Friday, December 4, 2009

अन्ध विश्वास

एक बिटिया मे मुझसे अन्ध-विश्वास पर लिखने को कहा । अपनी बात शुरु करने के पूर्व, मै इस विषय से असमबद्ध, दो बातें कहना चाहूंगा । बात है कब्रिस्तान/श्मशान की, । एक सज्जन की पत्नी का निधन (स्वर्गबास) हो जाने पर उसे दफ़नाया/जलाया जा रहा था ।पति फ़ूट्फ़ूट कर रो रहा था । उसकी हालत देखी नही जा रही थी । किसी ने उसके कन्धे पर हाथ रख कर कहा -हमे न मालूम था तुम इतना प्रेम करते थे कितना रो रहे हो -रोता हुआ पति चुप हो गया बोला -अजी यह तो कुछ भी नही है आप मुझे उस वक्त देखते जब घर से मैयत उठाई जा रही थी, उसके मुकाबले मे तो, ये कुछ भी नही है ,उस वक्त देखते मुझे, ये तो कुछ भी नही है ।

दूसरी बात ,एक बाप अपनी म्रत नन्ही बालिका के लिये रोया करता था ।एक दिन बच्ची उसके सपने मे आई बोली हम सब सहेलियों के साथ खेलते हैं वहां परियां भी होती है रात को हम केंडिल लाइट मे स्वादिष्ट खाना खाते है किन्तु आप रोते हो वे आंसू मेरी मोमबत्ती बुझा देते है ,मुझे अंधेरे मे खाना पडता है और सब सहेलियां मुझ पर हंसती है ,मुझे बहुत कष्ट होता है । बाप ने उस दिन से रोना बन्द कर दिया ।

विश्वास और अन्धविश्वास के मध्य कोई विभाजन रेखा खीचना मुश्किल है ,एक का अन्धविश्वास दूसरे का विश्वास हो सकता है क्योंकि यह दुनिया बडी विचित्र है ""किसी की आखिरी हिचकी किसी की दिल्लगी होगी ""की मानिन्द ।

मै एक कव्वाली सुन रहा था ""तुम्हे दानिश्ता महफ़िल मे जो देखा हो तो मुजरिम हूं/नजर, आखिर नजर है ,बे इरादा फ़िर गई होगी।""कव्वाल के लिये बे-इरादा सही मगर जिसने उन्हे देखते हुये देखा होगा , उनकी नजर मे तो कव्वाल की नजर बा-इरादा हो सकती है ।

और एक बात, मै लेख लिखूं , कुल मिला कर दस विद्वान पढेंगे और निश्चित ही वे सब अन्धविश्वासी नही होंगे ।मगर ये जो व्यापार बडे पैमाने पर जारी है ,बीमारियां मिटाने , बुरी नजर से बचाने , रोजगार मे सफ़लता दिलाने ,धन सम्पत्ति को घर मे स्थिर करने और भी न जाने क्या क्या करोडों का व्यवसाय, लाखों लोग प्रतिदिन देख, सुन व समझ रहे है और (तथा कथित ) लाभ भी ले रहे है । उसमे मेरा लेख "नक्कार खाने मे तूती की आवाज " नही हो जायेगा ? ये नक्कारखाना क्या ?तबला तो आप सब ने देखा है उसी का बडा भाई होता होगा नगाडा, उसे ही नक्कार कहते होगे और तूती बिल्कुल छोटी सी बांसुरी से भी छोटी होती होगी । खैर ।मै एक बार पहले भी निवेदन कर चुका हूं कि धन वर्षा करने वाले यंत्र ,मैने बहुत अध्ययन किया है , असर कारक होते है ,हन्ड्रेड परसेन्ट ये आपके घर धन की वर्षा कर सकते है बशर्ते कि आप इन्हे बना कर बेचें ।

