Thursday, December 25, 2008

वर माला बधू माला

देव सोकर जाग चुके हैं लडकी के बाप के चेहरे की झुर्रियों और लड़के के बाप के चेहरे की रौनक बढ़ गई है /लडकी की मां बेचने को जेवर तलाश कर रही है लड़के की माँ रखने लौकर साफ़ कर रही है /एक की हैसियत और दूसरे का स्तर प्रकट हो रहा है /यह तो होता ही आया है और होता ही रहेगा /चलो अपन एक वरमाला कार्यक्रम देखे /
अपनी आर्थिक स्थिति से अधिक खर्च करके बनवाये गए विशाल मंच पर दो सिंहासन नुमा कुर्सियों के सामने सजा दूल्हा और ब्यूटी पार्लर से सुसज्जित करा कर लाई गई दुल्हन अत्यन्त सुंदर बडे बडे हार लिए खड़े हैं =वर अपने निजी और ख़ास मित्रों की सलाह पर हार डलवाने , झुकने को तैयार नहीं =दोस्त कहते है बेटा आज झुक गया तो जिंदगी भर झुकना पडेगा = भला पत्नी के सामने कौन जिन्दगी भर झुका रहना चाहेगा =तो वह और भी तन कर खडा हो जाता है - बधू की परेशानी स्वभाबिक है =मालायें ड्लती हैं तालियाँ बजती हैं कैमरा मेन ठीक वक्त पर तस्वीर नहीं ले पाता =कैमरा मैन के यह बतलाने पर की वह चित्र नहीं ले पाया है पुन मालायें उतारी जाती हैं पहनाई जाती हैं कैमरा का फ्लश चमकता है -अबकी बार तालियाँ नहीं बजती हैं =
=
दूल्हा दुल्हन कुर्सियों पर बैठ जाते हैं एक महिला आकर कहती है गलत बैठ गए लडकी को बायीं और बिठाओ -पोजीशन बदल जाती है =लडकी का चाचा आजाता है कहता है ठीक बैठे थे बायीं तरफ लडकी फेरों के बाद बैठती है - कुर्सियों पर दूल्हा दुल्हन फिर बदल जाती हैं - मैं अपने आप से कहता हूँ ठीक है कैसे भी बैठ जाओ क्या फर्क पड़ता है क्यों फिजूल में नाटक कर रहे हो =
मंच पर वर माला का कार्यक्रम समाप्त हो गया में जिज्ञासा प्रकट करता हूँ मंच पर वर माला का कार्यक्रम समाप्त हो गया में जिज्ञासा प्रकट करता हूँ इस कार्यक्रम का नाम वरमाला क्यों है बधू माला क्यों नहीं है दोनों ही तो एक दूसरे को माला पहनाते हैं तो वरमाला ही क्यों दहते कहते हैं हमारे जमाने में तो यह कार्यक्रम नहीं होता था - पास की कुर्सी पर एक ब्रद्ध सज्जन पान की जुगाली करते हुए बोले =अजी जनाब यह दस्तूर बहुत पुराना है राजा रामचंद्र के जमाने से वरमाला का कार्यक्रम होता चला आरहा है सीता जी ने राम को वरमाला डाली थी =हमने कहा श्रीमान वह वरमाला नही थी वो तो जय माला थी = इस माला का पाँच वार जिक्र आया है और कहीं भी बाबाजी ने वरमाला शब्द का प्रयोग नहीं किया है सुनिए ==कर सरोज जैमाल सुहाई =फिर =पहिरावाहू जयमाल सुहाई == और ==सिय जयमाल राम उर मेली = तथा रघुवर उर जयमाल =तथा ससिहि सभीत देत जयमाला = बताइये इसमें वरमाला शब्द कहाँ है =

वे पान चवाने में मशगूल थे में चालू रहता हूँ =राम ने तो वीरता का काम किया था =बल शोर्य और पराक्रम की पूजा होती आयी है जयमाला ऐसे ही लोगों के हिस्से में आती है विवेकानंद कहते थे जिस युवक में लडकी को गोद में उठा कर एक मील दौड़ लगाने की क्षमता हो उसी को शादी करना चाहिए =इन दूल्हा दुल्हन को देखो -कपडों से पहिचाने जा रहे हैं =एक से कपडे पहिना दिए जायें तो पता ही न चले की कौन दूल्हा कौन दुल्हन =और यह लड़का जरा हालत देखो इसकी शादी के तीन साल बाद खिलौना फ़िल्म का गाना गायेगा =की में चल भी नहीं सकता हूँ और तुम दोडे जाते हो =
वे शायद बोर हो रहे थे सो लिफाफा निकाल दूल्हा दुल्हन को आशीर्वाद देने चले , में भी लिफाफा टटोलने लगा जिसमें बड़े अहत्यात से एक सो एक रुपे रखे थे बार बार दिमाग में यही विचार आ रहा था की इनसे पांच छे किलो गेहूं आजाता तो आठ दस दिन निकल जाते =पंडितों को पन्द्रह तारीख के बाद व्याह की लग्न निकालना ही नहीं चाहिए =क्या ही अच्छा होता की चार माह तक लगातार सोने की वजाय देव हर माह की पन्द्रह से तीस तारीख तक सोते तो उन्हें भी दो माह का अतिरिक्त विश्राम मिल जाता और हमें लिफाफा रूपी आशीर्वाद देने के लिए अपने मित्रों से आजीवन रिनी रहने के लिए कर्ज़ न लेना पड़ता =यह नितांत सत्य है की पहली तारीख को शादी होगी तो दूल्हा दुल्हन को अधिक आशीर्वाद मिलेगा
=
जैसे देव याचक अग्नि की -योगी एकांत की -रोगी चिकित्सक की -जमाखोर भाव ब्रद्धि की -भयभीत रक्षक की खोज में निरंतर रहता है उसी प्रकार सयानी लडकी का बाप वर की तलाश में निरंतर रहता है =वर यानी दूल्हा उस शादी वाले दिन राजा होता है तभी उसे दूल्हा राजा कहा जाता है == पुराने जमाने में राजा दूसरे कमजोर राज्य पर आक्रमण करता था और राजकुमारी से विवाह करता था आज भी दूल्हा राजा है आक्रामक है बाराती उसके सैनिक है सब वोही रस्मो रिवाज़ वह हथियार रखता है कटार के रूप में -तोरन मारता है -आक्रमण और लूट का सीधा सम्बन्ध है वह दहेज़ लूटता है -लडकी का बाप दुर्वल राज्य का प्रतीक है -पहले रणभेरी तुरही शंख बजते थे आज डिस्को बजता है -पहले युद्ध जीतने के पश्तात सेनिक जश्न मनाते थे आज बाराती नाचते गाते पहले जश्न मनाते है क्योंकि यह तो तय है की युद्ध जीत लिया गया है लडकी के बाप ने पहले ही आत्मसमर्पण कर दिया है अपनी पगड़ी लडके के बाप के चरणों में रख दी है

