बृजमोहन -शारदा विद्यालय
प्रथम प्रश्न पत्र पूर्णांक १००
नोट _कोई पाँच प्रश्न हल कीजिये सभी प्रश्नों के अंक सामान है
(१) सुरक्षा व्यवस्था को सुद्रढ़ करने जब सेना है तो (इनकी ) आज्ञा की जरूरत क्यों ?
अथवा
सुरक्षा कर्मियों को मोर्चे पर तैनात करने या कहीं फोर्स भेजने का आदेश देने वाले (ये )कौन ?
(२) ( इनके ) बंगलों में किले जैसी सुरक्षा और सिर्फ़ इन्हे ही बन्दूक धारी सुरक्षा क्यों ?देश का हर नागरिक व्ही आई पी क्यों नहीं ?
(३) "" सुरक्षा नहीं तो टेक्स नहीं ""यह ग़लत विचारधारा और देश की आर्थिक स्थिति को कमज़ोर करने का कुविचार किसके दिल में आया और क्यों ?
(४) शहीद सैनिकों के परिवार को आर्थिक मदद की घोषणा कर वाहवाही लूटने वाले (ये )कौन सेना के पास ऐसा फंड नहीं क्यों ?
(५) प्रदेश जिनके पिताश्री का है उन्होंने हमले में मोर्चा नहीं सम्हाला क्यों ? न इनमें से कोई हताहत हुआ न शहीद हुआ क्यों ?
(६)पिस्टल तकिया के नीचे रख क़र सोने का यह संदेश था और व्यंग्य भी कि अब हमें ही अपनी सुरक्षा करनी पड़ेगी सुरक्षा व्यवस्था से हमारा विश्वास उठ चुका है तो उस का ग़लत आर्थ लगा कर डरपोक बताया आलोचना की गई क्यों ?
(७) ९/११ के बाद अमेरिका की ओर कुद्रष्टि डालने की फिर किसी की हिम्मत नहीं हुई क्यों ?
(८) मानव के सारे अधिकार संबिधान में है अध्याय ७ से १७ तक , तो इन अधिकारों की अधिकता प्रथक से क्यों ?आतंकवादी मानव क्यों ?
(९) देश में तीन सेना अध्यक्ष है ,प्रतिरक्षा बलों का सर्वोच्च सेनापति है तो रक्षा मंत्री प्रथक से क्यों ?
(१) खुफिया एजेंसी किसी दुर्घटना की आशंका की सूचना नेताजी (सरकार ) को देती है सेना अध्यक्ष को नहीं क्यों ?
Wednesday, December 3, 2008
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21 comments:
आपके सवाल गम्भीर हैं और अपने उत्तरों की मांग करते हैं।
मेरे ब्लॉग पर आपका कमेंट (aaj hindi men likha nahin ho paaraha hai -sir aap wo to nahin hai jinka janm 1975 men hua aur 1999men jinka kahanee sangrah prakashit hua jismen paryavaran se judee 6 sundr kahaniya chhapee tatha braksh baba /hara sona /sapno kaa gaav /jo bachchon ke man par chaa jane waalee hain) देखकर आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हुई।
मुझे यह कहते हुए अति प्रसन्नता हुई कि हॉं, मैं वही हूं। मेरी उस पुस्तक का नाम 'सपनों का गॉंव' है और वह पीताम्बर प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित हुई है। लेकिन एक जिज्ञासा मन में कुलबुला रही है कि वह पुस्तक आपको कहां मिली?
क्या प्रश्न हल करना अपने दायित्व को पूरा करना है?
नेताजी के हाथ पहले से पर्चा लग गया है और वो इसे हल करने के लिए एक कमिटी बना रहे हैं. अपनी सुरक्षा और बढ़ा दी है.
ये प्रश्न-पत्र विसे है किन परिक्षार्थियों के लिये और पास-फेल का निर्णय कौन देगा श्रीमन??
Woh गजल गुलाम अली साहेब की गाई हुई है - jaanti hoon ...
/शायर का नाम आपने भी नहीं लिखा है /इसके एक दोशेर और होना चाहिए ... yeh bhi jaanti hoon !!
Baaqi She'r mujhe khaas achche nahin lage the magar aap kehte hain to laga deti hoon ....
Check my reply to your comment on "Mumbai Attacks".
RC
On my blog, I mean.
