इस संसार में चर, अचर, सचराचर जितने प्राणी हैं उनमें एक जीव ऐसा भी है जिसे सजन कहा जाता है /यह सजन इस संसार में कुछ न कुछ ढूँढने के लिए ही अवतरित हुआ है /अब से चालीस- पचास साल पहले उससे कहा गया = ""ढूंढो ढूंढो रे साजना मेरे कान का बाला"" = अपनी इस खोज में वह सफल हो ही नहीं पाया था तब तक दूसरा आदेश प्रसारित हो गया ="" कहाँ गिर गया ढूंढो सजन बटन मेरे कुरते का"" =सिद्ध बात है उसमें भी वह असफल रहा तभी तो लगभग सभी म्यूजिक चैनल उनकी पुनाराब्रत्ति कर रहे है, बिल्कुल पत्र -स्मरण पत्र -परिपत्र और अर्ध शासकीय पत्र की तरह /आप ही बताइए कान का बाला और बटन यदि सजन को मिल गया होता तो वह टी वी पर क्यों बार बार, लगातार गाती =क्या पागल हुई है ? ऐसे ही में एक औरत को देखता हूँ, चिल्लाती है =""हाय मेरी कमर"" -दबाई लगती है- मुस्कराती है, मगर एक घंटे बाद फिर =हाय मेरी कमर =आखिर ऐसी कैसी दबाई है -दस साल से देख रहा हूँ =इलाज परमानेंट होना चाहिए
ऐसी बात नहीं है कि वह कुछ ढूंढता ही न हो ,ढूँढता है / आधुनिक संगीत में सुर-ताल, लय, गाना किस राग पर आधारित है तथा गाने के बोल के अर्थ ढूँढता है -हस्त रेखाओं में भविष्य और जन्मपत्री में भाग्य ढूँढता है -राजनीती में चरित्र और आधुनिक पीढ़ी में संस्कार ढूँढता है -वर्तमान समस्याओं का समाधान हजारों साल पुराने ग्रंथों में ढूँढता है /कुछ लोगों की आदत होती है की वे कुछ न कुछ ढूंढते ही रहते है -कहते है ढूँढने में हर्ज़ ही क्या है /
कुछ लोग अपनी दैनिक दिनचर्या को त्याग कर, जीवन का उद्देश्य ढूंढते है / हम कौन हैं ?क्या हैं? कहाँ से आए है?कहाँ जायेंगे ? क्या लाये थे ?क्या ले जायेंगे आदि-इत्यादि , और इस चक्कर में या तो वे कार्यालय देर से पहुँचते हैं ,या उनकी टेबिल पर फाइलों का अम्बार लग जाता है /उनकी पत्नियां सब्जी और आटे के पीपे का इंतज़ार करती रहती हैं / में कौन हूँ -कहाँ से आया हूँ क्यों आया हूँ ==अरे तू तू है घर से दफ्तर आया है काम करने आया है -बात ही ख़त्म /
कुछ लेखक लेख लिखकर डाक में डालकर चौथे दिन से पेपर में अपना नाम ढूढने लगते हैं ,उधर संपादक महोदय उस लेख को पढ़ते हैं तो टेबिल की दराज़ में सरदर्द की गोली ढूँढने लगते हैं और अगर छाप दिया तो पाठक क्या ढूडेगा कुआ या खाई /
इस धरती पर स्वर्ग और नरक ढूँढने वाले हजारों हैं जिनको यहाँ उपलब्ध नहीं हो पता है -वे ऊपर है इसी कल्पना करके जीवन जैसा जीना चाहिए वेसा जी नहीं पाते ,किसी ने कहा है =तू इसी धुन में रहा मर के मिलेगी जन्नत -तुझ को ऐ दोस्त न जीने का सलीका आया = इससे अच्छे तो कार्यालय के कर्मचारी होते हैं जिनका बॉस जब गुस्सा होता है और कहता है -गो टू हेल -तो वे सीधे अपने घर चले आते हैं /
कुछ लोग प्राप्त की उपेक्षा करके, अप्राप्त को प्राप्त कर सुख ढूँढने की चाह रखते हैं, तो, कोई तनाव ग्रस्त -हताश -उदास -निराश -चिंतित व्यक्ति परिश्रम खेल व्यायाम मित्र- मंडली, हँसी- मजाक को नज़र अंदाज़ कर, नींद की गोलियां ढूंढते है /कुछ युवक खेलना बंद करके जवानी में बुढापा और कुछ बुजुर्ग मनोरंजन को अपना साधन बना कर बुढापे में युवावस्था ढूंढते है /