जबतक पुरानी प्रथाएं रूप बदल बदल कर कायम रहेंगी बधू कितनी ही पढ़ लिख जाय आत्म निर्भर हो जाय -शराबी पती से शादी नकार दे -बरात लोटादे मगर वर माला वर माला ही कहलायेगी शायद वह बधू माला कभी नहीं कहला पाएगी

Tuesday, December 23, 2008

नानी

नानी
नहीं सुनाती कहानी

दिन रात काम करती
जली कटी बातें सुनती

कभी बुआ की कभी पापा की
कभी दादी की कभी चाचा की
शिवजी ने पिया एक बार
नानी पीती है बार बार

है जर्जर पर काम बहुत करती है
तभी तो नानी हमारे पास रहती है
मजबूरी का नाम है नानी है
नानी ख़ुद है एक कहानी
इसीलिये नानी नहीं सुनाती कहानी

Monday, December 15, 2008

१२ दिसम्बर की पोस्ट का जवाब

ये क्या मुझको धक्का देंगे ,एक हाथ का जिगर चाहिए
हाँ वैसे छोटे जीवन में कुछ मजाक कर लेना चाहिए

आफिस में डांट खाते घर आकर झल्लाते
काक्रोच दिख जाए तो पलंग पर चढ़ जाते
चोर से डरते भूत से डरते
मुझे जगा लाईट जलवाते
बाथरूम तक तो अकेले जा नही पाते

सहेलियां मिलती हैं और पूछती हैं मुझसे
कहो बहिन तुम कैसी हो
मै कहती हूँ अच्छी हूँ
फिर पूछती बच्चे कैसे ,मै कहती हूँ अच्छे हैं
इनका पूछें तो कहती हूँ "न होने से अच्छे हैं

भूंखे मगरमच्छ को देखा ,पूछो इनसे
इनके कपड़े धोये किसने

एक दिन तो होना ही है
उस दिन ही निर्णय हो जाता
भूंखे मगरमच्छ के आगे
एक मामला तय हो जाता

काश साथ में मै होती

Friday, December 12, 2008

मज़ाक , नहीं , सीरियस

सुविधा संतुलन और वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनजर शीर्षक में के दो कोमा में से एक हटाने की सुविधा /

कलकल करती नदी
किनारे, चट्टानें, बन, पेड़, पहाड़
शीतल छाँव घनेरी

काश -साथ में तुम होतीं

पल्लव रंगविरंगे
पक्षीदल की चहक सुहानी
शीतल मंद समीर

काश -साथ में तुम होतीं

नदी में मगरमच्छ मुंहफाड़े
तड़पते भूंखे बेचारे
द्रवित मन मेरा
किसको अब में धक्का मारूं
कैसे उनकी भूंख मिटाऊँ

काश -साथ में तुम होती

Tuesday, December 9, 2008

हां इ कु (हाई इस्पीड कुतर्क )

(१)
पति स्वामी ,सुहाग ,मालिक ,आका ,धनी की दीर्घायु के लिए किया जाने वाला ब्रत

करवा चौथ
साडी दिला वरना
ब्रत तोडूंगी
(2)
life is a zoo in judgle

पति बहरा
बीबी अंधी ,जीवन
सुखी व शांत
(3)
Do not be so open minded your brain fall out
माँ बीबी लड़ें
किसको समझाऊँ
असमंजस
(4)
May be this world is another planet's hell
बॉस ने डांटा
मूरख ,गो तू हैल
मैं घर आया

(५)
जीना है तो शेर की तरह जियो

आटा न दाल
ओढ़ने न बिछाने
मूंछ पे ताव

Wednesday, December 3, 2008

क्यों ?

बृजमोहन -शारदा विद्यालय
प्रथम प्रश्न पत्र पूर्णांक १००

नोट _कोई पाँच प्रश्न हल कीजिये सभी प्रश्नों के अंक सामान है

(१) सुरक्षा व्यवस्था को सुद्रढ़ करने जब सेना है तो (इनकी ) आज्ञा की जरूरत क्यों ?
अथवा
सुरक्षा कर्मियों को मोर्चे पर तैनात करने या कहीं फोर्स भेजने का आदेश देने वाले (ये )कौन ?

(२) ( इनके ) बंगलों में किले जैसी सुरक्षा और सिर्फ़ इन्हे ही बन्दूक धारी सुरक्षा क्यों ?देश का हर नागरिक व्ही आई पी क्यों नहीं ?

