(सोचा होगा बुड्ढा सरक तो नहीं लिया ,अच्छा हुआ, बहुत टायं टायं करता था /असल में कुछ भाग्यशाली बुड्ढे दुनिया में ऐसे भी होते हैं जिनका कोई ठिकाना नहीं होता कुत्ते की तरह एक ने डंडा मार कर भगा दिया , दूसरे ने रोटी दिखा कर बुला लिया वैसे कुछ कुत्तों से घर की रखवाली भी करवाई जाती है कम से कम उनका कोई निश्चित ठिकाना तो होता है /खैर लीजिये
बहुत दिन बाद सही तीसरी किश्त खिदमत में पेश है )
| (जब में यह लिख रहा था तब ये मुझसे कह रहीं थीं ,मानो मेरी बात मत लिखो; कोई ब्लोगर या टिप्पणीकार आकर ठोक जायेगा | मैंने पूछा क्या मेरी पीठ ? नहीं तुम्हारा सर; जूतों और चप्पलों से )
कुछ त्वरित टिप्पणी करते हैं वे रचना पढ़ते जाते हैं और उनका मस्तिष्क स्वचालित यंत्र की तरह साहित्य सृजन करने लगता है |
कुछ टिप्पणी कार सोच कर टिप्पणी देते हैं | वे रचना पढ़ते हैं फिर सोचते हैं ,इतना सोचते हैं कि ,उनको सोचते देखकर ऐसा लगता है जैसे 'सोच ' स्वम् शरीर धारण कर सोच रहा हो |
कुछ चौबीसों घंटे टिप्पणी ही करते रहते है उनके ब्लॉग पर जाओ तो कुछ न मिले और कुछ सिर्फ ब्लॉग ही लिखते रहते है |चार पांच दिन बाद जीरो कमेन्ट ,फिर एक लेख लिख दिया
एक मास्साब थे | हर किसी से ,तूने ताजमहल देखा है /नहीं / कभी घर से बाहर भी निकला करो /हर किसी से /तूने ये देखा है ,वो देखा है कभी घर से बाहर भी निकला करो /बड़ी परेशानी | एक दिन एक युवक ने उन्हें आवाज दी =
मास्साब
क्या है ?
रामलाल को जानते हैं ?
कौन रामलाल ?
कभी घर पर भी रहा कीजिये
मैं एक विद्वान साहित्यकार का ब्लॉग पढ़ रहा था /सैकडों उत्कृष्ठ रचनाये उनके ब्लॉग पर | नियमित लेखक | सहसा एक बहुत ही छोटी सी टिप्पणी पर मेरी नजर गई "" अच्छा लिखा है ,लिखते रहिये आप ""मैंने जानना चाहा ये टिप्पणीकार कौन हैं ,तो मैं उनके घर गया (मतलब ब्लॉग पर ) दो माह पहले ही इन्होने ब्लॉग बनाया है | सच मानिए मुझे उनकी टिप्पणी ऐसे लगी जैसे कोई बच्चा बाबा रामदेव से कह रहा हो ""अच्छा अनुलोम विलोम करते हैं आप 'करते रहिये ' ""
जब मैं विभिन्न ब्लॉग पर बहुत टिप्पणियाँ देख रहा था तो मुझे सहसा एक नवाब साहिब का किस्सा याद आ गया |
एक थे नवाब /दिनभर शेर शायरी लिखते /कमी की कोई चिंता न थी /रईस जादे थे /अपार पुश्तेनी संपत्ति के एकमात्र बारिस / बारिस माने बरसात नहीं ,स्वामी / वो क्या है न कि कुछ लोग ' स " को 'श 'उच्चारित करते हैं
उन्होंने कहा- 'हैप्पी न्यू इयर '
इन्होने कहा -' शेम टू यू '
तो उनकी हवेली की बैठक (दरीखाने ) में रात्रि ८ बजे से ही महफ़िल शुरू हो जाती /एकमात्र शायर नवाब साहिब वाकी १५-२० श्रोता ,साहित्यकार ,गज़लों और शायरी के शौकीन ""वाह वाह /क्या बात है "" की आवाज़ से हवेली गूंजने लगती | रसिक श्रोता ,भावःबिभोर ,भावभीने | इधर बेगम अंदर से पकौडियां तलवाकर भिजवातीं ,समोसे ,मिठाई ,चाय ,काफी ,पान की गिलोरियां |
एक दिन नवाब साहिब सो कार उठे तो पेट में भयंकर दर्द /दोपहर तक और बड़ गया शाम होते होते दर्द से बैचैन होने लगे |इधर दरीखाना लोगों से भरने लगा /बेगम ने कहा नौकर से मना करवा देते है | नहीं बेअदवी होगी ,बदसलूकी होगी ,मुझे ही जाकर इत्तला देना होगा /खैर साहिब -कुरते के अंदर एक हाथ से पेट दवाये नवाब साहिब पहुंचे मनसद पर बैठे और कहा -
आज सुबह से मेरे पेट में बहुत ज्यादा दर्द है -
वाह वाह / क्या बात है / क्या तसब्बुर है /क्या जज्वात है /हुज़ूर ने तो कमाल कर दिया / (हवेली गूंजने लगी )वाह हुज़ूर क्या बात कही है / हुज़ूर ने गजल के लिए क्या जमीन चुनी है / जनाब मुक़र्रर / साहिब मुक़र्रर -इरशाद /
क्या मुखडा है / हुज़ूर तरन्नुम में हो जाये ...........|
Wednesday, June 24, 2009
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13 comments:
वाह हुज़ूर क्या बात कही है :)
टिपियाएँ क्या ? बाबा रामदेव वाली बात तो जी २-४ लोगों को सुनाई जायेगी. कॉपीराइट तो नहीं है?
ब्रजमोहन जी, जब आप यह रचना लिख रहे थे तब आपकी 'ये' सही कह रही थी कि कोई टिप्पणीकार आकर आपका सर जूते-चप्पलों से ठोंक देंगे, तो अपना जवाब होना था कि क्या हुआ हम उनके ऊपर 'भौंक' देंगे. आखिर हम है तो****** ....धोबी के शायद!!!
इसी बात पर पेश-ए-खिदमत है---
जो अपनी नजरों में खुद को बे-इज्जत करता है, 'वक्त'एक रोज उसकी यही कुत्ता फजीहत करता है... आदाब!!!
कोई अगर अपनी नजरो में खुद की इज्जत करना सीख जाता है तो कोई भी डंडा उठाकर या रोटी दिखाकर उसकी "कुत्ता फजीहत" नही कर सकता.
वैसे मुझे एक व्यंग्य और बेहूदगी भरी मसखरी के बीच का अंतर बेहद अच्छे से मालूम है.....
सच कहने का साहस और सलीका दोनो ही मुझे में तो है लेकिन आप मे सच सुनने में भी बहुत साहस और सलीका चाहिये होता है...
इसीलिये टिप्पाणीकार 2 का उद्दरण "जब पीडा से बाल्मीकि और प्रेरणा से तुलसी बना जा सकता है तो प्रोत्साहन से साहित्यकार क्यों नहीं बना जा सकता".... तो फिर आलोचना की 'वेदना' से एक बेहुदा मसखरा किसी दिन एक-आध व्यंग्य भी लिख ले...
काफी दिनों बाद आपका नया पोस्ट पड़ने को मिला! बहुत बढ़िया लिखा है आपने!लिखते रहिये!
'अधबीच' अभी ज़िन्दा है/
गर तरन्नुम में हो जाता तो??? हा हा हा.
टिप्पणीकर्ता कैसे भी हो वो अपना समय निकाल कर कुछ बक्त्व्य(ब-वक्त्व्य) तो देते ही है, भले ही किसी मंशा के साथ कि उनके ब्लोग पर भी आप पधारे/
शुक्रिया आपका ! लगता है आजकल आप कहीं व्यस्त हैं, आपके लेखन से काफी समय से वंचित हैं हमलोग !
ब्रजमोहन जी,
लिखते अच्छा हैं मगर टिप्पणी करने का अच्छा प्रयास भी करते रहिये, हो सकता है कि मेरे ब्लॉग पर एक हज़ार एक टिप्पणी करने से आपको टिप्पणी-शिरोमणि का पुरस्कार भी मिल जाए.
BTW, आपकी विशिष्ट शैली में लिखा यह लेख भी अच्छा लगा.
आपके पोस्ट का इंतजार रहता है वकील साब...
हमसे नाराज तो नहीं हो गये थे, पिछली टिप्पणी में अपना ग्यान बखारने की चेष्टा जो की थी मैंने?
क्या पते की बात की है आपने । शुरू से पढ़ा हूं मै आपका पोस्ट । वाकई अच्छा लिखा है । शुक्रिया
्टिप्पणी करते हुये डर लग रहा है …।कहीं ाप नाराज न हो जायें ……।
सर,बहुत बहुत -----रोचक लगी आपकी ये पोस्ट्।
हेमन्त कुमार
आप भले ही व्यंग्य कीजिये. हम तो टिपण्णी देंगे -
रोचक.
आदरणीय बृज सर,
हुजूर वाह कहेंगे तो भी नाराजी फैलेगी और ना करेंगे तो भी।
दुविधा में शादी वाली सुविधा का लाभ ले ही लेते हैं।
कसी हुई नज़र , करारी चोट , मखमली चुभन सभी तो है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
विषय वस्तु पर तो आप की पारखी नजर रहती ही है ...टिप्पणियों पर भी पैनी निगाह रखते हैं आप!
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