Saturday, December 4, 2010

सुन साहेबा सुन

यदि अवकाश के दिन सबेरे सबेरे कोई किसी के घर चाय पीने आजाये और अपनी कवितायें ,गजल,लेख सुनाने लगे या फिर कोई सुबह सुबह अपने घर पर चाय के लिये आमंत्रित करे और उनका बेटा गाने लगे ’’उन्हे अपनी रचनायें सुनाना है इसी लिये डैडी ने मेरे तुम्हे चाय पे बुलाया है ’’

सुनना कई प्रकार का होता है जिसमें ’’मन से सुनना’’ और ’’ बेमन से सुनना ’’ लोक में प्रचलित हैं । बेमन से सुनने वाला वर्षो तक याद रहता है और बेमन से सुनने वाले की क्या क्या गतिविधियां थी यह भी याद रहता है ’’बेरुखी के साथ सुनना दर्दे दिल की दास्तां और तेरा हाथों में वो कंगन घुमाना गुलाम अली साहब को आज तक याद है। सुनने वाला बार बार घडी देखने लगे जम्हाई लेने लगे तो सुनाने वाले को इस बात की परवाह नहीं होती है।वैसे यह सत्य है कि कभी अकारण सी वेचैनी होने लगे, जी घबराने लगे, किसी काम में मन न लगे, कुछ भी अच्छा न लगे, अनर्इजी फीलिंग होने लगे तो किसी को पकड कर अपनी रचनाये सुनाना एक ट्रेक्युलाइजर का काम करता है फिर चाहे सुनने वाले को चाय पिलाना पडे या जलेवियां खिलाना पडे।

मैने सुना है एक सज्जन बीमार हुये, वैसे सज्जन लोग कम ही बीमार होते है,मगर हो गये क्या करे। डाक्टर ने आठ घन्टे खतरनाक बताये कहा आज की रात निकल जाये तो मरीज खतरे से बाहर हो जायेगा । रात कैसे निकले ।उन सज्जन का एक सज्जन बेटा भी था वैसे बेटे आज कल सज्जन होते नहीं है मगर होगया इत्तेफाक है तो उसने पापा के पुराने दोस्त को बुलाकर कहा अंकल किसी तरह रात निकलजाये । अंकल ने कहा यह कौनसी बडी बात है , मानवमस्तिष्क से परिचित वे जानते थे कि मरीज का ध्यान डायवर्ट करदो आधी बीमारी उसकी दूर हो जाती है । मित्र अंकल कमरे में गये और जाकर अपने मरीज मित्र से कहा यार वो भी क्या दिन थे जब तुम स्कूल में गजले लिखते थे फिर कालेज पहुंचते पहुंचते तो उनमें बहुत बजन आ गया था अव रिटायरमेन्ट के बाद उनका कुछ उपयोग करे । बीमार को करार आया बेबजह आया या बाबजह आया मगर आया।इशारे से उन्हौने अपनी पुरानी डायरियां निकलवाई । पहले मंद्र फिर मध्यम और फिर तारसप्तक में शुरु हो गये ।बेटे बेटी कमरे से बाहर बैठे आवाज सुनते रहे घडी देखते रहे वक्त गुजरता गया खतरे की अवधि समाप्त । कमरे में गये पिताजी जोर जोर से रचना पाठ कर रहे थे और वगल में मित्र अंकल मरे डले थे।

ये सुनने सुनाने का सिलसिला ’सुनो सजना पपीहे ने कहा सबसे पुकार के’ के पूर्व से चला आरहा है और सुन सुना आती क्या खण्डाला के बाद भी निरंतर जारी है।

मेरे नगर में पैसेन्जर गाडी रात 12 वजे आकर रात्रि विश्राम करती है सुवह आठ बजे जाती है। जिस दिन स्टेशन पहुचने में जरा देरी हो जाये उस दिन बिल्कुल राइट टाइम चली जाती है, मगर देर नहीं हुई थी तो गाडी का लेट होना स्वाभाविक था । साडे आठ बज गये ,पौने नौ बज गये आज क्या बात होगई कही कोई क्रासिंग तो नहीं है। ये क्रोसिंग भी मजेदार चीज होती है इंशाअल्लाह कभी मौका लगा तो इस पर भी अर्ज करुंगा ।यात्री परेशान शीटी रेल की बज रही है एनाउन्स हो रहा है गाडी स्टेशन छोडने वाली है मगर हरी झंडी दिखाने वाले गार्ड साहब गायब है। तलाश की तो बडी देर बाद मिले गाडी के पीछे खडे हुये शेर सुना रहे हैं और कुली दाद दे रहे हैं ।

अदालत सुनी सुनाई बात पर विश्वास नहीं करती है। गुलाम अली साहब ने कहा सुना है गैर की महफिल में तुम न जाओगे किसी ने गाया सुना है तेरी महफिल में रतजगा है किसी वकील से पूछो यह हियर से की श्रेणी मे आता है ।

सुनना ठीक है कहते है जीभ एक और कान दो इसी लिये होते है मगर सुनना वाध्यकारी नहीं होना चाहिये सुन साहिबा सुन मैने तुझे चुन लिया तू भी मुझे चुन । मतलव यह तो दादागिरी होगई । तूने चुना तेरी मरजी मगर किसी पर यह क्यों थोपना कि तू भी मुझे चुन ।

Saturday, November 13, 2010

एडजस्टमेंट

मात्र काल्पनिक, किसी जीवित या मृत व्यक्ति का इससे कोई लेना देना नहीं है।

आफिस से आने में जरा देर क्या होगई देखा दरवाजे पर खडी खडी रो रहीं है ,देखते ही चेहरे पर एक सुकून आया ,एक तसल्ली हुई,, आज न जाने कौन से पुण्य उदय हुये कहकर और ,जाकर सीधे भगवानजी के चित्र के सामने साष्टांग दण्डवत , प्रभू तेरा लाख लाख शुक्र है ,बेटे को आवाज दी जा जल्दी से 21 रुपये की मिठाई ले आ भगवान को प्रसाद बोला था । मगर हुआ क्या ? एक तो आफिस से आने में देर करदी और फिर पूछते हो हुआ क्या । लेकिन इतनी घबराई हुई क्यों हो, रो क्यों रही थी ? अभी सामने वाले हैन्डपम्प पर कुछ औरते बातें कर रही थी कि एक बेवकूफ किस्म का पागल सा दिखने वाला आदमी बस से कुचल गया ऐसे में ही तुमने देर करदी अब तुम्ही बताओ ?

दौनों को तसल्ली थी एक को सोहाग बच जाने की और दूसरे को खुद के बच जाने की ,दौनो डबडबाई आंखों से एक दूसरे को देर तक देखते रहे तब तक बच्चा पूरी मिठाई खा गया ।

एडजस्टमेंट उसे कहते हैं कि
तू हंस रहा है मुझपे मिरा हाल देख कर-और फिर भी मै शरीक तेरे कहकहों में हूं
एडजस्टमेंट किया जाता रहना चाहिये ।कलम उठाई कुछ कविता लिखने के लिये लिखा जिये तो जियें केसे संग आपके इतने में ही वह चाय लेकर कमरे में आई फौरन "" संग"" शव्द काट कर "" बिन"" कर दिया । कौन क्या कहना चाह रहा था कौन क्या लिखना चाह रहा था और उसे क्या कहना पडा और क्या लिखना पडा यह हर कोई तो समझ नहीं पाता

सिर्फ शायर देखता है कहकहों की असलियत
हर किसी के पास तो ऐसी नजर होती नही

कभी कभी एडजस्टमेन्ट मुश्किल भी होजाता है। शिवचालीसा का पाठ कर रहा था। हर देवी देवता के चालीसा मौजूद है और कुछ भक्तों ने तो कुछ मुख्यमंत्रियों के चालीसा भी तैयार किये थे फिर पता नही कि बच्चों के कोर्स में वे रखे गये या नहीं। खैर तो शिव चालीसा में एक लाइन आती है ले त्रिशूल शत्रु को मारो इस लाइन पर आवाज जरा उंची होगई कि " ले त्रिशूल शत्रु को मारो" तो किचिन में से आवाज आई कुछ भी करलो मेरा कुछ नहीं विगड सकता हैं । कहा ये तुम्हारे वारे में नहीं है इसका तात्पर्य ये है कि तुम्हारे शत्रु को मारे फिर किचिन में से आवाज आई मतलब को एक ही हुआ , मै कहां फेमली पेन्शन के लिये दर दर भटकती फिरुंगी ।एसी ही आपवादिक परिस्थियों के लिये रहीम ने कहा होगा कह रहीम कैसे निभे केर बेर को संग होता है

