Saturday, November 21, 2009

मेरा तो हो ही जाये -पुनर्जन्म

किसी का होता हो या न होता हो मेरा तो हो ही जाये पुनर्जन्म । मजा आता है ।कभी ऊंट बने किसी पहाड के नीचे खडे है ,कभी बैल बने फिर रहे हैं न लाज न शर्म ।बीच सडक पर बैठे है कार वाला हार्न बजा रहा है नहीं हट रहे ।कभी गधा बन गये बीच चौराहे पर पंचम स्वर मे ढेचू ढेचू कर रहे है और कभी कुत्ता ,+ वैसे भी कर तो यही सब कुछ रहे हैं मगर फ़िर और आजादी रहेगी । इसलिये मेरा तो हो ही जाये ।
ऊंट का तो ये है कि इसके द्वारा पेडों को ठूंठ करना निश्चित है और इसका किसी करवट बैठ्ना अनिश्चित है ।
बैलों का हमारे इधर हाट भरता है लोग उसे मेला भी कहते है ,मोटर सायकल और जीप (जनरल परपज व्हीकल, जीपीव्ही से अब केवल जीप रह गया है ) के प्रचलन से पूर्व घोडों का बाजार लगता था ,शाम को व्यापारी हिसाब लगाते थे किसको कितना प्रोफ़िट हुआ ।एक व्यक्ति घोडा बेचने लाया ऊंचा पूरा ,हवा से बातें करने वाला (यह मुहावरा है ,हमारे यहां मुहावरे बहुत होते हैं ,सभी भाषा में होते होंगे ) सबके घोडे बिकगये उसके पास कोई ग्राहक न आया यह सोच कर कि ,बहुत महगा होगा न जाने क्या कीमत मांगेगा? शाम को एक ग्राहक आया ,कीमत पूछी ,बोला ट्रायल ले लूं -ले लो ,उसने घोडा इधर उधर घुमाया ,एड लगाई और नौ दो ग्यारह ।(यह एक गणितीय मुहावरा है ,गणित मे मुहावरे बहुत है , तीन पांच करना,निन्यानवे का फ़ेर , चौरासी की चक्कर ,छ्त्तीस का आंकडा ,वैसे तो गाने भी बने है एक दो तीन आजा मौसम है रंगीन , एक दो तीन चार भैया बनो होशियार ,एक ने गिनती शुरु की तो वह तो गिनती ही चली गई वो तो बीच मे "तेरा करुं दिन गिन गिन के इन्तजार आजा ..शब्द आगया नही तो चार पांच सौ पर जा कर रुकती ) खैर ,बेचारा घोडे का व्यापारी देखता रह गया ।रात को सब हिसाब लगाने लगे किसको कितना मुनाफ़ा हुआ । इससे पूछा तो ये बोला भैया मैने तो नो प्रोफ़िट नो लौस में दे दिया ।
गधा केवल इस लिये गधा होता है क्योंकि वह गलत धारणा (ग....धा....) रखता है सब रखते हैं मै भी रखता हूं । एक दिन शाम को हमें(बहुबचन) बाजार जाना था ,मैने कहा तुम आगे चलो मैं ताला लगा कर आता हूं ,बोलीं नही मै तो तुम्हारे पीछे ही चलूंगी और गाने लगी "तुम्हारे सग मै भी चलूंगी पिया जैसे पतंग पीछे डोर""मैने कहा तुम लोग आगे बढ्ना क्यों नही चाह्ते ,कहा देखिये गधा कितनी ही लातें मारे धोबी उसके पीछे ही चलता है ।यह बात भी सही है कि मेरे यहां कपडे धोने वाला पांच छै दिन से नही आरहा था ।
कुत्ते के वाबत सुना है इसे स्वर्ग मे प्रवेश नही करने देते ,कही कही हवाईजहाज और कही होटल मे भी मुमानियत है ।एक कुत्ते को हवाई जहाज मे एड्मीशन नही दिया तो सुना है उसकी मालिकिन अभिनेत्री ने भी यात्रा निरस्त करदी ठीक उसी तरह जैसे धर्म्रराज युधिष्टिर ने स्वर्ग जाने से इन्कार कर दिया था ।मगर मैनेजर के मना करने के बाद भी एक अभिनेत्री नही मानी और कुत्ते को होटल मे ले ही गई ।क्या नाम था उस अभिनेत्री का ,शायद जीनत अमान या कोई और ,खैर लावारिस फ़िल्म की बात है अब कुत्ता, हरीमिर्च और अमिताभ बच्चन ।क्या उत्पात मचाया है कुत्ते ने कि कुछ न पूछों ।वैसे भी आप कहां कुछ पूछ रहे है ।पूरे होट्ल को तहस नहस कर डाला ।साखाम्रग की यह अधिकाई, साखा ते साखा पर जाई की तरह इस टेविल से उस पर और उससे इस पर ।यूं की.....मजा आ गया जिन्दगी का । इसलिये मेरा तो हो ही जाये ।
बहुत पहले मैने टीवी पर देखा ,एक लड्की अपने आप को पिछले जन्म की नागिन बतला रही थी और एक युवक के वाबत कह रही थी कि यह मेरा नाग है हम नाग नागिन का जोडा रहता था तो एक नेवले ने हमको मार दिया था मजेदार बात ये कि वह नागिन लडकी ,उस युवक की पत्नी को नेवला बतला रही थी ,भाइ कमाल है और एक बात -
यह भी टीवी पर ही देखा ,एक लड्की के वाबत (यह दूसरा किस्सा है ) बतलाया जा रहा था कि यह पिछले जन्म मे नागिन थी क्योकि इसके आगे बीन बजाओ तो वह मारने दौड्ती है ।यार आप आफ़िस जाने घर से निकलें और कोई आपके आगे बीन बजाने लगे कैमरा मैन फ़ोटो खीचने लगे और अगर आप उसे मारने हाथ उठाओ तो वे कहें देखिये, गौर से देखिये, नाग फ़न फ़ैला रहा है ,अच्छा भला आदमी पागल हो जाये दस दस बीन बाले ,दस दस कैमरा मेन,बच्चों की भीड ,वो बच्ची मारने नही दौडेगी तो क्या लड्डू बांटेगी ।

16 comments:

Alpana Verma said...