(३) "" सुरक्षा नहीं तो टेक्स नहीं ""यह ग़लत विचारधारा और देश की आर्थिक स्थिति को कमज़ोर करने का कुविचार किसके दिल में आया और क्यों ?

(४) शहीद सैनिकों के परिवार को आर्थिक मदद की घोषणा कर वाहवाही लूटने वाले (ये )कौन सेना के पास ऐसा फंड नहीं क्यों ?

(५) प्रदेश जिनके पिताश्री का है उन्होंने हमले में मोर्चा नहीं सम्हाला क्यों ? न इनमें से कोई हताहत हुआ न शहीद हुआ क्यों ?

(६)पिस्टल तकिया के नीचे रख क़र सोने का यह संदेश था और व्यंग्य भी कि अब हमें ही अपनी सुरक्षा करनी पड़ेगी सुरक्षा व्यवस्था से हमारा विश्वास उठ चुका है तो उस का ग़लत आर्थ लगा कर डरपोक बताया आलोचना की गई क्यों ?

(७) ९/११ के बाद अमेरिका की ओर कुद्रष्टि डालने की फिर किसी की हिम्मत नहीं हुई क्यों ?

(८) मानव के सारे अधिकार संबिधान में है अध्याय ७ से १७ तक , तो इन अधिकारों की अधिकता प्रथक से क्यों ?आतंकवादी मानव क्यों ?

(९) देश में तीन सेना अध्यक्ष है ,प्रतिरक्षा बलों का सर्वोच्च सेनापति है तो रक्षा मंत्री प्रथक से क्यों ?

(१) खुफिया एजेंसी किसी दुर्घटना की आशंका की सूचना नेताजी (सरकार ) को देती है सेना अध्यक्ष को नहीं क्यों ?

Monday, December 1, 2008

हाय कहूं

(१)
चाय न खाना
पति भूंका उदास
किटी पार्टी
(२)
काचे मकान
बन गी हवेलिया
पाँच साल में
(३) भाग जायेगी
जायदाद मांगेगी
सती माँ की जै
(४)
आइना देखा
हीरोइन समझा
आइना झूंठा

Tuesday, November 25, 2008

हाय क्यूं

हाइकू या हायकूं का नियम पता चला पहली और तीसरी लाइन में पांच और दूसरी में सात अक्षर होने चाहिए /हाइकू लिखा (५)जैसा निदेश मिला (७) पालन किया (५) /कोशिश की /

(१)

पोंछा लगाया
अदा की अदा हुई
काम का काम
(२)
तू तू न मैं मैं
कोई चार्म नहीं है
ऐसे जीने में
(३)
कविता सुनी
समझ में न आई
वीन बजाई
(४)
जमीन पैसा
मार दिया बूढी को
डायन जो थी

हाय क्यूं

हाइकू या हायकूं का नियम पता चला पहली और तीसरी लाइन में पांच और दूसरी में सात अक्षर होने चाहिए /हाइकू लिखा (५)जैसा निदेश मिला (७) पालन किया (५) /कोशिश की /
(१)
पोंछा लगाया
अदा की अदा हुई
काम का काम


(२)
तू तू न मैं मैं
कोई चार्म नहीं है
ऐसे जीने में

(३)
कविता सुनी
समझ
में न आई
वीन बजाई
(४)
जमीन पैसा
मार दिया बूढी को
डायन जो थी

Saturday, November 22, 2008

चलता रहा

चला चलता रहा
कंटकपथ,पथरीली राहें,दलदल
कटा, फटा, जुडा, सिला ,सहा भी
पीड़ा, वेदना, ताप
थका ,गिरा ,उठा ,गिरा
अपना सुख विस्मृत कर ,निवाहा भी
जन्म-सिद्ध कर्तव्य
अब जर्जर ,चिर-पथझड़,परवशता भी
निराश्रित ,उपेक्षित ,बेकार
क्या हूँ ?
रिटायर
या
रिजेक्टेड टायर

Saturday, November 15, 2008

आराम

वाहन रिपेयर की दुकान पर ,मिस्त्री को पेंचकस देता
केन्टीन से दफ्तर और नर्सिगहोम के वार्ड में
दौड़ दौड़ कर चाय पहुंचाता

पेपर बांटता ,पालिश करता ,डांट खाता ,मार खाता
शनिवार को स्कूल छोड़ स्टेशन पर
शनि महाराज बन जाता

अपनी फटी कमीज़ निकाल रेल के डब्बे साफ़ करता
हलबाई की दूकान पर ,आंखों से मिस्ठान्न का स्वाद ग्रहण करता
कडाही मांजता

फ़िल्म देखता ,जेब काटता ,गाली बकता
आठ साल की उम्र में
साठ साल का अनुभव पाता

दिवस मना कर ,भाषण देकर ,मीठा खाकर पान चबा कर
कार में बैठते महोदय से पूछा
सरकार -सुख शान्ति ,चैन ,आराम ,विश्राम
हम कैसे पायेंगे ?

