Tuesday, November 25, 2008

हाय क्यूं

हाइकू या हायकूं का नियम पता चला पहली और तीसरी लाइन में पांच और दूसरी में सात अक्षर होने चाहिए /हाइकू लिखा (५)जैसा निदेश मिला (७) पालन किया (५) /कोशिश की /

(१)

पोंछा लगाया
अदा की अदा हुई
काम का काम
(२)
तू तू न मैं मैं
कोई चार्म नहीं है
ऐसे जीने में
(३)
कविता सुनी
समझ में न आई
वीन बजाई
(४)
जमीन पैसा
मार दिया बूढी को
डायन जो थी

हाय क्यूं

हाइकू या हायकूं का नियम पता चला पहली और तीसरी लाइन में पांच और दूसरी में सात अक्षर होने चाहिए /हाइकू लिखा (५)जैसा निदेश मिला (७) पालन किया (५) /कोशिश की /
(१)
पोंछा लगाया
अदा की अदा हुई
काम का काम


(२)
तू तू न मैं मैं
कोई चार्म नहीं है
ऐसे जीने में

(३)
कविता सुनी
समझ
में न आई
वीन बजाई
(४)
जमीन पैसा
मार दिया बूढी को
डायन जो थी

Saturday, November 22, 2008

चलता रहा

चला चलता रहा
कंटकपथ,पथरीली राहें,दलदल
कटा, फटा, जुडा, सिला ,सहा भी
पीड़ा, वेदना, ताप
थका ,गिरा ,उठा ,गिरा
अपना सुख विस्मृत कर ,निवाहा भी
जन्म-सिद्ध कर्तव्य
अब जर्जर ,चिर-पथझड़,परवशता भी
निराश्रित ,उपेक्षित ,बेकार
क्या हूँ ?
रिटायर
या
रिजेक्टेड टायर

Saturday, November 15, 2008

आराम

वाहन रिपेयर की दुकान पर ,मिस्त्री को पेंचकस देता
केन्टीन से दफ्तर और नर्सिगहोम के वार्ड में
दौड़ दौड़ कर चाय पहुंचाता

पेपर बांटता ,पालिश करता ,डांट खाता ,मार खाता
शनिवार को स्कूल छोड़ स्टेशन पर
शनि महाराज बन जाता

अपनी फटी कमीज़ निकाल रेल के डब्बे साफ़ करता
हलबाई की दूकान पर ,आंखों से मिस्ठान्न का स्वाद ग्रहण करता
कडाही मांजता

फ़िल्म देखता ,जेब काटता ,गाली बकता
आठ साल की उम्र में
साठ साल का अनुभव पाता

दिवस मना कर ,भाषण देकर ,मीठा खाकर पान चबा कर
कार में बैठते महोदय से पूछा
सरकार -सुख शान्ति ,चैन ,आराम ,विश्राम
हम कैसे पायेंगे ?

बोले चिंता मत करो
तुम्हारे आराम को ,हम ,पैसा पानी की तरह बहायेंगे
और आगामी वर्षों में
करोड़ों बोरबेल ख़ुद जायेंगे

Thursday, November 13, 2008

उस पार चलो

हम तो जाते हैं दिलदार .'चाँद के पार
यहाँ आपको क्या कष्ट है यार
इस पार प्रिये तुम हो ,गम है , बम है
उस पार तो कुछ अच्छा होगा

जीवन अनिश्चित का धर्मशास्त्र
अपराधी के अधिकार का विधिशास्त्र
पुत्री ,दुल्हन ,रक्षाकर्मी की मौत का कर्म शास्त्र

केन्टीन में प्लेट धोने बच्चे मजबूर
इज्जत और बैंक लुटने का यहाँ दस्तूर
जनता के नौकर जनता के सेवक से पिटते हैं
दूल्हा ,वोट और जनता के प्रश्न यहाँ बिकते हैं
ये नियति शास्त्र है

जिंदा रहेगी लुटेगी पिटेगी
सर मुंडवा कर कोने में पड़ेगी
हक की तो बात क्या दानों को तरसेगी
उपेक्षा ,निराशा ,उत्पीडन की आशंका से विधवा जल गई
मन्दिर बन गया आरती उतर गई
ये यहाँ का रीतिशास्त्र है

पाँच किलो वजनपर सातकिलो का बस्ता बुध्धिशास्त्र है
और दवा मेह्गी कफ़न सस्ता ये यहाँ का अर्थशास्त्र है
उस पार शास्त्र तो कम होंगे
उसपार तो कुछ अच्छा होगा