हमारी श्रीमती जी कुछ ज्यादा ही ........(पहले मैं अपना वाक्य, लाइन जरा ठीक करलूं )
""हमारी श्रीमती जी"" मतलब आप श्रीमान जी हैं, वह मेडम हैं तो आप मिस्टर हैं और वे बेगम हैं तो आप बादशाह हैं | यार कितना चीप लगता है अपने आप को श्रीमान कहना ,कोई पूछे आपकी तारीफ और मै कहूं मैं श्रीमान बृजमोहन श्रीवास्तव या माई सेल्फ मिस्टर बृजमोहन,,
हमारे यहाँ तो अपने आप को नाचीज़ कहना, छोटा बतलाना ,और सामने वाले को जनाब कहना यही तरीका रहा है |पूछते भी हैं, जनाब की तारीफ, और अपने वारे में कहते हैं नाचीज़ को, खाकसार को फलां कहते हैं |और कई लोग तो और भी ,कहते हैं ख़ाक-दर-ख़ाक, आपके क़दमों की ख़ाक, नाचीज़ को फलां कहते हैं |दूसरे के मकान को दौलतखाना और अपने मकान को गरीबखाना कहा जाता है |दूसरे द्वारा कही बात को फरमाना और अपनी कही बात को अर्ज़ करना कहा जाता है |सुप्रसिद्ध शायर भी साधारण श्रोता से यही कहते हैं "" अर्ज़ किया है की (ये ट्रांसलेटर छोटी की बना ही नहीं रहा है), सूर कहते रहे 'मो सम कौन कुटिल खल कामी " 'तुलसी कहते रहे धींग धरमध्वज धंधक धोरी 'कबीर ने कहा 'मुझसे बुरा न कोय ' रहीम ने कहा 'जेतो नीचो ह्वे चले तेतो ऊँचो होय ' और आप अपने आप को श्रीमान कह रहे हैं बड़े शर्म की बात है |
कोई अपनी तारीफ करे तो इतराना नहीं चाहिए, घमंड में चूर नहीं हो जाना चाहिए, बल्कि विनम्रता पूर्वक कहना चाहिए की "ये तो हुज़ूर की ज़र्रा नवाजी है वरना मैं किस काविल हूँ ""एक शायर ग़ज़ल पढ़ रहे थे, बोले--. अपनी ग़ज़ल का ये शेर मुझे खास तौर पर पसंद है | एक श्रोता बोला “ ये तो हुज़ूर की ज़र्रा नवाजी है वरना शेर किस काविल है |”
“हमारी श्रीमतीजी” -मैंने सुना है एक वचन के लिए ‘मैं’ और बहु वचन के लिए ‘हम’ का प्रयोग होता है |यह बात जुदागाना है की कहीं की बोली ही ऐसी हो की "" हम बनूँगा प्रधान मंत्री ""| हम शब्द बहु वचन का द्योतक है जैसे कोई कहे हमारा फलां बेंक में खाता है ,मतलब ज्वाइंट अकाउंट होगा |
तो फिर क्या ?” मेरी धरम पत्नी” -ये हम पति पत्नी के बीच में धरम जी कहाँ से आगये क्या फिल्में मिलना बंद हो गई | धरम-पत्नी, धरम-शाला क्या है ये ? अरे पत्नी तो धर्म पत्नी होती ही है उसके बिना कोई धार्मिक कार्य संपन्न हो ही नहीं सकता | करुणा अहिंसा ,प्रेम शील ,दया क्षमा का पालन आम तौर पर पत्नियों द्वारा ही किया जाता है और वे पति को धर्म मार्ग पर लगाये रखती है तो धर्म पत्नी तो वे है ही|
""मेरी पत्नी ""पहली बात राम ने लक्ष्मण से कहा ""मैं अरु मोर तोर तैं माया "" और माया का तो पता ही है आपको ""माया महां ठगनी हम जानी "" दूसरी बात अगर मैं कहूं की फलां जगह मैं “मेरा कोट” पहन कर गया था |कोट पहन कर गया था ही पर्याप्त है | "मेरा कोट " क्या मतलब है ?,मतलब दूसरों का भी पहिनते होगे | मेरी पत्नी ने मुझसे कहा - क्या मतलब है ? मतलब .......|
बड़ी दुबिधा है मेरी कहता हूँ तो माया ,धरम पत्नी कहता हूँ तो धरम प्राजी, श्रीमती, मेडम, बेगम कहता हूँ तो श्रीमानजी ,मिस्टर और बादशाह, हमारी कहता हूँ तो बहु वचन |अब पहली लाइन ही ठीक हो तो आगे बढूँ देखिये करता हूँ कोशिश |
कृपया यही कह देना की यह बकवास किस उल्लू ने लिखी है "किस उल्लू के पट्ठे ने लिखी है" यह मत कहना |
Tuesday, July 14, 2009
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23 comments:
नमस्कार !