ओशो से किसी ने पूछा बिल्ली रास्ता काटे तो क्या समझना चाहिये । बोले-यही समझना चाहिये कि बिल्ली कहीं जा रही है ।बात खत्म ।अन्धविश्वास कोई नया नही है बहुत गहरी जडे हैं इसकी । बिल्ली, सर्प, नेवला, अंग का फ़रकना , छिपकली का ऊपर गिरना, कौआ का सिर पर बैठ जाना ,घोडे की नाल की अंगूठी ,नीबू मिर्च घर के दरवाजे पर टांगना (बोले इसमे अपना नुक्सान क्या है ),और भी न जाने क्या क्या । जिसमे सर्प को लेकर तो खूब दोहन किया फ़िल्मों ने । नाग एक जाति होती है ,उस जाति मे राजा भी हुए है "नर नाग सुर गंधर्व कन्या रूप मुनि मन मोहहीं ।सर्प को नाग भी कहा जाता है तो इस सर्प को उस नाग जाति से जोड दिया ।जैसे नामो के आगे "सिंह " लगता है सिंह शेर को भी कहते है ।पुराने लोगों को मालूम होगा आजकल तौल का माप किलो होता है वैसे ही पहले सेर होता था , पहले क्विंटल नही मन होता था तो लोग कहा करते थे चालीस सेर का एक मन होता है , मन बडा चंचल है,चंचल मधुवाला की बहिन है, मधुवाला को दिल का दौरा पडा था ,दिल एक मंदिर है ,मंदिर हरिद्वार मे बहुत हैं ,हरिद्वार मे संगम है ,संगम मे राजकपूर है ,राज हिन्दी मे शपथ लेने मना करते है आदि इत्यादि । देखो कहां से कहां पहुंच गये ।

हां तो अन्धविश्वास- जो बीमारियों को दैवीय प्रकोप समझते थे अब धीरे धीरे दूर होता जारहा है ,सर्प के बारे मे भी भ्रांतियां नही के बराबर है ,बिल्ली वगैरा को आजकल कोई मानता नही । कुछ दिन पहले मैने पढा एक पुराने नीम के पेड मे से दूध गिररहा है ,लोग इकट्ठा हो गये मेला लग गया किसी जन्मांध की आंख अच्छी हो गई ,किसी ने गले पर लगा लिया तो उसका केंसर अच्छा हो गया,कमाल है ।एक दिन वे कहने लगे साह्ब बडा चमत्कार है इधर से मरीज को खटिया पर डाल कर ले गये थे उन्होंने जल छिड्का ,उधर से मरीज दौडता हुआ आया ,मेला लग रहा है चमत्कार हो रहा है तुम भी चलो । अब मै उनसे कैसे कहूं कि मैने तो ऐसे-ऐसे चमत्कार सुने है कि "" कल तलक सुनते थे वो विस्तर पे हिल सकते नही/आज ये सुनने मे आया है कि वो तो चल दिये।

एक व्यक्ति श्रद्धा और विश्व्वास से एक ग्रंथ पढता है दूसरे के लिये वही अंध विश्वास हो सकता है ।स्वर्ग नर्क को अन्ध विश्वास कहने वालो के बुजुर्ग आज भी स्वर्गबासी या स्वर्गीय हैं ।किसने देखा, किसकी मानें, किसकी नही ""उतते कोउ न आवही जासे पूछूं धाय /इतते सबही जात हैं भार लदाय लदाय ""
अदालत मे गवाह पेश होते है वे तीन तरह के होते है एक पूर्ण विश्वसनीय , दूसरे पूर्ण अविश्वसनीय और तीसरे वे जो न पूरी तरह से विश्वसनीय है न अविश्वसनीय है ,ये बडे तकलीफ़देह होते है इनकी बातो से सच निकालना वैसा ही है जैसे भूसे के ढेर से दाने चुनना ।विश्वास और अन्धविश्वास के मध्य भी कुछ ऐसी ही स्थिति है ।

12 comments:

प्रमोद ताम्बट said...

ब्रजमोहन जी,
आपका ईमेल पता ना होने के कारण आपके ब्लॉग पर आना पड़ा। मेरे ब्लॉग पर मेरी कविता पर टिप्पणी देने के लिए धन्यवाद। देना चाहता था।
आपका ब्लॉग भी देखा रोचक लगा। आशा है निरन्तर कुछ ना कुछ पढ़ने को मिलता रहेगा।
पुनः धन्यवाद।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.im
www.vyangya.blogspot.com

राज भाटिय़ा said...

ब्रज मोहन जी आप का लेख पढा, ओर पढा ओर फ़िर पढा ओर फ़िर पढा, धन्यवाद

Alpana Verma said...

