Thursday, December 17, 2009

साहित्यिक चोरी

किसी साहित्यिक पत्रिका मे लेख या कहानी भेजना और ब्लाग पर लिखने मे अन्तर सिर्फ़ यह है कि वहां संपादक का दखल रहता है और यहां परम स्वतंत्र न सिर पर कोऊ , न कोई दुरुस्ती करने वाला, न गलतियां निकालने वाला ,न रिजेक्ट कर खेद सहित वापस करने वाला ।अब तो खैर पत्रिका वाले भी रचना वापस नही भेजते है वे या तो छापते है या फाड़ फैंकते है ।रचनाये खेद सहित वापस की जातीं थी तब की बात है एक सम्पादक ने 'एक साहित्यकार की कहानी ,इस टीप के साथ वापस कर दी कि "चूँकि ऐसी रचना पूर्व में मुंशी प्रेमचंद लिख चुके हैं इसलिए वे इसे प्रकाशित नहीं कर सकेंगे -इस बात का उन्हें खेद है ।- वे साहित्यकार अभी तक यह नहीं समझ पाये की सम्पादक के खेद की वजह ==नहीं छाप सकना था =या ==मुंशी जी द्वारा लिखा जाना था

।चोरियाँ नाना प्रकार की होती है और चोरी के तरीके भी भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं -रुपया पैसा जेवर आदि की चोरी के नए नए तरीके सिनेमा विभिन्न चेनल और सत्यकथाओं ने प्रचारित व प्रसारित कर दिए हैं -चैन चुराना दिल चुराना आदि पर जबसे फिल्मी दुनिया का एकाधिकार हुआ है -आम आदमी इस प्रकार की चोरियों से महरूम हो गया हैएक कवि ने एक कविता लिखी -उन्होंने प्रकाशनार्थ भेजने के पूर्व अपने मित्र को बतलाया -मित्र ने पूछा छप तो जायेगी -कवि बोले =यदि संपादक ने मेघदूत न पढा होगा तो छप जायेगी और अगर मेरे दुर्भाग्य से उन्होंने पढा होगा तो संपादक को बहुत खेद होगा

।एक दिन एक मित्र मुझसे पूछने लगे -यार इन संपादकों को कैसे मालूम हो जाता है की रचना चोरी की हुई है क्या जरूरी है की सम्पादक ने कालिदास -कीट्स- शेक्सपीयर प्रेमचन्द- शरत आदि सभी को पढा हो। मैने कहा =जरूरी तो नही है मगर वे लेख देख कर ताड़ जरूर जाते हैं । रचना का लिखा कोई वाक्यांश चतुरसेन के सोना और खून से है या नहीं यह भलेही संपादक न बता पाएं मगर यह जरूर बतला देंगे की यह वाक्यांश इस लेखक का नही हो सकता ।

चोरी के मुकदमे में चोर के वकील अक्सर यह प्रश्न पूछा करते हैं की इस प्रकार के जेवरात ग्रामीण अंचलों में पहने जाते है इससे यह सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है की जेवर फरियादी के नहीं वल्कि चोर के है -जेवरात की तरह साहित्यिक विचार एक दूसरे से मेल खा सकते है -बात वही रहती है और अंदाजे बयाँ बदल जाता है -दूसरों के साथ बुरा व्यबहार न करने की बात हजारों साल पहले विदुर जी ने कही अत्म्प्रतिकूलानी ......समाचरेत । फ़िर वही बात अंग्रेज़ी में डू नोट डू ..... अदर्स ।कही गयी । बात वही थी भाषा बदल गयी अंदाजे बयाँ बदल गया । क्या मुज़्तर खैराबादी और बहादुरशाह जफर के खयालात मिलते जुलते नहीं थे ? दोनों के कहे हुए शेर पढ़ कर देख लीजिये। क्या फैज़ अहमद फैज़ और मजरूह सुल्तानपुरी की रचनाओं में समानता नहीं है ? आदमी कन्फ्यूज्ड हो जाता है की ये लिखा किसने है ।

आम तौर पर चोर चोर मौसेरे भाई होते है और दिल के चोर आपस में रकीब होते है क्योंकी दिल एक चुराने वाले दो तो दुश्मनी स्वाभाबिक है -ऐसी बात साहित्य के मामले में नहीं है वे न तो आपस में मौसेरे भाई होते है न दुश्मन होते है वे तो आपस में प्रतिद्वंदी होते है -तूने हजार साल पहले की में से चुराया तो में ईसा पूर्व की में से चुराउगा ।और वैसे भी किसी एक किताब की नकल करदी तो वह चोर ग्रन्थ कहलाता है और अगर २५ किताबों मे से दो दो पेज लिये तो वह शोध ग्रन्थ कहलाता है ।

