Sunday, February 27, 2011

बुडढा मिल गया

संगम में एक गाना था ,हरिव्दार में नहीं बल्कि फिल्म संगम में
मै का करूं राम मुझे बुडढा मिल गया
।उस गाने को बार बार दुहराती है जब भी किसी बात पर इनका विरोध करो मै का करूं राम बहुत समझाया हंसी में मजाक में व्यंग्य में ताने के रुप में उलाहने के रुप में बार बार इस गाने को नहीं गाना चाहिये इससे पुरुष का मनोबल गिरता है वह मानसिक दुर्वलता का शिकार हो सकता है मगर नहीं साहब। एक बात तो है एक उमर के बाद आदमी सठिया तो जाता है।आश्चर्य तो होगा यह जानकर कि बुडठा बुडढो की बुराई कर रहा है ।तो मेरा कहना यह है कि

यूं .........कि जब धन्नो घोडी होकर तांगा खीच सकती है , वसंती लडकी होकर टांगा चला सकती है तो मै बुडढा होकर बुडढों की बुराई क्यों नहीं कर सकता । वैसे हकीकत वयान करना बुंराई करना थोड़े ही होता है ।
असल में होता क्या है कि ये लोग एक उम्र के वाद सठिया जाते है । सठ को शठ भी सुविधा और संतुलन की दृष्टि से प्रयोग किया जासकता है । शठ सुधर नहीं सकते एसी बात भी नहीं है।
शठ सुधरहि सत संगति पाई कैसे वो ऐसे कि
पारस परस कुधात सुहाई ।

मगर इन बुडढो का आलम यह है कि
तुलसी पारस के छुये कंचन भई तलवार
पर ये तीनो न गये धार मार आकार ।

और उसका भी कारण है ये हमेशा अकडे ही रहे झुके तो केवल बास के सामने वाकी बीबी और बच्चों के लिये तो अकडे ही रहे कमर झुक गई मगर अकड जाती नहीं । रस्सी जल गई पर बल न गया।
वैसे सतसंगति के लिये यहां पारस की कमी भी नहीं है।सतसंगत के लिये टीवी चैनल है ,विगबास है, उसमें विदेश से पधारी हुई बाला एडरसन,बेचारी यहां आई अपना घर परिवार छोड कर सतसंगति देने और उनको मिला क्या मात्र सात करोड। सुना है उनका स्वागत करने एक झलक पाने बहुत तादाद में लोग हवाई अडडे पर गये थें ।फिर अपने यहां क्या कम पारस है अपने यहां भी इन्साफ वाली बाई,और भी अनेक हैं जिनकी विचारधारा यह है कि पुरुष जब कपडे उतार सकता है एक अभिनेता है वे इसी तलाश में रहते है कि कब बनियान फैक कर गाना गाने को मिले आखिर मसल्स बनाये किस लिये है जिम जा जा कर तो फिर लडके और लडकी यह भेद भाव क्यों यहां समानता क्यों नहीं । मगर बुडढों को ये बात समझ में नहीं आती क्योंकि उन्हौने वह जमाना देखा होता है जब बेटी पूछती थी मां जीन्स पहिन लूं क्या तो मां कहती थी मत पहिन बेटी लोग क्या कहेंगे । आज जब बेटी कुछ पहिनने को पूछती है तो मां कहती पहिन ले बेटी कुछ तो पहिन ले।

हां तो मै इन बुडढों की बात कर रहा था ये अकडूचंन्द सौने के होकर भी तलवार बने रहते है । इनकी बातें सुनो कुन्दनलाल और नलिनीजयवन्त की बाते करेंगे साथ ही हमारे जमाने में एक रुपये का सोलह सेर गेहूं आता था । अरे आता होगा हमे क्या लेना देना ।अर्ली टू बैड वाली बात करेंगे अरे इनको कौन समझाये जल्दी सोना जल्दी उठना उस जमाने की बाते हैं आज तो असल चैनल तो रात 12 बजे के बाद ही शुरु होते है। उस पर तुर्रा ये कि घर वाले हमको नजरअंदाज करते है हमारी उपेक्षा करते है और तो और वो भी सात फेरों वाली बच्चों की ही तरफ बोलती है । अरे भइया पहले वह डर के कारण तुम्हारी तरफ बोलती थी अब डर खत्म । बच्चे हो गये कमाने वाले और जमाने का कायदा है आपने भी देखा होगा गमले में पौधे लगाते है पानी डालने का ध्यान रखा जाता है मैने तो नहीं देखा किसी को कि किसी ढूंढ मे पानी डाल रहा हो तो ये समझते ही नहीं कि हम ठूंठ हो चुके है ।

और इनकी बाते देखों जैसे सारे संसार काअनुभव इन्हे ही हो और डाई करके कहेंगे ये कि ये वाल घूप में सफेद नहीं हुये कमाल है। जहां तक मै समझता हूं पुराने लोगो को न तो बात को समझने की क्षमता होती थी न बोलने का तरीका आता था ।
एक ही लेख में ज्यादा बुराई भी नहीं करना चाहिये शेष बुराई आगे के लिये छोडते है।

