मैं एक पारिवारिक पत्रिका पढ़ रहा था /उसमे विबिध सामग्री रहती है /लायब्रेरी से घर ले आया /बड़ी उपयोगी बातें होती हैं -एक उपयोगी विधि थी ,रात के बचे चावलों का उपयोग /सुबह मैंने देखा एक किलो चावल पके हुए रखे हैं ,जो रेसिपी ;के मुताबिक उपयोग करने रात को पका कर फ्रीज़ में रख दिए गए थे /फ्रीज़ भी गज़ब की उपयोगी चीज़ है इसमें बस्तु तब तक रखी जा सकती है तब तक की वह फैकने लायक न हो जाये
उस पत्रिका में एक लेख था -उसमे क्या हरेक में होता है ,हर दूसरा लेख स्त्री विमर्श पर ,हर तीसरी कविता महिला उत्पीडन पर और हर चौथी कहानी पुरुष प्रधान समाज पर /लगता है जैसेसाहित्य ;में ,भक्तिकाल ,बीरगाथाकाल ,रीतिकाल हो चुके है वैसे ही शायद आज का साहित्य पुरुषप्रधानसमाज काल होगा /खैर
तो उसमे एक लेख था जो भावावेश में ,क्रोधित या दुखी होकर लिखा गया था लेख बड़ा था किन्तु उसका मंतव्य केवल मात्र इनता था कि -पत्नी द्वारा पति को साहब शब्द प्रयोग करना गुलामी मानसिकता का प्रतीक होता है ,इसमें साहब और नौकर के सम्बन्ध जैसी बू आती है ,ऐसे प्रयोग वर्जित होना चाहिए ,पति पत्नी का मित्र होता है साहब नहीं /
यदि किसी के अहम को चोट न लगे तो मेरा विनम्र निवेदन यह है कि =
प्रात: नौ बजे से शाम छै:बजे तक ,फाइलों से माथापच्ची करने ,परिवार को ज़रूरियत मुहैया करने कि लिए पसीना वहाने बाले को यदि पत्नी ने साहब शब्द का प्रयोग कर दिया तो न तो वह दयनीय हुई ,न सोचनीय और न उसने कोई अहसान किया है /तांगे में जुतने वाले घोडे को भी खुर्रा किया जाता है सहलाया जाता है पीठ थपथपाई जाती है तो पति नमक प्राणी भी इन्सान है /
जब हम भी कह देते हैं कि मैडम घर पर नहीं है ,या श्रीमती जी बाज़ार गई हैं तो पत्नी ने अगर कह दिया कि साहब घर पर नहीं है तो वह कौनसे उत्पीडन का शिकार हो गई /पति को अगर स्वामी कह दिया तो वह शब्दार्थ की द्रष्टि से ,साहित्य की द्रष्टि से या मानसिकता के लिहाज़ से उपयुक्त ही है /जो है उसको वह कहना अपराध नहीं है /
युद्धसिंहजी ने किसी नवाब को गधा कह दिया ,मान हानी का दावा ,युद्धसिंह पर जुर्माना /युद्ध सिंह का अदालत से निवेदन .हुकम आयन्दा किसी नवाब को गधा नहीं कहूंगा /पण म्हारो यो अरज छै कि किसी गधे को तो नवाब साहिब कह सकूं /या में तो अपराध णी बणे /जज ने किताबें देखी दफा ५०० बगैरा, बोले नहीं /युद्धसिंह जी ने भरे इजलास में ,नवाब साहिब की ओर मुखातिब होकर ,मुस्करा कर कहा ;नवाब सा'ब= न म स का र/
खैर मूल बात =पति शब्द का शाब्दिक अर्थ ही होता है स्वामी /यथा महीपति ,भूपति ,करोड़पति आदि ,/वास्तब में पति स्वामी होता है किन्तु वह पत्नी का नहीं बल्कि गृह का स्वामी होता है और पत्नी गृह स्वामिनी /स्वामी को स्वामी और स्वामिनी को स्वामिनी कह देने पर किसके सम्मान को कहाँ ठेस लग गई /आगंतुक गृह स्वामी को तलाश करने आया है और अगर पत्नी ने कह दिया कि साहब घर पर नहीं तो कौनसा पहाड़ टूट गया /इसमें कहाँ तो पत्नी का आत्मसम्मान कम हो गया और कहाँ वह सोचनीय हो गई /क्या आगंतुक से यह कहा जाता कि बृजमोहन घर पर नहीं है या कि मेरा आदमी घर पर नहीं है =