अत: जो ग्रन्थ लुप्त हुए जा रहे है तो उनमे से कुछ लेकर हम अपने नाम से लिख कर पाठको पर उपकार ही तो करेंगे क्योकि साहित्य के अथाह भंडार से पाठक प्राय अनजान है और सबसे बड़ी बात कोई रोकने टोकने वाला नही है ।यह किसी पर व्यंग्य नही है ।न मेरा यह उद्देश्य है कि कोई ऐसा लिखता होगा ।लेकिन कभी कभी किसी किसी को बुरा लग जाता है

पटैलों के एक सम्मेलन मे एक व्यक्ति ने कह दिया कि पटेल चोर है ।रामपुरा का पटैल उठा और उस व्यक्ति की पिटाई करने लगा _उसने कहा मैने किसी का नाम नही लिया किसी गांव का नाम नही लिया मैने तो केवल यही कहा था कि पटैल चोर है । पटैल ने कहा अच्छा बेटा जैसे कोई जानता ही नही है कि किस गांव का पटैल चोर है ।

इसीलिए कहा गया है ==यदि नहीं कहा गया हो तो अब में कह देता हूँ ==साहित्यिक चोरी चोरी न भवति

Friday, December 4, 2009

अन्ध विश्वास

एक बिटिया मे मुझसे अन्ध-विश्वास पर लिखने को कहा । अपनी बात शुरु करने के पूर्व, मै इस विषय से असमबद्ध, दो बातें कहना चाहूंगा । बात है कब्रिस्तान/श्मशान की, । एक सज्जन की पत्नी का निधन (स्वर्गबास) हो जाने पर उसे दफ़नाया/जलाया जा रहा था ।पति फ़ूट्फ़ूट कर रो रहा था । उसकी हालत देखी नही जा रही थी । किसी ने उसके कन्धे पर हाथ रख कर कहा -हमे न मालूम था तुम इतना प्रेम करते थे कितना रो रहे हो -रोता हुआ पति चुप हो गया बोला -अजी यह तो कुछ भी नही है आप मुझे उस वक्त देखते जब घर से मैयत उठाई जा रही थी, उसके मुकाबले मे तो, ये कुछ भी नही है ,उस वक्त देखते मुझे, ये तो कुछ भी नही है ।

दूसरी बात ,एक बाप अपनी म्रत नन्ही बालिका के लिये रोया करता था ।एक दिन बच्ची उसके सपने मे आई बोली हम सब सहेलियों के साथ खेलते हैं वहां परियां भी होती है रात को हम केंडिल लाइट मे स्वादिष्ट खाना खाते है किन्तु आप रोते हो वे आंसू मेरी मोमबत्ती बुझा देते है ,मुझे अंधेरे मे खाना पडता है और सब सहेलियां मुझ पर हंसती है ,मुझे बहुत कष्ट होता है । बाप ने उस दिन से रोना बन्द कर दिया ।

विश्वास और अन्धविश्वास के मध्य कोई विभाजन रेखा खीचना मुश्किल है ,एक का अन्धविश्वास दूसरे का विश्वास हो सकता है क्योंकि यह दुनिया बडी विचित्र है ""किसी की आखिरी हिचकी किसी की दिल्लगी होगी ""की मानिन्द ।

मै एक कव्वाली सुन रहा था ""तुम्हे दानिश्ता महफ़िल मे जो देखा हो तो मुजरिम हूं/नजर, आखिर नजर है ,बे इरादा फ़िर गई होगी।""कव्वाल के लिये बे-इरादा सही मगर जिसने उन्हे देखते हुये देखा होगा , उनकी नजर मे तो कव्वाल की नजर बा-इरादा हो सकती है ।

और एक बात, मै लेख लिखूं , कुल मिला कर दस विद्वान पढेंगे और निश्चित ही वे सब अन्धविश्वासी नही होंगे ।मगर ये जो व्यापार बडे पैमाने पर जारी है ,बीमारियां मिटाने , बुरी नजर से बचाने , रोजगार मे सफ़लता दिलाने ,धन सम्पत्ति को घर मे स्थिर करने और भी न जाने क्या क्या करोडों का व्यवसाय, लाखों लोग प्रतिदिन देख, सुन व समझ रहे है और (तथा कथित ) लाभ भी ले रहे है । उसमे मेरा लेख "नक्कार खाने मे तूती की आवाज " नही हो जायेगा ? ये नक्कारखाना क्या ?तबला तो आप सब ने देखा है उसी का बडा भाई होता होगा नगाडा, उसे ही नक्कार कहते होगे और तूती बिल्कुल छोटी सी बांसुरी से भी छोटी होती होगी । खैर ।मै एक बार पहले भी निवेदन कर चुका हूं कि धन वर्षा करने वाले यंत्र ,मैने बहुत अध्ययन किया है , असर कारक होते है ,हन्ड्रेड परसेन्ट ये आपके घर धन की वर्षा कर सकते है बशर्ते कि आप इन्हे बना कर बेचें ।

