मै का करूं राम मुझे बुडढा मिल गया।उस गाने को बार बार दुहराती है जब भी किसी बात पर इनका विरोध करो मै का करूं राम बहुत समझाया हंसी में मजाक में व्यंग्य में ताने के रुप में उलाहने के रुप में बार बार इस गाने को नहीं गाना चाहिये इससे पुरुष का मनोबल गिरता है वह मानसिक दुर्वलता का शिकार हो सकता है मगर नहीं साहब। एक बात तो है एक उमर के बाद आदमी सठिया तो जाता है।आश्चर्य तो होगा यह जानकर कि बुडठा बुडढो की बुराई कर रहा है ।तो मेरा कहना यह है कि
यूं .........कि जब धन्नो घोडी होकर तांगा खीच सकती है , वसंती लडकी होकर टांगा चला सकती है तो मै बुडढा होकर बुडढों की बुराई क्यों नहीं कर सकता । वैसे हकीकत वयान करना बुंराई करना थोड़े ही होता है ।
असल में होता क्या है कि ये लोग एक उम्र के वाद सठिया जाते है । सठ को शठ भी सुविधा और संतुलन की दृष्टि से प्रयोग किया जासकता है । शठ सुधर नहीं सकते एसी बात भी नहीं है।
शठ सुधरहि सत संगति पाई कैसे वो ऐसे कि
पारस परस कुधात सुहाई ।
मगर इन बुडढो का आलम यह है कि
तुलसी पारस के छुये कंचन भई तलवार
पर ये तीनो न गये धार मार आकार ।
और उसका भी कारण है ये हमेशा अकडे ही रहे झुके तो केवल बास के सामने वाकी बीबी और बच्चों के लिये तो अकडे ही रहे कमर झुक गई मगर अकड जाती नहीं । रस्सी जल गई पर बल न गया।
वैसे सतसंगति के लिये यहां पारस की कमी भी नहीं है।सतसंगत के लिये टीवी चैनल है ,विगबास है, उसमें विदेश से पधारी हुई बाला एडरसन,बेचारी यहां आई अपना घर परिवार छोड कर सतसंगति देने और उनको मिला क्या मात्र सात करोड। सुना है उनका स्वागत करने एक झलक पाने बहुत तादाद में लोग हवाई अडडे पर गये थें ।फिर अपने यहां क्या कम पारस है अपने यहां भी इन्साफ वाली बाई,और भी अनेक हैं जिनकी विचारधारा यह है कि पुरुष जब कपडे उतार सकता है एक अभिनेता है वे इसी तलाश में रहते है कि कब बनियान फैक कर गाना गाने को मिले आखिर मसल्स बनाये किस लिये है जिम जा जा कर तो फिर लडके और लडकी यह भेद भाव क्यों यहां समानता क्यों नहीं । मगर बुडढों को ये बात समझ में नहीं आती क्योंकि उन्हौने वह जमाना देखा होता है जब बेटी पूछती थी मां जीन्स पहिन लूं क्या तो मां कहती थी मत पहिन बेटी लोग क्या कहेंगे । आज जब बेटी कुछ पहिनने को पूछती है तो मां कहती पहिन ले बेटी कुछ तो पहिन ले।
हां तो मै इन बुडढों की बात कर रहा था ये अकडूचंन्द सौने के होकर भी तलवार बने रहते है । इनकी बातें सुनो कुन्दनलाल और नलिनीजयवन्त की बाते करेंगे साथ ही हमारे जमाने में एक रुपये का सोलह सेर गेहूं आता था । अरे आता होगा हमे क्या लेना देना ।अर्ली टू बैड वाली बात करेंगे अरे इनको कौन समझाये जल्दी सोना जल्दी उठना उस जमाने की बाते हैं आज तो असल चैनल तो रात 12 बजे के बाद ही शुरु होते है। उस पर तुर्रा ये कि घर वाले हमको नजरअंदाज करते है हमारी उपेक्षा करते है और तो और वो भी सात फेरों वाली बच्चों की ही तरफ बोलती है । अरे भइया पहले वह डर के कारण तुम्हारी तरफ बोलती थी अब डर खत्म । बच्चे हो गये कमाने वाले और जमाने का कायदा है आपने भी देखा होगा गमले में पौधे लगाते है पानी डालने का ध्यान रखा जाता है मैने तो नहीं देखा किसी को कि किसी ढूंढ मे पानी डाल रहा हो तो ये समझते ही नहीं कि हम ठूंठ हो चुके है ।
और इनकी बाते देखों जैसे सारे संसार काअनुभव इन्हे ही हो और डाई करके कहेंगे ये कि ये वाल घूप में सफेद नहीं हुये कमाल है। जहां तक मै समझता हूं पुराने लोगो को न तो बात को समझने की क्षमता होती थी न बोलने का तरीका आता था ।
एक ही लेख में ज्यादा बुराई भी नहीं करना चाहिये शेष बुराई आगे के लिये छोडते है।