कभी कभी ऐसी परिस्थियां हो जाया करती है कि कहा भी न जाये चुप रहा भी न जाये' तब बडी दिक्कत हो जाती है क्योंकि डाक्टर बशीर बद्र साहेब का शेर है मै चुप रहा तो और गलत फहमियां बढीं,// वो भी सुना है उसने जो मैने कहा नहीं
l वैसे आमतौर पर एडजस्टमेंन्ट किया जाता है और क्या किया जाना चाहिये , अब यदि आफिस का बॉस कहे कि सुनो श्रीवास्तव जी मैने एक शेर लिखा है तो सुन कर यह तो नहीं कहा जासकता कि वाह हुजूर क्या लीद की है बल्कि यही कहा जायेगा वाह साहव क्या बात है एक बार फिर सुनाया जाय ।मुशायरे की भाषा में इसे मुकर्रर कहते है। एक शायर माइक पर आया और कहा हाजरीन अपनी गजल के चंद शेर पेशे खिदमत है तबज्जो चाहूंगा एक श्रोता ने पहले ही कह दिया मुकर्रर अपना सिर पकड कर शायर अपनी जगह पर जा बैठा।
l

Monday, November 8, 2010

चमत्कार

चमत्कारों से अपरिचित लोग उन्हे कई नामों से से सम्बोधित करते है तथा कई दफे बहुत वारीकी से देखने के वाद भी कोई चीज समझ में नहीं आती तो उसे हाथ की सफाई, जादू, कालाजादू, मेस्मेरेजम, नजर बांधना, ट्रिक फोटोग्राफी कैमिकल्स का सम्मिश्रण आदि इत्यादि कह दिया जाता है - लेकिन चमत्कार वह होता है जिसे सभी प्रकार के लोग देखे भी और माने भी । मंत्र की शक्ति का तो पता नहीं मगर मंत्री में राजा को रंक और रंक को राजा बनाने की शक्ति जरुर होती है। मैने देखा है मंदिरों में ज्यादातर भगवान की मूर्तिया खडी निर्मित की जाती है ।मैने एक पुजारी से पूछा यार तुम्हारे भगवान हमेशा खडे क्यों रहते है उसने बडी सादगी से कहा वो क्या है साहब इधर मंत्री वगैरह आते रहते है '

।मुझे पता नहीं कि मंत्र में इतनी शक्ति होती है या नही कि वह किसी चलती हुई मशीनरी को रोकदे।

ट्रेन जब स्टेशन से रवाना होने को हुई तो एक लंगोट धारी ??-उसमें प्रविष्ठ हुये । रेल में सफर करने वाले जानते है कि यात्रियों के टिकिट की चैकिंग कभी स्टेशन पर खडी गाडी में नहीं होती है -चलती गाडी में होती है क्योंकि एक तो लोग चढ उतर रहे होते है दूसरे कोई स्टेशन पर उतर कर सह सकता है कि मै बैठा ही न था। चलती गाडी में बिना टिकिट यात्री चैकर के पूर्णरुपेण वश में हो जाता है चलती ट्रेन में से उतर न सकने के कारण उसे चेकर की मन की मुराद पूरी करना पडती है। मगर उस दिन जो नहीं होता वह हुआ चेकिंग स्टेशन पर खडी गाडी में हुआ । चेकर को आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास था कि ??के पास टिकिट नहीं है और वास्तव में होता भी नहीं है। दो तीन मिनट रहगये थे गाडी रवाना होने में कि चैकर और ??में झगडा होगया ।चैकर अपनी जिद पर अडा था कि टिकिट लेना होगा और वे एक विशेष प्रकार की गाली जो आम तौर पर ये लोग उच्चारित करते हैं उच्चारित करते हुये कह रहे थे हमसे टिकिट मांगता है। बात में दम हो या न हो मगर आवाज में दम थी ।बात वढना थी सो बढ गई। ??रेल से स्टेशन पर उतर आये और जोरदार आवाज में कहा अब तू गाडी लेजाकर बतलादे ।

अब देखिये जनाब कि गार्ड हरी झंडी दिखा रहा है ट्रेन जोरदार शीटी की आवाज निकालती है स्टार्ट होती है और थोडा हिल डुल कर फिर रुक जाती है। उस में विभिन्न जाति, सम्प्रदाय के लोग थे -परम आस्तिक और घोर नास्तिक भी थे। मन्त्र शक्ति में विश्वास करने वाले और उनके विरोधी वैज्ञानिक भी उस गाडी में सवार थे । ट्रेन की आधी सवारी स्टेशन पर उतर आई थी । लोग आग्रह कर रहे थे कि चैकर माफी मांगले । मगर वह भी पक्का गवर्नमेन्ट सरवेन्ट था माफी क्यों मांगू मैं अपनी डयूटी देरहा हूं उसे तनखा इसी बात की मिलती है डयूटी न करुं तो सरकार तनखा देती है और करुं तो मजबूर यात्री और शौकिया यात्री सरकार से भी ज्यादा देते है। ड्राईवर ने हाथ जोडे भैया मांगले माफी क्या विगडता है गाडी लेट होरही है गार्ड ने हाथ जोडे मगर जिद यह कि इसने टिकिट मांगा तो क्यों मांगा । भीड व्दारा अनुनय विनय करने के बाद बमुश्किल-तमाम चैकर ने चरणों में गिर कर माफी मांगी ।और देखते देखते गाडी थोडी हिलडुल कर स्टार्ट होगई । ?? की जयकारे की आवाज गूंजने लगीं ।
स्टेशन के पास ही शासकीय रिक्त पडी भूमि पर पहले कुटिया बनी फिर विशालकाय भवन, धर्मशालायें बनी ।लोगों की श्रध्दा धन के रुप में प्रकट हुई जो जितना श्रध्दावान था उसने उतना ही चढावा चढाया और सिलसिला सतत जारी रहा। अब ?? करोडों में खेल रहे है और बेचारे रेल के ड्राईवर गार्ड और चैकर को मात्र एक-एक लाख रुपये में ही संतुष्ट कर दिया गया

Friday, October 15, 2010

समाचार

हम समाचारों को चार वर्ग में विभक्त कर सकते हैं । अन्तर्राष्ट्रीय राष्ट्रीय प्रादेशिक और क्षेत्रीय ।क्षेत्रीय समाचार कुछ ऐसे होते है जिन्हे न समाचार कहा जा सकता है न अफवाह मगर इनमें से ही कुछ होती/होते है।ये अफवाह या समाचार न टीवी पर दिखाये जाते है न पेपर में छपते है लेकिन आदमी औरत बूढा बालक सबको मालूम रहता है । मै एसे ही दो क्षेत्रीय समाचारों से आपको अवगत कराना चाहूंगा।



एक वार सुनने में आया कि एक गिलकी सब्जीः से भरा हुआ ट्रक जारहा था । रात का वक्त था सडक पर नाग नागिन का एक जोडा था । ट्रक ने उन्हे कुचल दिया । तो साहब उस जोडे ने श्राप दिया कि गिलकी के पत्तों पर नाग नागिन की छवि उतर आयेगी । लोगों ने गिलकी के पत्ते देखे वाकई सफेद रंग की सर्प जैसी आकृति थी । मैने भी देखी ।यह समझ में नहीं आया कि उस जोडे ने मरने के वाद श्राप दिया या कि मरते मरते ।फिर गलती ड्रायवर की थी दण्ड उसको मिलना चाहिये था अब्बल तो आप रात में सडक पर गये ही क्यों मगर श्राप तो दे चुके तो दे चुके । अब साहब हालत ये कि सव्जी बेचने बाला कहे कि साहब एक रुपये की एक किलो ले लो तो भी कोई तैयार नहीं यहां तक कि कोई गिलकी मुफत में लेने को भी तैयार नहीं । जब तक कृषि विभाग यह तय करता कि यह कुछ नहीं एक कीडे का लार वा है इससे न तो फसल को कोई नुक्सान होता है न सब्जी खाने वाले को कोई नुक्सान है तब तक तो आलू का स्टाकिस्ट जिसके दो साल से आलू कोल्ड स्टोर में पडे थे और कोई खरीददार नहीं मिल रहा था उसके पास एक किलो आलू भी न बचे।

