एक दिन मैंने ,अपने एक टिप्पणीकार मित्र से पूछा कि कल तुमने जिस कविता पर टिप्पणी दी थी कि ""अति सुंदर भावः प्रधान रचना ""उसमे क्या खासियत थी ? बोले -ध्यान नहीं आ रहा है /मैंने कहा भैया कल ही तो तुमने टिप्पणी की है / बोले - की होगी यार ,भैया रोजाना पचासों कविताओं पर टिप्पणी करना पड़ता है /
वैसे टिप्पणीकार का काम कठिन तो होता है /उसे रचना दो तीन मर्तवा ध्यान से पढना होता है ,उसमे गलतियाँ निकलना ,आक्षेप करना ,कटाक्ष ,आलोचना समालोचना ,करना होती है /उससे मिलते शेर ,शायरी ,कविता ,लेख का हवाला देना होता है और स्वम का मत देना होता है /
यह भी सही है कि आलोचना से साहित्यकार घबराता भी है और डरता भी है /
एक शायर ने कहा है "" हुस्नवाले ( माफ़ करना शायर ने यही शब्द प्रयोग किया है किन्तु किसी को नागवार गुजरे इस लिए शेर में उस शब्द का स्थान में रिक्त छोड़ रहा हूँ ) हां तो -
...........,हर मोड़ पे ,रुक रुक के सम्हालते क्यों हैं
इतना डरते है तो फिर, घर से निकलते क्यों हैं
साहित्यिक पत्रिकाओं में तो टिप्पणी की कोई गुंजाईश ही नहीं होती /ज्यादा से ज्यादा संपादक के नाम पत्र भेजदो ,तो वह तीन माह बाद की पत्रिका में छपता है ,वह भी संपादक की मर्जी छापे या न छापे /मगर यहाँ तो पूरी स्वतंत्रता है /लेखक भी तैयारी के साथ आता है और टिप्पणीकार भी तैयारी के साथ आता है / दौनों ही पक्ष आये हैं , तैयारियों के साथ
हम गर्दनों के साथ हैं ,वो आरियों के साथ
कुछ सज्जन केवल लेखक होते है और कुछ केवल टिप्पणी कार होते है ( वैसे टिप्पणी कार भी टिप्पणी करते करते अन्ततोगत्वा लेखक हो ही जाते है ) और कुछ दोनो ही होते है लेखक और टिप्पणी कार भी /
एक उल्लू बेचने वाला उल्लू बेच रहा था /बडा उल्लू पचास का बच्चा उल्लू पॉँच सौ का / कारण ? उसने बताया कि साहब बडा तो केवल उल्लू ही है और छोटा तो उल्लू भी है और उल्लू का पट्ठा भी /(मै लिखता भी हूँ और टिप्पणी भी करता हूँ कोई अपने ऊपर न ले )
कुछ विद्वानों का मानना है कि टिप्पणी से साहित्यकार का उत्साह वर्धन होता है /यदि किसी ने तारीफ (झूंठी ही सही ) करदी तो उत्साहित होकर लिखने लगा और किसी ने बुरी करदी तो हतोत्साहित हो गया / वह क्या साहित्यकार हुआ ? किसी ने मुझे गधा कह दिया और मैं फ़ौरन दुल्लती मरने लगा तो मैं क्या आदमी हुआ ?