या कि मेरा मरद घर पर नहीं है और मानलो पत्नी गुस्से में है ,क्रोधित है ,परेशान है और जैसा कि हम लोग गुस्से में नामुराद ,नामाकूल ,नालायक जैसे शब्दों का प्रयोग कर देते है वैसे ही क्या पत्नी अपने मरद के लिए कहदे कि .......घर में नहीं है /
पति पत्नी एक दूसरे को आदर सूचक शब्दों का प्रयोग करें -करना ही चाहिए /मगर विचारधारा तो यह चल रही है कि हज़ार साल पहले यदि सताया गया ,शोषण किया गया ,दवा कर रखा गया तो उसका बदला आज लिया जाए /
Monday, March 23, 2009
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25 comments:
sammanjanak shabdon ka vyavahaar to har rishte me zaruri hai.....
हर सम्बन्ध में व्यवहार हेतु 'संबोधन जरुरी है और संबोधन में सम्मान होना भी जरुरी है..सम्मान पाने के लिए सम्मान देना भी जरुरी है इस लिए अगर पति 'पत्नी को - मैडम घर पर नहीं 'या पत्नी 'साहब घर पर नहीं 'कह कर किसी को सूचित कर रही है ..तो गलत कहीं कोई नहीं..
यह तो व्यवहार का तरीका है.अब इस से भी शिकायतें होनी लगीं या यहाँ भी उंच -नीच--या स्त्री -पुरुष की बराबरी की बात होने लगे तो बात कुछ समझ नहीं आती है.
waise aap ki yah baat sach hi hai--
दूसरा लेख स्त्री विमर्श पर ,हर तीसरी कविता महिला उत्पीडन पर और हर चौथी कहानी पुरुष प्रधान समाज पर है -
दूसरा लेख स्त्री विमर्श पर ,हर तीसरी कविता महिला उत्पीडन पर और हर चौथी कहानी पुरुष प्रधान समाज पर है
अरे किसी थाने दारनी ने यह शव्द पढ लिये तो....
यार हम तो साहब बनाने के लिये तरस गये... हमे तो हर वक्त हां जी, ना जी, सुनो जी ही सुनाना पढता है, ओर उन्हे....
बहुत ही सुंदर लिखा है आप ने. धन्यवाद
क्यों बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया भाई।
बहुत बढ़िया...
'मगर विचारधारा तो यह चल रही है कि हज़ार साल पहले यदि सताया गया ,शोषण किया गया ,दवा कर रखा गया तो उसका बदला आज लिया जाए /'
- शोषण तो आज भी हो रहा है. समर्थ अपेक्षाकृत असमर्थ का शोषण कर रहा है. यदि बुद्धि का समुचित विकास नहीं हुआ है और संस्कार नही मिले हैं तो पति पत्नी का और पत्नी पति का शोषण कर रहा है. भारत में विगत में शूद्रों के किये शोषण का बदला वर्तमान में सवर्णों की औलादों से लिया जा रहा है.
Shrivastav ji tippanee padhee....abhitak wo blog,jahan aapne tipanee dee, doosare kisee chitthese judaa nahee hai...
Wahanpe lekh publish isliye karna padta hai ki "edit mode"me jaanepe editing nahee ho paatee...
edited version ab publish huaa hai...
asuvidhake liye kshama prarthi hun...
wo mere mukhy blogpebhee hai...
