Thursday, November 13, 2008

उस पार चलो

हम तो जाते हैं दिलदार .'चाँद के पार
यहाँ आपको क्या कष्ट है यार
इस पार प्रिये तुम हो ,गम है , बम है
उस पार तो कुछ अच्छा होगा

जीवन अनिश्चित का धर्मशास्त्र
अपराधी के अधिकार का विधिशास्त्र
पुत्री ,दुल्हन ,रक्षाकर्मी की मौत का कर्म शास्त्र

केन्टीन में प्लेट धोने बच्चे मजबूर
इज्जत और बैंक लुटने का यहाँ दस्तूर
जनता के नौकर जनता के सेवक से पिटते हैं
दूल्हा ,वोट और जनता के प्रश्न यहाँ बिकते हैं
ये नियति शास्त्र है

जिंदा रहेगी लुटेगी पिटेगी
सर मुंडवा कर कोने में पड़ेगी
हक की तो बात क्या दानों को तरसेगी
उपेक्षा ,निराशा ,उत्पीडन की आशंका से विधवा जल गई
मन्दिर बन गया आरती उतर गई
ये यहाँ का रीतिशास्त्र है

पाँच किलो वजनपर सातकिलो का बस्ता बुध्धिशास्त्र है
और दवा मेह्गी कफ़न सस्ता ये यहाँ का अर्थशास्त्र है
उस पार शास्त्र तो कम होंगे
उसपार तो कुछ अच्छा होगा

13 comments:

Abhishek Ojha said...

कई सच्चाइयां... ये बहुत पसंद आई:
"पाँच किलो वजनपर सातकिलो का बस्ता बुध्धिशास्त्र है
और दवा मेह्गी कफ़न सस्ता ये यहाँ का अर्थशास्त्र है"

गौतम राजऋषि said...

बड़े दिनों बाद दिखे...और छा गये....कहीं बच्चन तो कहीं पाकिजा...इस अदा पे सुभानल्लाह
और हंस के नवंबर अंक में आपके दो खत छपे हैं हुजूर , मेरे नहीं...

Satish Saxena said...

मज़ा आगया भाई जी ! सुबह सुबह चाय के साथ आपकी हंसी ! शुभकामनायें आपको !

Satish Saxena said...

इस पर प्रिये तुम हो गम है उस पर तो कुछ अच्छा होगा " ;-)
आपका ब्लाग का लिंक "मेरे गीत " पर दे रहा हूँ !

Straight Bend said...

Good lines ..

पाँच किलो वजनपर सातकिलो का बस्ता बुध्धिशास्त्र है
और दवा मेह्गी कफ़न सस्ता ये यहाँ का अर्थशास्त्र है
उस पार शास्त्र तो कम होंगे
उसपार तो कुछ अच्छा होगा

Alpana Verma said...

इस पार प्रिये तुम हो ,गम है , बम है
उस पार तो कुछ अच्छा होगा
--
पाँच किलो वजनपर सातकिलो का बस्ता बुध्धिशास्त्र है
और दवा मेह्गी कफ़न सस्ता ये यहाँ का अर्थशास्त्र है

--aaj ki paristhitiyon se do char karaati-thodey mein bahut kuchh kah jaati hai aap ki rachna--

Jimmy said...

good work




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Jimmy said...

Bouth He Aacha Post Hai Ji

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अभिषेक मिश्र said...

इस पार प्रिये तुम हो ,गम है , बम है
उस पार तो कुछ अच्छा होगा
शायद आज बच्चन जी भी यही कहते. खूब लिखा है आपने. स्वागत मेरे ब्लॉग पर भी.

Pawan Kumar said...

केन्टीन में प्लेट धोने बच्चे मजबूर
इज्जत और बैंक लुटने का यहाँ दस्तूर
जनता के नौकर जनता के सेवक से पिटते हैं
दूल्हा ,वोट और जनता के प्रश्न यहाँ बिकते हैं
ये नियति शास्त्र है
क्या बात है भाई बात मन को छू गयी. आगे भी लिखते रहिये.आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा.

प्रदीप मानोरिया said...

गज़ब कर दिया श्रीमान श्रीवास्तव जी मज़ा आ गया

!!अक्षय-मन!! said...

ek jivant si rachna anmol bhav sundar prastutikarn ......
har ek muktak ek aaina ban haqiqat ko saamne lata hua bahut hi sashakt aur sadhi hui rachna man ko bahut hi accha laga padkar........


..aapka swagat hai….
“बदले-बदले से कुछ पहलू”
http://akshaya-mann-vijay.blogspot.com/

Vinay said...

लगाम कस लो दुनिया वालों ब्रिज जी दौड़ाने वाले हैं!