Sunday, September 27, 2009

प्रेम-पत्र

एस एम् एस और ई मेल युग के पूर्व का समय प्रेम-पत्र का स्वर्णकाल कहलाता है बड़ा क्रेज़ था प्रेम-पत्र का ,बड़े चाव से लिखे-पढ़े जाते थे सिनेमा ने भी इनका खूब उपयोग व उपभोग किया है फूल तुम्हे भेजा है ख़त में,, तो मुगले आज़म में सलीम ने फूल में ही पत्र रख कर नेहर के माध्यम से भेजा राजकुमार ने तो पाकीजा में केवल इतना भर लिखा था,, की आपके पाँव देखे ......जमीन पर मत उतारियेगा ,,मगर पाकीजा जी ने तो उस पत्र को चांदी की डिबिया में ही रख लिया । रखते हैं साहब बड़े सम्हाल कर रखते हैं ,जीवन पर्यन्त रखते हैं ,तभी तो मरने की बाद ""चन्द फोटो और चन्द हसीनों के खतूत " निकलते हैं देखिये =ये मेरा प्रेम पत्र पढ़ कर कि तुम नाराज़ न होना , क्यों भैयाजी क्यों नहीं होंगे नाराज़ जब तू अनर्गल कुछ तो भी लिखेगा लड़किया -लड़के पत्र लिखते थे तो ,,लिखते थे, चला जा रे लेटर कबूतर की चाल ,क्यों भैया कबूतर से ज्यादा तेज़ चाल वाला और कोई पक्षी नज़र नहीं आया ,उस पर तुर्रा ये की पत्र के अंत में लिखा जाता था ""खत लिख रहा हूँ या लिख रही हूँ जो भी स्थिति रही हो खैर , तो खत लिख रही हूँ खून से स्याही न समझना अरे तू जब नीले पेन से लिख रही है तो कैसे न समझना ?

एक बात और उस ज़माने में प्रेम-पत्र कैसे लिखें नामक किताब भी उपलब्ध थी , ठीक हारमोनियम शिक्षा ,तबला गाईड ।बांसुरी शिक्षा ,सावरी मन्त्र ,सेवडे का जादू की तरह एक श्रीमानजी के पास वह किताब थी । उसमे से छांट कर एक प्रेम पत्र लिख कर भेजा गया ,बड़ी उम्मीद थी उत्तर की उत्तर तो आया मगर छोटी सी स्लिप के रूप में, लिखा था "उत्तर के लिए कृपया पेज ९८ के पत्र क्रमांक १२२ का अवलोकन करने का कष्ट करें" ।शिक्षा का भी अभाव था तो प्रेमिकाएं या पत्नियाँ पोस्ट मेन से ही पत्र लिखवा लिया करती थी ""ख़त लिखदे संवरिया के नाम बाबू कोरे कागद पे लिखदे सलाम आदि इत्यादि॥

छोटे छोटे बच्चे ,प्यारे प्यारे बच्चे, दुलारे बच्चे, कापियों और किताबों में पत्र रख कर आपस में आदान प्रदान किया करते थे "" नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है ?"" बोले चिट्ठी है फलां ने दी है फलां के पास पहुँचाना है ।ऐसी बात भी नहीं कि ख़त चोरी छिपे ही भेजे जाते हों ,कुछ बच्चियां ख़त ऐलानियाँ भेज कर गाती भी थी ""हमने सनम को ख़त लिखा ,ख़त में लिखा ......." और खत मे क्या लिखा है वे न भी बतलाना चाहे तो भी "खत का मन्जमू भाप लेते है लिफ़ाफ़ा देख कर "" फिर इन्क्वारी भी होती है "" तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किसका था न था रकीब तो आखिर वो नाम किसका था ?"" जवाब देना मुश्किल हो जाता है ।

उस ज़माने मे एक बात जरूर मह्सूस की गयी कि यदि किसी से प्रेम हो जाये तो उसे अनेतिक सम्बन्ध या नाज़ायज सम्बन्ध कहा जाता था किन्तु प्रेम पत्र को किसी ने अनैतिक प्रेम पत्र या नाज़ायज प्रेम् पत्र कहा हो ऐसा मुझे ध्यान नही है ।

