Thursday, March 31, 2011

औरु करै अपराध कोऊ

एक दिन घर पहुंचने में जरा देर होगई ,लगभग एक बज गया होगा रात का । दरवाजा खुलवाया तो यू समझ लीजिये साहब कि बिल्कुल आग, और हमें गुनगुनाते हुये , मुस्कराते हुये देख लिया तो बिल्कुल ज्वाला । । टेन्शन में तो थीं ही , बिना बताये धर के बाहर चला जाना और रात एक बजे तक न लौटना गुस्सा स्वभाविक है। तो किसी को मुस्कराते गुनगुनाते देख कर चिढ जाना या और क्रोधित होजाना ,ये तो होना ही था।

गये थे तो खाना खाकर पान खाने मगर कुछ कवित्त रसिक मिल गये मालूम हुआ कवि गोष्ठी रखी है हमसे ही पान खाये और हमे ही पकड लेगये भला इतना अच्छा श्रोता फिर कहां मिलेगा। मगर जैसा कि हर कवि सोचता है ‘

‘झूंठी वाह वाह ही सही दिल तो वहल जाता है,,
वरना हम आपकी वाह वाह को नहीं जानते क्या

मगर उन्हे तो वाह वाह सुनना था ।घर पर फोन से सूचना भी नहीं देने दी भले आदमियों ने ।सोचा होगा सुनने को तो बुलाया ही है इसे भी चांस देदो तो और भी मन लगाकर सुनेगा । हमसे भी कहा कुछ सुनाओ । सुनाया ,तो और लोगों ने तालियां भी बजाई । लोगो ने वाह वाह भी की एसा लगा कि हम बडे कवि होगये इतने लोग हमे सराह रहे है जम कर तालियां बजा रहे है। चेहरे पर स्वाभाविक मुस्कान थी और थोडा थोडा गुव्वारे जैसा भी, तालियों की गडगडाहट से , फूल भी गये थे सो गुनगुनाते हुये घर पहुंचे थे यह जानते हुये भी कि

सच है मेरी बात का क्या एतबार
सच कहूंगा झू्रंठ मानी जायेगी
फिर भी हमने मतलब मैने स्पष्टीकरण देना शुरु कर दिया । कवि गोष्ठी थी हमने रचना सुनाई तो लोगों ने जम कर तालियां बजाई वजाते ही रहे बजाते ही रहे। पूछा कहां थी कवि गोष्ठी , हमने कहा बापू पार्क में । बोली वहां तो मच्छर बहुत है।

ठीक है भैया ऐसा ही सही वे मेरी कविता नही सराह रहे थे बस खुश और करे अपराध कोउ और पाव फल कोउ । गलती तो उन लोगों की है न जो कह गए
।ओ फूलों की रानी बहारों की मलिका तेरा मुस्कराना गजब हो गया। क्या जरुरत थी साहब । चौहदवीं का चाद हो या आफताव हो वाह साहब, अरे जब आफताब कह ही दिया था तो और स्पष्ट भी कर देते कि आफताब मई जून का, नौतपे का बिल्कुल रोहणी नक्षत्र का , मगर नहीं और इससे भी सब्र न हुआ तो कल चौहदवीं की रात थी शव भर रहा चर्चा तेरा ।इनको ऐसी चर्चाओं से ही फुरसत नहीं मिलती थी किसी से कोई मतलव ही नहीं था वस वालों को नागिन कह दिया घटा कह दिया सिमटी तो नागिन फैली तो घटा,और तो और एक शायर साहब पधारे वोले

मेरे जुनू को जुल्फ के साये से दूर रख
रास्ते मे छांव पाके मुसाफिर ठहर न जाये

क्या है ये । भैया जुल्फ हैं या बरगद का दरख्त । तसल्ली फिर भी न हुई तो कहा गया हंस गये आप तो बिजली चमकी कहने वाले यह भूल गये कि इसके बाद एसा डरावना गरजता है कि क्या बताये।घन घमंड नभ गरजत घोरा ...डरपत मन मोरा । गलतियां तो पुरानों ने बहुत की है उसका खामियाजा आज की पीढी भुगत रही है या उस को भुगताया जा रहा है अब उन्हौने गलती की या वह जमाना ही एसा था यह बात जुदागाना है मगर गलती की है तो मानी भी जारही है और फोरफादर्स के कर्मों की सजा अब दी भी,जारही है।