यद्यपि ,आमतौर पर साहित्यकार खुद्दार होता है और होना भी चाहिए
जो सर से लेकर पांव तक खुद्दार नहीं है
हाथों में कलम लेने का हकदार नहीं है
पुरानी बात है ,एक शायर महल (किला ,कोठी जो भी हो ) में जाया करते थे ,बादशाह भी शायर थे ,खूब पटती थी /एक दिन बादशाह सलामत ने शायर से पूछा " किवला ,कितने दिन में शेर कह लेते हो ? ( कह लेते हो मतलब लिख लेते हो ,यह शायरों की भाषा है ) शायर बोले ,हुजूर ,जब तबीयत लग जाती है तो एक दो माह में दो चार शेर कह लेता हूँ /बादशाह ने हंसकर फरमाया -जनाब दो चार शेर तो मैं यूं , पैखाने में बैठ कर ही, रोज़ कह लिया करता हूँ /शायर ने तुंरत कहा कि हुज़ूर उनमे वैसी बू भी आती है / और शायर महल छोड़ कर आगये और फिर कभी नहीं गए /
भगवती चरण जी ने जब चित्रलेखा लिखा तो कहा गया कि यह तो एक अंग्रेजी उपन्यास की नक़ल है /अभी दो तीन माह पूर्व एक विद्वान ने ""पाखी "" पत्रिका में लिखा कि मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'फूस की रात 'संसार की सबसे घटिया कहानी है /अब क्या कहें ,है तो है ,भैया अब तुम लिखदो संसार की सर्वश्रेष्ठ कहानी /
खैर लेखक और टिप्पणी कार या आलोचक यह तो साहित्य जगत के दो पहिये हैं ,दो पहियों के बिना गाडी नहीं चल पाती है /पहिये शब्द पर से मुझे याद आरहा है -
जब मेरी शादी हुई थी तब हमारे पंडित जी हमें उपदेश देने लगे -देखो बेटा ,यह गृहस्थी एक गाडी है ,इसमें स्त्री पुरुष दो पहिये हैं इनमे सामंजस्य होना चाहिए /मैंने पूछा पंडित जी यह बताओ कि गाडी में एक पहिया सायकल का और दूसरा ट्रेक्टर का लगा हो तो ? मुझे याद है ,पंडितजी ने मेरी पत्नी की ओर देखा ,मुस्कराए ,और चुप हो गए /
Friday, May 1, 2009
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30 comments:
आदरणीय श्रीवास्तव जी,
आपने तो टिप्पणी और टिप्पणीकारों के माध्यम से बहुत ढेर सारी बातें इस लेख में कह डालीं .
पढ़ कर अच्छा लगा. आपकी लेखन शैली और उसमें छिपे चुटीले व्यंग्य का भी जवाब नहीं.
शुभकामनाओं के साथ.
हेमंत कुमार
shrivastavaji,
tippani doo kya??????
sach me vyangya ke maadhyam se mudde ki baat kahnaa har kisi ke bas kaa knhaa hota he/ vese aap mujhse poochenge ki sabse pahle ki post par aapne kyaa tippani di thi to me aapko aksharshah bata dunga...poochenge to nahi na//kher..
दौनों ही पक्ष आये हैं , तैयारियों के साथ
हम गर्दनों के साथ हैं ,वो आरियों के साथ
aariyaa bothari ho gai he bhaisaaheb kyuki naa to sudhi pathak jyada rahe he aour naa hi samiksha kartaa....
koi shudhdh sahityakaar ho aour agar usne apni koi kitaab prakashit karaai ho to bechare ko kisi se samiksha karaane me bahut papd belna padte he..hnaa sthapito ki baat me nahi kar rahaa, aajkal sthaapito ki dukaan joro pe chal rahi he..sab karnaa padhtaa he..vrna unhe poochhegaa koun? aour lekhaadi ki samikshaa to door aajkal akhbaar, patrikaa vaale achche lekhadi ko pachaa bhi nahi paate, unke sab bandhe hue hote he...///bahut saari baate he...jaane dijiye...
vese aapki rachna mujhe bhaa gai..aapki kalam vese bhi bahut peni chalti rahi he,,ise chalaate rahiye..kyoki iski jaroorat aour kisi ko ho yaa naa ho, maga mujhe he.../////
एक पहिया सायकल का और दूसरा ट्रेक्टर का लगा हो तो ...??
अब ये बताने की जिल्लत भी कर दें आपकी पत्नी साईकिल है या ट्रेक्टर.....??
कमाल की पोस्ट ...ये झूठी तारीफ नहीं है ....ये सच है की टिप्पणीकार को खुद पता नहीं होता उसने किस पोस्ट पे क्या टिप्पणी की है ...!!!
ये पाखी पत्रिका वाले विद्वान् कौन हैं?
अपने टिप्पणी के जरिये आपने सब कुछ कह डाला । अच्छा कमेंट किया है आपने धन्यवाद
काश अपने ये हिंदी ब्लौग-जगत वाले कुछ सीख लें अगर आपके इस आलेख से...