मैंने सुना है
एक बिलकुल सत्य घटना ,कल्पना नहीं ,फ़साना नहीं ,हकीकत उस स्वर्णकाल की बात है ,श्रीमानजी को मोहल्ले की किसी से इकतरफा इश्क हो गया हो जाता है साहिब, एकतरफा डिक्री की तरह ,मालूम तब होता है जब कोर्ट से कुर्की वारंट आजाता है ,तो श्रीमान जी ने प्रेम पत्र लिखे ,कागज़ नहीं मिला तो बच्चों की पुरानी कापी किताबे रखी थी उनमे ही लिख डाला ,भेजने की हिम्मत हुई नहीं --अब क्या हुआ कि बच्चों ने रद्दी मोहल्ले के हलबाई को बेचदीं ,अब इत्तेफाक देखिये उन महिला ने समोसे मंगवाए तो वह कागज़ समोसे में लिपटा उनके पास पहुँच गया ।कुछ लोगों की आदत होती है कि मिठाई या नमकीन जिस कागज़ में या अखवार में आया है उसको पढने लगते हैं ऐसे आदत क्यों होती है यह तो पता नहीं मगर होती है ,किसी फिल्म में नसरुद्दीनशाह को भी ऐसे ही पढ़ते दिखलाया गया है शायद उस फिल्म का नाम है जाने भी दो यारो खैर

अब देखिये जनाब क्या हंगामा वरपा है ,जितना कि उस वक्त भी न बरपा होगा जब थोड़ी सी पी ली है ,उससे भी ज्यादा 'कि सिर्फ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नहीं "" और ’हंगामा’ फिल्म से भी ज्यादा
अब जो श्रीमान जी की ठुकाई पिटाई उस महिला और श्रीमान जी की श्रीमती जी द्वारा की गई तो यूं समझो के मज़ा आगया जिंदगी का तब मैंने नेक सलाह लोगों को दी थी कि अव्वल तो शादी शुदा होते हुए किसी से प्रेम न करे और अगर करे भी तो मोहल्ले की किसी महिला से न करे और अगर करे तो उसे पत्र न लिखे और अगर पत्र भी लिखे तो बच्चो की कापियो मे न लिखे और अगर लिखे भी तो उसे रद्दी वाले को न बेचे

Tuesday, September 22, 2009

क्या मैंने गलत कहा ?

कभी कभी सोचता हूँ मुझे नहीं कहना चाहिए था , फिर विचार आता है कि कह दिया तो कह दिया , उस वक्त परिस्थिति ही कुछ ऐसी थी ,आगया कहने में , फिर सोचता हूँ , ऐसा न हो कि उनकी भविष्य की जिन्दगी बर्वाद होजाय , फिर सोचता हूँ , हो जाये तो हो जाये वैसे कौनसी आबाद है यद्यपि कह कर मैंने अपनी मानसिक उलझनें बढा ली हैं =दर-असल बात यह थी कि =
एक युवती ( पत्नी ) आयु लगभग ३५ -३६ ,जमीन पर अधलेटी अवस्था में , पति के क्रोधी स्वाभाव से परिचित , रो - रो कर कह रही थी आज मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगी तुम मुझे मार डालोगे स्थान पत्नी का मायका , पति एक हाथ से पत्नी के बाल पकडे हुए दूसरे , हाथ से कभी गला दबाता ,कभी चेहरा दबाता और कभी थप्पड़ मारता ,पत्नी गिडगिडा रही थी , तुम रोज़ मुझे कमरे में बंद करके मारते हो ,मैंने मायके में अभी तक नहीं बताया, आज तुम मुझे यही मार रहे हो ,एक दो दिन बाद चली चलूंगी ,आज तुम बहुत गुस्से में हो , चली तो तुम रस्ते में ही मार कर फैंक दोगे
लोकलाज भी क्या चीज है ,बुढिया माँ और बूढा बाप चुप-चाप हैं ,यह और कोशिश कर रहे हैं कि बाहर मोहल्ले का कोई सुन न ले खैर
तो मैंने उससे कहा
तुझे मार डालेगा !अरे तू जिन्दा ही कब है जो तुझे मार डालेगा मुर्दों को नहीं मारा जाता मगर तू तो फिल्म क्रांतिबीर के नाना पाटेकर की डायलोग बनी हुई है ""भगवान् ने हाथ दिए लगे फैलाने ,मुह दिया लगे गिडगिडाने "" क्या तुम्हे तंदूर में फिकने ,मार खाने , रसोई गेस दुर्घटना में मरने हेतु हाथ ,पाँव ,नाखून ,दांत देकर भेजा गया है
तू कहती है तुझे कमरे में दरवाज़ा बंद करके मारता है दीवार फिल्म नहीं देखी क्या ? एक बार तू बनजा अमिताभ ,दरवाज़ा बंद कर ,सांकल चडा , ताला लगा और चाभी फैंक कर कह ""पीटर ले ये चाभी , तेरी जेब में रखले ,अब मैं तेरी जेब से चाभी निकाल कर ही ताला खोलूंगी
अरी शोषित उपेक्षित ,, तुझसे तो ’चालबाज ’' की श्रीदेवी अच्छी ,मालूम है उसने अनुपमखैर से क्या कहा था " ले त्रिभुवन ये चूडी पहनले ,कल तक तेरे हाथ में चाबुक था और मेरे हाथ में चूडियाँ आज मेरे हाथ में चाबुक है , ले पहिन चूडियाँ
फिर ये तो देख तुझे मार कौन रहा है ? तुझ पर हाथ कौन उठा रहा है ? मालूम है ‘आन ‘ में शत्रुघ्नसिन्हा ने जैकी श्राफ से क्या कहा था ?" सुन बालिया औरत पर हाथ उठाना नामर्द की पहली निशानी है" देखले जीना है तो जी , वरना रोज रोज मरने से एक दिन मर ही जा मगर ऐसे मरना की कम से कम चार महिलाओं को जीने का मार्ग बतला जाना
मैंने सुना है
श्रीमानजी की शादी हुई पहले ही दिन यानी पहली ही रात जैसे ही नवबधु ने घूंघट उठाया ,गाल पर एक जोरदार थप्पड़ ,बधू रुआंसी होकर बोली ""कईं अन्नदाता की भयो ,म्हार से कुणसी गलती हो गई ""बोले -यह तो बिना कोई गलती किये का है ,गलती की तो फिर समझ लेना


एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि कहते है चींटी भी दब जाने पर काट लेती है ,लेकिन ये विशिष्ठ ऐतिहासिक परंपरा न जाने कब से चली आ रही है अब इस ऐतिहासिक बर्बरता और हिंसा के लिए किसे दोष दिया जाय वैसे तो हम कहते फिरते हैं दूसरों के साथ वह व्यबहार न करो जो अपने लिए पसंद न हो बिदुर जी ने भी कहा ""आत्म प्रतिकूलानि परेशां न समाचरेत "" बाइबिल में कहा गया ""डू नोट डू अन्टू अदर्स ""सिकंदर ने पुरु से राजाओ जैसा व्यव्हार किया आज भी एक मंत्री पूर्व मंत्री से राजाओ जैसा व्यव्हार करता है किन्तु स्त्री ! वह तो अपनी है , दूसरों के साथ अच्छा व्यव्हार करने की बात कही गई है
ये माना की कई लोग ऐसे भी होते है वे किसी से ही सद्व्यवहार नहीं करते है पत्नी बेटा पडौसी कोई भी हो
मैंने सुना है
एक श्रीमानजी एक दिन प्रात :काल बरामदे में बैठे किसी किताब में तल्लीन थे ,उनके परिचित निकले पूछा कहिये किव्ला क्या हो रहा है ?तल्लीनता में व्यवधान !क्रोध आगया आजाता है ,शंकरजी को भी कामदेव के ऊपर आगया था ,राम ने भी "अस कही रघुपति चाप चडावा "" तो इनको भी आगया , बोले तेरा सर हो रहा है, दिखाई नहीं देता किताब पढ़ रहा हूँ कौन सी किताब पढ़ रहे हो ? एक तो व्यवधान ऊपर से जिरह यानी कूट परीक्षण यानी क्रोस एक्जामिनेशन बोले तू नहीं समझेगा यार तू जा फिर भी हुज़ूर ? क्रोध की सीमा पार ""व्यवहार शास्त्र " पढ़ रहा हूँ तेरे बाप ने भी इस किताब का नाम सुना है ?
मेरा आशय केवल मात्र इतना है की कभी कभी मुंह लगने पर भी आदमी का क्रोध बढ़ जाता है और वह अपना आपा खो देता है लेकिन हमेशा ही तनाव में या क्रोधित रहना कि पत्नी घर में अशांति और बैचेनी महसूस करे ,एक अज्ञात भय और असुरक्षा की भावना उसमे रहे ऐसा तो नहीं होना चाहिए इसीलिये मैंने उपरोक्त बात कह दी थी ,वरना मेरा आशय घरों में अशांति फैलाने का नहीं था

Sunday, September 20, 2009

कृपया मार्गदर्शन करें

मेरे साथ बड़ी दिक्कत होगई ,मैं कम्प्यूटर में कुछ जानता नहीं और इन्टरनेट की साइड खुलना बंद हो गई ,कम्प्यूटर इन्टरनेट कनेक्ट बतलाता था - मैं जहाँ इस वक्त हूँ वहां कोई जानकार भी नहीं है झालावाड राजस्थान जिले की छोटी सी तहसील पिरावा , केवल एक दुकान ,तो मैंने उन्हें जाकर प्रॉब्लम बतलाई ,बोले ठीक कर दूंगा ,वे आये और डब्बा (सी पी यूं ) उठाकर ले गए ,दूसरे दिन वापस इन्टरनेट भी कनेक्ट और साइड भी खुलने लगी

वे चतुर सुजान बोले ,मैंने फोर्मेट कर दिया है ,मुझे क्या पता ये क्या होता है मैंने सोचा अब कोई लेख लिख डालें पहले मैंने गुलाम अली साहिब की ग़ज़ल सुनना चाही जो मेरे कंप्यूटर में थी ,जैसे ही ग़ज़ल सुनना चाही मीडिया प्लेयर पर सन्देश आया……not be a sound device installed or it may not bhee functioning properly मैंने सोचा मत सुनो ,कुछ लिखें , गूगल का ट्रांसलेशन खोल कर कुछ लिखा और जैसे ही मैं अपने डाक्यूमेंट पर लेगया तो वहां हर शब्द की जगह चोकोर डब्बे जैसे कुछ बन गए कुछ इस तरह के ()()()()()()( गोल नहीं बल्कि चौकोर )

अब इतनी क्षमता तो है नहीं कि डायरेक्ट ब्लॉग पर लिखदूं ,पहले तो डाक्यूमेंट पर सेव कर दुरुस्ती करता था फिर सोचा लेख न सही टिप्पणी ही सही ,कुछ ब्लॉग खोले तो ब्लॉग तो खुले लेकिन लेख या रचना की जगह वही ०००००००००० अब क्या तो पढू और क्या टिप्पणी करूं ,भाई मेरे कंप्यूटर का फॉण्ट उन चतुर सुजान ने फोर्मेट करके गायब कर दिया तो ,तो क्या हुआ दूसरे के कंप्यूटर में तो होगा ,डायरेक्ट टिप्पणी लिख दूंगा मगर नहीं तो मुझे एक किस्सा याद आगया

एक पटेल थे अंधे ,पास के गाव में समधी के यहाँ गए ,बातें करते खाना खाते अँधेरा हो गया , पटेल ने कहा अब चलें , समधी ने कहा लालटेन ले जाओ पटेल पटेल ने कहा क्यों मजाक उडाते हो ,हमें लालटेन से क्या मतलब है ,समधी ने कहा ये बात नहीं अँधेरे में तुमसे कोई टकरा न जाये इसलिए खैर पटेल लालटेन लेकर चल पड़े ,लेकिन वही हुआ ,"रास्ते में उनसे मुलाकात हुई , जिससे डरते थे वही बात हुई "" एक सज्जन रस्ते में पटेल से टकरा गए पटेल ने कहा भैया हम तो जानमान अंधे हैं पर तुमऊ का अंधे हौ जो हमनते टकरा रहे हौ - बोले दादा माफ़ करियो अँधेरे में कछू सूझो नाय पटेल ने कहा जई वास्ते तो हम लालटेन लै कै आए हते , सज्जन ने कहा तौ दादा लालटेन जला तो लेते

खैर सा'ब, वे चतुर सुजान तो एक दिन एक सी डी लेकर आये और ७०-८० फॉण्ट डाल गए मगर मेरी समस्या बरक़रार है मैं साहित्य पढने से वंचित हो रहा हूँ साथ ही टिप्पणी करने से भी ,कृपया कोई सरल सी तरकीब बतलादें ,ताकि में ब्लॉग पढ़ सकूं एक बात और किसी किसी ब्लॉग में यह दिक्कत नहीं भी आरही किन्तु ज्यादातर ब्लॉग पढने में आरही है

