकार का होता है जिसमें ’’मन से सुनना’’ और ’’ बेमन से सुनना ’’ लोक में प्रचलित हैं । बेमन से सुनने वाला वर्षो तक याद रहता है और बेमन से सुनने वाले की क्या क्या गतिविधियां थी यह भी याद रहता है ’’बेरुखी के साथ सुनना दर्दे दिल की दास्तां और तेरा हाथों में वो कंगन घुमाना गुलाम अली साहब को आज तक याद है। सुनने वाला बार बार घडी देखने लगे जम्हाई लेने लगे तो सुनाने वाले को इस बात की परवाह नहीं होती है।वैसे यह सत्य है कि कभी अकारण सी वेचैनी होने लगे, जी घबराने लगे, किसी काम में मन न लगे, कुछ भी अच्छा न लगे, अनर्इजी फीलिंग होने लगे तो किसी को पकड कर अपनी रचनाये सुनाना एक ट्रेक्युलाइजर का काम करता है फिर चाहे सुनने वाले को चाय पिलाना पडे या जलेवियां खिलाना पडे।

मैने सुना है एक सज्जन बीमार हुये, वैसे सज्जन लोग कम ही बीमार होते है,मगर हो गये क्या करे। डाक्टर ने आठ घन्टे खतरनाक बताये कहा आज की रात निकल जाये तो मरीज खतरे से बाहर हो जायेगा । रात कैसे निकले ।उन सज्जन का एक सज्जन बेटा भी था वैसे बेटे आज कल सज्जन होते नहीं है मगर होगया इत्तेफाक है तो उसने पापा के पुराने दोस्त को बुलाकर कहा अंकल किसी तरह रात निकलजाये । अंकल ने कहा यह कौनसी बडी बात है , मानवमस्तिष्क से परिचित वे जानते थे कि मरीज का ध्यान डायवर्ट करदो आधी बीमारी उसकी दूर हो जाती है । मित्र अंकल कमरे में गये और जाकर अपने मरीज मित्र से कहा यार वो भी क्या दिन थे जब तुम स्कूल में गजले लिखते थे फिर कालेज पहुंचते पहुंचते तो उनमें बहुत बजन आ गया था अव रिटायरमेन्ट के बाद उनका कुछ उपयोग करे । बीमार को करार आया बेबजह आया या बाबजह आया मगर आया।इशारे से उन्हौने अपनी पुरानी डायरियां निकलवाई । पहले मंद्र फिर मध्यम और फिर तारसप्तक में शुरु हो गये ।बेटे बेटी कमरे से बाहर बैठे आवाज सुनते रहे घडी देखते रहे वक्त गुजरता गया खतरे की अवधि समाप्त । कमरे में गये पिताजी जोर जोर से रचना पाठ कर रहे थे और वगल में मित्र अंकल मरे डले थे।

ये सुनने सुनाने का सिलसिला ’सुनो सजना पपीहे ने कहा सबसे पुकार के’ के पूर्व से चला आरहा है और सुन सुना आती क्या खण्डाला के बाद भी निरंतर जारी है।

मेरे नगर में पैसेन्जर गाडी रात 12 वजे आकर रात्रि विश्राम करती है सुवह आठ बजे जाती है। जिस दिन स्टेशन पहुचने में जरा देरी हो जाये उस दिन बिल्कुल राइट टाइम चली जाती है, मगर देर नहीं हुई थी तो गाडी का लेट होना स्वाभाविक था । साडे आठ बज गये ,पौने नौ बज गये आज क्या बात होगई कही कोई क्रासिंग तो नहीं है। ये क्रोसिंग भी मजेदार चीज होती है इंशाअल्लाह कभी मौका लगा तो इस पर भी अर्ज करुंगा ।यात्री परेशान शीटी रेल की बज रही है एनाउन्स हो रहा है गाडी स्टेशन छोडने वाली है मगर हरी झंडी दिखाने वाले गार्ड साहब गायब है। तलाश की तो बडी देर बाद मिले गाडी के पीछे खडे हुये शेर सुना रहे हैं और कुली दाद दे रहे हैं ।

अदालत सुनी सुनाई बात पर विश्वास नहीं करती है। गुलाम अली साहब ने कहा सुना है गैर की महफिल में तुम न जाओगे किसी ने गाया सुना है तेरी महफिल में रतजगा है किसी वकील से पूछो यह हियर से की श्रेणी मे आता है ।

सुनना ठीक है कहते है जीभ एक और कान दो इसी लिये होते है मगर सुनना वाध्यकारी नहीं होना चाहिये सुन साहिबा सुन मैने तुझे चुन लिया तू भी मुझे चुन । मतलव यह तो दादागिरी होगई । तूने चुना तेरी मरजी मगर किसी पर यह क्यों थोपना कि तू भी मुझे चुन ।