Tuesday, January 12, 2010

सरप्राइज इन्स्पेक्शन

मै अज्ञातबास पर ,मध्यप्रदेश के गुना नगर मे, बोहरा बागीचा स्थित अपने घर मकान नम्बर १२१ में पन्द्रह दिन के लिये गया था ।कोई कह सकता है बल्कि कहना ही चाहिये कि यह कैसा अज्ञातबास ।

यह उसी तरह का अज्ञात बास है जिस तरह आज-कल सरकारी कार्यालयों मे सरप्राइज इन्सपेक्शन होते है । पीए साहब का ( पिये हुये साहब का नही बल्कि उनका एक असिस्टेंट होता है उसका ) अर्ध-शासकीय पत्र आता है ( ईमेल की सुविधा होते हुए भी )कि सरकिट हाउस ( या डाक बंगला जो भी वहां पर उपलब्ध हो )मे दो कक्ष आरक्षित करा दिये जायें, बड़े साहब परिवार सहित सरप्राइज इन्स्पेक्शन को पधार रहे है ।लंच मे क्या क्या होना चाहिये यह या तो अर्ध-शासकीय पत्र मे ही लिख दिया जाता है अथवा फ़ोन पर सूचित कर दिया जाता है ।

चूंकि चपरासी से लेकर छोटे साहब तक सभी को यह पता रहता है कि दिनाक इतने को आकस्मिक निरीक्षण होना है तो उसकी तैयारियां शुरू हो जाती है ।उस दिन चपरासी प्रोपर ड्रेस पहन कर आते है ,फ़ाइलों की धूल झाड़ी जाने लगती है ।बाबू साहेबान को एक टेबिल और टेबिलक्लाथ उपलब्ध होता है तो अक्सर गंदा रहता है उसे धुलवालिया जाता है और उसका फ़टा हुआ भाग अपनी तरफ़ कर बिछा दिया जाता है और बेतरतीब फ़ाइले ठीक से जमा दी जाती है ।

बाबू साहबान को जो टेबिल उपलब्ध होती है उसमे दराज होती है जिसमे शामलाती पेपर भरे रहते है जिन्हे फ़ुरसत मिलने पर संबन्धित फ़ाइलों मे लगा देने का विचार रहता है और चूंकि फ़ुरसत कभी मिलती नही इसलिये इनकी संख्या बढ़्ती रहती है तो कागज दराजों मे रखे नही जाते बल्कि ठूंसे जाने लगते है । ,इन्स्पेक्शन की जानकारी मिलने पर सबसे पहले इन कागजों को एक पोटली मे बांध कर अदर्शनीय स्थल पर रख दिया जाता है क्योंकि ऐसा सुना गया है कि किसी जमाने में बड़े साहब ने दराज खुलवा कर पेंडिंग कागजात की लिस्ट बनवा ली थी और उन कागजात मे कुछ पांच पांच और दस दस के नोट भी मिले थे - जिसके वाबत उनका स्पष्टीकरण यह था कि यह रुपये उनकी तनखा के है जो वे अपनी पत्नी से छुपा कर दफ़तर में दराज मे रखते है ।भुक्तभोगी बडे साहब ने उनका स्पष्टीकरण मान्य किया था ।

सरप्राइज इन्सपेक्शन कराना और पी एस सी की परीक्षा मे समानता इस मामले मे है कि कब क्या जानकारी मांगबैठें या कौनसा प्रश्न पूछ लें ।मध्यप्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा मे रामायण और महाभारत सीरियल के निर्माताओं के नाम पूछे गये वहां तक तो ठीक था ,फ़िल्म शोले मे गब्बरसिंह के पिता का नाम पूछा गया, ऐसे ही इन्सपेक्शन मे हर जानकारी तत्काल उपलब्ध कराने के लिये तैयार रहना होता है ।बडे साहब आते है ,सर्किट हाउस मे विश्राम करते है लंच लेते है और जो भी दर्शनीय स्थल उस क्षेत्र मे हो ,के दर्शन कर सपरिवार वापस लौट जाते है और बाबूसाहबान उनके दर्शन लाभ से बंचित रह जाते है क्योंकि छोटे साहब डाक बंगले पर ही सारी जानकारी दे चुके होते है ।

तो यह तो हुआ सरप्राइज ।इसकी हिन्दी होती है आकस्मिक ,औचक , अचानक । अचानक क्या क्या हो सकता है किसी को पता नही रहता है । अचानक पर से मुझे याद आरहा है कि एक खेल हुआ करता था आंख मिचौनी ।उसमे अचनक कोई पीछे से आकर आंखें अपने हाथो से बन्द कर लेता था ,और जिसकी आंखें बन्द की गई है उसके द्वारा आंखें बन्द करने वाले का सही नाम बतलाने पर ही वह आंख पर से हाथ हटाता था ।पति पत्नी के बीच हर प्रकार का हास परिहास हो सकता है लेकिन यह आंख मिचौनी का खेल पति पत्नी के मध्य वर्जित है ।क्यों है ? यह तो पता नही मगर हो सकता है कि ,इसलिये वर्जित किया गया हो कि मानलो पति ने आकर पीछे से आंखें बन्द की और पत्नी के मुह से कोई और नाम निकल गया तो ?

18 comments:

Abhishek Ojha said...

हा हा ! मस्त रहा ये भी. सरप्राइज़ विजिट :)

राज भाटिय़ा said...

मानलो पति ने आकर पीछे से आंखें बन्द की और पत्नी के मुह से कोई और नाम निकल गया तो ? तो...:) बहुत मजेदार जी.

Alpana Verma said...

सरकारी दफ्तरों में इस तरह के inspection नाम के लिए आकस्मिक होते हैं..खबर तो लग ही जाती है और पूरी तैयारी भी.

रोचक प्रस्तुति.

--आँख मिचोनी खेल पति पत्नी में वर्जित है???ऐसा पहली बार सुन रहे हैं.
आप ने जो बात कही वह पति के केस में भी लागू होनी चाहिये.
इस बात का कोई जोड़ प्रस्तुत घटना विवरण/प्रसंग के साथ समझ नहीं आया.
[हास परिहास/व्यंग्य तक ठीक है ...
अन्यथा ....
अब इसी एक बात पर विवाद खड़े होने की संभावनाएं हैं.]

दिगम्बर नासवा said...

हम तो आपकी पोस्ट से इतने दिनो से इंतेज़ार कर रहे थे ... आज पता चला आप सरपराइज़ टूर पर गये हैं ......... पता नही आपको कुछ नोट मिले या नही ...... पर आपकी यात्रा सुखद रही होगी ऐसी आशा है .....
आपने ठीक लिख ........ पति पत्नी के बीच आँकमिचोनी खेलना ठीक नही ...... पत्नी के मुँह से तो कोई बात नही ..... अगर पत्नी ने पति की आँख मूंदी और पति के मुँह से किसी का नाम निकल गया तो खैर नही .........
बाहित ही मज़ेदार पोस्ट है ..... आपकी व्यंगात्मान शैली की लाजवाब पोस्ट ........

कडुवासच said...

... काश अज्ञातबास का मौका हर किसी को मिलता, .... लेख की अंतिम पंक्तियां कुछ ज्यादा ही खतरनाक जान पडती हैं !!!!
.... लेख प्रभावशाली है !!!!!!!!!!!

Satish Saxena said...

आखिर में इस दिलचस्प लेख को बड़े धमाके से ख़तम किया है भाई जी ! शुभकामनायें !

देवेन्द्र पाण्डेय said...

सुंदर हास्य-व्यंग्य से ओतप्रोत इस पोस्ट के लिए बधाई.
..कागजात मे कुछ पांच पांच और दस दस के नोट भी मिले थे - जिसके वाबत उनका स्पष्टीकरण यह था कि यह रुपये उनकी तनखा के है जो वे अपनी पत्नी से छुपा कर दफ़तर में दराज मे रखते है ।भुक्तभोगी बडे साहब ने उनका स्पष्टीकरण मान्य किया था ।
..इन पंक्तियों में भुक्तभोगी का प्रयोग अत्यधिक रोमांचित कर देता है.
.. मानलो पति ने आकर पीछे से आंखें बन्द की और पत्नी के मुह से कोई और नाम निकल गया तो ?
....इसे पढ़कर तो हंसते-हंसते लोटपोट होने का मन करता है.