बोले चिंता मत करो
तुम्हारे आराम को ,हम ,पैसा पानी की तरह बहायेंगे
और आगामी वर्षों में
करोड़ों बोरबेल ख़ुद जायेंगे

Thursday, November 13, 2008

उस पार चलो

हम तो जाते हैं दिलदार .'चाँद के पार
यहाँ आपको क्या कष्ट है यार
इस पार प्रिये तुम हो ,गम है , बम है
उस पार तो कुछ अच्छा होगा

जीवन अनिश्चित का धर्मशास्त्र
अपराधी के अधिकार का विधिशास्त्र
पुत्री ,दुल्हन ,रक्षाकर्मी की मौत का कर्म शास्त्र

केन्टीन में प्लेट धोने बच्चे मजबूर
इज्जत और बैंक लुटने का यहाँ दस्तूर
जनता के नौकर जनता के सेवक से पिटते हैं
दूल्हा ,वोट और जनता के प्रश्न यहाँ बिकते हैं
ये नियति शास्त्र है

जिंदा रहेगी लुटेगी पिटेगी
सर मुंडवा कर कोने में पड़ेगी
हक की तो बात क्या दानों को तरसेगी
उपेक्षा ,निराशा ,उत्पीडन की आशंका से विधवा जल गई
मन्दिर बन गया आरती उतर गई
ये यहाँ का रीतिशास्त्र है

पाँच किलो वजनपर सातकिलो का बस्ता बुध्धिशास्त्र है
और दवा मेह्गी कफ़न सस्ता ये यहाँ का अर्थशास्त्र है
उस पार शास्त्र तो कम होंगे
उसपार तो कुछ अच्छा होगा

Wednesday, October 29, 2008

आज की जरूरत ब्रद्धाश्रम

ब्रद्ध का परिवार और परिवार का ब्रद्धों के जीवन में ,आवश्यक -अनावश्यक, उचित -अनुचित जो भी हो उस हस्तक्षेप की प्राचीन मनोवृत्ति बदलते परिवेश के साथ पल्लवित व पुष्पित होती गई , स्वार्थपरता ने पारस्परिक संभाषण और परामर्श के मार्ग अवरुद्ध किए ,वार्तालाप होता भी है तो वह तत्क्षण पूर्णिमा के उद्वेलित सिन्धुबारि में परिवर्तित हो जाता है /

मंदोदरी ने रावण से कहा था ""सुत कहुं राज समर्पि बन जाई भजिय रघुनाथ "" राजा सत्यकेतु ने प्रतापभानु को जिम्मेदारी सौंपी "" जेठे सुतहि राज नृप दीन्हां,हरि हित आपु गवन बन कीन्हां "" तो राजा मनुने बरवस राज सुतहिं तब दीन्हां ,नारी समेत गवन बन कीन्हां "" और जिन्होंने नहीं किया इतिहास हमें समझाइश देता है कि बादशाहों को पुत्रों ने या तो कैद में डाल दिया या उनकी हत्या कर दी गई/

जिस ब्रद्ध के पैर कब्र में लटके हों [ये एक मुहाबरा है ] जो पके आम के तुल्य कभी भी टपक जाय [ ये भी एक मुहाबरा है ] मरघट जिसकी बाट जोहता हो [ ये भी एक मुहाबरा है ][और मुहाबरे मुझे याद नहीं हैं ] ऐसे मुहाबरों से सुसज्जित और सुशोभित की मानसिकता और मानसिक रोगों में उर्बरक का कार्य करने वाली ब्रद्धावस्था का व्यक्ति मानसिक रोगी होकर क्रन्दोंमुख रहकर परिवार की शान्ति भंग न करे ,इसलिए इन्हे ब्ब्रद्धआश्रम के आश्रित करदेना समीचीन है /

मैं देश की संस्कृति के विपरीत नहीं /मात पिता गुरु नवहि माथा के विरुद्ध नहीं -बुजुर्गों की क्षत्रछाया में परिवार फले फूले इसके ख़िलाफ़ नहीं -औलाद बाप की सेवा करे इससे बडा पुन्य नहीं =इस पुन्य के बदले हम ब्रद्ध पर अन्याय तो नहीं कर रहे ? ब्रद्ध के वाबत धारणा है कि वह उदास रहे ,कम बोले ,निर्वाक और निस्पंद रहे [ऐसा किसी फ़िल्म में बताया भी है शायद ] माला फेरे ,भजन करे इसके बरखिलाफ वह फिल्मी गाना गाने लगे ,किसी गाने पर कमर हिलादे ,ठुमका लगा दे [बच्चन जी की बात अलग है ] तो वह स्वम हास्यास्पद तो होगा ही ,उसे किन किन उपमाओं से बिभूषित कर लज्जित किया जाएगा कल्पनातीत है /वह स्वम भी लज्जाजनक व्याकुलता अनुभव करेगा और अपनी स्वतंत्रता और मनोगत दबी इच्छाओं का हनन कर दिल की प्रसन्नता को उदासीनता के आवरण में रख कर आयु और स्वस्थ्य की भित्तिमूल का ध्वंस करेगा /

ब्रद्धावस्था की अपेक्षा है कि कोई उनसे बात करे उनके ज़माने के उनसे किस्से सुने /बुजुर्गों को अपनी युवावस्था के किस्से सुनाने की बहुत उत्सुकता रहती है जो स्वाभाविक है /सम्पाती ने अपनी जवानी के किस्से सुनाये ""हम द्वो बन्धु प्रथम तरुनाई ,गगन गए रवि निकट उडाई /""तो जाम्बंत कहने लगे ""बलि बांधत प्रभु वाढेऊ सो तनु बरनि न जाय , उभय घरी मह दीन्ही सात प्रदच्छिन जाय "" पहले फुरसत थी आज होमबर्क़ करें ,ओवर टाईम ड्यूटी करें कि इनकी सुनें /

इन्हे चाहिए पुराने लोग ,ऐसे साथी जिनसे ये दिल खोल कर अश्लील से लेकर आध्यात्मिक तक ,राखी से लेकर सुरया तक ,पॉप से लेकर कुंदनलाल सहगल तक अपने जमाने से स्वर्ण युग से वर्तमान के घोर कलयुग तक बातें कर सकें =खुश होकर हंस सकें दुखी होकर रो सकें अपने बिछुडे जीवन साथी के साथ बिताये सुख दुःख की बातें शेयर कर पुलकित या ग़मगीन हो सकें /

