दुनिया में वैसे तो बहुत तरह के दर्द हैं ,मगर एक प्रमुख दर्द है सरदर्द | वैध्य तो यही कहेगा "अंत भारी तो माथ भारी "" मगर आजकल तो सरदर्द की गोलियां सरल , सुगम व् सस्ता इलाज़ है , एक दिन उन्होंने कहा गोलियां रिएक्शन करती है तो मैंने कहा चन्दन घिस कर लगाइए |बोले हमें मालूम है मगर "" दर्दे सर के वास्ते है अर्क संदल का मुफीद ,पर ,उसका घिसना ,घिस के मलना यह भी इक सरदर्द है |
कभी कभी कोइ पड़ौसी भी पड़ौसी के लिए सरदर्द हो जाता है |एक दिन से वे एक पेंचकस लेकर आये बोले इसे आप रखलें ,पूछा क्यों ? तो बोले मै अपने सारे औजार एक ही जगह रखना पसंद करता हूँ |
वैसे तो एक दिल का दर्द भी होता है ,बहुत शेर पढ़े गए बहुत कवितायें लिखी गई बहुत फ़िल्मी गाने बने |पुराने जमाने में दिल पर लिखे गए गानों का बड़ा क्रेज़ था यकीन मानिए ऐसे ऐसे गाने कि इस दिल के टुकड़े हज़ार हुए कोई यहाँ गिरा कोइ वहां गिरा । गोया दिल दिल न हुआ कार में लगा ग्लास हो जो एक्सीडेंट से बिखर गया हो |
हकीकत यह भी है जिन्हें दिल में दर्द होता है वह तो कोइ एसीडिटी ,गैस वगैरा का होता है और जिन्हें वास्तव में दर्द होता है वे तो बतला ही कहाँ पाते है । सिर और दिल के अलावा भी कई दर्द होते है कोई कहाँ तक गिनाये |""वो मुझसे पूछते है दर्द कहाँ होता है ? अरे एक जगह हो तो बतादूँ कि यहाँ होता है ""दर्द का विवरण आयुर्वेदिक ग्रंथों में ज्यादा पाया जाता है ।उस जमाने में आलपरपज पेन किलर नहीं होते थे |हर दर्द की अलग दबा हुआ करती थी । उन ग्रंथों में लिखा है दर्द चौरासी प्रकार के होते है | पुराने ग्रंथों में चौरासी का बड़ा महत्त्व है ,चौरासी प्रकार की बात व्याधियां ,चौरासी आसन ,चौरासी प्रकार के चक्षु रोग | फिर भी चौरासी से काम न चला तो चौरासी लाख योनियाँ |भाई कमाल है |
पुराना मरीज डाक्टर के लिये सर दर्द है ।जितनी दवाएं एक नया डाक्टर जानता है उससे ज्यादा तो पुराना मरीज सेवन कर चुका होता है सारी दबाओं के कंटेंट्स उसे याद होते है |इधर डाक्टर ने दबा लिखी उधर मरीज की प्रतिक्रया -सर इसमें तो डायजेपाम है या अल्प्राजोलम है दिन भर उदासी रहेगी ,सर इनमे तो आइब्रूफेन है जी मिचलायेगा |गजब है ,अभी गोली खाई नहीं है केवल पर्चा ही लिखा है और इनका जी मिचलाने लगा | होता है ,कुछ लोग ज्यादा सम्बेदनशील होते है वे पुस्तक या पेपर वगैरा में सब्जी आदि बनाने की रेसिपी पढ़ते है और उसमे पढ़ते है प्याज के बारीक टुकड़े करें ,तो उनकी आँखों में जलन होकर आंसू आने लगते है ।मैंने देखा है एक्स-रे डाक्टर को दिखाने के पहले मरीज सबसे पहले खुद एक्स-रे देख कर उसमे टूटी हड्डी तलाश करने की कोशिश करता है |वो तो यह अच्छा है कि एक्स-रे प्लेट पर नाम लिखा होता है मरीज का ,इसलिए वह प्लेट सीधी ही देखता है |मोडर्न आर्ट में चित्रकार का नाम लिखा होता है उससे ही तो समझ में आता है कि चित्र किधर से सीधा है |
एक और अजीब सरदर्द होता है बाबूजी आफिस से तो गुनगुनाते हुए चले आयेंगे और घर में प्रवेश करते ही ऐसी शकल बना लेंगे जैसे पहाड़ खोद कर आरहे हों ,सर पकड़ लेंगे ,धम्म से कुर्सी पर बैठ जायेंगे बेचारी बीवियां चाय बनाने चल देती है तो कहीं कहीं पर मैडम का सुबह सुबह भयंकर सरदर्द होता है पतिदेव चाय बना कर लाते हैं तब उन्हें दर्द से आराम मिलता है |पुराने ज़माने में तो चाय प्रयुक्त नहीं होती थी इसलिए बुजुर्ग कह गए "प्रभाते कर दर्शनम ""वरना वे भी यही कह जाते प्रभाते कप दर्शनम |