Sunday, September 13, 2009

पापा कहते हैं

पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा, एक ने गाया, तो दूसरा गाने लगा डैडी मेरा बड़ा परेशान बेटा बड़ा होकर नाम करे कहीं इसीलिये पिता की सम्बेदना या भावना ,इच्छा ,विचार ,चिंता इस मायने में कि- चाहे वह स्वम बाबू या मास्टर हो लेकिन लड़के को कलेक्टर बनाने की सोचता है ,चपरासी है मगर लडकी के लिए इंजिनियर बर ढूंढ़ना चाहता है , लड़के द्वारा की गई बदतमीजियों पर दूसरों से माफी मांगता रहता है और लडकी के ससुर और लडकी के पति के चरणों में झुक कर बार बार गलतियों की क्षमा प्रार्थना करता रहता है लडकी की शादी में अपनी सारी जमा पूंजी निकाल लेता है और लड़के की अच्छी नौकरी के लिए अपना मकान बेच कर किराये के मकान में रहने लगता है {{यहाँ अच्छी नौकरी के लिए मकान बेचना इससे मेरा तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि रिश्वत देना होती है वो तो क्या है, की कुछ लोग ऐसा धंधा ही करते है ,बेवकूफ बना कर पैसे लेलेते है इस शर्त पर की सेलेक्ट नहीं हुआ तो पैसे वापस

यदि सिलेक्शन म्हणत ,योग्यता अथवा इत्तेफाकन हो जाता है तो उसके पैसे रख लेते है वाकी न होने वालों के पैसे ईमानदारी से वापस कर देते है ,हां कुछ म्हणताना जरूर खा लेते है और वापस पाने वाले को थोडा नुक्सान अखरता भी नहीं है क्योंकि कहावत है " सब धन जातो देख के आधो लीजे बाँट " और भागते भूत की ........." और फिर ये पैसे बहुत अवधि बाद किश्तों में पटाते है क्योंकि अलग अलग फिक्स डिपॉजिट कर देते है व्याज ये खा जाते हैं ,मूल में से कुछ काट कर पक्षकार को वापस कर देते है पक्षकार कोई कोर्ट कचहरी में ही नहीं होते ,

जो आने वाली भोर से डर कर रातें जाग जाग कर काटे वह पिता , ,,,,,,,,,पापा , से डेड हुआ डैडी धरती पर परेशान होने के लिए ही अवातारित

होता है बच्चों की सम्बेदन-शीलता इस मायने में कि उपलब्ध कम मालूम पड़ता हो तो उसकी वजह है डैडी ,दूसरों के पास हम से अधिक सुख सुविधाएँ हैं तो उसका कारण हैं पापा , बेटा कहा रहा था पापा यदि आपने जिन्दगी में किसी नेता की चमचागिरी ही की होती तो आज हमें यूं बेरोजगारी का मुहं नहीं देखना पड़ता आपने हमें महंगे स्कूल में नहीं पढाया , अरे अपने सस्ते ज़माने में दो चार प्लाट ही नगर में लेकर पटक दिए होते

वैसे कहा तो यह जाता है कि There is a woman behind every successful man मगर आज यह कहना विल्कुल सही है कि हर सफल व्यक्ति के पीछे उसका पापा होता है फिर चाहे वह फिल्म नीती हो या राजनीती कुछ डैडी अपने बेटे को कठिन परिश्रम की सलाह देते हैं तो कुछ कहते हैं कि = माना कि कठिन परिश्रम से आज तक कोई नहीं मरा फिर भी रिस्क क्यों ली जाये

मेरी नज़र में ""डैडी या पापा वह ,जो सबकी चिंता करे मगर उनकी चिंता कोई न करे""मैं एक विचार -धारा से परिचित हुआ आज की पीढी के विचार ""हम भी कुछ पुण्य करके आये हैं जो हम आज सफल हैं ,तुम न पालते तो कोई दूसरा पालता क्योंकि जो जन्म देता है वह उसके जीवन की रक्षा, भोजन पानी सबकी व्यवस्था कर देता है पाला पोषा , पढाया लिखाया , तो सब माँ बाप पढाते लिखाते हैं यह विचार धारा जब बुजुर्ग माता पिता के समक्ष क्रोध या आवेश में प्रकट की जाती होगी तब उस पापा पर क्या गुजरती होगी ?

मुनि श्री तरुण सागर जी ने एक प्रवचन में कहा था कि एक, इकलौता डाक्टर बेटा अपनी माँ का स्वम उपचार कर रहा था जब माँ स्वस्थ हो गई तो बेटे ने दबाओं का बिल माँ को पकडा दिया आज की पीढी को दोष देना भी व्यर्थ है / क्योंकि हो सकता है यह विचार धारा पुरानी रही हो क्योंकि जो शेर मैंने पढा वह भी पुराना ही है ""हम उन किताबों को काबिले जप्ती समझते हैं /कि जिनको पढ़के बेटे बाप को खब्ती समझते हैं ""