उनके ब्लॉग पर जाना तो इक बहाना था
हमें तो अपने ब्लॉग पर उन्हें बुलाना था
गए ,न देखा न समझा न ध्यान से पढा
बस"" बहुत अच्छा "" लिख कर लौट आना था
मैं लिखता हूँ पाठक मिलते नहीं
जैसे सार्वजनिक बाथरूम में चिपके ,
शर्तिया इलाज़ के विज्ञापन कोई पढ़ते नहीं
पाठक सौ न आते एक ही आता / शब्द बदलने को कहता गलतियाँ बताता
मार्ग दर्शन करता कुछ मशवरे देता
ताकि मेरे लेखन में कुछ सुधार आता
फुर्सत कहाँ किसी को किसी के सुधार की
सबको तो बस अपना ही लिखा पढ़वाना था
Monday, September 29, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
11 comments:
फुर्सत कहाँ किसी को किसी के सुधार की
सबको तो बस अपना ही लिखा पढ़वाना था
bahut shhi
ठीक पहचाना आपने !बहुत ख़राब अनुभव मिलते हैं यहाँ ! जो आपको सुदर्शन लगेगा वही कुछ दिनों में अपनी असलियत पर आ जाता है ! साहित्य और हिन्दी की बात ही बेकार है !
अच्छा लिखते हैं, खुद को ज्यादा अच्छा समझते हैं, अच्छी बात है, ".... नाज करने की बात आई, तो खुद पर नाज न हुआ.... "आपके लिखने की शैली प्रभावशाली है।
फुर्सत कहाँ किसी को किसी के सुधार की
सबको तो बस अपना ही लिखा पढ़वाना था
" ha ha ha ha aisa nahee hai, likhne walon ko pdhne ka bhee utna hee shauk or junun hotta hai, sunder rachna"
Regards
फुर्सत कहाँ किसी को किसी के सुधार की
सबको तो बस अपना ही लिखा पढ़वाना था
sahi hai....lakin aacha likhne ke liye padna jaruri hai
आप ने ठीक कहा. "बाथरूम में चिपके विज्ञापन वाली बात" मजेदार लगी.
लेकिन मैं भी वही कर रहा हूँ जो सब कर रहे हैं. मुझे कविता में कोई रूचि नहीं है
फिर भी मैं इस टिप्पणी को लिख रहा हूँ. मजबूरी दोस्त ........
गज़ब कर दिया श्रीवास्तव जी सच लिख दिया आपने व्य्नाग लिखने वालों पर व्यंग पढ़ कर मज़ा आ गया
नैनो की विदाई नामक मेरी नई रचना पढने हेतु आपको सादर आमंत्रण है .आपके आगमन हेतु धन्यबाद नियमित आगमन बनाए रखें
Achchha likhte hai....
Aapki kavita me byang hota hai jo thoda mitha toda thika lagta hai...
Likhate raheye...ham padhate rahege..
http://www.dev-poetry.blogspot.com/
maza a gya bhai saab apne to hakikat bayan kar d. padhne walo ne apka ye vyang to dhyan se padha hi hoga kyuki ye likha hi dusro ke liye khu rai. ajke tanav bhare jivan me admi ki hasi kahi kho gai hai aur mahngi b ho gai hai ummed hai ap yu hi likhte rahe aur hasate rahe
Main to aapke blog per iseeliye aayi thi ke aapne mere blog per comment kiya! Shukriya kehne aayi thi magar is kavita mein jo gyaan likha hai, ye naya laga!
Gosh! Aisa bhi hota hai??!!
(Badey velley log honge! lol!)
Jahan tak mera sawaal hai, agar tehreer achchi hai, to main zaroor padhna chahoongi ... phir chahe jaise bhi blog per pahunchoon!
For me, the 'lutf' of poetry is not just writing but also reading good compositions.
Khair.
I liked theses lines/thought ...
मैं लिखता हूँ पाठक मिलते नहीं
जैसे सार्वजनिक बाथरूम में चिपके ,
शर्तिया इलाज़ के विज्ञापन कोई पढ़ते नहीं
Good analogy.
:-) Mashvara nahin doongi, chinta na kare. Woh main tab hi deti hoon jab koii maange!
RC
आपने अभीतक अपना ब्लॉग ब्लोग्वानी पर रजिस्टर्ड नही कराया है.कृपया जल्द से जल्द करा लें.इतने स्तरीय रचनाओं को लोगों तक पहुंचना ही चाहिए और इसका माध्यम यही हैं.आपके अगले पोस्ट में इसके लिए गाइड लाइंस दिए हुए हैं.कृपया उनका अनुगमन करते हुए यह कार्य यथाशीघ्र करा लें.
Post a Comment