एक वार जब मै अपने नगर गया तो क्या देखा कि सभी के मकानों पर दरवाजे के दौनो तरफ हल्दी के हाथ के निशान बने थे । पूछा भैया ये क्या है तो मालूम हुआ कि एक चुडैल याने भूतनी भिखारन बन कर आयेगी ,वह प्याज और रोटी मांगेगी । जिसके दरबाजे के दौनो ओर ऐसे हल्दी के हाथ बने होंगे उस घर नहीं जायेगी। मै अपने मित्र के घर गया तो वहां भी । मै जानता था वे एसी बातों में विश्वास नहीं करते तो मैने पूछा भाई ये क्या बोले मै इन बातों में विश्वास नहीं करता । मैने पूछा फिर ये हल्दी के हाथ दरवाजे पर \बोले उसमें हर्ज ही क्या है ।कुछ दिन रह कर मै तो वापस आगया फिर पता नहीं चुडैल आई या नही हो सकता है आई हो तो हाथ के निशान देख कर वापस लौट गई हो परन्तु इतना अवश्य पता है कि एक माह वाद होने वाले चुनाव में कांग्रेस उस क्षेत्र से भारी बहुमत से विजयी हुइ थी ।

चलते चलते एक बात और वता दूं कि कुछ लोग भूतों पर विश्वास नहीं करते कहते है यह वहम है लेकिन हुजूर



एक दिन भूत के बच्चे ने भूत से कहा

पापा आज मुझे आदमी दिखा

भूत ने कहा बेटा आदमी वगैरा कुछ नहीं होता है

यंे अपन लोगों का वहम होता है

मै तो दिन में रात में

हाट में बाजार में

राज में दरवार में

गली और मैदान में

खेत और खलिहान में

संसद और विधान में

हर तरफ रहता हूं फिरता

मुझको तो कभी कोई आदमी नहीं दिखता

Thursday, September 23, 2010

यक बंगला बने न्यारा

ब्लॉग बना लेना जितना सरल है ब्लॉग पर निरंतरता बनाये रखना उतना ही कठिन है और भी सांसारिक परेशानियाँ है मै इतनी लम्बी अवधि तक अनुपस्थित रहा उसकी वजह और परेशानियाँ आप से शेयर करना चाहूंगा यह/ जानते हुए भी कि आजकल कौन किसके गम शेयर करता है| मैंने बहुत पहले हाऊसिंग बोर्ड में एक मकान बुक किया था कुछ नगद वाकी सब फाइनेंस , आजकल फाइनेंस इतना सरल हो गया है कि कुछ न पूछो यद्यपि जितना स्वीकार होता है उससे कम मिलता है मगर यह क्या कम है कि वगैर महनत के मिल जाता है, और भुगतान करेंगे तब देखा जायेगा|रीणम कृत्वा घृतं पिवेत तो साहब मुझे सूचना मिली कि आकर मकान का आधिपत्य प्राप्त करें | उस दिन पूरा घर चहक रहा था आपने मकान की लालसा हर किसी को रहती है कुंदन लाल सहगल ने गाया करते थे " यक बंगला बने न्यारा" ग़ालिब साहेब के पास तो पैसों की ही तंगी रहती थी मगर इच्छा तो उनकी भी थी तो उन्होंने यूं किया " बे दरो दीवार का इक घर बनाया चाहिए" काहे का कारीगर काहे का सीमेंट एक तो गाता ही रह गया " इक घर बनाऊंगा तेरे घर के सामने" क्या पता बेचारा बना भी पाया या नहीं तो साहब उस खुशी के माहोल में मैंने " पिय तन चितहि भोंह कर वांकी" वाले अंदाज में बेटे से कहा भैया अपन नए घर में चल रहे हैं पुरानी चीजें यहीं छोड़ चलेंगे | मै मुस्करा भी नहीं पाया था कि " हाँ छोड़ तो जाओगे तुम भी तो पुराने हो गए हो तुम भी मत जाओ" |

सब सदस्य सामान को नए घर में व्यबस्थित करने लगे थे मुझे फुर्सत थी सो मैंने टीवी खोल लिया एक चेनल रत्नों की जानकारी दे रहा था, चैनल बदला तो दूसरा ग्रहों की शांति के उपाय बतला रहा था, तीसरा चैनल खोला तो उसने बताया कि आपका मकान दक्षिण मुखी नहीं होना चाहिए सुनते ही मैं घबरा गया| बेटे को आवाज़ लगाईं भैया उत्तर किधर है ? वह बोला प्रश्न किधर है? मैंने कहा नहीं रे उत्तर दिशा किधर है उसने कहा आपकी पीठ तरफ | अरे ये तो बड़ा अनर्थ हो गया दक्षिण मुखी मकान ले लिया उत्तर दिशा में तो दरवाजा निकलवा भी नहीं सकते थे क्योंकि वहां तो मात्र तीन फिट की गली थी|

मै दरवाजे पर बैठा सोच में डूबा था और सोच रहा था कि मोहल्ले वाले मेरे सोचने के वारे में क्या सोच रहे होंगे तभी एक लड़का आया उसके पास पांच हरी मिर्च नीचे बीच में नीबू और पांच हरी मिर्च ऊपर ऐसे कई यंत्र थे उसने एक यंत्र मेरे दरवाजे पर टांग कर दस रूपये मांगे मै कुछ कहूं इससे पहले ही बोला आपकी लाइन में सबके यहाँ लगाता हूँ इससे दक्षिण मुखी का दोष मिट जाताहै पूछा ये यंत्र कितने दिन चलेगा बोला चोवीस घंटे मैंने कहा मतलब तीन सौ रुपया माह्बार तू लेगा| बोला नहीं, अगर आप एक माह का एडवांस देंगे तो ढाई सौ ही लगेंगे| मैंने अपने एक मित्र को फोन लगाया कहा यार यहाँ तो तीन सौ रूपये का अतिरिक्त खर्च बढ़ गया है, तो उसने कहा कहीं से काले घोड़े की नाल लाकर टांग दो हमेशा के लिए दोष दूर |

यहाँ तक तो ठीक मगर इस मकान में तो सारा ही काम उल्टा था| चेनल ने बताया फलां साइड में किचिन होना चाहिए वहां बाथरूम था था | नल की फिटिंग वरुण देव के बिलकुल विपरीत दिशा में थी| एक मित्र बोले चलो रसोई घर की समस्या मै मिटा देता हूँ| हम किचिन में पहुंचे तो मित्र एकदम उदास हो गए पूछा क्या हुआ ? बोले यार क्या बताएं चूल्हा होता तो उसके मुह की दिशा बदल देते मगर यहाँ तो गैस है| मुझे अपनी का वक्त याद आगया खांसी ज्यादा थी तो डाक्टर बोला एक्सरे निकलवा लो रिपोर्ट जब मिली तो सबसे पहले एक्सरे उलट पुलट कर मेने देखा उसमे कुछ धब्बे से दिखे | मरीज ही क्या जो डाक्टर ko बताने से पहले खुद एक्सरे न देखे| डाक्टर ने एक्सरे प्लेट देखी और एक दम गंभीर हो गया मेरा दिल धडकने लगा| डाक्टर ने गंभीरता पूर्वक पूछा सिगरेट पीते हो? मैंने कहा नहीं डाक्टर गम्भीर से गंभीरतम हो गया | मैंने पूछा क्या बात है साब? तो डाक्टर बोला अगर तुम सिगरेट पीते होते, तो, सिगरेट छोड़ने से तुम को बहुत फायदा हो सकता था|

खैर मेरी समस्या ज्यों की त्यों बनी है ""और करे अपराध कोऊ और पाव फल कोऊ"" की तर्ज पर हाऊसिंग बोर्ड वालों ने की गलती और फल मुझे भुगतना pad रहा है| थोड़ी इतनी भी खुली जगह न दी कि एक नीबू का पेड़ लगा सकूं मिर्च बो सकूं मेरा तीन सौ रुपया मासिक बच तो सकता है मगर घोड़े की नाल नहीं मिल पा रही है|

Saturday, April 24, 2010

मां का नाम

मैंने अपनी आँखों से देखा है और अपने कानो से सुना है कि .......(पहले मैं अपना वाक्य ठीक करलूं )अपनी आँखों से देखा है क्या मतलब ?आदमी अपनी ही आँखों से ही देखता है यहाँ अपनी शब्द महत्वहीन है तो आँखों का भी क्या मतलब ?आँखों से नहीं तो और काहे से देखता है ? ऐसे ही कानो से सुना है क्या मतलब ? तो अपन ऐसा करते है "" मैंने देखा और सुना है""