बहुत ही रोचक तथा मनोरंजक आलेख है
"हुज़ूर" से "खाकसार" अर्ज़ करता है कि
देहरादून से निकलने वाली साहित्यिक पत्रिका "सरस्वती सुमन"
का आगामी अंक हास्य-व्यंग्य विशेषांक निकल रहा है ,,,
जिसके अतिथि सम्पादक
श्री योगेन्द्र मौदगिल जी ( पानीपत ) हैं .
कृपया अपनी रचनाएं भेजने कि कृपा करें ...
१. श्री योगेन्द्र मौदगिल ...०९४६६२ ०२०९९
या
२. डॉ आनंद्सुमन सिंह ( मुख्या सम्पादक ) ०९४१२० ०९०००
धन्यवाद
---मुफलिस---
ब्रजमोहन भाई - कितने दिनों के बाद देख रहा हूँ। क्या बात है? खैर आये भी तो बहुत मजेदार रचना के साथ। बेहतर प्रस्तुति।
कहा आपने जो यहाँ बात बहुत है खास।
फिर कैसे कोई कहे यह सब है बकबास।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आदरणीय श्रीवास्तव जी ,
आपके व्यंग्य का भी जवाब नहीं ....आपका ब्लॉग पढ़ना अच्छा लगता है .
शुभकामनाओं के साथ .
हेमंत कुमार
आदरणीय बृज सर,
ख़ाकसार तो आपके नज़रिये का लौहा मान गया। अब कोई और उसे कुछ भी कहे, बहुत ही साधारण से बात में वैशिष्ट्य पैदा करना की काबिलियत ही आपको श्रेष्ठ बनाती है।
श्री मुफ़्लिस जी ने बिल्कुल दुरूस्त फरमाया, कृपया ध्यान दीजियेगा।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने, आप बड़े दिन बाद मेरे ब्लॉग पर वापस आये बड़ी ख़ुशी हुई मुझे। आपके अच्छे स्वास्थ्य की कामना के साथ।
धन्यवाद।
---
गुलाबी कोंपलें · चाँद, बादल और शाम
हमने दो नये ब्लॉग शुरु किये हैं आशा है कि आप मार्ग दर्शन करेंगे।
· चर्चा । Discuss INDIA
·विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
काफी दिनों बाद आपका नया पोस्ट पड़ने को मिला! बहुत बढ़िया लगा! लिखते रहिये और हम पड़ने का लुत्फ़ उठाएंगे!
मै आपकी बातो से सहमत हूं और आपका आदर भी करता हूं । लेकिन एक चीज जो हमारे सामने है कि आयोग पर विश्वास नही किया जा सकता । आज तक एक भी अहम फैसलें नही आये है जो जनता के लिए हो या जनता जिससे सन्तुष्ट हो । फिर इस आयोग का गठन किस आधार किया जाता है । उससे भी बढ़कर ये बात है कि प्राकृतिक फैसले उस फैसले को कहा जाता है जिसमें समय पर फैसला हो और दोषियो को सजा मिले । लेकिन लिब्राहन के फैसले से क्या निकलता है । जरा सोचिए । क्या लोगो को न्याय.मिला है ।
Mazedaar.
