Monday, April 27, 2009

भावार्थ (व्यंग्य )

( दीनहीन,पराधीन ,विचाराधीन ,जीर्णशीर्ण ,जराजीर्ण , जीर्णकाय, जो शब्द उपुयक्त हो वह अथवा गिरती दीवार हूँ ठोकर न लगाना मुझको की मानिंद )
एक बुजुर्ग ==गर्मी का मौसम ==दोपहर का वक़्त = हैण्डपम्प के पास ==एक निवेदन ==प्यास लगी है /

एक ==देख तो बुढऊ,क्या कह रिया हैगा

दो = मैंने तो देखते ही समझ लिया था बुड्ढा बदमाश है

तीन = आँखे तो देखो इसकी /कैसी गिरगिट जैसी है

चार = साला हमसे प्यास बुझाने की बात करता है /

एक =चल वे बुड्ढे माफी मांग

दो =माफी से काम नहीं चलेगा ऐसे नीचों को ;तो पुलिस के हवाले ही करना चाहिए
बुजुर्ग को ऐसे प्रतीत हुआ जैसे किसी कंजूस ने अपनी सारी संपत्ति गवां दी हो जैसे किसी योद्धा ने शूरबीर का बाना पहन युद्ध भूमि से पीठ दिखला दी हो जैसे किसी साधूसम्मत आचरण वाले ने धोखे से मदपान कर लिया हो

"" नयन सूझ नहि सुनहि न काना / कही न सकहि कछु अति सकुचाना /""
सही भी है

""संभावित कहुं अपजस लाहू / मरण कोटि सम दारुण दाहू /""
थाने में
----------
थानेदार =मगर बुड्ढा तो कह रहा है की उसने कहा था प्यास लगी है /

फरियादी =दारोगा जी मतलब तो वही हुआ /जब प्यास लगेगी तभी तो प्यास बुझायेगा

फरियादी दो =दारोगाजी आप साहित्य नहीं समझते क्या ? साहित्य में एक अलंकार होगा है ""पर्यायोक्ति""तुलसी दास जी ने मानस में बहुत प्रयोग किया है / "" सहसबाहु भुज ----------दससीस अभागा ""तक में किसी का नाम नहीं लिया किन्तु चार वेद और छ: शास्त्र का ज्ञाता रावन समझ गया कि अंगद परसुराम वाबत कह रहा है /

फरियादी तीन = आशय और उद्देश्य (इंटेंशन एंड मोटिव )से सारा अपराध शास्त्र भरा पड़ा है आप कानून के जानकर होकर कानून के आशय शब्द का आशय नहीं समझते है

फरियादी चार =दारोगा जी आपने इंटरप्रीटेशन आफ स्टेट्यूट नहीं पढ़ा क्या /इंटरप्रीटेशन का सामान्य सिद्धांत है कि शब्दों को प्रथमत : उसके स्वाभाविक ,साधारण या प्रचलित अर्थ में समझना चाहिए तथा अभिव्यक्तियों और वाक्यों का अर्थान्वयन उसके व्याकरणिक अर्थ में करना चाहिए

फरियादी एक =अरे जब तक ये कानून के रखवालों को कानून की भाषा और साहित्य का ज्ञान नहीं होगा तब तक ऐसे सामाजिक गंदगी को हमें ही साफ करना होगी

और ==""हम सब एक हैं / जो हमसे टकराएगा ,मिट्टी में मिल जायेगा "" का नारा बुलंद हुआ और वहीं थाने में थानेदार के सामने बुड्ढे की ठुकाई पिटाई शुरू हो गई

उस वक्त मुझे शेर याद आरहा था कलीम अज़ीज़ साहेब का sher yaad araha thaa
=
"" अभी तेरा दौरे शबाब है ;अभी कहाँ हिसाबो किताब है /
अभी क्या न होगा जहान में ;अभी इस जहाँ में हुआ है क्या /""

12 comments:

Alpana Verma said...

आदरणीय बृज सर,
आप की ब्लॉग में वापसी देख कर अच्छा लगा..
'गिरती दीवार हूँ ठोकर न लगाना मुझको की मानिंद '--

आप के इस लेख को पढ़ कर ऐसा लगा कि पिछली घटना ने आप के मन को कितनी पीडा दी है.
कुछ व्यक्ति अपनी कल्पना शक्ति का जरुरत से अधिक उपयोग कर लेते हैं जिस के कारण समस्याएं उठती हैं.
वैसे तो एक बात विवाद से परे रह कर कहना चाहूंगी..कि जिस के मन में जैसी भावना होगी उसे सब वैसे ही दिखाई देंगे.
यूँ तो किसी भी बात का बतंगड़ बनाना बड़ा आसान होता है लेकिन बात को संभालना बहुत मुश्किल.

आशा है , माँ शारदा के नाम पर रखे गए आप के इस ब्लॉग पर आप के विचार आगे भी पढने को मिलते रहेंगे.
आभार

अमिताभ श्रीवास्तव said...

गिरती दीवार हूँ ठोकर न लगाना मुझको की मानिंद

THOKAR lag bhi gai...

Abhishek Ojha said...

तुलसी बाबा से लेकर अज़ीज़ साहेब तक का मिश्रण. अंदाजे बयां पसंद आया !

गौतम राजऋषि said...

कहाँ थे वकील साब इतने दिनों तक?
एक अद्‍भुत और अनूठे आलेख के साथ दिखे हो, तो मन खुश हो गया।
ये ब्लौग-जगत अभी तक आपके पूर्ण अवतार को सही से देख नहीं पाया है, सर। न्याय करें तनिक अपनी प्रतिभा संग और हमें नवाजें...नवाजते रहें

"पाखी" में उस बेमिसाल पुरूष्कृत पत्र के लिये हार्दिक बधाईयां...

कडुवासच said...

... कमाल-धमाल !!!!!!

मुकेश कुमार तिवारी said...

आदरणीय बृज सर,

अल्पना जी का दिया हुआ संबोधन मुझे भी ज्यादा सटीक लगा तो अपना दिमाग लगाने की जुर्रत नही की।

आपका आशीष मिला, मैं दिन दोगुना हो गया। मुझे भी ना जाने क्यों और क्या हुआ कि संपर्क ही नही रख पाया। क्षमा चाहता हूँ।

किसी वृद्ध का यह हाल तो होता है रहता है कमबख्त शिक्षित बेरोजगारी ने लोगों को अपनी कुंठाओं से निजात पाने के लिये इस तरफ जो धकेल दिया है। बिलावजह तंग करना / मज़ाक उड़ाना / छेड़ना जैसे अब दैनंदिनी हो गई हो। इस सच ने शर्मसार कर दिया।
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है, जो गुद्गुदाते हुये भी चिकोटी काट जाती है।

आपका आशीर्वाद बना रहे।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

Science Bloggers Association said...

बहुत खूब।
मजा आ गया।
----------
सम्मोहन के यंत्र
5000 सालों में दुनिया का अंत

hem pandey said...

व्यंग्य के साथ साथ शैली भी प्रशंसनीय है | साधुवाद |

श्यामल सुमन said...

बृजमोहन भाई,

बहुत दिनों के बाद इस व्यंग्य रचना के साथ आपका आना सुखद लगा।

चोरों ने चोरी किया लोगों ने की तस्दीक।
चोर भाग थाना गए थाना था नजदीक।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

कडुवासच said...

जिस दिन से चला हूँ मेरी मंजिल पे नजर है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
... behad khoobasoorat !!!

sandhyagupta said...

Chaliye der aaye par durust aaye.

Pradeep Kumar said...

wah ji wah kya baat hai !!! blog padhkar dil khush ho gyaa .