Shama
Brijmohan ji, aapki tippadi ki wajah se Science Blogger Association par kaafi vivaad ho gaya hai. Aapse nivedan hai ki kripya Kal subah 10 baje tak apni baat spasht kar den, anyatha hamen aapki tippadi delete karni paregi.
-Zakir Ali Rajnish
श्रीवास्तव जी, आप भी कहां बीन बजाने लगे...ब्लागिंग कोई ऎसी बातें करने के लिए थोडी की जाती है.....कोई कविता सुनाईये,चुटुकुले सुनाईये,हा हा ही ही कीजि,नारी के सम्मान में कसीदे पढिए,उनके बराबरी के हक के बारे में लिखिए,कोई ओर विषय न मिले तो किसी की टांग खिंचाई ही कर दीजिए.........अब आपने ऎसी गलती कर ही दी है तो देख लेना अभी कोई नारीमुक्ति का झंडा उठाए आने वाली ही होगी.
हा हा हा हा....आनंद आ गया आपका आलेख पढ़कर और टिप्पणियां भी बहुत मजेदार हैं....इस मसले को छूना माने बर्रे के छत्ते में हाथ डालना....
मेरे जेठ जी को बचपन में जब वे नानी जी के घर गए थे,एक काले चूंटे ने काटकर खून निकाल दिया......तब से लेकर आजतक वो कभी भी ,कहीं भी , किसी चूंटे को जिन्दा नहीं छोड़ते...
आज की नारीवादियों(अतिवादियों) का भी वही हाल है.....एक ही मकसद है ...किसी भी बात में से लड़ने भिड़ने लायक कोई बात निकाल कर पिल पडो....
अंग्रेजी में बड़े छोटे सबके लिए you प्रयुक्त होता है...हमारे यहाँ छोटों बड़ों के लिए अलग अलग संबोधन हैं. पति जो अधिकांशतः स्त्री से वे में बड़ा होता है तो उसे यदि संबोधित करेंगे तो ' अरे हरिया ' कहकर निश्चित ही नहीं करेंगे....
बड़ों को नाम से नहीं पुकारा जाता,यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है,यदि माने तो...
मैं भी पति को 'बॉस' कहती हूँ और वो मुझे कभी भी तुम नहीं कहते....
क्या जोरदार लेख है।
दीपक भारतदीप
बृजमोहन जी, गलती मेरी ही थी. पता नहीं किस मूड में आपकी टिप्पणी की अपने ढंग से व्याख्या कर गया (या अंदाजा लगाने लगा) जिसके चक्कर में बात का बतंगड़ बन गया. बहरहाल पूरे घटनाक्रम के लिए मैं आपसे क्षमाप्रार्थी हूँ.
padh li...
barre ke chhtte se bach kar nikal jane me hi bhala rahta hai...
bhains ke aage been bajaye,bhains rahi paguraay.
jo nahi sunna samajhna chahte ,unke saamne apni urja lagana,apni urja ko naale me daalne ke barabar hai...
आदरणीय श्रीवास्तव साहेब,
आदर, सम्मानजनक, शब्दों का चयन हर व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह किसके लिये, किन परिस्थितियों और क्यों किसी संबोधन को निर्धारित करता है.
वहीं हर किसी मौके पर बिना बात को समझे झंडा उठा लेना यह आज के दौर कि फितरत होता जा रहा है. बहुत अच्छी कान खिंचाई की है.
मुकेश कुमार तिवारी
स्त्री उत्पीडन समाज का कड़वा सच है और प्रत्येक संवेदनशील पुरुष को इन घटनाओं से उससे ज्यादा पीडा पहुचती है जितना फोटो खिचवाने और अख़बार में छपने को व्याकुल तथाकथित स्त्री वादी धकोसलेबाजों को पहुचती होगी . क्या स्त्री द्वारा अपने पति को सम्मानजनक शब्दों से संबोधित करना भी स्त्री उत्पीडन की श्रेणी में आ सकता है ? परिवार का स्तित्व ही समर्पण एवं परस्पर सम्मान पर टिका है. हमारी भारतीय परिवार व्यवस्था कुछेक कमियों के वावजूद दुनिया में सबसे सफल है. नारीवादियों द्वारा समर्थित "पश्चिमी परिवार व्यवस्था" उन्हें ही मुबारक .
