ये क्या मुझको धक्का देंगे ,एक हाथ का जिगर चाहिए
हाँ वैसे छोटे जीवन में कुछ मजाक कर लेना चाहिए
आफिस में डांट खाते घर आकर झल्लाते
काक्रोच दिख जाए तो पलंग पर चढ़ जाते
चोर से डरते भूत से डरते
मुझे जगा लाईट जलवाते
बाथरूम तक तो अकेले जा नही पाते
सहेलियां मिलती हैं और पूछती हैं मुझसे
कहो बहिन तुम कैसी हो
मै कहती हूँ अच्छी हूँ
फिर पूछती बच्चे कैसे ,मै कहती हूँ अच्छे हैं
इनका पूछें तो कहती हूँ "न होने से अच्छे हैं
भूंखे मगरमच्छ को देखा ,पूछो इनसे
इनके कपड़े धोये किसने
एक दिन तो होना ही है
उस दिन ही निर्णय हो जाता
भूंखे मगरमच्छ के आगे
एक मामला तय हो जाता
काश साथ में मै होती
Monday, December 15, 2008
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20 comments:
अब समझ गया सर जी काश .......
और छोटे जीवन में मजाक करने वाली बात बहुत गहरी है ...
चोर से डरते भूत से डरते और काक्रोच वाली बात में जो रोमांच लाया गया है अदभुत....
न होने से अच्छे हैं ये तो बहुत ही तगड़ा व्यंग है जबरदस्त ......
और लास्ट की पंक्तियों के बारे में कुछ नही कहूंगा वो आपका मन समझता है :)
उस काश!में आती बेबसी हाय जान ले लेती है....
अक्षय-मन
bahut sundar ...
श्रीवास्तव साहेब,
काश! तुम साथ होती
काश!! मैं साथ होती
इन पंक्तियों के बीच जो है वही जीवन है. बहुत ही सुन्दर.
मुकेश कुमार तिवारी
vyang-lekhan ek anupam vidha hai,
iss mei ktaaksh ke maadhyam se ythaarth tak pahunchna kai baar bahot sehaj ho jata hai.
likhte rahiye...safalta aapke qadam choomegi..(dhule hue!!)
---MUFLIS---
jawaab ke saath rachna me pran pad gaye hain......
यानि कि भाभी जी ने वो पहले वाली रचना पढ़ी थी...
सुभानल्लाह!!
आपको मैंने पहले भी आगाह किया था कि पंगे मत लो ......
....Ab kavita puri ho gayi
Wah..wah
Sir,
Apke vyangya padh kar ..Sharad joshievam parsai ji yad aa jate hain.Meree tareef ke liye bahut bahut dhanyavad.
Poonam
निर्णय की घड़ी आ गई है भूखे मगरमच्छ सामने खड़े है केवल धक्का देने व खाने वालो का इंतजार है /
ये क्या मुझको धक्का देंगे ,एक हाथ का जिगर चाहिए
हाँ वैसे छोटे जीवन में कुछ मजाक कर लेना चाहिए
पति पत्नी के बीच का मजाक व व्यंग सुंदर है /
वाह ! बहुत खूब........ एकदम सही कहा...
छोटे छोटे वाक्य में गहरी गहरी बात....
aap mujhse ranjurathour@gmail.com par sampark kar sakte hain.
aapke bahumoolya sujhaav dwara mera maargdarshan karne ke liye kotishah aabhaar.
वाह! जारी रहें.
लीजीये मिल गया जवाब? और कहिये "काश साथ में तुम होती"।
श्रीवास्तव आपका लेखन बहुत पैना हो गया है धार बहुत तेज़ होती जा रही है .. बधाई मेरे ब्लॉग पर आकार अथ जूता वृत्तांत पढ़ें
आप के लिखने में बहुत पैनापन है..
जो व्यंग्य लेखन में जरुरी है ही.
कविता mein इस 'काश' में न जाने कितनी संभावनाएं छुपी हैं..
कविता में गंभीरता को व्यंग्य की चाशनी में लपेट कर प्रस्तुति अच्छी लगी.
इसे कहते हैं नहले पे देहला...
ऑफिस की सारी फ्रस्टेशन आपकी इस कविता के बाद छू हो गई है। आगे भी लिखते रहें।
Bhai shrivastv ji'
it is very intrestin to read your writing work . Iwill write some new articals on my blog. Thanks for comments.
आफिस में डांट खाते घर आकर झल्लाते
काक्रोच दिख जाए तो पलंग पर चढ़ जाते
चोर से डरते भूत से डरते
मुझे जगा लाईट जलवाते
बाथरूम तक तो अकेले जा नही पाते
wakyee har pati k yahi haal hote hai.........
भूंखे मगरमच्छ को देखा ,पूछो इनसे
इनके कपड़े धोये किसने wah kya katila haasya hai........
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