कुछ संपन्न ब्रद्ध इन आश्रमों की ओर आकर्षित होकर ,जीवन का आनंद लेना सीख कर ,इन लोगों के साथ कुछ जियें तो इन आश्रमों के प्रति लोगों का द्रष्टिकोण बदल सकता है = बरना तो नगर से दूर बनाये गए ब्रद्ध आश्रमों में कुछ बुजुर्ग उपेक्षित से पड़े हुए ,मरने की वाट जोहते हुए जीते रहते हैं

Tuesday, October 28, 2008

जोक तथा संदेश [१०]

जोक :- राघोगढ़ में बिरजू की दालान में किसान बैठे थे एक किसान कहने लगा दादा मेरी भैंस बीमार हो रही है उसने बीमारी के लक्षण बताये / बिरजू बोले =भैया ऐसी की ऐसी हालत मेरी भैंस की हो गई थी -मैंने तो अलसी का तेल पिला दिया था /
दूसरे दिन सुबह ६ बजे किसान ने बिरजू का दरवाजा खटखटाया
किसान ++बिरजू भइया बिरजू भइया
बिरजू दरवाजा खोलते हुए =काहे का बात है
किसान -दादा तेल पिलाने से मेरे भैंस तो मर गई
बिरजू _भइया मेरी कौन बच गई थी

संदेश +किसी बात को पूरी तरह सुन कर, समझ कर, काम करने की हमारी आदत ही नहीं रही /बच्चा अगर स्कूल से आकर कह दे कि पापा मुझे स्कूल का ब्लेक्बोर्ड दिखाई नहीं देता तो हम भागे भागे -घबराए हुए से -बैचैन से -अनिष्ट की आशंका के भयभीत उसे डाक्टर के पास ले जायेंगे =यह तो हमें डाक्टर के घर जाकर मालूम पड़ेगा कि स्कूल में उसकी सीट के आगे एक बड़ा लड़का बैठ जता है /

दूसरी बात जहाँ ६ आदमी बैठे हों समझ लेना वहाँ सात डाक्टर बैठे हुए है / कभी करके देखना /रेल के डिब्बे में थर्ड क्लास कम्पार्टमेंट में [अब तो खैर उसे सेकेण्ड क्लास कर दिया है -क्या हुआ जो नाम बदल दिया -क्लर्क कार्यालय सहायक हो गए काम वही ,ओवरसीयर सब इंजीनियर कहे जाने लगे /एक गरीब नगर का राजा परेशान चाहता था उसकी प्रजा दूध पिए मगर उपलब्धता के आभाव में बेचारे छाछ पीते थे /एक दिन राजा ने सार्वजनिक घोषणा जारी करदी कि कल से सब लोग छाछ को दूध कहेंगे और दूसरे दिन से उस राजा की प्रजा दूध पीने लगी /]हाँ तो रेल में किसी बीमारी का ज़िक्र कर देना जुकाम से लेकर केंसर तक मिटाने के नुस्खे मिल जायेंगे और वो भी प्रूफ़ के साथ कि फलां अच्छा हुआ =फलां दस माह से विस्तर में पडा था और अब दौड़ लगा रहा है /टूटी हड्डी जोड़ने की दबाई =भइया दबाई नहीं खाओगे तो भी जुड़ेगी उसे तो जुड़ना ही है / एक महाराज जी की धूनी में चिमटा लगा रहता था आग से निकाल कर लाल चिमटा मरीज़ के अंग में छुला देते /एक सज्जन को साइटिका हो गया -डाक्टर ने २१ दिन का ट्रेक्शन बताया /एक दिन महाराज जी के पास से बड़े खुश होकर लौट रहे थे बोले देखो डाक्टर वेबकूफ बना रहे थे =महाराज ने घुटने में दो जगह और एडी में दो जगह चिमटा से जलाया और देखो मैं कितना बढ़िया चल पा रहा हूँ /पाँच दिन बाद एक दिन वे अस्पताल में दिखे पूछा "क्यों बाबूजी "? बोले यार बो घुटना और एडी के जख्म पक गए तो ड्रेसिंग कराने आया था /

Friday, October 24, 2008

नारी पूजा

मनु ने कहा ,करें देवता वास करो नारी की पूजा
ह म क र ते तो हैं
दस घर झाडू बर्तन कर ,अपना कमा खाती और
दारू हमें पिलाती
नशे की मार , //और और पीने की इच्छा अपार
मान मनुहार का जब नहीं होता असर
मानने को तैयार नहीं पति-परमेश्वर
पैसे देने को नहीं तत्पर
उसका विद्रोह ,हमारा क्रोध
तो लग जाती है प्रतिष्ठा दावं पर
कभी लातों से कभी घूंसों से .कभी डंडों से कभी जूतों से
पूजा
ह म क र ते तो हैं
चल रहा है अंतहीन सिलसिला
चीखती आवाज़ का ,शोषण के नये अंदाज़ का
जब खुशामद नहीं होती मददगार //,हमारे नशे हेतु ,माग कर नही लाती उधार
तो मजबूरी में हमें लाना पढता है ,जूतों से उसकी त्वचा पर निखार
नये नये उबटन से , पूजा
ह म क र ते तो हैं

Sunday, October 19, 2008

ऐसे कैसे म र द

अब मर्द की शादी मर्द से हो ,कानून में कुछ तो राह मिले
बीरों की इस भारत भू पर , इन मर्दों को सम्मान मिले
उल्टे सीधे जैसे सोयें ,वो काम करें जो मन में है
कानून हमारे हक में है