श्रीवास्तव जी, आपकी लेखनी में कुछ ऎसा कमाल है,जो कि बहुत ही हल्के फुल्के तरीके से बडी गहरी बात कह जाते हैं.
यहां आपने उल्लुओं की सिर्फ दो ही श्रेणियां बताई है. जब कि हम जैसे लोगों के लिए एक और तीसरी श्रेणी भी होनी चाहिए थी, जो कि न तो पूरी तरह से लेखक ही बन पाए हैं और न हीं टिप्पणीकार..:))
श्रीवास्तव जी, हमने कभी पाखी तो पढी नहीं अलबत्ता मुंशी जी की पूस की रात सूनी ज़रूर है, अच्छी भी लगी और सच्ची भी.
Aapne behad achhese, sateek likhaa hai..merabhee anubhav hai, ki, kayee baar log, kewal aadaan pradan ke khatir tippanee kar jaate hain...
Aapkee tippaniyonko mai behad ehmiyat detee hun...kyonki yahaan koyee dikhavebaazee nahee...aisehee bloggers mai, gar kuchh likhtee hun, to seekhee hoon...aur unkee hameshaa shukrguzaar rahungee..
Aapki do tippaniyaan anuttarit reh gayeen theen...ek to "sila mil gaya", jispe aapne kaha," in panktiyonkaa sanshodhan hona chahiye". Kya aap mujhe, gar samay milnepar vistarse bata payenge? kyonki ioskaa arth mai waqayee nahee samahji..
Doosara, " jyoti buhjhee gayee", ispe aapne likha, ki ye yaa to mahantaa ho sakti hai"...( mera sangeet me agyanee hona).
Ye shat pratishat saty hai...sangeet aisaa mahasagar hai, jisme koyee gotaa laga le to, janm janmantar tak seepiyon me band bade mauktikon kee khoj khatm nahee hogee....yaa kahiye ratnonkee...mai qatayee mahan nahee...haan sangeet seekhnekaa( shatrrey) prayaas kartee rahee hun, lekin, mahasagarme dubkee to doorkee baat hai, kinarabhee door hai..seekhnekaa maqsadbhee itnahee raha,ki, kamse kam achha gayan samajh sakoon...aur jitnaa seekhne samajhnekee koshish kartee hun, khudko utnaahee adhik agyanee paatee hoon...yahee saty hai....
Mujhe yaqeen hai, ki aapne jistarah tippanee dee hai, aapko mujhse kaheen adhik gyan hoga...ek iltijaa hai, kyaa aap raagkaa sujhaav de sakte hain? Mishr raag ho yaa jobhee...lekin usme khaaskar "nee" aur wobhee komal, zaroor ho...warjya nahee...behad inkisaareeke saath aapke darpe aayee hun...aur mai to baar, baar keh chukee hun, ki mai to rachnaakaarbhi nahee keh sakti khudko...naahee lekhak..mera pesha to "gruhsajjaa" usse taalmel hotee any kalayen...!
Aaj phir ekbaar apnee "gardan" aapke saamne le aayeen hun...qatlse pehle mere sawalon ke jawab zaroor deden...!
Ek baar aapse daant bhee sunee, thee, jab kisee badeehi dardnaak ghatnaake karan mujhe apna URL ratoraat badal denaa pada tha..aapne "chindichindi" blog khol liya aur mujhe zordar daant sunaa dee! Khair, mujhe qatayee bura nahee laga...aaj uspe kaafee kuchh hai..mere jeevenkee poonjee , kahen to wahan hai..aisee chindionsehee maine apna sansaar khada kiya..grihasthee chalayee...( iske alawa 'fiber art'pebhee)
Ab itnee lambee chaudee baat keheneke karanbhee, aapkee daant sun leneke liye taiyyaar hun!
Aapke maargdarshanke liye shukrguzaar hun..!Wobhee itnaa turant..!
Jis kavitake tehet aapne tarz batayee, uske baareme maine sochahee nahee thaa...! Lekin aapne tippanee dwaraa sochneke liye majboor kiyaa? Kaise shukriya ada karun?