क़ानून का जानकार फरीक वकील के लिए सर दर्द होता है |जिन कामों को आमतौर पर वकील के मुंशी करते है वह काम यह स्वम फरीक ही निबटाना चाहता है मसलन नक़ल की दरखास्त लगाना ,रिकार्ड रूम से फाइल निकलवाना ,तारीख पेशी बढ़वाना और ये होशियारचंद समझते है कि मुंशी के पैसे बचा लिए ,जबकि तीन गुना राशि खर्च कर चुके होते है | मुकदमा और मकान बनबाना इनसे जिन लोगों का वास्ता पढ़ा है उनके सरदर्द का तो कुछ पूछो ही मत | चौबीस घंटे मकान का नक्षा ही दिमाग में घूमता रहता है |और कारीगर इतना कम एस्टीमेट बतलायेंगे कि आदमी झट व्यवस्था करले | और ऐसे मुकाम पर लाकर छोड़ते है कि फिर रकम बेचना पढ़े ,कर्ज लेना पड़े मकान तो पूरा करवाना ही है वरना बरसात आगई सब किया कराया बेकार हो जाएगा |
पुराना बाबू नए अधिकारी के लिए सर दर्द होता है ,ऐसे लोगों के खिलाफ कार्यबाही करना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना जैसा है इसलिए वह दर्द निवारक गोली खाना ज्यादा उचित समझता है |,एक अधिकारी ड्रायवर से नाराज रहते थे ,टूर पर जाते समय घने जंगल में जीप विगाड दी ।इसीलिये कहा गया है कि जब तक पार न लग जाओ नाव वाले से झगड़ा नहीं करना चाहिए |गिरधर की कुंडलियों में हमें मिलता है किन किन से आपको बैर नहीं करना चाहिए |""बामन ,बनियां, वैध्य, आपको तपे रसोई आदि चौदह लोंगों से "" मै कहता हूँ भैया किसी से तो मत करो बैर ।
Friday, March 26, 2010
Wednesday, March 10, 2010
दीवार के उस पार
आज सुबह मै मध्यप्रदेश का समाचार दैनिक भास्कर पढ़ रहा था कि एक समाचार पर मेरी नजर गई ""दीवारों के आर पार देख सकेगा मोबाइल ""दीवार के उस पार कौन है और क्या हो रहा है यह मोबाईल के द्वारा देखा जा सकेगा इस तकनीक के उपयोग के लिए नोकिया कंपनी से समझौता किया गया है |
पहले तो दीवारों के कान होने से ही लोग परेशान थे और अब 'एक न शुद दो शुद ' | वैसे आपको ध्यान होगा दीवार के उस पार देखे जाने वाला यंत्र हम हज़ारों लाखो वर्ष पूर्व तैयार कर चुके और उसका नाम "खिड़की " रख चुके है | इतना तो विश्वास है कि जिनके पास ऐसे मोबाइल होंगे वे दूसरों के घरों में तांका झांकी नहीं करेंगे क्योंकि कहा गया है कि जिनके खुद के घर कांच के होते है वे दूसरों के घर पत्थर नहीं फैकते ,कहा तो यह भी गया है कि जिनके घर कांच के होते है वे लाईट बंद करके कपड़े बालते है |
साहित्य दीवार से बहुत प्रभावित रहा है मसलन 'भाई मेरे हिस्से का आँगन भी तू ले ले मगर बीच की दीवार गिरादे ' किसी ने गाया 'दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है ' किसी ने ठंडी सांस लेकर आपबीती सुनाई 'दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की ,लोगों ने आने जाने के रस्ते बना लिए 'किसी ने तरस खा कर कहा 'वो धूप से बच कर चला आया तो है लिकिन ,गिरती हुई दीवार के साए में खडा है |ग़ालिब साहब कहा करते थे 'वे दरो दीवार का इक घर बनाया चाहिए ' उधर कोइ गाने लगा 'इस अंजुमन में आप को बार बार आना है ,दीवारों दर को गौर से पहिचान लीजिये 'किसी ने "दीवार "नाम के फिल्म ही बना दी तो कोई प्रेम में असफल दुखी हो गया 'चांदी की दीवार न तोडी प्यार भरा दिल तोड़ दिया '|