सदियों से देखता,सुनता चला आ रहा हूँ ( पुनर्जन्म में विश्वास होने के कारण ) कि हर जमाने में पुत्र की पहिचान पिता के नाम से ही होती  चली आ रही है |विश्वामित्र ने जनक को राम लक्ष्मण का परिचय दिया ""रघुकुल मनि दशरथ के जाए ""| परशुराम आये तो भयभीत राजा लोग "पितु समेत कहि निज निज नामा "" उधर कवि केशवदास ने अंगद को रावण के पास पहुचाया तो रावण से कहलवाया ""कौन के सुत ? अंगद से जवाब दिलवाया ""बालि के "" तारा का नाम नहीं | अदालतों, तहसीलों में आवाजें लगती है फलां बल्द फलां हाजिर हो ,पक्षकार को माँ के नाम से नहीं बाप के नाम से पुकार लगती है ऐसे एक नहीं सैकड़ों ,हजारों ,लाखों ,करोड़ों (इससे आगे कहाँ तक लिखूंगा ) उदाहरण है | वैसे कुछ अपवाद भी है जैसे यशोदा नंदन ,देवकी सुत ,कौन्तेय , सुमित्रा नंदन , लेकिन ये अपवाद अँगुलियों पर गिने जाने लायक है |

माँ का दर्ज़ा पिता से ज़्यादा है सब जानते हैं | पिता की अपेक्षा  शिशु की देखभाल लालन पालन बेहतर तरीके से माँ ही   कर सकती है क़ानूनविद  मानते है |महिला पुरुष सामान है संविधान विशेषज्ञ मानते है |क्वचिदपि कुमाता न भवति कहने वालों ने पिता के बदले माँ का नाम लिखने की न तो परंपरा डाली और न ही बदलते परिवेश में किसी ने ऐसी पहल की | पुराने समय पर दोषारोपण अलबत्ता किया जाता रहा है कि भाई पहले स्त्री को संपत्ति  समझा जाता  था उसका क्रय विक्रय किया जाता था ,इसलिये उसका नाम लिखना उचित नही समझा गया । तो,भैया पहले तो आदमियों का भी क्रय विक्रय होता था |शैव्या अकेली नहीं विकी ,रोहिताश्व  बिका ,हरिश्चंद्र भी बिके ,यूसुफ़ बिके और जमीदारी प्रथा की समाप्ति तक खेतिहर मजदूर बिकते थे रहन रखे  जाते थे | (बिक तो वैसे आज भी रहे है पहले गरीब विकता था अब छत्रप,हमारे आका ,देश के कर्णधार बिक रहे है ।
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अच्छा दूसरी बात ,पिता के देहावसान के बाद बचपन से लेकर युवावस्था तक माँ ने नाना प्रकार के त्याग करके ,मेहनत मजदूरी करके ,दूसरों के कपडे सिल कर ,अपने पुत्र को पढ़ाया लिखाया वही पुत्र जब नौकरी के लिए आवेदन देता है तो लिखता है 'पुत्र स्वर्गीय श्री या सन आफ लेट श्री सो एंड सो’ क्या उस माँ का सारा त्याग तपस्या ,उसकी साधना इस बात की भी हकदार नहीं कि पुत्र माँ का नाम लिख कर उसे गौरवान्वित कर सके और खुद भी गौरव का अनुभव कर सके | माँ की मेहनत मजदूरी पर पढ़ लिख कर कोई प्रसिद्धि प्राप्त कराले या उच्च पद पर पहुँच जाए तो तो कहा जाता है पिता का नाम रौशन कर दिया | माँ भी खुश कि बेटा पिता का नाम रौशन कर रहा है {अरे भैया कछू बेटा तौ का करत हैं कै ट्यूब लाईट  पै  बाप कौ नाम लिखा देथें कैन लगे के  बाप को नाम रौशन कर रये हैंगे |}


अच्छा एक बात और, पिता ने पिता होने का कर्तव्य नहीं निभाया हो |जुआ और शराब की लत के कारण बेटे सहित उसकी माँ को गालियाँ और मारपीट के अलावा कुछ भी न दिया हो ,अपनी पुश्तेनी जायदाद बेच कर जुआ शराब के हवाले कर दी हो , और इतने पर भी संतोष न हुआ हो तो स्वर्ग सिधार गया हो |( इसीलिये मेरा मानना यही रहता है कि लड़की की उम्र कितनी ही क्यों न हो जाए ,जब तक वह अपने पैरों पर खड़ी न हो जाए या आर्थिक रूप से समर्थ  न हो जाये उसकी शादी नहीं की जाना चाहिए) | पुरुष प्रधान समाज से इनकार तो नहीं किया जा सकता ,प्राचीन काल में भी और वर्तमान समय में भी | आपको याद होगा  झांसी की रानी लक्ष्मी बाई , क्रांति के अग्रिम पंक्ति की नायिका ,जब कालपी पहुंची  तब वहां तात्या टोपे (रामचंद्र पांडुरंग राव )बांदा के नवाब ,शाहगढ़ ,बानपुर के राजा लोग और दमोह के क्रांतिकारी मौजूद थे उन सब में लक्ष्मी बाई सबसे योग्य थी  लेकिन तांत्या टोपे को छोड़ कर सबने  महिला के नेतृत्व तले काम करने से इनकार कर दिया था |

आज भी यदि लड़की डिप्टी कलेक्टर है और लड़का तहसीलदार है ,तो अव्बल तो सम्बन्ध होगा ही नहीं लड़का लड़की दोनो ही मना कर देंगे और किसी कारण बश ( मसलन मंगल ,शनी ,या छत्तीस गुण मिले वगैरा वगैरा,, वैसे मेरा मानना है की लड़के लड़की के गुण नहीं  अवगुण मिलाये जाना चाहिए मसलन लड़का पीता हो लडकी न पीती हो ,लड़का जुआ खेलता हो लड़की न खेलती हो लड़के की गर्ल फ्रेंड हो लड़की के बॉय फ्रेंड न हो तो कुण्डली कैसे मिलेगी और जहा तक मै समझता हूँ मेरी नजर में ये अवगुण है तो मिलान अवगुणों का होना चाहिए ) रिश्ता हो जाए तो उम्र भर लड़का हीन भावना से ग्रस्त रहेगा |होता है पत्नी पति की तरक्की देख कर खुश होती है और पति पत्नी की तरक्की पर हीन भावना से ग्रस्त हो जाता है ,फिल्म अभिमान के द्वारा आप सब लोग इस मानसिकता से परिचित हैं ही = तो ऐसे माहौल में पुरुष यह कैसे वर्दाश्त कर पायेगा कि उसका बेटा या बेटी उसके बदले माँ का नाम लिखें | यह तो उसके खिलाफ खुली बगावत हुई उसका पौरुष उसे यह सहन करने ही नहीं देगा जबकि जनाब हकीकत तो यह है (माफ़ करना ) कि मातृत्व स्वयम सिद्ध है और पितृत्व अनुमान है "| माँ के साथ तो बच्चे की जन्मत: अनिवार्य पहिचान स्थापित है ही, यदि उसका पिता अपने को प्रकट न भी करे तो समाज में उस बच्चे की पहिचान का संकट खडा नहीं होना चाहिए |

यही आशय दर्शाता एक लेख मैंने पहले भी लिखा था सन १९९३ में | इंदौर से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र "" नई दुनियां ""में दिनांक २१ फरवरी को कुछ जगह बच रही होगी तो मेरा लेख प्रकाशित कर दिया और पाठकों को शायद फुर्सत रही होगी तो उन्होंने पढ़  लिया ,बात ख़त्म |""बात तो आज की भी ख़त्म हो ही जायेगी गुड बैटर ,वेस्ट ,नाइस आदि लिख कर ।एकाध सदी बाद फ़िर कोई ऐसा ही लेख लिख जायेगा ,लोग पढ कर लिखेगे बहुत बढिया लिखा है लिखते रहिये ।

Tuesday, April 6, 2010

हाथ से गया

एक दिन कड़ाही मांजते हुए ,अचानक आकर मेरे लेखन कार्य में व्यवधान करती हुई बोलीं -सुनोजी मैंने एक गजल लिखी है । मैं हतप्रभ ! कहा- देखो पहले उच्चारण सही करो | गाफ़ का 'ग' और जीम का 'ज' नहीं चलेगा | नाराज हो गईं। क्या आप भी बाबा आदम के ज़माने की बातें करते है और गाने लगी "मैं का करूं राम मुझे बुड्ढा मिल गया "" फिर स्वत: बोलीं सुनिए जनाब वह ज़माना कभी का लद गया जब दोहे और चौपाइयों की मात्रा गिना करते थे जब छंद के गति ,विराम ,तुक हुआ करते थे और गजल में काफिया ,मक्ता ,मतला आदि हुआ करते थे, इससे कवि के मन में जो प्राकृतिक विचार उठा करते थे उनमे बनावटी पन आ जाता था |तुम्हारे पुरानो की आधी जिन्दगी तो मात्राएं गिनने मे ही चली जाती थी तभी चार छ दिन मे एकाध दोहा या शेर लिख पाते थे ।आज देखो एक एक दिन में चार चार कवितायें ,चार चार गज़लें।एक एक कवि के हिस्से मे एक एक खण्डकाव्य और महाकाव्य आजाये ।