कुछ लोग मूड ठीक करने और गम ग़लत करने क्या ढूँढ़ते है आप सब को पता है =मधुशाला= गन्ने के रस वाली नहीं -हरिबंश जी की मधुशाला भी नहीं बल्कि मधुशाला याने मयखाना =मुझे पीने का शौक नहीं पीता हूँ गम भुलाने को =मगर होता इसके बिल्कुल विपरीत है ==आए थे हँसते खेलते मयखाने की तरफ़ -जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए /
मजेदार बात देखिये ऐसी बात तक बताई जाती है कि ""कहते है उम्रे-रफ्ता कभी लौटती नहीं -जा मयकदे से मेरी जवानी उठा के ला ""अब जो मयखाने में जवानी ढूँढेगा उस का क्या होगा /एक जवानी और पडी मिलेगी कहीं नाली में /
सार बात यह कि सजन को जो ढूंढ़ना चाहिए वह न ढूंढ कर ,जो नहीं ढूँढना चाहिए वह ढूंढता है ,इसी लिए वह अभी तक सजन है नहीं तो कभी का सज्जन बन चुका होता /
Tuesday, February 24, 2009
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25 comments:
सार बात यह कि सजन को जो ढूंढ़ना चाहिए वह न ढूंढ कर ,जो नहीं ढूँढना चाहिए वह ढूंढता है ,इसी लिए वह अभी तक सजन है नहीं तो कभी का सज्जन बन चुका होता /
Bahut khub...
aajkal aap blog mai bahut kam ane lage hai...
कुछ लोग मूड ठीक करने और गम ग़लत करने क्या ढूँढ़ते है आप सब को पता है =मधुशाला= गन्ने के रस वाली नहीं -हरिबंश जी की मधुशाला भी नहीं बल्कि मधुशाला याने मयखाना =मुझे पीने का शौक नहीं पीता हूँ गम भुलाने को =मगर होता इसके बिल्कुल विपरीत है ==आए थे हँसते खेलते मयखाने की तरफ़ -जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए..... ye to bilkul sahi kaha aapne gum me pine se to aur aansu bhne lagte hain...dard khan kum hota hai...!!
ज़ोरदार है साहब
---
चाँद, बादल और शाम
जोरदार विवेचन किया है आपने, बधाई।
खोज जारी है, यानी ढूंढ़ना ...
मुझे एक मजेदार शेर याद आ गया..पहले उसे लिख दू -
" फालतू ना बैठ, कुछ किया कर
भले ही अपना पायजामा फाड़ कर सिया कर "
बस कुछ इस तरह का ही माहोल है.
...सार बात यह कि सजन को जो ढूंढ़ना चाहिए वह न ढूंढ कर ,जो नहीं ढूँढना चाहिए वह ढूंढता है ,इसी लिए वह अभी तक सजन है नहीं तो कभी का सज्जन बन चुका होता /"
यही तो जिंदगी का असल सच है.
बहुत अच्छी लगी रचना ..अब आप तो महारथी है ही इस तरह के लेखन के..बहुत दिनों बाद कुछ लिखा आपने..इस क्रम को तेज़ करे तो मुझ जेसो के लिए बेहतर होगा.
आधुनिक संगीत में सुर-ताल, लय, गाना किस राग पर आधारित है तथा गाने के बोल के अर्थ ढूँढता है -हस्त रेखाओं में भविष्य और जन्मपत्री में भाग्य ढूँढता है -राजनीती में चरित्र और आधुनिक पीढ़ी में संस्कार ढूँढता है - अरे अरे सारी पोल खोल रहे है आप तो...
बहुत ही सउंदर लेख लिखा आप ने .
धन्यवाद
आप भी वकील साब कहाँ-कहाँ से लाते हो विशय-वस्तु निकाल के,हम तो बस ठहाके लगाते रह जाते हैं....
बस हंसते-हंसते पेट में बल पड़ गए!
rochak rachna
बेचारे साजना जी लगता है ढ़ूढ़ने के लिए ही बने है । कभी बेचारे को बाला ढ़ूढ़ने की इजाजत मिलती है तो कभी बटन । बेचार क्या करे परेशान रहते है और इसी परेशानी के कारण कुछ नही निकाल पाते है । बहुत ही रोचक रचना आपने लिखा है । शुक्रिया
हस्त रेखाओं में भविष्य और जन्मपत्री में भाग्य ढूँढता है -राजनीती में चरित्र और आधुनिक पीढ़ी में संस्कार ढूँढता है
वाह हर बार की तरह इस बार भी एक शानदार आलेख. बहुत खूब. नमन आपका.