ओशो से किसी ने पूछा बिल्ली रास्ता काटे तो क्या समझना चाहिये । बोले-यही समझना चाहिये कि बिल्ली कहीं जा रही है ।बात खत्म ।अन्धविश्वास कोई नया नही है बहुत गहरी जडे हैं इसकी । बिल्ली, सर्प, नेवला, अंग का फ़रकना , छिपकली का ऊपर गिरना, कौआ का सिर पर बैठ जाना ,घोडे की नाल की अंगूठी ,नीबू मिर्च घर के दरवाजे पर टांगना (बोले इसमे अपना नुक्सान क्या है ),और भी न जाने क्या क्या । जिसमे सर्प को लेकर तो खूब दोहन किया फ़िल्मों ने । नाग एक जाति होती है ,उस जाति मे राजा भी हुए है "नर नाग सुर गंधर्व कन्या रूप मुनि मन मोहहीं ।सर्प को नाग भी कहा जाता है तो इस सर्प को उस नाग जाति से जोड दिया ।जैसे नामो के आगे "सिंह " लगता है सिंह शेर को भी कहते है ।पुराने लोगों को मालूम होगा आजकल तौल का माप किलो होता है वैसे ही पहले सेर होता था , पहले क्विंटल नही मन होता था तो लोग कहा करते थे चालीस सेर का एक मन होता है , मन बडा चंचल है,चंचल मधुवाला की बहिन है, मधुवाला को दिल का दौरा पडा था ,दिल एक मंदिर है ,मंदिर हरिद्वार मे बहुत हैं ,हरिद्वार मे संगम है ,संगम मे राजकपूर है ,राज हिन्दी मे शपथ लेने मना करते है आदि इत्यादि । देखो कहां से कहां पहुंच गये ।

हां तो अन्धविश्वास- जो बीमारियों को दैवीय प्रकोप समझते थे अब धीरे धीरे दूर होता जारहा है ,सर्प के बारे मे भी भ्रांतियां नही के बराबर है ,बिल्ली वगैरा को आजकल कोई मानता नही । कुछ दिन पहले मैने पढा एक पुराने नीम के पेड मे से दूध गिररहा है ,लोग इकट्ठा हो गये मेला लग गया किसी जन्मांध की आंख अच्छी हो गई ,किसी ने गले पर लगा लिया तो उसका केंसर अच्छा हो गया,कमाल है ।एक दिन वे कहने लगे साह्ब बडा चमत्कार है इधर से मरीज को खटिया पर डाल कर ले गये थे उन्होंने जल छिड्का ,उधर से मरीज दौडता हुआ आया ,मेला लग रहा है चमत्कार हो रहा है तुम भी चलो । अब मै उनसे कैसे कहूं कि मैने तो ऐसे-ऐसे चमत्कार सुने है कि "" कल तलक सुनते थे वो विस्तर पे हिल सकते नही/आज ये सुनने मे आया है कि वो तो चल दिये।

एक व्यक्ति श्रद्धा और विश्व्वास से एक ग्रंथ पढता है दूसरे के लिये वही अंध विश्वास हो सकता है ।स्वर्ग नर्क को अन्ध विश्वास कहने वालो के बुजुर्ग आज भी स्वर्गबासी या स्वर्गीय हैं ।किसने देखा, किसकी मानें, किसकी नही ""उतते कोउ न आवही जासे पूछूं धाय /इतते सबही जात हैं भार लदाय लदाय ""
अदालत मे गवाह पेश होते है वे तीन तरह के होते है एक पूर्ण विश्वसनीय , दूसरे पूर्ण अविश्वसनीय और तीसरे वे जो न पूरी तरह से विश्वसनीय है न अविश्वसनीय है ,ये बडे तकलीफ़देह होते है इनकी बातो से सच निकालना वैसा ही है जैसे भूसे के ढेर से दाने चुनना ।विश्वास और अन्धविश्वास के मध्य भी कुछ ऐसी ही स्थिति है ।