गुस्सा तो मुझे भी आया किन्तु सांड को लाल कपड़ा न दिखाने के मद्देनज़र मैंने कह दिया’" इरशाद" |वो बोलीं =

जो देर रात घर आने लगे
रचनाओं में सर अपना खपाने लगे
पत्र रिश्तेदारों के बदले सम्पादक को लिखने लगे
दाडी बढ़ाके कवि जैसा दिखने लगे
कभी गीत लिखने लगे कभी शेर लिखने लगे
कभी कभी तो व्यंग्य भी लिखने लगे
नाम का पति हर काम से गया
समझ लो वो आपके हाथ से गया

मेरे मुंह से आह ,वाह कुछ निकले इससे पूर्व हे उन्होंने आदाब-अर्ज़ करने की स्टाइल में अपने सीधे हाथ से सर को दो बार छुआ |मेरी इतनी हिम्मत भी न हुई कि पूछूं यह ग़ज़ल है या कविता ? फिर एक दिन रोटी बेलते बेलते, बेलन हाथ में लिए हुए, अचानक भये प्रकट कृपाला की मानिंद प्रकट हुई और बोलीं अभी हाल ही हाल एक ताज़ा तरीन तैयार हुई है | दूध का जला छाछ को फूँक फूँक कर पीता है तथा कारे की पूंछ पर पांव नही धरना चाहिये के द्रष्टिगत मैंने मुक़र्रर इरशाद कह दिया |क्योंकि मैने एक श्रोता को कवि के हाथों पिटते देखा है जो कविता नही सुनना चाह रहा था ,और मैने एक कवि को भी श्रोता के हाथ से पिटते देखा है जो पूरी रचना सुन चुका था ।बोलीं=

खुले आम रिश्वत और भ्रष्टाचार
एक स्वामी यौनाचार में गिरफ्तार
अखबार अस्पतालों की खोलते रहे पोल
नहीं जूँ तक रेंगी बहुत बजाये ढोल

जब सब्र की इन्तहा हो चुकी तो मुझे कहना पड़ा यह कविता है या आप किसी समाचार पत्र की हेड लाइन पढ़ रही है |बोली यह कविता ही है और आधुनिक काल में इसे ही कविता कहते है ,कहकर मेरी तरफ हिकारत की नजर से देखते हुए ग़ालिब सा'ब का शेर पढने लगी "ग़ालिब वो समझे हैं न समझेंगे मेरी बात / दे उनको न दिल और ,तो दे ,मुझको जबां और ""एक पति और एक दफ्तर का मातहत दोनो मजबूर होते है कविता पर वाह वाह करने के लिए |यदि बॉस कहे सुनो श्रीवास्तव मैंने एक शेर लिखा है तो सुन कर बहुत जी चाहता है की कहें वाह हुज़ूर क्या लीद की है मगर कहना पडता है वाह साहब क्या बात है क्या तसब्बुर है क्या जज्वात है |

एक दिन अचानक पूछ बैठीं क्यों जी नेताओं का गावों से कितना ताल्लुक रहता है ? मैंने कहा जैसा चन्द्र का चकोर से , जल का मछली से, तो बोलीं, लेकिन वे तो वहाँ तब ही जातें है जब कोइ घटना घटित हो जाती है | मैंने कहा जाना ही चाहिए वह उनका कार्य क्षेत्र है ,बोलीं यदि वहां कुछ न होगा तो नहीं जायेंगे ?मैंने कहा क्यों जायेगे , तो बोली समझलो वह गाँव उनके हाथ से गया | मैं झुंझला गया =यार ! ये हाथ से गया ,हाथ से गया तुम्हारा तकियाकलाम है क्या ? कवियों को दूसरों की बात सुनने में कम दिलचस्पी होती है अत: वगैर मेरी बात का कोइ उत्तर दिए कहना शुरू कर दिया =

जो गावं ओलों की बर्बादी से बचा
जो गावं सूखा भुखमरी या बाढ़ से बचा
जिस गावं में कभी न कोइ हादसा हुआ
समझो वो गावं नेता के हाथ से गया

धोखे से मेरे मुंह से निकल ही क्या वाह क्या बात है तो वे हाय मैं शर्म से लाल हुई वाले अंदाज में गुलाबी होती हुई बोलीं इसे कहीं अखबार में छपने भेज दीजिये न | मैंने कहा अब साहित्य अखबारों में नहीं छपता वहाँ अभिनेत्रियों के बड़े बड़े फोटो और विज्ञापन छ्पते है और साहित्यिक पत्रिका के पेज भरने के लिए लम्बी रचना की जरूरत होती है और आपकी कविता छोटी है |बोली और बड़ी कर दूंगी |चार लाइन वकील के लिए लिख दूंगी =

नक़ल कहाँ पे मिलती है ,तलवाने कौन लेता है
मन चाही पेशियों के पैसे कौन लेता है
तामील कहाँ पे दबती है ,फ़ाइल कहाँ पे रुकती है
गर आपका फरीक बातें ये सब जान गया
समझो फरीक आप के हाथ से गया

मैने चुनावी वादा किया ,अच्छा भेज देते हैं साथ ही शराबी फिल्म की अमिताभी स्टाइल में कहा "" या तो प्रसिद्ध लेखक छपे या सम्पादक जिसको चांस दे / वरना इन पत्रिकाओ मे छ्प भला सकता है कौन ""और साथ में समझाइश भी दी कि ये पत्रिकाओं में छापने वाले

नए में नहीं प्रसिद्ध में विश्वास रखते है
सादा मे नही बोल्ड में विश्वास रखते है
छापने में कम, फ़ाड फैकने में विश्वास रखते है
खाने में कम लुढकाने में विश्वास रखते है
अगर यह बात सच है तो समझ लो मैडम
यह लिखा हुआ भी आपके हाथ से गया

Friday, March 26, 2010

सर दर्द

दुनिया में वैसे तो बहुत तरह के दर्द हैं ,मगर एक प्रमुख दर्द है सरदर्द | वैध्य तो यही कहेगा "अंत भारी तो माथ भारी "" मगर आजकल तो सरदर्द की गोलियां सरल , सुगम व् सस्ता इलाज़ है , एक दिन उन्होंने कहा गोलियां रिएक्शन करती है तो मैंने कहा चन्दन घिस कर लगाइए |बोले हमें मालूम है मगर "" दर्दे सर के वास्ते है अर्क संदल का मुफीद ,पर ,उसका घिसना ,घिस के मलना यह भी इक सरदर्द है |

कभी कभी कोइ पड़ौसी भी पड़ौसी के लिए सरदर्द हो जाता है |एक दिन से वे एक पेंचकस लेकर आये बोले इसे आप रखलें ,पूछा क्यों ? तो बोले मै अपने सारे औजार एक ही जगह रखना पसंद करता हूँ |

वैसे तो एक दिल का दर्द भी होता है ,बहुत शेर पढ़े गए बहुत कवितायें लिखी गई बहुत फ़िल्मी गाने बने |पुराने जमाने में दिल पर लिखे गए गानों का बड़ा क्रेज़ था यकीन मानिए ऐसे ऐसे गाने कि इस दिल के टुकड़े हज़ार हुए कोई यहाँ गिरा कोइ वहां गिरा । गोया दिल दिल न हुआ कार में लगा ग्लास हो जो एक्सीडेंट से बिखर गया हो |

हकीकत यह भी है जिन्हें दिल में दर्द होता है वह तो कोइ एसीडिटी ,गैस वगैरा का होता है और जिन्हें वास्तव में दर्द होता है वे तो बतला ही कहाँ पाते है । सिर और दिल के अलावा भी कई दर्द होते है कोई कहाँ तक गिनाये |""वो मुझसे पूछते है दर्द कहाँ होता है ? अरे एक जगह हो तो बतादूँ कि यहाँ होता है ""दर्द का विवरण आयुर्वेदिक ग्रंथों में ज्यादा पाया जाता है ।उस जमाने में आलपरपज पेन किलर नहीं होते थे |हर दर्द की अलग दबा हुआ करती थी । उन ग्रंथों में लिखा है दर्द चौरासी प्रकार के होते है | पुराने ग्रंथों में चौरासी का बड़ा महत्त्व है ,चौरासी प्रकार की बात व्याधियां ,चौरासी आसन ,चौरासी प्रकार के चक्षु रोग | फिर भी चौरासी से काम न चला तो चौरासी लाख योनियाँ |भाई कमाल है |