सार बात यह कि सजन को जो ढूंढ़ना चाहिए वह न ढूंढ कर ,जो नहीं ढूँढना चाहिए वह ढूंढता है ,इसी लिए वह अभी तक सजन है नहीं तो कभी का सज्जन बन चुका होता /
बहुत ही सच बात लिखी है आप ने.
[बेशक yah lekh व्यंग्य है.मगर आज आप के इस लेख में रोष नज़र आ रहा है.]
बहुत सुन्दर तरीके से आपने अपनी बात कह दी है, बधाई।
वाह जनाब ,सजन जैसी बला पर बहुत ही वजन दार लिखा है क्या खूब अनुसन्धान किया है आपने कुछ इत्मिनान और शकुन के पल खोजने हम भी चले आते है आप के ब्लॉग पर.बॉस का go to हेल कहना और वे अपने घर चले जाते है /बहुत ही व्यंगात्मक sachchhai है
बहुत दिनों बाद आये और अपने लेखन कौशल से हमको तरोताजा कर गए. साधुवाद.
great going..........kamal kar diya sirji aapne to.....bahut shandar lekh ke liye our kai dino baad hansane ke liye kotish badhayee..............
आदरणीय श्रीवास्तव जी ,
आपके व्यंग्य काफी चुटीले हैं .पाठक को सोचने के लिए विवश कर देते हैं .बधाई .
आपकी टिप्पणियां मेरे लेखन प्रक्रिया को समृद्ध बनाती हैं ,मुझे नया लिखने के लिए उत्साहित करती हैं .आशा है आप आगे भी मेरा उत्साह बढायेंगे .
पूनम
वाह वाह श्रीवास्तव जी गज़ब कर दिया आपने तो इतनी बारीक दृष्टि और उसकी बारीक और सहज अभिव्यक्ति
ची. पंकज और पावस के सुखमय दांपत्य जीवन के लिए मेरी शुभ कामनाएं स्वीकार करें
क्या कहूँ......मैं भी शब्द ढूंढ रही हूँ,जिसमे अपने भाव बाँध कर बयां कर सकूँ....
पर, नहीं मिल रहा.........जैसे सजनजी को झुमका ,बटन नहीं मिला.......
लाजवाब व्यंग्य है......पेट में बल पड़ गए हंसते हंसते....
पर यह सुद्ध हास्य नहीं....गंभीर हास्य रस है....जो रस में सराबोर भी करता है और सोचने को मजबूर भी ......
बहुत बहुत बढ़िया....आपकी लेखनी को नमन....
भई वाह्! अजी ऎसा उम्दा न लिखा कीजिए,हमारा तो पेट दुखने लगा है.और श्रीवास्तव जी,आजकल लिखते लिखते अचानक ही आप कहां गायब हो जाते हो?
वाकई लाजवाब भाई जी ! आपभी लगता है कहीं व्यस्त हैं ? लेख कम क्यों ?
Holi ki hardik shubkamnayen.
होली के अवसर पर सादर नमन!
बहुत दिनों की चुप्पी के मुआफी चाहूंगा. आपके आशीर्वाद से मैं अब बिल्कुल ठीक हूँ.
सजन से सज्जन के बीच का सफर बडे ही मजेदार रहा. यह बात बडी ही सच ही लिखी गई है आपके बारे में कि बहुत ही चुटीले / रोचक अंदाज में कडुआ सच परोस देते हैं. खाने वाला उफ्फ भी नहि कर सकता / रो भी नही सकता.
हम जैसे के लिये तो पाठशाला हो जाता है यह ब्लॉग.
आपकी कृपा और आशीर्वाद बना रहे है.
मुकेश कुमार तिवारी
Respected Srivastav ji ,
a long back we have discusd on some importent contomporery issues.
I have invited your valuable suggustions .
सच कहा आपने बृजमोहन जी...
दिल हमेशा उन चीजों के लिए मचलता है जो उसे नहीं मिल सकती..हम उनके पीछे भागते है जो हमारा नहीं है और उनको अनदेखा करते है जो वाकई में हमारा अपना है..
सुन्दर लेख के लिए बधाई..
अगले पोस्ट के इंतजार में..
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