चेतक घोडे के सवार, महाराणा सर नीचा करके
बीर शिवा भी लज्जा कर, नजरों को कुछ नीचा करके
झांसी की रानी मुस्काकर और फूलन देवी गुस्से से
पुतली बाई करके कटाक्ष हम मर्दों से फिर कुछ पूछे
हम सर को फिर करके ऊंचा ,देंगे जवाब उन बातों का
ये देश है बीर जवानों का अल्वेलों का मस्तानों का
तन फरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
और .कानून हमारे हक में है

एक मर्द कमा कर लाएगा ,दो मर्द बैठ कर खाएँगे
कुछ मर्दों से ताकत पाकर ,सीमा पर लड़ने जायेंगे
हम वो उनको दिखलायेंगे जो बात हमारे मन में है
कानून हमारे हक में है

Tuesday, October 14, 2008

पत्नी पीड़ा

चार दिन से सब्जी नहीं ,बिन साबुन नहाते हैं
ये बाज़ार जाते नहीं ,ब्लॉग में सर खपाते हैं
चश्मे का नम्बर बढ़ा और सर्वाइकल में दर्द
कमर को धनुषाकार बनाए जाते हैं

ज़्यादा बैठेंगे .डायबिटीज हो जायेगी
लीवर की तो बात ही क्या आंत सिकुड़ जायेगी
एक शक्ति जो मेरी नजर में थोड़ी है
और भी घट जायेगी
फिर असगंध और बिधारा भी काम नहीं आयेगी

इधर में दाल बघारती हूँ ,उधर वो शेखी बघारते हैं
बिना पढ़े कविताओं पर टिप्पणी कर आते हैं
दर दर की ठोकरें खाते हैं ,फिर भी कमेन्ट नहीं पाते है
इनके ब्लॉग पर कोई आता नहीं तो मुझ पर झल्लाते हैं

कमेन्ट को भीख ऐसे मागते हैं जैसे ये जन्म जात याचक है
ब्लॉग को सौत भी तो नहीं कह सकती ,क्योंकि यह तो पुरूष बाचक है
हाँ वो कह सकती हूँ जिस पर सरकार तयार हुई जा रही है
और आई पी सी में से धारा तीन सौ सतहत्तर हटाई जा रही है

Sunday, October 12, 2008

बहनों कुछ तो पहनो

बहनों कुछ तो पहनो
हम इतिहास दुहरायें ,दु :शाशन कपड़े खींचे
और कृष्ण बचाने आयें
हम उनके दर्शन पायें

बंद मिलें फिर चालू हों ,भूंकों को कुछ व्यबसाय मिले
भारत की प्यारी बसुधा पर ,फिर कपास के फूल खिले
तपोभूमि पर देवभूमि पर,देवी का कुछ तो बेश लगे
अब कुछ तो आचरण ऐसे हों ,गौतम नानक का देश लगे

जब युद्ध की काली छाया थी ,तब भी त्याग किया तुमने
तुमने जेवर दे डाले थे ,हथियार खरीदे थे हमने
माना कि देश संकट में है ,नदियों की बाढ़ सुनिश्चित है
हम सब का त्याग भी बाजिब है ,
पर इतना त्याग क्या जायज़ है

Thursday, October 9, 2008

बिन फेरे

हम आदम युग में जीते थे /शादी के बंधन में बंधने
अग्नि के फेरे लेते थे

कुछ आउट डेटेड लोगों ने ,फेरों के बंधन में कस कर
जंजीर हमें पहनाई थी ,
उन जंजीरों को तोडेंगे ,हम पंछी बन कर डोलेंगे
दो साल किसी के साथ रहे ,उसकी पत्नी हम हो लेंगे
क़ानून हमारे हक में है

पहले वाली घर हो तो हो , फेरों वाली घर हो तो हो
बेटों वाली भी होवे तो ,उसको रोना है रोये वो
हम पत्नी दर्जा पायेंगे और मेंटेनेंस भुनायेगे
क़ानून हमारे हक में है

शादी की भाषा बदल गई ,पत्नी परिभाषा बदल गई
वेदों वाली उस भाषा को ,कानून की भाषा निगल गई
परिवार का गौरब हमसे है ,माँ बाप का गौरब हमसे है
क़ानून हमारे हक में है

फेरों के बंधन में बाँधा , वेदों की भाषा में बाँधा
दुनिया भर के नाटक करके ,पति ,बेटों का बंधन बाँधा
अब कौन पति और तू कैसा ,बेटे से ज़्यादा है पैसा
चाहें जिसके घर जा बैठें ,पत्नी का दर्जा पा बैठे
क़ानून हमारे हक में है

Monday, October 6, 2008

पछताओगे

सुन मेरे यार /अपना ब्लॉग बनाया मैंने ,कोशिश करी हज़ार
आए कुल पाठक दो चार /और पाठक कैसे आयेंगे ?
बोला- लेखन में दम हुआ तो जरूर आयेंगे
सुन मेरे मित्र /ब्लॉग में डाल्दे मेरा इक चित्र
बोला _पछताओगे /दो चार तो आते हैं मुश्किल से
क्या उन्हें भी भगाओगे ?
मेरे प्रिय मित्र ,कर तू ऐसी करनी
मेरी पत्नी सुमुखी,सुलोचनी ,बिधुबदनी
चंद्रमुखी म्रगसावकनयनी
गौर देह लेती अंगडाई / उसका चित्र प्रविष्ट करो
मेरा इतना काम करो
बोला - और ज़्यादा पछताओगे
इस छोटी सी जिंदगी में क्या तुम
इतने कमेंट्स पढ़ पाओगे??