पुराना मरीज डाक्टर के लिये सर दर्द है ।जितनी दवाएं एक नया डाक्टर जानता है उससे ज्यादा तो पुराना मरीज सेवन कर चुका होता है सारी दबाओं के कंटेंट्स उसे याद होते है |इधर डाक्टर ने दबा लिखी उधर मरीज की प्रतिक्रया -सर इसमें तो डायजेपाम है या अल्प्राजोलम है दिन भर उदासी रहेगी ,सर इनमे तो आइब्रूफेन है जी मिचलायेगा |गजब है ,अभी गोली खाई नहीं है केवल पर्चा ही लिखा है और इनका जी मिचलाने लगा | होता है ,कुछ लोग ज्यादा सम्बेदनशील होते है वे पुस्तक या पेपर वगैरा में सब्जी आदि बनाने की रेसिपी पढ़ते है और उसमे पढ़ते है प्याज के बारीक टुकड़े करें ,तो उनकी आँखों में जलन होकर आंसू आने लगते है ।मैंने देखा है एक्स-रे डाक्टर को दिखाने के पहले मरीज सबसे पहले खुद एक्स-रे देख कर उसमे टूटी हड्डी तलाश करने की कोशिश करता है |वो तो यह अच्छा है कि एक्स-रे प्लेट पर नाम लिखा होता है मरीज का ,इसलिए वह प्लेट सीधी ही देखता है |मोडर्न आर्ट में चित्रकार का नाम लिखा होता है उससे ही तो समझ में आता है कि चित्र किधर से सीधा है |

एक और अजीब सरदर्द होता है बाबूजी आफिस से तो गुनगुनाते हुए चले आयेंगे और घर में प्रवेश करते ही ऐसी शकल बना लेंगे जैसे पहाड़ खोद कर आरहे हों ,सर पकड़ लेंगे ,धम्म से कुर्सी पर बैठ जायेंगे बेचारी बीवियां चाय बनाने चल देती है तो कहीं कहीं पर मैडम का सुबह सुबह भयंकर सरदर्द होता है पतिदेव चाय बना कर लाते हैं तब उन्हें दर्द से आराम मिलता है |पुराने ज़माने में तो चाय प्रयुक्त नहीं होती थी इसलिए बुजुर्ग कह गए "प्रभाते कर दर्शनम ""वरना वे भी यही कह जाते प्रभाते कप दर्शनम |

क़ानून का जानकार फरीक वकील के लिए सर दर्द होता है |जिन कामों को आमतौर पर वकील के मुंशी करते है वह काम यह स्वम फरीक ही निबटाना चाहता है मसलन नक़ल की दरखास्त लगाना ,रिकार्ड रूम से फाइल निकलवाना ,तारीख पेशी बढ़वाना और ये होशियारचंद समझते है कि मुंशी के पैसे बचा लिए ,जबकि तीन गुना राशि खर्च कर चुके होते है | मुकदमा और मकान बनबाना इनसे जिन लोगों का वास्ता पढ़ा है उनके सरदर्द का तो कुछ पूछो ही मत | चौबीस घंटे मकान का नक्षा ही दिमाग में घूमता रहता है |और कारीगर इतना कम एस्टीमेट बतलायेंगे कि आदमी झट व्यवस्था करले | और ऐसे मुकाम पर लाकर छोड़ते है कि फिर रकम बेचना पढ़े ,कर्ज लेना पड़े मकान तो पूरा करवाना ही है वरना बरसात आगई सब किया कराया बेकार हो जाएगा |

पुराना बाबू नए अधिकारी के लिए सर दर्द होता है ,ऐसे लोगों के खिलाफ कार्यबाही करना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना जैसा है इसलिए वह दर्द निवारक गोली खाना ज्यादा उचित समझता है |,एक अधिकारी ड्रायवर से नाराज रहते थे ,टूर पर जाते समय घने जंगल में जीप विगाड दी ।इसीलिये कहा गया है कि जब तक पार न लग जाओ नाव वाले से झगड़ा नहीं करना चाहिए |गिरधर की कुंडलियों में हमें मिलता है किन किन से आपको बैर नहीं करना चाहिए |""बामन ,बनियां, वैध्य, आपको तपे रसोई आदि चौदह लोंगों से "" मै कहता हूँ भैया किसी से तो मत करो बैर ।

Wednesday, March 10, 2010

दीवार के उस पार

आज सुबह मै मध्यप्रदेश का समाचार दैनिक भास्कर पढ़ रहा था कि एक समाचार पर मेरी नजर गई ""दीवारों के आर पार देख सकेगा मोबाइल ""दीवार के उस पार कौन है और क्या हो रहा है यह मोबाईल के द्वारा देखा जा सकेगा इस तकनीक के उपयोग के लिए नोकिया कंपनी से समझौता किया गया है |

पहले तो दीवारों के कान होने से ही लोग परेशान थे और अब 'एक न शुद दो शुद ' | वैसे आपको ध्यान होगा दीवार के उस पार देखे जाने वाला यंत्र हम हज़ारों लाखो वर्ष पूर्व तैयार कर चुके और उसका नाम "खिड़की " रख चुके है | इतना तो विश्वास है कि जिनके पास ऐसे मोबाइल होंगे वे दूसरों के घरों में तांका झांकी नहीं करेंगे क्योंकि कहा गया है कि जिनके खुद के घर कांच के होते है वे दूसरों के घर पत्थर नहीं फैकते ,कहा तो यह भी गया है कि जिनके घर कांच के होते है वे लाईट बंद करके कपड़े बालते है |

साहित्य दीवार से बहुत प्रभावित रहा है मसलन 'भाई मेरे हिस्से का आँगन भी तू ले ले मगर बीच की दीवार गिरादे ' किसी ने गाया 'दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है ' किसी ने ठंडी सांस लेकर आपबीती सुनाई 'दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की ,लोगों ने आने जाने के रस्ते बना लिए 'किसी ने तरस खा कर कहा 'वो धूप से बच कर चला आया तो है लिकिन ,गिरती हुई दीवार के साए में खडा है |ग़ालिब साहब कहा करते थे 'वे दरो दीवार का इक घर बनाया चाहिए ' उधर कोइ गाने लगा 'इस अंजुमन में आप को बार बार आना है ,दीवारों दर को गौर से पहिचान लीजिये 'किसी ने "दीवार "नाम के फिल्म ही बना दी तो कोई प्रेम में असफल दुखी हो गया 'चांदी की दीवार न तोडी प्यार भरा दिल तोड़ दिया '|

साहित्य ही नहीं देख का प्रमुख स्तम्भ न्याय पालिका भी इससे प्रभावित है |पचास फी सदी दीवानी मुकदमो की बजह दीवारें है |रात दिन लेख ,समाचार, पत्र प्रकाशित होते है- अदालतों में इतने मुकदमे लंबित है यह भी कहा जाता है कि जस्टिस डिलेड -जस्टिस डिनाइड " हालांकि दीवारों के साथ न्यायाधीश गण की कमी भी इसका कारण हो सकता है आपको सं १९७१ का सेन्सस याद होगा जिसके अनुसार प्रतिमिलियन जनसंख्या पर जजेज का रेशो अपने यहाँ १०.५ था जबकि यह रेशो आस्ट्रेलिया में ४२.६,इंग्लेंड में ५०.९ .केनेडा में ७५.२ तथा यूनाइटेड स्टेट में १०७ था और वर्तमान में भी कोइ विशेष बढ़ोतरी इस क्षेत्र में नहीं हुई है |खैर यह अपना न तो सब्जेक्ट है न क्षेत्र |लेकिन इतना अवश्य है दीवारों को गिरा दीजिये मुकदमों की संख्या आधी रहा जायेगी ,इन दीवारों में पार्टीशन वाल .नफ़रत की दीवार चांदी की दीवार ,कुरीतियों की दीवार सब शामिल है |

जहां तक नफ़रत की दीवार का ताल्लुक है - मैंने बचपन में एक एक कविता पढ़ी थी ""बीबी से शौहर ,शौहर से बीबी है बदगुमाँ, है बाप का बना हुआ बेटा उदूंजां , हिन्दोस्ताँ के घर हुए खाली सुकून से , हैं दीवारें रंगी हुई पड़ौसी के खों से " यह बचपन में पढ़ी थी आज मै रिटायर्ड हूँ कमोवेश वही हालात आज भी है | वैसे हम दुःख को रोकने अपने चारों ओर दीवार खडी कर लेते है वे दीवारें सुख को भी बाहर ही रोक देती है