साहित्य ही नहीं देख का प्रमुख स्तम्भ न्याय पालिका भी इससे प्रभावित है |पचास फी सदी दीवानी मुकदमो की बजह दीवारें है |रात दिन लेख ,समाचार, पत्र प्रकाशित होते है- अदालतों में इतने मुकदमे लंबित है यह भी कहा जाता है कि जस्टिस डिलेड -जस्टिस डिनाइड " हालांकि दीवारों के साथ न्यायाधीश गण की कमी भी इसका कारण हो सकता है आपको सं १९७१ का सेन्सस याद होगा जिसके अनुसार प्रतिमिलियन जनसंख्या पर जजेज का रेशो अपने यहाँ १०.५ था जबकि यह रेशो आस्ट्रेलिया में ४२.६,इंग्लेंड में ५०.९ .केनेडा में ७५.२ तथा यूनाइटेड स्टेट में १०७ था और वर्तमान में भी कोइ विशेष बढ़ोतरी इस क्षेत्र में नहीं हुई है |खैर यह अपना न तो सब्जेक्ट है न क्षेत्र |लेकिन इतना अवश्य है दीवारों को गिरा दीजिये मुकदमों की संख्या आधी रहा जायेगी ,इन दीवारों में पार्टीशन वाल .नफ़रत की दीवार चांदी की दीवार ,कुरीतियों की दीवार सब शामिल है |
जहां तक नफ़रत की दीवार का ताल्लुक है - मैंने बचपन में एक एक कविता पढ़ी थी ""बीबी से शौहर ,शौहर से बीबी है बदगुमाँ, है बाप का बना हुआ बेटा उदूंजां , हिन्दोस्ताँ के घर हुए खाली सुकून से , हैं दीवारें रंगी हुई पड़ौसी के खों से " यह बचपन में पढ़ी थी आज मै रिटायर्ड हूँ कमोवेश वही हालात आज भी है | वैसे हम दुःख को रोकने अपने चारों ओर दीवार खडी कर लेते है वे दीवारें सुख को भी बाहर ही रोक देती है
दीवार गिराते ही व्यक्ति पूर्णता शान्ति ,स्थिरता प्राप्त कर लेता है | जो आता है उसे आने दो जो जाता है उसे जाने दो .जो हो रहा है उसे देखते रहो गवाह बन कर | पुराने जमाने में लोगों को दीवारों में चुनवाया जाता था यह काम बड़े जोरशोर से होता था और दीवारों में धन गाढ़ने का काम चोरी छुपे होता था |कई जगह पुराणी इमारतों की दीवारे गिरतीं है तो धन निकलता है ,इसे दफीना कहा जाता है ,कई लोग पुराने मकान ,खंडहर महल में दफीना खोदने तैयार रहते है , त्तान्त्रिकों के चक्कर में दिन रात लगे रहते है ,इन्हें हर जगह दफीना ही नजर आता है ,सपने भी उसी के देखते है ,अगर इन्हें सपना आजाये कि दीवार में दफीना है तो यह माकन मालिक की चार इंची पार्टीशन की दीवार तोड़ डालें |
लोगों ने गढ़ा धन देखने के काजल बना लिए है - अभी ये लोग काजल के वारे में कम ही जानते है |एक गाना है ""छुप गए तारे .........तूने काजल लगाया दिन में रात हो गई ""गोया काजल लगाते ही दिखना बंद . जब कुछ दिखाई नहीं देगा तो रात ही तो कहलायेगी |किसी सूरदास से पूछो भैया दिन है कि रात ?बोले -भैया हमें तो रात दिन एक से ही हैं | अत: ऐसा काजल न लगा लेना कि दिन में ही रात हो जाए |
वैसे जब क़ानून बनाता है तो उसको तोड़ने के दस तरीके भी ईजाद हो जाते हैं , हो सकता है ऐसा सीमेंट ,बार्निश ,पालिश तैयार हो जाए जो इस तकनीक को विफल करदे |
पहले तो दीवारों के कान होने से ही लोग परेशान थे और अब 'एक न शुद दो शुद ' | वैसे आपको ध्यान होगा दीवार के उस पार देखे जाने वाला यंत्र हम हज़ारों लाखो वर्ष पूर्व तैयार कर चुके और उसका नाम "खिड़की " रख चुके है | इतना तो विश्वास है कि जिनके पास ऐसे मोबाइल होंगे वे दूसरों के घरों में तांका झांकी नहीं करेंगे क्योंकि कहा गया है कि जिनके खुद के घर कांच के होते है वे दूसरों के घर पत्थर नहीं फैकते ,कहा तो यह भी गया है कि जिनके घर कांच के होते है वे लाईट बंद करके कपड़े बालते है |