Saturday, February 19, 2011

गैर हाजिरी मुआफ

जब मेरा स्वास्थ्य खराब हुआ था तभी मै समझ गया था कि न जाने कितने हाथों से गुजरुगा रेल में खरीदे हुये अखबार की तरह और सच ही जो भी तबीयत देखने आया अपने अनुभव और दवाओं की जानकारी साथ लाया । बात मात्र इतनी थी कि पीठ में दर्द हुआ था लेकिन दुष्यंत कुमार जी की मानें तो ** पक्ष औ प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं बात इतनी है कि कोई पुल बना है"। पैथियां इतनी प्रचलित है कि मरीज़ दुबिधा में ही रहता है मैं इधर जाउं या उधर जाउं ।और फिर सलाहकार । कहते है संसार में सबसे ज्यादा दी जाने वाली कोई चीज है तो वह है सलाह और सबसे कम ली जाने वाली कोई चीज है तो वह है सलाह

वैसे तो दर्द सभी खराब होते है मगर पीठ का बापरे न उठ सकते न बैठ सकते चीख निकलजाये जरासी हरकत पर । उनका कहना था कि जल्दी से किसी डाक्टर को बतलादो एक्सरे करवालो । मगर तबीयत पूछने आये एक ने कहा भाभी जी इन डाक्टरों के चक्कर में पड मत जाना ।हमारे चाचाजी को ऐसे ही पीठ में दर्द हुआ था न जाने कैसा इन्जेक्शन लगाया कि लकवा हो गया आज तक घिसट रहे है और एलोपैथी में इसका इलाज है भी नहीं कहदेंगे स्लिप डिस्क है आराम करो दबायें खाओ।एक और ने समर्थन किया कि कि सही बात है एक को डाक्टर ने बतादिया वरट्रीब्रा कलेप्स हो गया है और आपरेशन कर दिया बेचारे ने पूरी जिन्दगी व्हील चेयर पर बिताई।मेरी मानो तो होमियोपैथ को दिखालो।
सही भी है होमियोपैथी एक पध्दति है जिसकी दवायें निरापद होती है केवल दवा का नाम मालूम होना चाहिये लाते रहो खाते रहो। इसीलिये होमियोपैथी का डाक्टर कभी मरीज को पर्चा बना कर नहीं देता है न दवा का नाम ही बताता है नाम लिख दिया तो मरीज को जानकारी हो जायेगी और दस रुपये की दवा के पचास बसूल करने में दिक्कत होगी ।
होमियोपैथी है बडी विचित्र इसके नाम जितने अटपटे है उतने आश्चर्यजनक इनके तत्व होते हैं जैसे एक प्रकार का सर्प चेचक का बीज स्पेन का मकडा धतूरा आदि । घतूरा पर से याद आया एक मरीज के लक्षण मानसिक रोगी जैसे नजर आने पर चिकित्सक ने किताबों के अध्ययन से पाया कि इसे स्ट्रेमोनियम दी जाना चाहिये । चूंकि दवा उसके पास खत्म हो गई थी उस दबाई का कन्टेन्ट था धतूरा तो पास में लगे धतूरे के पत्ते निचोड कर मरीज को पिला दिये । इससे मरीज.......।कुछ बाते इशारे में कही जाती है जैसे कि एक युवक ने टंकी में यह देखने के लिये कि इसमें पैट्रोल है या नहीं । माचिस जलाई । पेट्रोल था। आयु 35 वर्ष। धतूरे को कनक कहते है कहते है इसके खाने से आदमी पागल हो जाता है। स्वर्ण को भी कनक कहते है कहा है ‘‘कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय । ये खाये बौरात है वो पाये बौरात । खैर उस चिकित्सक का मुकदमा तो सुप्रिम कोर्ट तक गया



एक सलाहकार और आये बोले बाबूजी कुछ नहीं तुमने कोई बजन उठा लिया होगा तो चोडरा कुसका चला गया है हमारे ग्रामीण क्षेत्र में पीठ के नीचे हिस्से यानी लम्बर रीजन में अचानक दर्द होने लगने को चोडरा चला जाना या कुस्का चला जाना कहा जाता है । मै तलाश करता हूं अगर कोई व्यक्ति उल्टा पैदा हुआ होगा तो उससे आपकी कमर में लात लगवा देंगे दो दिन में आराम हो जायेगा । मुझे याद आया एक थानेदारसाहब का चोडरा चला गया था तो शहर के जितने गुन्डे बदमाश थे सब पहुंच गये हुजूर हम उल्टे पेदा हुये है
गरज यह कि जितने मुह उतनी दबायें।कहीं की मिटटी लपेटी न जाने कहां कहां के पानी से नहाये।जन्तर मन्तर जादू टोना । उसी बीच मालूम हुआ एक स्थान पर मेला लगा है मरीज इधर से खटिया पर लेटा हुआ जाता है और उधर से दौडता हुआ आता है वहां भी गये हालांकि वहां तो कुछ भेंट नहीं ली जाती थी परन्तु ठहरने की जगह व महगाई महानगर से भी ज्यादा ।
कृपया गैर हाजिरी को माफ़ करें