दीवार गिराते ही व्यक्ति पूर्णता शान्ति ,स्थिरता प्राप्त कर लेता है | जो आता है उसे आने दो जो जाता है उसे जाने दो .जो हो रहा है उसे देखते रहो गवाह बन कर | पुराने जमाने में लोगों को दीवारों में चुनवाया जाता था यह काम बड़े जोरशोर से होता था और दीवारों में धन गाढ़ने का काम चोरी छुपे होता था |कई जगह पुराणी इमारतों की दीवारे गिरतीं है तो धन निकलता है ,इसे दफीना कहा जाता है ,कई लोग पुराने मकान ,खंडहर महल में दफीना खोदने तैयार रहते है , त्तान्त्रिकों के चक्कर में दिन रात लगे रहते है ,इन्हें हर जगह दफीना ही नजर आता है ,सपने भी उसी के देखते है ,अगर इन्हें सपना आजाये कि दीवार में दफीना है तो यह माकन मालिक की चार इंची पार्टीशन की दीवार तोड़ डालें |

लोगों ने गढ़ा धन देखने के काजल बना लिए है - अभी ये लोग काजल के वारे में कम ही जानते है |एक गाना है ""छुप गए तारे .........तूने काजल लगाया दिन में रात हो गई ""गोया काजल लगाते ही दिखना बंद . जब कुछ दिखाई नहीं देगा तो रात ही तो कहलायेगी |किसी सूरदास से पूछो भैया दिन है कि रात ?बोले -भैया हमें तो रात दिन एक से ही हैं | अत: ऐसा काजल न लगा लेना कि दिन में ही रात हो जाए |

वैसे जब क़ानून बनाता है तो उसको तोड़ने के दस तरीके भी ईजाद हो जाते हैं , हो सकता है ऐसा सीमेंट ,बार्निश ,पालिश तैयार हो जाए जो इस तकनीक को विफल करदे |

Saturday, February 13, 2010

भाषा और संस्क्रति

बोली संस्क्रति का एक महत्वपूर्ण भाग है,संस्क्रति जानने के लिये भाषा और बोली के महत्व से इन्कार भी नही किया जा सकता है अर्थात प्रुरातात्विक मानवशास्त्री खुदाई से प्राप्त बस्तुओं से जीवन शैली का अन्दाजा भले ही लगालें मगर उस वक्त बोली कैसी रही होगी यह तो कठिन ही होगा ।

इतना तो निश्चित है कि ,भाषा और बोली का प्रभाव आम जन पर साहित्य की अपेक्षा सिनेमा का ज्यादा रहता है भाषा के साथ हमारे ही घर मे हमारे ही द्वारा क्या हो रहा है ?भाषा के उपयोग, और उसके प्रचार के लिये सिनेमा से सशक्त माध्यम दूसरा नही है ,इसमे उपयुक्त डायलाग और भाषा तुरन्त ग्रहण कर ली जाती है ।लगे रहो मुन्नाभाई फ़िल्म बनी ।गांधीगिरी शब्द पर आपत्तियां हुई , जबकि इससे बहुत बहुत सालो पूर्व 1968 में श्रीलाल जी शुक्ल ,रागदरबारी मे गांधीगिरी शब्द प्रयोग कर चुके है उस जमाने मे इस शब्द पर आपत्ति क्यों नही हुई , मतलब साफ़ है उपन्यास या साहित्यिक पत्र पत्रिका ,कहानी आदि से ज्यादा प्रभावकारी यह माध्यम है सिनेमा ।यह बात जुदागाना है कि उपन्यासों पर फ़िल्म बनाई जाती है ।बात सिनेमा मे प्रयुक्त भाषा के सम्बन्ध मे है ।इस माध्यम के माध्यम से हमारे नौनिहाल भी ऐसी भाषा से परिचित हो रहे है जिसका अर्थ वे स्वं नही समझते है ।

जिस तरह किसी अभिनेत्री से पूछा जाये कि आपके वस्त्रों का बजन कम क्यो हुआ -बोली ,वह सीन की मांग थी , कमाल है सीन भी माग करता है । मुझे ऐसा कुछ लिखना पड रहा है जिसकी वजह से मैं शर्मिंदा हूं और दुखी भी मगर लेख की माग है मै अत्यंत क्षमा प्रार्थी हूं ।

फ़िल्म आन मे परेश रावल के मुंह से कहलवाया गया जब इनकी (शत्रुघ्नसिन्हा की ) ’ इनकी मोटर सायकल जिधर से निकल जाती थी लोगों की फ़ट जाती थी’ । खोसला का घोसला फ़िल्म मे नवीन निश्चल से कहलवाया गया ’मेरी फट रही है यार’, फ़िल्म अपहरण मे अजय देवगन से कहलवाया गया ’हमारा आवाज ऊंचा होगया तो लोगों का फट जायेगा’ ।मुन्नाभाई एम।बी.बी.एस मे संजयद्त्त कहते है ’इतने लोग एक बाडी को घेर कर खडॆ है क्या घंटा दिखाई देगा’ ।लगे रहो मुन्नाभाई मे जब देश की तरक्की की बात चलती है तो संजयदत्त कहते है ’’अरे क्या घंटा तरक्की हो रही है ’ । फ़िल्म ओंकारा ,गंगाजल मे तो खैर गालियो की भरमार है ही ,कुछ डायलाग भी अभद्र । एक और फ़िल्म बनाने वाले आये थे उन्होने एक फ़िल्म बनाई अन्धेरी रात मे दिया तेरे हाथ मे -द्विअर्थी संवादों के परिपूर्ण । लेखक ने यदि लिख दिया है तो अभिनेता बोलने से मना नही कर सकता वहां पैसे का सबाल है ,असलियत दर्शाने की बात है , और उस पर तुर्रा यह कि जनता जो देखना चाहती है वह दिखाते है जो सुनना चाहती है वो सुनाते है ।

स्वर्गीय राजकपूर की फ़िल्म सत्यं शिवम सुन्दरम को लेकर उन पर जब मुकदमा चला तब उन्होने यही प्ली ली कि इसे तो सेंसर बोर्ड पास कर चुका है उस वक्त न्यायाधिपति श्रीयुत क्रष्णा अइयर ने यह कहने के साथ कि A view of the film may tell more than volumes ot evidence यह भी कहा था कि सेंसर वोर्ड विधि-विधान से ऊपर नही होता । क्या ऐसा नही लगता कि फ़ूहड और अश्लील भाषा संस्कार मे नही आरही है ,शोले फ़िल्म - हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर है , हमारा नाम सूरमा भोपाली ऐसे ही नही है , अरे ओ साम्भा आज भी प्रयोग मे लाये जा रहे है तो क्या यह संभव नही कि ५-६ साल का बच्चा अपने घर,मम्मी पापा की मौजूदगी मे वगैर उसका अर्थ जाने उपर्युक्त भाषा प्रयोग करे ।

।और यदि कुछ टिप्पणीकार यह मानते है कि मेरे लेख के पद क्रमांक चार मे कुछ भी अभद्र या असभ्य नही है तो मै निवेदन करूंगा कि यदि उनका छै या सात साल का बच्चा यह कहता है ,कि पापा, मम्मी के मारे आपकी फ़टती क्यों है या यह कि आपने तो मुझे मात्र पांच रुपये दिये है इनसे मे क्या घंटा नाश्ता करूंगा तो बतलाइये आपको कैसा लगेगा ।

Saturday, January 23, 2010

तिलक समारोह

तो साब लडकी पसंद आगई कुंडली मिल गई - अब आप शादी किस स्तर की चाहते है ?
अरे स्तर काहे का साहब -हम अपनी बहू थोड़े ही ,बेटी ले जा रहे है ।
मगर फिर भी
आपने भी तो कुछ संकल्प किया होगा
हमारा तो पाँच तक का इरादा है
अरे सा’ब पाँच में तो क्लर्क -पटबारी तक नहीं मिलते -
पाँच के साथ पूरा सामान भी तो दे रहे है ।
सामान तो अलग रहता ही है ।कौन सा नया काम कर रहे हो ।सामान दे रहे हो तो अपनी लड़्की को दे रहे हो । आप ऐसा करो, दस और सब सामान करदो
ज्यादा हो जायेगा साहब, इसके बाद मेरी दो बेटियां और है सर पर
ये आपकी समस्या है आप जाने
ठीक है साहब जैसी आपकी मर्जी
हां एक बात और हम बरात लेकर आयेंगे बस का ,ट्रेन का किराया स्वागत ,बरात ठहराना आपको मेह्गा पडेगा,आप एक काम करो लडकी को लेकर यही आजाओ अपन मैरिज हाल बुक बुक कर लेंगे एक डेड के आस पास खर्च आएगा वह आप वहन कर लेना और रिसेप्शन देंगे उसका आधा आधा अपन कर लेंगे ।

