Friday, July 24, 2009

नानी एक वरदान

मेरे नानाजी का स्वर्गवास हो जाने पर नानी ने स्वम नौकरी न करते हुए मेरी मौसी को अनुकम्पा नियुक्ति के नियमों के अंतर्गत नौकरी दिलवादी और नानी मौसी के साथ रहने लगी |नानी के बीमार होने पर पेंशन की राशिः दबाओं पर खर्च होने लगी तो मौसी ने नानी को अपने साथ रखने से इंकार कर दिया नानी को मेरी माँ अपने यहाँ ले आई |

मेरी माँ ने नानी से कहा कि "अम्मा तूने छोटी को तो नौकरी दिलवादी हमें क्या मिला "" नानी ने कहा मेरे पास तो एक मकान ही है तू ले ले _और मौसी के विरोध करने पर भी माँ ने नानी का मकान बेच कर हमें नया मकान बनवादिया |मकान का निर्माण हो रहा था तब माँ ने नानी से कहा था कि अम्मा मकान पर तेरा ही नाम लिखा जायेगा और ठेकेदार से कह दिया था कि मकान के फ्रंट पर लिख देना ""मातृ छाया "" गलती से कारीगर ने लिख दिया "मात्र छाया ""

मौसी और माँ में झगडा होने लगा |माँ कहती थी तुझे रखना पड़ेगा क्योंकि तुझे नौकरी दिलवाई है ,मौसी कहती थी तूने मकान हड़प लिया है इसलिए तू रख |

विवाद ज्यादा बढ़ ही नहीं पाया था कि छटा पे कमीशन लागू हो गया और नानी की पेंशन बढ़ गई _इधर पापा ने नानी का पेंशन कार्ड बनवा दिया मुफ्त दबायें मिलने लगी |नानी का खर्च भी कम हो गया एक प्याली चाय सुबह, दो रोटी दिन में दो, रोटी रात को | पेंशन का दसवां हिस्सा भी नानी पर खर्च नहीं होता था तो मौसी के यहाँ भेजने का प्रश्न ही खत्म|

|नानी अंगूठा लगा देती है और पापा पेंशन निकाल लाते हैं |

हम चाहते है ईश्वर नानी को शतायु करे

Tuesday, July 14, 2009

दुविधा या द्विविधा

हमारी श्रीमती जी कुछ ज्यादा ही ........(पहले मैं अपना वाक्य, लाइन जरा ठीक करलूं )
""हमारी श्रीमती जी"" मतलब आप श्रीमान जी हैं, वह मेडम हैं तो आप मिस्टर हैं और वे बेगम हैं तो आप बादशाह हैं | यार कितना चीप लगता है अपने आप को श्रीमान कहना ,कोई पूछे आपकी तारीफ और मै कहूं मैं श्रीमान बृजमोहन श्रीवास्तव या माई सेल्फ मिस्टर बृजमोहन,,

हमारे यहाँ तो अपने आप को नाचीज़ कहना, छोटा बतलाना ,और सामने वाले को जनाब कहना यही तरीका रहा है |पूछते भी हैं, जनाब की तारीफ, और अपने वारे में कहते हैं नाचीज़ को, खाकसार को फलां कहते हैं |और कई लोग तो और भी ,कहते हैं ख़ाक-दर-ख़ाक, आपके क़दमों की ख़ाक, नाचीज़ को फलां कहते हैं |दूसरे के मकान को दौलतखाना और अपने मकान को गरीबखाना कहा जाता है |दूसरे द्वारा कही बात को फरमाना और अपनी कही बात को अर्ज़ करना कहा जाता है |सुप्रसिद्ध शायर भी साधारण श्रोता से यही कहते हैं "" अर्ज़ किया है की (ये ट्रांसलेटर छोटी की बना ही नहीं रहा है), सूर कहते रहे 'मो सम कौन कुटिल खल कामी " 'तुलसी कहते रहे धींग धरमध्वज धंधक धोरी 'कबीर ने कहा 'मुझसे बुरा न कोय ' रहीम ने कहा 'जेतो नीचो ह्वे चले तेतो ऊँचो होय ' और आप अपने आप को श्रीमान कह रहे हैं बड़े शर्म की बात है |

कोई अपनी तारीफ करे तो इतराना नहीं चाहिए, घमंड में चूर नहीं हो जाना चाहिए, बल्कि विनम्रता पूर्वक कहना चाहिए की "ये तो हुज़ूर की ज़र्रा नवाजी है वरना मैं किस काविल हूँ ""एक शायर ग़ज़ल पढ़ रहे थे, बोले--. अपनी ग़ज़ल का ये शेर मुझे खास तौर पर पसंद है | एक श्रोता बोला “ ये तो हुज़ूर की ज़र्रा नवाजी है वरना शेर किस काविल है |”

“हमारी श्रीमतीजी” -मैंने सुना है एक वचन के लिए ‘मैं’ और बहु वचन के लिए ‘हम’ का प्रयोग होता है |यह बात जुदागाना है की कहीं की बोली ही ऐसी हो की "" हम बनूँगा प्रधान मंत्री ""| हम शब्द बहु वचन का द्योतक है जैसे कोई कहे हमारा फलां बेंक में खाता है ,मतलब ज्वाइंट अकाउंट होगा |

तो फिर क्या ?” मेरी धरम पत्नी” -ये हम पति पत्नी के बीच में धरम जी कहाँ से आगये क्या फिल्में मिलना बंद हो गई | धरम-पत्नी, धरम-शाला क्या है ये ? अरे पत्नी तो धर्म पत्नी होती ही है उसके बिना कोई धार्मिक कार्य संपन्न हो ही नहीं सकता | करुणा अहिंसा ,प्रेम शील ,दया क्षमा का पालन आम तौर पर पत्नियों द्वारा ही किया जाता है और वे पति को धर्म मार्ग पर लगाये रखती है तो धर्म पत्नी तो वे है ही|

""मेरी पत्नी ""पहली बात राम ने लक्ष्मण से कहा ""मैं अरु मोर तोर तैं माया "" और माया का तो पता ही है आपको ""माया महां ठगनी हम जानी "" दूसरी बात अगर मैं कहूं की फलां जगह मैं “मेरा कोट” पहन कर गया था |कोट पहन कर गया था ही पर्याप्त है | "मेरा कोट " क्या मतलब है ?,मतलब दूसरों का भी पहिनते होगे | मेरी पत्नी ने मुझसे कहा - क्या मतलब है ? मतलब .......|

बड़ी दुबिधा है मेरी कहता हूँ तो माया ,धरम पत्नी कहता हूँ तो धरम प्राजी, श्रीमती, मेडम, बेगम कहता हूँ तो श्रीमानजी ,मिस्टर और बादशाह, हमारी कहता हूँ तो बहु वचन |अब पहली लाइन ही ठीक हो तो आगे बढूँ देखिये करता हूँ कोशिश |

कृपया यही कह देना की यह बकवास किस उल्लू ने लिखी है "किस उल्लू के पट्ठे ने लिखी है" यह मत कहना |