Saturday, October 4, 2008

ब्रक्षारोपन

कालेज उत्सब में उनको बुलाया
उनके कर कमलों ब्रक्षारोपन करवाया
गड्ढा खुदा था पौधा रखा था ,इन्हे तो केवल आना था
और पौधे से हाथ लगना था
तालिया बजीं ,फ्लश चमका
मिठाइयों की खुशबू से बातावरण महका
सबेरे का अखवार , न फोटो न समाचार
उद्घाटन की केवल लाईने चार
वो भी उठावना और पप्स उपलब्ध के पास
सम्पादक को फोन घुमाया
सर,पेपर में जगह नहीं थी
विज्ञापन ज़्यादा ,हम मजबूर क्या करते
शाम तो टहले ,कालेज आए ,कल का रोपा पौधा उखाड़ आए
और बेचारे क्या करते

Wednesday, October 1, 2008

सान्त्वना

घर में कोहराम ,तीन साल की बिटिया
रोते रोते ये समझाया ,मम्मी तेरी बन गई चिडिया
रोज़ पेड़ पर चिडिया आती /बिटिया मम्मी समझ बुलाती /
जीवन मरण समझ न पाती
.................................
भूल गई बातें सब पिछली ,जनम मरण का भेद समझ कर
रोकर हंसकर ,पढ़कर लिखकर ,बाईस साल गुजारे मिलकर
........................................................
शादी विदा और मन बेटी का =
निर्बल बाप अकेला होगा ,सन्नाटा घर पसरा होगा
कभी अकेला रह न पाया ,मायूसी में मन बहलाया
इस बूढे का अब क्या होगा
रोते रोते आई ,कह गई
पापा तुम हो नहीं अकेले ,आती ही होंगी मम्मी चिडिया बन कर, इसी पेड़ पर /
इसे भी कभी ऐसे ही समझाया था
सोचते हुए
कमज़ोर नज़रों में सूखे आंसू लिए ,
मैं बैठ गया घर की देहरी पर
और सचमुच तलाशने लगा कोई आक्रति
आँगन में लगे आम के पेड़ पर

Monday, September 29, 2008

ब्लॉग

उनके ब्लॉग पर जाना तो इक बहाना था
हमें तो अपने ब्लॉग पर उन्हें बुलाना था
गए ,न देखा न समझा न ध्यान से पढा
बस"" बहुत अच्छा "" लिख कर लौट आना था
मैं लिखता हूँ पाठक मिलते नहीं
जैसे सार्वजनिक बाथरूम में चिपके ,
शर्तिया इलाज़ के विज्ञापन कोई पढ़ते नहीं
पाठक सौ न आते एक ही आता / शब्द बदलने को कहता गलतियाँ बताता
मार्ग दर्शन करता कुछ मशवरे देता
ताकि मेरे लेखन में कुछ सुधार आता
फुर्सत कहाँ किसी को किसी के सुधार की
सबको तो बस अपना ही लिखा पढ़वाना था

Sunday, September 28, 2008

ब्रद्ध शायरी बच्चों को

मैं भी तो अपना विस्तरा लगाऊँ किसी तरह
मेरे मकाँ में देदे मुझे थोड़ी सी जगह

मंजिल

एक मंजिल ,राहें दो /राहबर न हो ,और ज्ञान भी कम हो /
राहबर मिलेगा तो गुमराह करेगा
हमराह गर मिला तो लूट मार करेगा
उलटा भी हो सकता है
राहबर हमराह में भेद करना मुश्किल है
मंजिल को पाने में ये बडी उलझन है
निस्पंद हो बैठ जाओ ,ध्यान में डूब जाओ
घटना घट जायेगी ,मंजिल ख़ुद चल कर आजायेगी

Friday, September 26, 2008

साक्षात्कार

एक दिन ईश्वर से साक्षात्कार हुआ
प्रभो ,मेरे साथ बडा अन्याय हुआ
तो adaalt चला जा

prabhoo में dukhee हूँ दुःख मुझे खाए jata है
तो ulloo की dum asptal क्यों नही jata है

adalat से baree होने मन्दिर में आया है
मैं jaantaa हूँ
मगर मैं किसी वकील का hq भी naheen maartaa हूँ

too zmeen के kbze भी मुझसे ही chahega
तो tehseeldaar क्या khayega

too चोरी की janch मुझसे चाहता है
मैं अखिल brahmand का एक maatr swaamee laxmee पति
मुझे ds hzar mahinaa का thanedaar बनाना chahtaa है

तेरा तो jeevn तूने अपने हाथों bna rakhaa है nrk
नही sunoonga तेरा कोई trk
तेरी तो baichen रहने की adat है
मुझे तो चैन से रहने दे

Wednesday, September 24, 2008

करुना

जो अक्सर कम ही होता है वह हुआ /बडे साहब का निरीक्षण हुआ
टेबल कुर्सी अलमारी फर्श , चकाचक देखी सफाई
खुशी से गदगद ,कौन करता है ऐसी सफाई
कर दिया उस युवक को आगे छोटे साहब ने
सर,लगनशील है ,वफादार है /एम् -ऐ-पास होकर भी ईमानदार है
बड़े साहब का दिल करुना से भर आया
शिक्षा के अवमूल्यन पर बहुत क्रोध आया
आंखों में आंसू ,दिल में दुःख ,ऑफिस में मानो करुण रस उतर आया
ड्यूटी बदलने का आदेश हुआ तत्काल
अब आदेश ,ऑफिस की आर्डर बुक पर चढ़ रहा है
युवक अब ऑफिस में सफाई करने के बदले
बड़े साहब के बंगले पर
सफाई कर रहा है