Asalme " jyoti bujh hee gayee", is rachnakee mai baat kar rahee thee...wo mai gungunaa to letee hun...lekin tay nahee kar paatee ki, kya wahee tarz ho yaa kuchh aur...!
Chalye, jab kabhi aapke paas samay ho, bata den..
Aur mera anumaan kitnaa sahee niklaa...mujhse kaheen adhik jaankaaree aap rakhte hain...!
Mujhe har wo raag aur dhun achhee lagtee hai, jahan, komal "nishaad"yaa komal " maa" hota hai..komal "nee" taar saptakme to behad bhaataa hai...aur usse uthke taar saptak kaa "saa" aur phir waheense, mandr me utar aanaa...vahee mithaas barqaraar rakhte hue...
Urdu to maibhi nahee jaaantee...saraa lekhan Hindustaneeme hai...
Yaa phir Marathi yaa English.
Aapka cell # darj hai..kya mai aapse baat kar saktee hun? Aur mujhe dhun gunginake sunaneki binati?
Phir ekbaar apnee gardan aapke saamne kar dee hai..keh deejiye," ungalee dee to..."!
ब्रिज जी आपका कमेन्ट प्राप्त हुआ, इस पर मेरी प्रतिक्रिया इस प्रकार है।
ब्रिज जी, यह मीर साहेब के तख़ल्लुस लगाने या न लगाने की बात नहीं है जिन लोगों ने पुराने उर्दू काव्यों पर शोध किये उनका मानना है कि इस ज़मीन में मीर की कोई ग़ज़ल नहीं है, इन शोध कर्ताओं में से एक हैं अली सरदार जाफ़री, उनकी सम्पादित पुस्तक दीवान-ए-मीर (हिन्दी संस्करण)देखें।
धन्यवाद।
Haan!...dekhaa...ab maan gaye naa ki hamaaree asliyat kya hai..! Kitnaa pragaadh agyan hai...!
Chalo, mujhbhee likhneke baad yaad aa gayaa thaa ki, "maa" teevr hee hota hai...shuddh to khair sabhee swar hotehee hain.."Maa" nishiddh naa ho ye, likhnaa chaah rahee thee...is swarme mujhe kamaal mithaaskee anubhootee hoti hai...aur rahee us dhun kee baat.." Jyoti bujh hee gayee.."
Aapki bohot shukrguzaar hun..
Aapne mere ek sawalkaa uttar nahee diyaa...lekin aapattee ho to koyi baat nahee...kuchh seekhnaa milegaa, is lihaaz se poochh liya tha..
Vastav mein 'Tippanikarita' bhi sahitya ki ek nai vidha ke roop mein ubharne ki apar sambhavana rakhti hai. Bahut satik vyangya kiya hai aapne.
नमस्कार जी,
आप पर टिप्पणी के लिये तो आप को पढ़ना पडा़ भाई.......
बहुत बढि़या........
लेकिन मैं एक बात कहना चाहूँगा कि टिप्प्णी के लिए ही सही,लोग पढ़ते तो हैं।इलेक्ट्रानिक युग में लोग इन्टरनेट पर ही सही पढ़ रहे हैं ये खुशी की बात है।इस भाग-दौड़ की जिन्दगी में ये कम नहीं है।हमें सकारात्मक रुख रखना चाहिए.......