-bahut hi rochak lekh!

आप आफ़िस जाने घर से निकलें और कोई आपके आगे बीन बजाने लगे कैमरा मैन फ़ोटो खीचने लगे और अगर आप उसे मारने हाथ उठाओ तो वे कहें देखिये, गौर से देखिये, नाग फ़न फ़ैला रहा है ,अच्छा भला आदमी पागल हो जाये दस दस बीन बाले ,दस दस कैमरा मेन,बच्चों की भीड ,वो बच्ची मारने नही दौडेगी तो क्या लड्डू बांटेगी ।

ha!ha!ha!

-Sir,aap ka likhe vyangy mein dhar bahut hai--
-Waise aaj kal ek promo aa raha hai--
NDTV imagine par--7 december se--jismein --
ve dikahyenge--logon ko unke pichhle janam mein jate hue--
--us programmae ki utsuksta se prateeksha hai.[:D]
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Satish Saxena said...

बढ़िया व्यंग्य है, भाई जी ! वैसे तो इस जनम में ही क्या तीर मार लिए शायद कुत्ता बन कर जिस तिस को दौड़ा कर भड़ास तो निकाल ही लेंगे ! जीप के बारे में तो पहले पता ही नहीं था !
शुभकामनायें !

देवेन्द्र पाण्डेय said...

पुनर्जन्म इच्छानुसार थोड़े न होता है
आप ने तो सभी पुलिंग चुन लिए!
हा. हा ..हा ...अच्छा व्यंग्य है........

ज्योति सिंह said...

shaandar vyang ,aapki ganit wale muhavaro ka sangrah laazwaab raha ,rachna ki kai baate kafi asardaar rahi .achchha likha hai .

Urmi said...

बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! इस बेहतरीन और शानदार पोस्ट के लिए बधाई !

Abhishek Ojha said...

आप तान छेड़ते हैं तो कहाँ से कहाँ ले जाते हैं. वैसे इंसान हैं तो वो सब तो कर ही ले रहे हैं जो इ जानवर सब करता है ;)

दिगम्बर नासवा said...

बृजमोहन जी ........पुनर्जनम, घोड़े, गधे , कुत्ते से होते होते कब लड़की तक आ गए पता ही नहीं चला .......... व्यंग के तो आप मास्टर हैं ........ बहुत अच्छा लिखा है .......

पूनम श्रीवास्तव said...
This comment has been removed by the author.
पूनम श्रीवास्तव said...

आपके व्यन्ग्य इतने पैने और धारदार हैं जो सीधे लक्ष्य पर वार करते हैं। और यही व्यन्ग्य की सफ़लता है।
आपकी टिप्पणियों से मुझे मेरी गलतियां भी पता चलती हैं और आगे लिखने के लिये मार्गदर्शन भी प्राप्त होता है।
हार्दिक शुभकामनायें।

राज भाटिय़ा said...

अरे वाह बहुत मजे दार है यह पुनर्जन्म, चलिये इकट्टॆ ले गे.भाई हंस हंस के लोट पोट हो गये, बहुत अच्छा.
धन्यवाद

Arshia Ali said...

अंधविश्वासियों की बहुत कायदे से क्लास ली है आपने।
इस शानदार आलेख के लिए हमारी ओर से बधाई स्वीकारें।
और हाँ, क्या आप सांइस बलॉगर्स असोसिएशन के लिए वैज्ञानिक सोच वाले लेख लिखना चाहेंगे? आपको अपने साथ जोडकर हमें प्रसन्नता होगी।


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क्या है कोई पहेली को बूझने वाला?
पढ़े-लिखे भी होते हैं अंधविश्वास का शिकार।

शरद कोकास said...

गधा याने गलत धारणा - हा हा हा

रंजना said...

Hansaakar maar daal aapne.....lajawaab haasy...waah !! Din ban gaya !!! Bahut bahut aabhar...

मुकेश कुमार तिवारी said...

आदरणीय बृज सर,

मुझे भी यह लगना लगा कि जो कुत्ता मेरे पीछे भौंकता है सुबह-सुबह जब मैं भी ऑफिस के लिये निकल रहा होता हूँ शायद कोई पहचान कायम रहा हो पिछले जन्म की।

बहुत मजा आया पढ़ के इस चुटीले व्यंग्य को बिल्कुल हरी मिर्च की तरह सी...सी... सी.. (ऑफकोर्स लावारिस वाली नही)।

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

रंजीत/ Ranjit said...

व्यंग्य और निबंध के ऐज पर लिखी गयी अनुपम रचना। बहुत सुंदर। नेट के समुद्र में "शारदा' द्वीप से परिचित होकर अच्छा लगा।

Arshia Ali said...

आदरणीय श्रीवास्तव जी, बहुत दिनों से आपने कुछ नहीं लिखा। क्या बात है?
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सांसद/विधायक की बात की तनख्वाह लेते हैं?
अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा ?