Saturday, November 13, 2010

एडजस्टमेंट

मात्र काल्पनिक, किसी जीवित या मृत व्यक्ति का इससे कोई लेना देना नहीं है।

आफिस से आने में जरा देर क्या होगई देखा दरवाजे पर खडी खडी रो रहीं है ,देखते ही चेहरे पर एक सुकून आया ,एक तसल्ली हुई,, आज न जाने कौन से पुण्य उदय हुये कहकर और ,जाकर सीधे भगवानजी के चित्र के सामने साष्टांग दण्डवत , प्रभू तेरा लाख लाख शुक्र है ,बेटे को आवाज दी जा जल्दी से 21 रुपये की मिठाई ले आ भगवान को प्रसाद बोला था । मगर हुआ क्या ? एक तो आफिस से आने में देर करदी और फिर पूछते हो हुआ क्या । लेकिन इतनी घबराई हुई क्यों हो, रो क्यों रही थी ? अभी सामने वाले हैन्डपम्प पर कुछ औरते बातें कर रही थी कि एक बेवकूफ किस्म का पागल सा दिखने वाला आदमी बस से कुचल गया ऐसे में ही तुमने देर करदी अब तुम्ही बताओ ?

दौनों को तसल्ली थी एक को सोहाग बच जाने की और दूसरे को खुद के बच जाने की ,दौनो डबडबाई आंखों से एक दूसरे को देर तक देखते रहे तब तक बच्चा पूरी मिठाई खा गया ।

एडजस्टमेंट उसे कहते हैं कि
तू हंस रहा है मुझपे मिरा हाल देख कर-और फिर भी मै शरीक तेरे कहकहों में हूं
एडजस्टमेंट किया जाता रहना चाहिये ।कलम उठाई कुछ कविता लिखने के लिये लिखा जिये तो जियें केसे संग आपके इतने में ही वह चाय लेकर कमरे में आई फौरन "" संग"" शव्द काट कर "" बिन"" कर दिया । कौन क्या कहना चाह रहा था कौन क्या लिखना चाह रहा था और उसे क्या कहना पडा और क्या लिखना पडा यह हर कोई तो समझ नहीं पाता

सिर्फ शायर देखता है कहकहों की असलियत
हर किसी के पास तो ऐसी नजर होती नही

कभी कभी एडजस्टमेन्ट मुश्किल भी होजाता है। शिवचालीसा का पाठ कर रहा था। हर देवी देवता के चालीसा मौजूद है और कुछ भक्तों ने तो कुछ मुख्यमंत्रियों के चालीसा भी तैयार किये थे फिर पता नही कि बच्चों के कोर्स में वे रखे गये या नहीं। खैर तो शिव चालीसा में एक लाइन आती है ले त्रिशूल शत्रु को मारो इस लाइन पर आवाज जरा उंची होगई कि " ले त्रिशूल शत्रु को मारो" तो किचिन में से आवाज आई कुछ भी करलो मेरा कुछ नहीं विगड सकता हैं । कहा ये तुम्हारे वारे में नहीं है इसका तात्पर्य ये है कि तुम्हारे शत्रु को मारे फिर किचिन में से आवाज आई मतलब को एक ही हुआ , मै कहां फेमली पेन्शन के लिये दर दर भटकती फिरुंगी ।एसी ही आपवादिक परिस्थियों के लिये रहीम ने कहा होगा कह रहीम कैसे निभे केर बेर को संग होता है

कभी कभी ऐसी परिस्थियां हो जाया करती है कि कहा भी न जाये चुप रहा भी न जाये' तब बडी दिक्कत हो जाती है क्योंकि डाक्टर बशीर बद्र साहेब का शेर है मै चुप रहा तो और गलत फहमियां बढीं,// वो भी सुना है उसने जो मैने कहा नहीं
l वैसे आमतौर पर एडजस्टमेंन्ट किया जाता है और क्या किया जाना चाहिये , अब यदि आफिस का बॉस कहे कि सुनो श्रीवास्तव जी मैने एक शेर लिखा है तो सुन कर यह तो नहीं कहा जासकता कि वाह हुजूर क्या लीद की है बल्कि यही कहा जायेगा वाह साहव क्या बात है एक बार फिर सुनाया जाय ।मुशायरे की भाषा में इसे मुकर्रर कहते है। एक शायर माइक पर आया और कहा हाजरीन अपनी गजल के चंद शेर पेशे खिदमत है तबज्जो चाहूंगा एक श्रोता ने पहले ही कह दिया मुकर्रर अपना सिर पकड कर शायर अपनी जगह पर जा बैठा।
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Monday, November 8, 2010

चमत्कार

चमत्कारों से अपरिचित लोग उन्हे कई नामों से से सम्बोधित करते है तथा कई दफे बहुत वारीकी से देखने के वाद भी कोई चीज समझ में नहीं आती तो उसे हाथ की सफाई, जादू, कालाजादू, मेस्मेरेजम, नजर बांधना, ट्रिक फोटोग्राफी कैमिकल्स का सम्मिश्रण आदि इत्यादि कह दिया जाता है - लेकिन चमत्कार वह होता है जिसे सभी प्रकार के लोग देखे भी और माने भी । मंत्र की शक्ति का तो पता नहीं मगर मंत्री में राजा को रंक और रंक को राजा बनाने की शक्ति जरुर होती है। मैने देखा है मंदिरों में ज्यादातर भगवान की मूर्तिया खडी निर्मित की जाती है ।मैने एक पुजारी से पूछा यार तुम्हारे भगवान हमेशा खडे क्यों रहते है उसने बडी सादगी से कहा वो क्या है साहब इधर मंत्री वगैरह आते रहते है '

।मुझे पता नहीं कि मंत्र में इतनी शक्ति होती है या नही कि वह किसी चलती हुई मशीनरी को रोकदे।

ट्रेन जब स्टेशन से रवाना होने को हुई तो एक लंगोट धारी ??-उसमें प्रविष्ठ हुये । रेल में सफर करने वाले जानते है कि यात्रियों के टिकिट की चैकिंग कभी स्टेशन पर खडी गाडी में नहीं होती है -चलती गाडी में होती है क्योंकि एक तो लोग चढ उतर रहे होते है दूसरे कोई स्टेशन पर उतर कर सह सकता है कि मै बैठा ही न था। चलती गाडी में बिना टिकिट यात्री चैकर के पूर्णरुपेण वश में हो जाता है चलती ट्रेन में से उतर न सकने के कारण उसे चेकर की मन की मुराद पूरी करना पडती है। मगर उस दिन जो नहीं होता वह हुआ चेकिंग स्टेशन पर खडी गाडी में हुआ । चेकर को आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास था कि ??के पास टिकिट नहीं है और वास्तव में होता भी नहीं है। दो तीन मिनट रहगये थे गाडी रवाना होने में कि चैकर और ??में झगडा होगया ।चैकर अपनी जिद पर अडा था कि टिकिट लेना होगा और वे एक विशेष प्रकार की गाली जो आम तौर पर ये लोग उच्चारित करते हैं उच्चारित करते हुये कह रहे थे हमसे टिकिट मांगता है। बात में दम हो या न हो मगर आवाज में दम थी ।बात वढना थी सो बढ गई। ??रेल से स्टेशन पर उतर आये और जोरदार आवाज में कहा अब तू गाडी लेजाकर बतलादे ।

अब देखिये जनाब कि गार्ड हरी झंडी दिखा रहा है ट्रेन जोरदार शीटी की आवाज निकालती है स्टार्ट होती है और थोडा हिल डुल कर फिर रुक जाती है। उस में विभिन्न जाति, सम्प्रदाय के लोग थे -परम आस्तिक और घोर नास्तिक भी थे। मन्त्र शक्ति में विश्वास करने वाले और उनके विरोधी वैज्ञानिक भी उस गाडी में सवार थे । ट्रेन की आधी सवारी स्टेशन पर उतर आई थी । लोग आग्रह कर रहे थे कि चैकर माफी मांगले । मगर वह भी पक्का गवर्नमेन्ट सरवेन्ट था माफी क्यों मांगू मैं अपनी डयूटी देरहा हूं उसे तनखा इसी बात की मिलती है डयूटी न करुं तो सरकार तनखा देती है और करुं तो मजबूर यात्री और शौकिया यात्री सरकार से भी ज्यादा देते है। ड्राईवर ने हाथ जोडे भैया मांगले माफी क्या विगडता है गाडी लेट होरही है गार्ड ने हाथ जोडे मगर जिद यह कि इसने टिकिट मांगा तो क्यों मांगा । भीड व्दारा अनुनय विनय करने के बाद बमुश्किल-तमाम चैकर ने चरणों में गिर कर माफी मांगी ।और देखते देखते गाडी थोडी हिलडुल कर स्टार्ट होगई । ?? की जयकारे की आवाज गूंजने लगीं ।
स्टेशन के पास ही शासकीय रिक्त पडी भूमि पर पहले कुटिया बनी फिर विशालकाय भवन, धर्मशालायें बनी ।लोगों की श्रध्दा धन के रुप में प्रकट हुई जो जितना श्रध्दावान था उसने उतना ही चढावा चढाया और सिलसिला सतत जारी रहा। अब ?? करोडों में खेल रहे है और बेचारे रेल के ड्राईवर गार्ड और चैकर को मात्र एक-एक लाख रुपये में ही संतुष्ट कर दिया गया