इसी बहाने टिप्पणी विज्ञान पर बडी महत्वपूर्ण चर्चा कर दी आपने।
-----------
SBAI TSALIIM
namaskar param adarniya shrivastava sahab
abhi tak apke dwara kagaz ki chati pr ukere gaye kai katarbadh shabd mene pade hen or unhe padkar va jitna apko vyaktigat janta hun me ityna to samaj paya hun k jaise jaise apki ayu me badotri ho rahi he vaise vaise apke shabdo me dhar thik utni hi tej ho gai he jitni ki apki "टिप्पणी कार" ki aariyon me he
me pehla comment likhne ka prayas kar raha hun
jaisa k apne likha he k comment likhte likhte log lekhak ban jate
koshish meri ashish apka
आदरणीय बृजमोहन जी नमस्कार
रोजमर्रा के छोटे से छोटे पहलू को चुन कर उसे चर्चा और टिप्पणी का विषय बना देना आपकी पहचान है. हर लेखक और कवि चाहे वह कितना ही स्तरीय या स्तरहीन हो, ढेर सारी प्रसंशा और और थोडी सी आलोचना की चाह रखता है. ब्लॉग जगत में कुछ ब्लोगरों के हर लेख पर अनगिनत टिप्पणियां आती है और कुछ लोगों की टिप्पणियां लगभग हर ब्लॉग पर दिखाई दे जाती है. ऐसा लगता है कि ए लोग सिर्फ टिप्पणी लिखने के लिए ही लिखते हैं. मेरा विचार है कि एक इमानदारी भरा एवं गंभीर आलोचनात्मक टिप्पणी एक सतही प्रसंशात्मक टिप्पणी से ज्यादा प्रेरक है.
shrivastavaji,
aapki tippani ne mera likhna saarthak kar diya/ mene kisi bhi taareekh ke baare me soch kar nahi likhaa tha//darasal, maa ki yaad aa rahi thi aour idhar kaafi kaam ka bojh tha/ vyastatao ne mujhe ynhaa baandhe rakhaa// lihaza man maa ki god aour pita ki chhatrachhaya paane ke liye lagaataar uchhal rahaa tha, jise shbdo ke maadhyam se ek pryaas thaa ki kuchh yaad kam ho//haalaanki yaad kam nahi hoti/vo badhhti he//
aapki tippani, yaa yu kahu ki aapse blog par milna mujhe behad aatmiya lagtaa he/ kya kahu, bs bade bhai ki tarah aap likhte he aour man padhh kar sukun pataa he//
jivan me har aadmi NAAM paane ki hod me lagaa he//me bhi kabhi yahi chahta thaa, bahut kuchh saflta haath bhi lagi, payaa ki NAAM karke bhi me jo pana chahtaa hoo vo nahi mil saktaa/ me jitna jyada apne kaam me vyasta hota jaa rahaa thaa utna hi apne ghar aour mata-pita se door hota jaa rahaa tha, dinbhar sirf kaam aour kaam//kintu ab maa-pitaji chahta hu//unke saath rah saku, mere jivan ki yahi saflta hogi//par paristhiyo ne bhagadodi lagaa rakhi he//nokari ki mazboori................////kher..
dhire dhire sab chhod rahaa hoo//ishvar unke paas rahne ke liye bandobast bhi karega//vishvaas he///
aap apna snah banaye rakhe/achha lagta he////
aapka
AMITABH
ji,
aapke vichar yatharth he/ jivan ki yah bhi ek peeda hoti he/ me jaanta hu, samjhta hu/aour pryaas kar rahaa hoo ki kuchh 'bandobast'ho/jo aapne likha vahi, vesa hi sabkuchh mere bhai mujhe samjhate rahe he, pitaji bhi yahi sab kahte he//aour me bhi abhi tak esi hi saari baato ka anusaran karta aayaa hoo/ tabhi to us Ishvar se yahi chahta hoo, esa koi 'bandobast' ho ki me unke kareeb rah saku/
aapke vichar, anubhav mere path pradarshk he/ filvakt aapka ye blog bhai yudhdhrat he/
'हम गर्दनों के साथ हैं ,वो आरियों के साथ'
-हर ब्लॉगर इसी स्थिति में रहता है.
-टिप्पणीकार भी एक दिन लेखक बन जाता है..
क्या खूब कहा है!
-लेखक और टिप्पणी कार या आलोचक यह तो साहित्य जगत के दो पहिये हैं
बहुत सही !
बहुत ही बढ़िया व्यंग्य लिखा है.
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
आपने जो लिखा है सच लिखा है और सच के सिवा कुछ नहीं लिखा है.....बहुत आनंद आया पढ़ कर...
नीरज
भाई ब्रिज जी,
टिप्पणी कार की तो आपने अपने व्यंग में वो धुनाई की कि क्या कहने, फिर भी आपके ब्लॉग में लोग बाग टिप्पानी करने से बाज नहीं आये.
किसी ने भी आपकी आलोचना करने का सहस नहीं किया, कारण भी आपने लिख मारा था जो.