--बहुत दिनों के बाद ब्लॉग में एक स्वस्थ हास्य-व्यंग्य पढ़ पाया, धन्यवाद.

शरद कोकास said...

भाई गुना की याद आई तो अब कुमार अम्बुज की याद आई और भी बहुत से मित्रों की याद आई । अम्बुज जी तो अब गुना छोड़कर भोपाल बस गये है कि लेकिन गुना को इस कदर याद करते है कि लगता है वे भी शीघ्र ही अज्ञात वास पर गुना ही जायेंगे ।

गौतम राजऋषि said...

हा! हा! लाजवाब वकील साब...आपका ये अंदाज...गब्बर सिंह के पिता का नाम पूछे जाने वाले वाकिये पर हंस-हंस के बुरा हाल हो रखा है।

"सरप्राइज इन्सपेक्शन कराना और पी एस सी की परीक्षा मे समानता इस मामले मे है कि कब क्या जानकारी मांगबैठें या कौनसा प्रश्न पूछ लें"..हा! हा!!

अमिताभ श्रीवास्तव said...

bahut dino baad baabuo par satik kataksh padhhne ko mila.., sharad joshi ke vyangyo me padhhne ke baad baabuo ko jyada kisi me nahi padhha tha...ya yu kahu, sharadji ke alava ese vyangy pasand nahi aaye the.., harishankar parsai ko bhi khoob padhha he, kintu unme klishtata pratit hui..kher..aapke saral shbdo ka andaaz hi bahut achha lagtaa he..
TAARIF to he, aapko lagega bhi..magar..SACH BHI UTANA HI HE JITANI TAAARIF HE,

-ji isi dohe se prerit mere vichaar he../

अमिताभ श्रीवास्तव said...

*ji isi dohe se prerit mere vichaar he../
* yah mene aapke dvara di gai tippani me sambandhit dohe par kahaa he.

ज्योति सिंह said...

behad mazedaar rahi aapki rachna .baki sabhi ne kah diya .

kshama said...

Wah..kya karara vyang hai!Ye aapkee khaas shailee hai!

Urmi said...

वाह बहुत बढ़िया लगा! एकदम जानदार, शानदार और धमाकेदार लेख लिखा है आपने! बधाई!

रंजना said...

ha ha ha ha...jabardast....auchak nirikshan ka sach...jordaar vivran diya aapne....ekdam sahi aur kharee.....

अभिन्न said...

surprise visit जिसके बारे में पहले से पता होता है,क्या बात है. दराज में से पैसे मिलना ओर बीवी से छुपा कर रखने की बात क्या शानदार तरीका है ओर बड़े सहाब ने इसे डिसास्टर मैनेजमेंट का गुर समझ कर जाने दिया,आँख मिचौनी का खेल पति पत्नी के संबंधों में वर्जित होना अति आवश्यक है ....ज़नाब आपके क्या कहने बहुत उम्दा ओर स्तरीय लेखन

सर्वत एम० said...

अजब तेरी कुदरत अजब तेरे खेल----- वकील और हास्य-व्यंग्य, लेकिन इस दुनिया में सब सम्भव है.
मैं पहली बार आपसे मिल रहा हूँ और दुखी हूँ अब तक क्यों नहीं मिला. चलिए देर आए....
पहले मैं ने आपके 'शर्म से लाल' होने कारण जानने के लिए उत्सुक हुआ परन्तु वहां के हालात अक्टूबर २००९ के बाद थम से गए हैं. शायद वहां के लिए अज्ञातवास का समय नहीं मिला होगा या आपने सोचा हो कि कब तक शर्म से लाल हुआ जाए, आखिर बेशर्मी भी तो कोई चीज़ होती है.
उम्मीद है अब हम मिलते रहेंगे.

Smart Indian said...

मज़ा आ गया. आपकी कलम लाजवाब है. आपके औटोग्राफ कैसे मिल सकते हैं?