ओशो से किसी ने पूछा बिल्ली रास्ता काटे तो क्या समझना चाहिये । बोले-यही समझना चाहिये कि बिल्ली कहीं जा रही है ।बात खत्म.
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विश्वास और अन्धविश्वास के मध्य कोई विभाजन रेखा खीचना मुश्किल है ,एक का अन्धविश्वास दूसरे का विश्वास हो सकता है.
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यूँ तो कुछ बातें कभी कभी आश्चर्यचकित करती है .लगभग हर मानव का मन ही ऐसा है ऐसे मामलों में अक्सर विवेकी निर्णय कर पाने में शंकित रहता है.अगर कोई विशेष घटना बार बार होने लगे तो इत्तेफ़ाक़ ना मान कर उसे विश्वास का रूप देने लगता है.
-अंधविश्वास पर से विश्वास अब हटने लगा है.लेकिन दुख की बात है की इस तरह की बातों के उन्मूलन में सहयोग देने के स्थान पर मीडीया संबंधित vigyapano ka प्रचार कर रही है.यह भी एक तरह का व्यवसाय बन गया है.
आप का लेख इस दिशा में सोचने पर मजबूर करता है,की कैसे हम इस दिशा में अपना सकारत्मक योगदान दे सकें.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

आपकी शैली बेहद रोचक है। पूरा पढ़ गया।
"कल तलक सुनते थे वो विस्तर पे हिल सकते नही
आज ये सुनने मे आया है कि वो तो चल दिये।"
ऐसे-ऐसे हसीन कोटेशन से आपने अपने लेख में चार चांद लगा दिया है।
एक कमी भी नज़र आती है...
कभी-कभी लगता है कि आप मूल विषय से भटक रहे हैं।
..अंधविश्वास के शिकार हम आज भी होते हैं
ऐसे लेखों की समाज को अत्यधिक आवश्यकता है।

रंजना said...

MAJEDAAR LAJJATDAAR POST !! AANAND AAYA PADHKAR !!

ज्योति सिंह said...

sahi farmaya aapne andhvishwash bhi kai kism ke hote hai aur is jaal se nikalna bhi mushkil hai .alpana ji ki baate mere vicharo se kafi mel kha rahi hai ,aur unki baton se main bhi poori tarah sahmat hoon .

दिगम्बर नासवा said...

SEARCH AND RE-SEARCH के बीच का अंतर भी ऐसा ही है .......जिसकी RESEARCH हो चुकी है वो स्थापित हो गया है जिसकी खोज नही हो सकी वो अंधविश्वास है .......... मुझे लगता है विश्वास और अंधविश्वास की परिभाषा SAMAY के साथ साथ बदलती जाती है .........
आपका लेख बहुत ही सुलझा हुवा है ....... लाजवाब सर ............

अमिताभ श्रीवास्तव said...

bhaisaheb,
kya likhu, jabardast lekhan aour saarthk baate..us par tippani karu..,
par sirf ek baat aapse kahunga yaa poochhunga..\ANDHVISHVAAS me sirf ek jagah kartaa hu aour vo ishvar par.., kyoki me maantaa hu ishvar par hi aap andhvishvaas kar sakte he aour usike maadhyam se uska anubhav kar sakte he.., ynha me andhvishvaas ko vishvaas ki ati se hi jod rahaa hu..,kher..is sandarbh me bhi jaroor likhiyega..kabhi..taaki mujhe padhhne ko mile..aour samajhne ko bhi...

गौतम राजऋषि said...

कैसे हैं वकील साब?

आज एक लंबे अंतराल के बाद आना हो रहा है मेरा। गलती मेरी ही है। अपने ब्लौग का टेम्पलेट जब बदला तो आपका लिंक गुम गया।

आज ही पहले हंस में आपके बेमिसाल हाइकु पढ़े और फिर पाखी में आपका बखिया उधेड़ता हुआ खत।

Smart Indian said...

इतने ब्लॉग पढ़े मगर आप जैसा न मिला. मज़ा आ गया. बात भी कह डाली और रोचकता भी बनी रही.

कडुवासच said...

... बहुत खूब !!!!

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

लाजवाब पोस्ट.... बिल्कुल सीधे तरीके से(जलेबी के जैसे) बात कह जाने की कला में तो आप उस्ताद है..:)
रही बात अन्धविश्वास की तो मेरा तो ये मानना है कि अन्धविश्वास सदैव किसी न किसी सत्य की छाया ही होता है...हमें छाया की उपेक्षा तो अवश्य करनी चाहिए किन्तु साथ ही साथ उसमें छिपे सत्य को भी सामने लाने का प्रयास करना चाहिए ।