साहित्य दीवार से बहुत प्रभावित रहा है मसलन 'भाई मेरे हिस्से का आँगन भी तू ले ले मगर बीच की दीवार गिरादे ' किसी ने गाया 'दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है ' किसी ने ठंडी सांस लेकर आपबीती सुनाई 'दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की ,लोगों ने आने जाने के रस्ते बना लिए 'किसी ने तरस खा कर कहा 'वो धूप से बच कर चला आया तो है लिकिन ,गिरती हुई दीवार के साए में खडा है |ग़ालिब साहब कहा करते थे 'वे दरो दीवार का इक घर बनाया चाहिए ' उधर कोइ गाने लगा 'इस अंजुमन में आप को बार बार आना है ,दीवारों दर को गौर से पहिचान लीजिये 'किसी ने "दीवार "नाम के फिल्म ही बना दी तो कोई प्रेम में असफल दुखी हो गया 'चांदी की दीवार न तोडी प्यार भरा दिल तोड़ दिया '|
साहित्य ही नहीं देख का प्रमुख स्तम्भ न्याय पालिका भी इससे प्रभावित है |पचास फी सदी दीवानी मुकदमो की बजह दीवारें है |रात दिन लेख ,समाचार, पत्र प्रकाशित होते है- अदालतों में इतने मुकदमे लंबित है यह भी कहा जाता है कि जस्टिस डिलेड -जस्टिस डिनाइड " हालांकि दीवारों के साथ न्यायाधीश गण की कमी भी इसका कारण हो सकता है आपको सं १९७१ का सेन्सस याद होगा जिसके अनुसार प्रतिमिलियन जनसंख्या पर जजेज का रेशो अपने यहाँ १०.५ था जबकि यह रेशो आस्ट्रेलिया में ४२.६,इंग्लेंड में ५०.९ .केनेडा में ७५.२ तथा यूनाइटेड स्टेट में १०७ था और वर्तमान में भी कोइ विशेष बढ़ोतरी इस क्षेत्र में नहीं हुई है |खैर यह अपना न तो सब्जेक्ट है न क्षेत्र |लेकिन इतना अवश्य है दीवारों को गिरा दीजिये मुकदमों की संख्या आधी रहा जायेगी ,इन दीवारों में पार्टीशन वाल .नफ़रत की दीवार चांदी की दीवार ,कुरीतियों की दीवार सब शामिल है |
जहां तक नफ़रत की दीवार का ताल्लुक है - मैंने बचपन में एक एक कविता पढ़ी थी ""बीबी से शौहर ,शौहर से बीबी है बदगुमाँ, है बाप का बना हुआ बेटा उदूंजां , हिन्दोस्ताँ के घर हुए खाली सुकून से , हैं दीवारें रंगी हुई पड़ौसी के खों से " यह बचपन में पढ़ी थी आज मै रिटायर्ड हूँ कमोवेश वही हालात आज भी है | वैसे हम दुःख को रोकने अपने चारों ओर दीवार खडी कर लेते है वे दीवारें सुख को भी बाहर ही रोक देती है
दीवार गिराते ही व्यक्ति पूर्णता शान्ति ,स्थिरता प्राप्त कर लेता है | जो आता है उसे आने दो जो जाता है उसे जाने दो .जो हो रहा है उसे देखते रहो गवाह बन कर | पुराने जमाने में लोगों को दीवारों में चुनवाया जाता था यह काम बड़े जोरशोर से होता था और दीवारों में धन गाढ़ने का काम चोरी छुपे होता था |कई जगह पुराणी इमारतों की दीवारे गिरतीं है तो धन निकलता है ,इसे दफीना कहा जाता है ,कई लोग पुराने मकान ,खंडहर महल में दफीना खोदने तैयार रहते है , त्तान्त्रिकों के चक्कर में दिन रात लगे रहते है ,इन्हें हर जगह दफीना ही नजर आता है ,सपने भी उसी के देखते है ,अगर इन्हें सपना आजाये कि दीवार में दफीना है तो यह माकन मालिक की चार इंची पार्टीशन की दीवार तोड़ डालें |
लोगों ने गढ़ा धन देखने के काजल बना लिए है - अभी ये लोग काजल के वारे में कम ही जानते है |एक गाना है ""छुप गए तारे .........तूने काजल लगाया दिन में रात हो गई ""गोया काजल लगाते ही दिखना बंद . जब कुछ दिखाई नहीं देगा तो रात ही तो कहलायेगी |किसी सूरदास से पूछो भैया दिन है कि रात ?बोले -भैया हमें तो रात दिन एक से ही हैं | अत: ऐसा काजल न लगा लेना कि दिन में ही रात हो जाए |
वैसे जब क़ानून बनाता है तो उसको तोड़ने के दस तरीके भी ईजाद हो जाते हैं , हो सकता है ऐसा सीमेंट ,बार्निश ,पालिश तैयार हो जाए जो इस तकनीक को विफल करदे |
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