जबरदस्त चरचा....
और ऐसी कितनी ही पत्रिकाओं से आये दिन मिलता हूँ और आपने ध्यान दिलाया तो लगा सचमुच...
इसी बहाने अच्छी बहस छिड़ गयी
हर नाम के साथ एक उपनाम जुड़ा होता है अगर नाम को सुन्दर तरीके से व्यक्त किया जाये तो उसमें एक मादकता आती है खासकर महिलाओ के नाम पर उसी तरह पुरूष के साथ भी होता है । फिर इसमें बुराई क्या है यह तो रिश्तो को औऱ भी मजबूत करता है शुक्रिया
Bahut hi sahaj shabdon mein 'Swami' aur 'Swamini' ka sambandh bataya aapne, magar kya karein ki log baal ki hi khal nikalne lag jayein !
महोदय एक पुरानी कहावत है कि -
'' नारी कल भी भारी थी , नारी आज भी भारी है ''
'' पुरुष कल भी आभारी था , पुरुष आज भी आभारी है ''
यह पुरुष वर्ग की गलत फहमी है जो नारी को कमजोर समझ रहा है /
रही सम्मानजनक शब्दों की बात तो व्यक्ति को प्राणी मात्र के प्रति करूणा और सम्मान की भावना रखनी चाहिये /
बेलाग बिंदास जबरदस्त यह तरीका तो आपके पास ही है श्रीवास्तव जी आपकी विचार श्रंखला कहाँ कहाँ तक जाती है और उनको शब्दों में पिरो कर प्रवाह क्रम को स्कह्लित किये बिना ... वाह वाह सलाम आपको
मेरी ब्लॉग जगत से लम्बी अनुपस्तिथि के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ
Kaafi achchi aur lambi bahas chidi hai....masla jaroor najuk hai ....lekin bebuniyaad nahi...sammanjanak shabdo ka proyog to kerna hi chahiye....fir chahe koi bhi ho....yahan to pati aur patni ke sambandho ki jang chidi hai....bhai vaah....very interesting.....ek baat aur ....shrivastavji....aap kabhi bhi depression mein na jaye....sada khush rahe ....aisi meri aapke liye shubh kamna hai....
With regards....
नमस्ते सर,
आप ने ब्लॉग पर ३ सप्ताह से कुछ नहीं लिखा.
अगर एक-दो लोगों की वजह से एक अच्छा ब्लॉगर हिंदी ब्लॉग जगत खोता है तो यह हिंदी ब्लॉग जगत का नुक्सान ही है.
आशा है आप उन १-२ व्यक्तियों /आलोचकों की वजह से अपनी लेखनी को लिखने से नहीं रोकेंगे.हर तरह के लोग इस दुनिया में हैं हर कोई दूसरे से सहमत हो यह जरुरी नहीं,न ही हम सब को खुश कर सकते हैं.आशा है ,आप अपने पाठकों को निराश नहीं करेंगे.हम आप का सम्मान करते हैं और umeed bhi ki जल्दी ही कोई नयी पोस्ट publish करेंगे.
आभार सहित,
alpana
आजकल अधिक व्यस्तता है क्या। आपकी नई पोस्ट की प्रतीक्षा है।
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खुशियों का विज्ञान-3
एक साइंटिस्ट का दुखद अंत
पहले तो मै आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी !
आपकी शानदार शायरी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया !
श्रीवास्तव जी, लगता है आप तो हम लोगों से भी नाराज हो गये।
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TSALIIM.
-SBAI-
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