मगर सा’ब आपके तो हजार पांच सौ आदमी होंगे हमारे तो दस बारह लोग ही इतनी दूर आपायेंगे
सो तो है मगर यही तो हो रहा है आज कल
ठीक साहब

हां एक बात और कैश हमे एक मुश्त टीका मे चाहिये हमे भी तो कुछ बन्दोबस्त करना है
आपकी मर्जी ,हमको तो देना ही है कभी लेलो ।

टीका बिभिन्न स्थानो में अलग अलग नाम से जाना जाता है कही तिलक समारोह, कही रिंग सेरेमनी,कहीं इंगेजमेन्ट , कही सगाई उद्देश्य सबका एक ही है कि शादी के पहले लडकी वालो से पैसे लेना ताकि रकम खरीदना और भी बहुत इन्तजाम करना । टीका में लड़के के पूरे परिवार को कपडे मगाये जाते है । मिठाई ,फल लड्की वाला स्वेच्छा से लाता है । टीका होते ही लडका दूल्हाराजा हो जाता है ।हर मां की इच्छा होती है कि उसका बेटा बड़ा अफ़सर बने ,अमीर घराने में उसका रिश्ता तय हो ,कैकैई ने भी तो हर मां की तरह अपने बेटे भरत को टीका ही मांगा था ।मगर देखिये आज लड़की का नाम सुमित्रा ,कौशल्या, जानकी मिल जायेगा मगर कैकैई नाम कोई नही रखता -ऐसा कौनसा गुनाह किया उसने ,बेटे का हित ही चाहा ,यह बात कही जा सकती है कि उसने दूसरे बेटे को बनबास मांगा ,जो आवाश्यक भी था राजा को हस्तक्षेप रहित राज्य करना चाहिये , उसने हमेशा के लिये नही केवल एक निश्चित अवधि के लिये मागा था क्योंकि १२ साल तक कोई, किसी स्थान पर ,स्थान के मालिक की जानकारी मे, कब्ज़ा रखता है तो विरोधी आधिपत्य ( एडवर्स पजैशन ) का अधिकारी हो जाता है ।

मै कहां की बात कहां ले जाता हूं ,हां तो टीका मे सारे परिवार के कपड़े ,मिठाई,फल ,ड्राय फ्रूट ,के अलावा, लडके वालों के रिश्तेदारों से, लडकी के पिता की मिलनी करबाई जाती है ,गले मिलो और हाथ मे लिफ़ाफ़ा देते जाओ ,बेचारा डरता डरता लिफ़ाफ़ो की तरफ़ देखता रहता है कम न पड़ जाये ,पैसे तो है मगर लिफ़ाफ़ा खरीदने तो बाजार जाना पडेगा और लड़्के वाला ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलनी कराना चाहता है।हर पास या दूर के रिश्तेदार ,पहिचान वाले को बुला बुला कर मिलनी कराता है ।
मैने सुना है मिलनी पहले भी होती थी मगर पहले लडके के मामा से लडकी के मामा की , फूफा से फूफ़ा की ,चाचा से चाचा की , ,जीजा से जीजा की मिलनी कराई जाती थी । ऐसे ही एक आयोजन मे एक लडका नशे में बिल्कुल टुन्न हो रहा था मिलनी वाले स्थान पर पहुंचा और बोला में दूल्हे का यार ,दुलहन के यार को बुलाओ मै भी मिलनी करूंगा ।

Tuesday, January 12, 2010

सरप्राइज इन्स्पेक्शन

मै अज्ञातबास पर ,मध्यप्रदेश के गुना नगर मे, बोहरा बागीचा स्थित अपने घर मकान नम्बर १२१ में पन्द्रह दिन के लिये गया था ।कोई कह सकता है बल्कि कहना ही चाहिये कि यह कैसा अज्ञातबास ।

यह उसी तरह का अज्ञात बास है जिस तरह आज-कल सरकारी कार्यालयों मे सरप्राइज इन्सपेक्शन होते है । पीए साहब का ( पिये हुये साहब का नही बल्कि उनका एक असिस्टेंट होता है उसका ) अर्ध-शासकीय पत्र आता है ( ईमेल की सुविधा होते हुए भी )कि सरकिट हाउस ( या डाक बंगला जो भी वहां पर उपलब्ध हो )मे दो कक्ष आरक्षित करा दिये जायें, बड़े साहब परिवार सहित सरप्राइज इन्स्पेक्शन को पधार रहे है ।लंच मे क्या क्या होना चाहिये यह या तो अर्ध-शासकीय पत्र मे ही लिख दिया जाता है अथवा फ़ोन पर सूचित कर दिया जाता है ।

चूंकि चपरासी से लेकर छोटे साहब तक सभी को यह पता रहता है कि दिनाक इतने को आकस्मिक निरीक्षण होना है तो उसकी तैयारियां शुरू हो जाती है ।उस दिन चपरासी प्रोपर ड्रेस पहन कर आते है ,फ़ाइलों की धूल झाड़ी जाने लगती है ।बाबू साहेबान को एक टेबिल और टेबिलक्लाथ उपलब्ध होता है तो अक्सर गंदा रहता है उसे धुलवालिया जाता है और उसका फ़टा हुआ भाग अपनी तरफ़ कर बिछा दिया जाता है और बेतरतीब फ़ाइले ठीक से जमा दी जाती है ।

बाबू साहबान को जो टेबिल उपलब्ध होती है उसमे दराज होती है जिसमे शामलाती पेपर भरे रहते है जिन्हे फ़ुरसत मिलने पर संबन्धित फ़ाइलों मे लगा देने का विचार रहता है और चूंकि फ़ुरसत कभी मिलती नही इसलिये इनकी संख्या बढ़्ती रहती है तो कागज दराजों मे रखे नही जाते बल्कि ठूंसे जाने लगते है । ,इन्स्पेक्शन की जानकारी मिलने पर सबसे पहले इन कागजों को एक पोटली मे बांध कर अदर्शनीय स्थल पर रख दिया जाता है क्योंकि ऐसा सुना गया है कि किसी जमाने में बड़े साहब ने दराज खुलवा कर पेंडिंग कागजात की लिस्ट बनवा ली थी और उन कागजात मे कुछ पांच पांच और दस दस के नोट भी मिले थे - जिसके वाबत उनका स्पष्टीकरण यह था कि यह रुपये उनकी तनखा के है जो वे अपनी पत्नी से छुपा कर दफ़तर में दराज मे रखते है ।भुक्तभोगी बडे साहब ने उनका स्पष्टीकरण मान्य किया था ।

सरप्राइज इन्सपेक्शन कराना और पी एस सी की परीक्षा मे समानता इस मामले मे है कि कब क्या जानकारी मांगबैठें या कौनसा प्रश्न पूछ लें ।मध्यप्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा मे रामायण और महाभारत सीरियल के निर्माताओं के नाम पूछे गये वहां तक तो ठीक था ,फ़िल्म शोले मे गब्बरसिंह के पिता का नाम पूछा गया, ऐसे ही इन्सपेक्शन मे हर जानकारी तत्काल उपलब्ध कराने के लिये तैयार रहना होता है ।बडे साहब आते है ,सर्किट हाउस मे विश्राम करते है लंच लेते है और जो भी दर्शनीय स्थल उस क्षेत्र मे हो ,के दर्शन कर सपरिवार वापस लौट जाते है और बाबूसाहबान उनके दर्शन लाभ से बंचित रह जाते है क्योंकि छोटे साहब डाक बंगले पर ही सारी जानकारी दे चुके होते है ।

तो यह तो हुआ सरप्राइज ।इसकी हिन्दी होती है आकस्मिक ,औचक , अचानक । अचानक क्या क्या हो सकता है किसी को पता नही रहता है । अचानक पर से मुझे याद आरहा है कि एक खेल हुआ करता था आंख मिचौनी ।उसमे अचनक कोई पीछे से आकर आंखें अपने हाथो से बन्द कर लेता था ,और जिसकी आंखें बन्द की गई है उसके द्वारा आंखें बन्द करने वाले का सही नाम बतलाने पर ही वह आंख पर से हाथ हटाता था ।पति पत्नी के बीच हर प्रकार का हास परिहास हो सकता है लेकिन यह आंख मिचौनी का खेल पति पत्नी के मध्य वर्जित है ।क्यों है ? यह तो पता नही मगर हो सकता है कि ,इसलिये वर्जित किया गया हो कि मानलो पति ने आकर पीछे से आंखें बन्द की और पत्नी के मुह से कोई और नाम निकल गया तो ?