Tuesday, September 23, 2008

अनुशासन

गलती बड़ी थी ,बदतमीजी की अन्तिम कड़ी थी
शिक्षक कर्मयोगी था ,अनुशासन हीनता विरोधी था
""चल वे मुर्गा बन जा "
लड़का बेखौफ था चेहरे पर रौब था
सर आप पहचानते नहीं हैं ,मेरे पिता ....को जानते नहीं है
बड़े बाप का नाम सुनकर शिक्षक घबराया
माथे पर पसीना आया ,वाणी में मिठास लाया
विद्यार्थी को पास बुलाया
प्रभू आप बहुत बड़े ,मैं मामूली सा शिक्षक
मुझ पर रहम खाइए , और कृपा करके
मेरी टेबल पर
मुर्गा बन जाईये

Monday, September 22, 2008

मात्र हास्य तुकबंदी

घूंघट में वो सिमटी बैठी
सोचा मैंने इससे जीवन डोर बंधलूँ
पर घूंघट में समझ न पाया
विधुबदनी है या म्रगनयनी ,,चंद्रवदन म्रगसावकनयनी
मनभावन सुंदर है या यौवन में अलसाई
प्रेम लालाइत बाला है अथवा है सुखदाई
रुचिकर और मनोरम है या है सलज्ज मुस्कान
सुंदर दंतअवलि बाली है या है रस की खान
प्रेम पूर्ण चितवन है या फ़िर है चितवन मुस्कान भरी
तिरछी चितवन है या सीधी या फ़िर है उल्लास भरी
झिलमिल करती गौर देह है या फ़िर है सुकुमार सलोनी
देवलोक की स्वर्ण अप्सरा या फ़िर है कोई अनहोनी
घूंघट में सिमटी बैठी वो मुहं को करके नीचे
मैंने उसके पैर ही देखे ...एडी आगे पंजे पीछे

मुसीबत

शहर पर जब मुसीबत आई
उसने जान पर खेल कर अपनी
जान बचाई

इन्सान

वो इंसान कैसे हैं जो इंसान को जिंदा जलाते हैं
न संतों के वचन ना नर्क से ही खौफ खाते हैं
लोग पहले भी ऐसे काम करते थे
जिंदा जला कर सती का नाम देते थे
अब हम आधुनिक है ,
हमारी इंसानियत मरी नहीं है
हैवानियत हम में भरी नहीं है
हम इंसान हैं इंसान को ज़िंदा जलाते नहीं हैं
पहले उसे कत्ल करते हैं फिर ही जलाते हैं

Saturday, September 20, 2008

नक़ल

मैंने नक़ल की दरखास्त लगाई
उसने दरखास्त में खामी बताई
दुरुस्ती कैसे होती है सब को पता है
इसलिए मैंने आपको नहीं बताई
आठ दिन की तारीख लगी
महिनाभर फाइल नक़ल में ही नही आई
चाय नाश्ता हुआ
इतर पान हुआ
कुछ और भी हुआ
मुझे नक़ल मिल गई मैं खुश हो गया
हालाँकि पाँच रूपये की नक़ल में दो सौ का खर्चा हो गया

Friday, September 12, 2008

सास ससुर पद पूजा

बहुत खुश थी घर खर्च चलाने हाथ में तनखा लेकर
बाइयां काम पर लग गईं - इनको फुर्सत मिल गई
फुर्सत में धर्म की ओर झुकाओ स्वभाबिक है
ग्रन्थ और प्रवचन भी आवश्यक है
सुना पढ़ा
सादर सास ससुर पद पूजा
ह्रदय परिवर्तन हुआ -पति से आग्रह हुआ
अभी ख़बर भिजवाओ -गों से माताजी को बुलवाओ
बेटे ने माताजी को बुला लिया
बहू ने काम बाली बाईयों को हटा दिया

कवि गोष्ठी

यह कविता नहीं तुक बंदी है
मात्र शव्दों की जुगल बंदी है
श्रोता बिचारा 'मुसीवत का मारा
प्रेम से बुलाया 'लिहाज से आया
उवासी लेता रहा कभी आह कभी वह करता रहा
भागने का मौका तलाश करता रहा
कवि की करूँ रचना से भावुक श्रोता सिसकने लगते हैं
और गोष्ठी के कुछ कवि अपनी सुना कर खिसकने लगते हैं
जो नहीं सुना पाये उनका रुकना ज़रूरी है
अपने नंबर का इंतजार उनकी मजबूरी है
जिसने सुनादी उसका तो काम बन जाता है
जिसे अध्यक्ष बनाया वो फंस जाता है
गोष्ठी समापन तक उसका रुकना लाजिम है
और अध्यक्ष दे नाते यह बात भी बाजिब है
डकेतों ने हमें लूटने की योजना बनाई
हमको पता चल गया हमने पुलिस बुलाई
हमारी रक्षा हुई हम डकेतों से बच गए
............................................
मगर फ़िर भी लुट गए

Tuesday, April 22, 2008

सौन्दर्य

अमावस की रात और पतझड़ का सौंदर्य किसे भाता है
सुन्दरता का रहस्य सबकी समझ में कहाँ आता है
सौन्दर्य विरोधी बगीचे में खड़े ठूंठ है
कल कल करती नदी के किनारे
झरने गिराते पर्वत के नींचे
खड़े ऊँट हैं
इनका वस चले तो सुन्दर शब्दों को
डिक्शनरी से फाड़ दें
और खजुराहो के मन्दिर को
मिट्टी में गाड़ दें

याद

सिकंदर कब गया कैसे गया कुछ पता नहीं
क्या लाया था क्या ले गया यह भी पता नहीं
में अपनी बात करता हूँ ,सिकंदर की नहीं
में दिल की बात करता ,धर्म ग्रन्थ की नहीं
अगले जन्म में उनको सब बातें बताउंगा
इस वास्ते यादों को साथ ले ही जाऊँगा