Bahut dino ke baad aapko sakreey dekh kar achchha laga.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
kahate he intjaar ka fal meetha hota he/ sachmuch MEETHAA hi hota he/ itane dino baad aapke dvara post aour fir se vahi kahana ki LAAZAVAAB he,,,vyngyatam lahze me NIPATANA mana jaa sakta he kintu sach yahi he ki MAZAA aa gayaa.
'ज़नाब' 'नाचीज' को शब्दों के जंजाल में उलझा कर फिर बाहर खींच कर फिर उलझा कर फिर बाहर खींच लाये और फिर उलझा दिया.
"धरम" पत्नी जी, 'मुआफ' करियेगा, भाभीजी की दैनन्दिक पीड़ा से 'खाकसार' रूबरू हुआ.
... कमाल की सोच, बेहतरीन व्यंग्य, प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!
बेहतरीन व्यंग्य जवाब नहीं आपका लाजवाब !
Sach me badi duvidha hai!
मान सम्मान के योग्य आदरणीय बृज जी,
हमें बहुत ख़ुशी है की ब्लॉगजगत में एक परिपक्व लेखक-चिन्तक-व्य्यंग्कार-शब्द शिल्पी के रूप में आप का होना,भाग्य की बात है की नवोदित नवशिखिये ब्लोग्गेर्स को आप का आर्शीवाद मिलता रहता है ,आपकी रचनाओं पर टिप्पणी देना ही हर किसी के बस की बात नहीं है ...
आप का लेख पढ़ कर राजनीती,अर्थशास्त्र,भूगोल,कानून,व्याकरण ओर साहित्य( तो है ही ) की कक्षा भी हो जाती है
सादर
बकवास पढ़ी. मजेदार रही.
रोचक तथा मनोरंजक
ye ghazal aur doosri ghazaleiN sun`ne ke liye (gautamrajrishi.blogspot.com) pr
07/07/2009 aur 12/07/2009 ki posts dekheiN....aur apni qeemti raae se navaazeiN .
---MUFLIS---
लाजवाब व्यंग.
बधाई.
'एक शायर ग़ज़ल पढ़ रहे थे, बोले--. अपनी ग़ज़ल का ये शेर मुझे खास तौर पर पसंद है | एक श्रोता बोला “ ये तो हुज़ूर की ज़र्रा नवाजी है वरना शेर किस काविल है !
यह तो बहुत ही मजेदार है!
-हम ,हमारी, मैं,मेरी,धरम.
बेशक किसी भी शब्द को गलत प्रयोग उस के कहे वाक्य को हास्यप्रद और उस व्यक्ति को हास्य का पात्र बना देता है.
मगर व्यंग्यकार को सामग्री मिल जाती है.
-यह बकवास नहीं ,ऐसे गलत गलत बोलने वाले सभी के आस पास मिल जाते हैं.
वकील साब हम{मैं} तो कायल हैं सर आपकी इस दिलचस्प और जबरदस्त शैली के...
चुन-चुन कर ऐसे प्रसंग कहाँ से निकाल लेते हो आप?
इससे अच्छा तो चुप रहना ही है ! :)
"ये तो हुज़ूर की ज़र्रा नवाजी है वरना शेर किस काविल है|”
अरे श्रोता बड़े दयालु थे वरना आजकल के श्रोता तो अपने पैसे खर्च करके अंडे और टमाटर लाते हैं कवियों की सेवा में. बहुत से कवियों ने तो इसी दर से मंच पे जाना बंद कर दिया है, अब सिर्फ टीवी पर दर्शन देते हैं.
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