Friday, December 12, 2008

मज़ाक , नहीं , सीरियस

सुविधा संतुलन और वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनजर शीर्षक में के दो कोमा में से एक हटाने की सुविधा /

कलकल करती नदी
किनारे, चट्टानें, बन, पेड़, पहाड़
शीतल छाँव घनेरी

काश -साथ में तुम होतीं

पल्लव रंगविरंगे
पक्षीदल की चहक सुहानी
शीतल मंद समीर

काश -साथ में तुम होतीं

नदी में मगरमच्छ मुंहफाड़े
तड़पते भूंखे बेचारे
द्रवित मन मेरा
किसको अब में धक्का मारूं
कैसे उनकी भूंख मिटाऊँ

काश -साथ में तुम होती

18 comments:

!!अक्षय-मन!! said...

areyyyy wakai.......
bahut accha kash tum hoti kitni apeksha karta hai ek aadmi aurat se..........
har baat mei kash tum hoti......

रश्मि प्रभा... said...

magarmachh ki bhukh me tum hoti.....samajhna aasan nahi

Dr.Bhawna Kunwar said...

agar tum hoti to tum magarmach ki bhukh shant karti....yah tatparya ha kaya sir ji...

BrijmohanShrivastava said...

ये साधारण सा , पति पत्नी के बीच होने वाला, हास परिहास है ,मै कौन सचमुच में धक्का मरने वाला था ,क्योंकि उलटा भी हो सकता था

ss said...

क्या बात है....गर्द में तुम गुबार में तुम, जीत में तुम हार में तुम| हर वक्त बस "काश -साथ में तुम होती" | खुबसूरत बन पड़ा है|

गौतम राजऋषि said...

भाभी ने पढ़ी है कि नहीं ये?

Abhishek Ojha said...

आखिरी वाला ही सीरियस लगा :-)

sarita argarey said...

सिरियसली बता दीजिए ये फ़ार्मूला अब तक कितनी आज़मा चुके हैं । अब की बार ज़रा बचके ....। मगरमच्छ के मुंह में जाने की बारी कहीं आपकी ना हो ....तैयारी रखिएगा । ज़माना बदल चुका है ।

पूनम श्रीवास्तव said...

Respected Srivastav ji,
Mere blog ko padhne aur tareef ke liye dhanyavad.Asha hai age bhee meria utsah badhayenge.Apke teenon blogs par mujhe ek alag hee shalee ka vyangya padhane ko mila.Kafee rochak aur manoranjak hone kwe sath apke vyangya dil men chubhne vale hain.meree shubhkamnaen.
Poonam

Vineeta Yashsavi said...

नदी में मगरमच्छ मुंहफाड़े
तड़पते भूंखे बेचारे
द्रवित मन मेरा
किसको अब में धक्का मारूं
कैसे उनकी भूंख मिटाऊँ

काश -साथ में तुम होती

इस पैराग्राफ में भाभीजी की क्या टिप्पणी थी

Bahadur Patel said...

wakai achchha hai.badhai.

कडुवासच said...

... प्रसंशनीय व जबरदस्त अभिव्यक्ति है।

sanjay jain said...

श्री वास्तव सा. स्वयं को द्रवित मन का बता कर बहुत कठोर एवम सटीक व्यंग किया है / आज के युग में मगरमच्छो की भूख '' काश तुम '' से मिटने वाली नहीं है इसलिए धक्का देने के लिए औरो की तलाश हेतु ब्लॉग पर एक विज्ञापन और तैयार कीजिये /

Satish Saxena said...

क्यों बुढापे में पंगा ले रहे हो भाई जान ?

रंजना said...

वाह ! वाह ! वाह ! लाजवाब !
कोमल भावों को अभिव्यक्त करते करते अचानक यूँ व्यंग्य ..... लाजवाब...

Meenakshi Kandwal said...

हा हा हा... वाह! मज़ा आ गया...
सरप्राइज़ पैकेज था :)

प्रदीप मानोरिया said...

सार्थक पंक्तियाँ सुंदर विचार यथार्थ को उकेरते आपके गहरे विचार और मजेदार
अत्यन्त भावभीनी अभिव्यक्ति

Unknown said...

कलकल करती नदी
किनारे, चट्टानें, बन, पेड़, पहाड़
शीतल छाँव घनेरी
काश -साथ में तुम होतीं
पल्लव रंगविरंगे
पक्षीदल की चहक सुहानी
शीतल मंद समीर
काश -साथ में तुम होतीं apane partner se duri ko itana achhe se bataya hai ki dil bag bag ho gaya.......shayad sachchha pyar inhi rupo me hame apane saathi se jodata hai.chahe wo kitni bhi dur kyu na ho....BADHAYIE HO PAPAJI