प्रिय भाई, मैं आजकल तस्लीम में व्यस्त होने के कारण अपने ब्लॉग पर मैटर नहीं डाल पा रहा हूं। तस्लीम को जानने के लिए कृपया मेरे नाम को क्लिक करें, आप उसके डैशबोर्ड तकपहुंच जाएंगे।
महोदय , देश की सुरक्षा व्यस्था हेतु नेताजी पर बहुत सटीक व्यंगात्मक बाण चलाए है परन्तु इन सवालो के जवाब मिल जाने से व्यवस्था सुधरने वाली नहीं है इसका तो एक ही हल है कि नेताजी को देश की सीमा पर तैनात किया जावे और सैनिको को देश की कमान संभलाई जावे क्योंकि एक कहावत है कि - '' जाके पैर ना फटी बिवाई ता नहीं जाने पीर पराई ''
बहुत बहुत सही,सटीक प्रश्न उठायें हैं आपने.इन्ही प्रश्नों के सकारात्मक,सार्थक उत्तर सारी अव्यवस्था दूर कर सकती है.
... धमाकेदार अभिव्यक्ति है, हतप्रभ हो गया हूँ!
बृजमोहन जी, प्रश्न तो आप ने बहुत ही सटीक एवं विचारणीय उठाये हैं, किन्तु मैं नहीं समझता कि इनका उत्तर यहां किसी के पास हो.
Brijmohan ji -
Thank you so much. I am touched by the way you read the posts and comment on them. When I read that you were at a cybercafe, I was happily surprised. I have no words. Thanks for taking all that effort to pass your opinion. Let me tell you that your comments are indeed regarded, read and appreciated. May God bless you and give you success in your life and career.
RC
इन सवालों के साथ-साथ बहुत सारे सवाल हमें खुद से भी पूछना होगा। दरअसल हम भारतीय भी कानून का पालन न कर खुद को गौरांवित महसूस करते हैं, हम अपने हिस्से का काम पूरा करें तो भी शायद बात कुछ हद तक बन जाए।
बृजमोहन जी,
शायद इन प्रश्नों के उत्तर तो ऊपरवाला भी ना जान पाये. बड़े ज्वलंत प्रश्न है पढ़्ते ही आग लग जाती है तन-बदन में. प्रश्नों के लेकर मेरी एक कविता "साहित्य-कुंज" के अप्रैल-०८ के अंक में प्रकाशित हुई थी उससे यह अंश दे रहा हूँ :-
" प्रश्न,
बंदूक की तरह होते हैं
जब दगते हैं तो यह नही देखते कि
दिल घायल होगा या मन आहत
बस आग उगलते हैं "
मेरे ब्लॉग पर आपकी प्रतिक्रिया ने मुझे हौसला दिया है. आपकी कृपा दृष्टी का पात्र बना रहूँ यह स्नेह बनाये रखियेगा.
मुकेश कुमार तिवारी
behad kathi sawal puchha diye apne.
jawab samajha hi nahi aa rahe hai.
अत्यन्त गंभीर विचार और सुंदर प्रस्तुतीकरण , अच्छा लगा !
Adarneeya Srivastav ji,
Apke blog par apkee haiku padhane ke sath hee apke dwara uthae gaye savalon ko bhee padha.
Hiku men apne chhchhotee see lagne vali baton ko is dhang se kalambaddha kiya hai ki vo bahut kuchh sochane par majboor kartee hain.
Jahan tak prashnon ka saval hai to,
mudde to apne sabhee bahut hee aham uthae hain.In muddon par to ham sabhee ko chintan karne kee jaroorat hai.
Lekin apne savalon ko jis dhang se prashn patra ke roop men likha hai ,yah to ek naya prayog hai.Apko is naye prayog ke liye hardik badhai.
Hemant Kumar
आपके इन यक्ष प्रश्नों के यदि सही उत्तर मिल तो हमारा हिन्द गुल्ज़ार बन जाए जी. शायद बनेगा एक दिन. नया ज़माना आएगा.
सारे प्रश्नों का जवाब मेरी समझ से एक ही है....वो है....भारत के इन कतिपय नेताओं.....नौकरशाहों.....और तमाम प्रकार के "देशद्रोहियों" टाइप के लोगों को सड़क पर नंगा करके इतने कौड़े..... इतने कौड़े......मारो की उनको नानी...दादी.....लक्कार्दादी....सब के सब याद आ जायें....हम सब भारतीयों को असल में अपने चरित्र की बाबत नए सिरे से सोचने की जरुरत है.....एक देश को मिसाल बनाने के लिए पहले तो ख़ुद को मिसाल बनना पड़ता है.....नेता हमारा ही तो आईना हैं....यानि नेता हम ख़ुद ही तो हैं.....ऐसा लगता है कि हम वहाँ होते तो ये करते मगर किसी भी सही जगह पर पहुँच कर हम भी वाही करने लगते हैं....जो नेता...अफसर...और एनी सरकारी लोग करते हैं....आम जीवन में भी कौन सा हम मिसाल वाला सामान्य सा काम करने की चेष्टा करते हैं.....!!??
आपका चिंतन बेहद सटीक है बहुत सुंदर ..
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