पर मैं यहाँ पर एक आलोचना करना चाहूँगा कि आपने लिखा कि
जो सर से लेकर पांव तक खुद्दार नहीं है
हाथों में कलम लेने का हकदार नहीं है
इस विषय में आज जब कि हाईटेक जमाना है लोग बाग टेप और कंप्युटर की बोर्ड से कम चला रहे हैं, कलम तो उठाना बहुत दूर की बात हो गई. अब देखिये न हम अपनी खुद्दारी कम्पूटर द्वारा ही तो प्रर्दशित कर रहे हैं........
चन्द्र मोहन गुप्त
आदरणीय बृज सर,
जैसा कि मैनें पहले भी कहा था कि अल्पना जी का दिया हुआ यह संबोधन मुझे बहुत ही करीब लगा और अब यही रखना चाहता हूँ।
वैसे, आपने बहुत ही प्रासंगिक मुद्दा उठाया है वो भी ठोंक-बजाकर। मैं तो यह मानता हूँ कि आपतो उल्लू के पट्ठे बहुत अच्छे हैं (मेरा मतलब है कि लिखने वाले भी और टिप्पणीकार तो हैं ही, "नईदुनिया" पढने वाले भला कैसे भूल सकते हैं "अधबीच" और आपको )
बस इतनी कृपा बनी रहे कि हम कायदे के उल्लू बन जाये (मतलब की सीख और नसीहत बनी रहे)
एक बहुत अच्छा व्यंग्य इसे एक विचार उत्तेजना के लिये ही लिया जाना चाहिये, ना की किसी व्यक्तीगत आलोचना या आक्षेप की तरह।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
आदरणीय बृज सर,
जैसा कि मैनें पहले भी कहा था कि अल्पना जी का दिया हुआ यह संबोधन मुझे बहुत ही करीब लगा और अब यही रखना चाहता हूँ।
वैसे, आपने बहुत ही प्रासंगिक मुद्दा उठाया है वो भी ठोंक-बजाकर। मैं तो यह मानता हूँ कि आपतो उल्लू के पट्ठे बहुत अच्छे हैं (मेरा मतलब है कि लिखने वाले भी और टिप्पणीकार तो हैं ही, "नईदुनिया" पढने वाले भला कैसे भूल सकते हैं "अधबीच" और आपको )
बस इतनी कृपा बनी रहे कि हम कायदे के उल्लू बन जाये (मतलब की सीख और नसीहत बनी रहे)
एक बहुत अच्छा व्यंग्य इसे एक विचार उत्तेजना के लिये ही लिया जाना चाहिये, ना की किसी व्यक्तीगत आलोचना या आक्षेप की तरह।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
आज फुर्सत से इसे दुबारा पढा,तो टिप्पणी करने का फिर जी चाहा। बधाई।
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SBAI TSALIIM
आदरणीय ब़जमोहन जी, आप सबकी प्रेरणा से लिखना पढना चल रहा है। आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि अब तक 56 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। परिचय देखने के लिए यह लिंक उपयोग में ला सकते हैं
http://alizakir.blogspot.com/search/label/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%AF
. इस पोस्ट को पढ़ने से पहले ही मैंने आपके टिप्पणिकार स्वरूप पर गौर किया है और महसूस किया है कि आप ने पोस्ट गंभीरता से पढी है. ( सन्दर्भ - मेरी ही नहीं अन्य ब्लॉग लेखकों की पोस्ट भी ). इस लेख द्वारा टिप्पणिकारी पर आपने करारी चोट की है.भविष्य में मैं भी और अधिक सतर्कता से टिप्पणि देने का प्रयास करूंगा.
एक उल्लू बेचने वाला उल्लू बेच रहा था /बडा उल्लू पचास का बच्चा उल्लू पॉँच सौ का / कारण ? उसने बताया कि साहब बडा तो केवल उल्लू ही है और छोटा तो उल्लू भी है और उल्लू का पट्ठा भी /(मै लिखता भी हूँ और टिप्पणी भी करता हूँ कोई अपने ऊपर न ले )
... प्रभावशाली लेख है।
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