Saturday, August 1, 2009

सलाह

अक्लमंद को सलाह की ज़रुरत नहीं और मूर्ख सलाह मानते नहीं |

मुझे सलाह दी गई ,स्वाभाविक है मैं भी नहीं मानूंगा, मगर मैंने उसे निर्देश के तौर पर लिया |निर्देश कुछ इस प्रकार है कि जो अपनी नजरों में खुद को बे-इज्जत करता है, 'वक्त'एक रोज उसकी यही कुत्ता फजीहत करता है...

बात बिलकुल सही है

जब दूसरे मौजूद हैं तो खुद को अपनी नज़रों से क्यों बे-इज्ज़त करना?

कुत्ता फजीहत क्या होती है अनुभव नहीं है ,कभी हुई ही नहीं, लिखा है धोबी का कुत्ता! तो वह तो मैं हूँ ही |मेरा न घर है न घाट |जफ़रजी के शब्दों में कहूं तो मैं न किसी के दिल का करार हूँ, न किसी की आँख का नूर हूँ , मेरा रंग रूप (जो थोडा बहुत पहले कभी रहा होगा) बिगड़ गया है ,मेरा यार मुझसे बिछड़ गया है, मेरा चमन उजड़ गया है (चमन उजड़ गया है ,मतलब , मैं गंजा नहीं हुआ हूँ, वो क्या है ,किसी फिल्म में नाना पाटेकर द्वारा एक गंजे को 'उजड़ा चमन 'शब्द प्रयुक्त किया गया है |,माशाअल्लाह मेरे बाल अभी बचे भी हैं .और मेरे बाल बच्चे भी हैं )

क्या खुद की कमजोरियां बताना ,अपने दुर्गुणों का सार्वजानिक प्रदर्शन , खुद को नज़रों से गिराना है ?

श्रीमानजी कह रहे थे जब मैं अपने जवानी के दिन याद करता हूँ तो मुझे अपने आप से बड़ी नफरत होने लगती है |
क्यों ऐसा क्या किया जवानी के दिनों में ?
बोले -कुछ भी नहीं किया |

टिप्पणी कार भाग ३ को बेहूदगी भरी कहा गया |बेहूदगी कहाँ नहीं है तलाशने वाला चाहिए |इंटरनेट खोल कर देखिये बेहूदगी का अम्बार मिलेगा -इंटरनेट ही क्यों ? आजकल जो टीवी पर सत्य बोलकर इनाम पाने की प्रथा चल रही है जिसमे लड़कियां स्वीकार कर रहीं हैं ,जब वे नाबालिग़ थी तभी .........|शादी शुदा औरत कह रही है की वह पैसों के लिए ........|और उनके पति दर्शकों से मुंह छुपा रहे है |पुरुष यह स्वीकार कर रहे हैं उन्हें वह सब नाम याद हैं जिनके साथ .........| यदि यह बेहूदगी नहीं सभ्यता और संस्कृति है तो मैं अपने लिखे हुए को बेहूदा मानने में कोई लज्जा या संकोच महसूस नहीं करता |

,अपने को दीनहीन दयनीय बताना क्या, खुद को बेईज्ज़त करना है ?|कबीर ने तो कहा जब में बुरा देखने चला तो पाया मुझसे बुरा कोई है ही नहीं |तुलसी दास जी ने कहा यदि मैं अपने सब अवगुण कहने लगूंगा तो कथा बढ़ जायेगी, ग़ालिब साहिब ने कहा यदि मैं शराबी न होता तो लोग मुझे बली समझते , किसी ने कहा 'रोड़ा ह्वे रहु बाट का ताज पाखंड अभिमान |बंगले में साहब के साथ कुत्ता नाश्ता कर रहा हो और बंगले के बाहर कोई लड़का कचरे में से खाने को कुछ ढूंढ रहा हो और अगर वह कहदे कि मुझसे तो यह कुत्ता अच्छा है तो क्या उसने अपने आप को अपनी नज़रों से बेईज्ज़त कर लिया|
ईश्वर के सामने गुनाह कबूल करना क्या अपने को बेइज्जत करना है |

श्रीमानजी ईश्वर के दरबार में गुनाह कुबूल कर रहे थे "मैं पापी हूँ मैंने ये किया ,वो किया आदि |सहसा अहसास हुआ कि पीछे कोई है, देखा एक व्यक्ति खडा था ,पूछा तूने कुछ सुना तो नहीं ,बोला मैंने सब सुना |श्रीमानजी उसे एक तरफ ले गए बोले 'देख किसी को या बात बतला मत देना नहीं तो ठीक न होगा 'फिर उन्होने अपनी एक जेब से नोटों से भरा पर्स निकला और दूसरी से पिस्टल निकाली और 'लगे रहो मुन्ना भाई 'फिल्म के लक्की सिंह की स्टाइल में कहा 'ये वेलेट है ये बुलेट है तू चूज कर|

कोई तय कर ही ले कि बेहूदगी खोजना ही है तो असंभव नहीं है |वैसे सुना है नेपोलियन कहा करता था कि उसकी डिक्शनरी में असंभव शब्द है ही नहीं (अल्ला जाने किस प्रकाशक की डिक्शनरी थी उनके पास ) तलाशने वाले ग्रन्थ ,साहित्यिक लेख ,कविता किसी में से भी बेहूदगी तलाश कर सकते हैं|

एक मैडम के मकान के पास तालाव था ,बच्चे उसमे स्नान करते थे निर्वस्त्र |पुलिस को सूचना दी मुझे क्षोभ होता है |पुलिस ने बच्चों के समझा दिया कि यहाँ के वजाय दो किलोमीटर दूर तलाव है उसमें नहा लिया करो |

पुलिस के पास फिर सूचना आई मुझे क्षोभ होता है |

मगर मैडम वो तो दो किलोमीटर दूर तालाव है वहां नहाने लगे हैं

तो क्या हुआ मैंने दूरबीन खरीद ली है

14 comments:

shama said...

'अक़लमंद को इशारा काफी होता है .."...वैसे मराठी भाषामे एक कहावत है ,'लेकी बोले सुने लागे '...मतलब ,सासने सुनाया तो बेटी को , लेकिन लगा जाके बहूको ....हल्दी लगे ना फिटकरी, रंग चोखा...

ये तो अपने जीवन मे तय कर लिया ..पूछे बिना किसीको भी सलाह देनी नही . ..!

http://shamasansmaran.blogspot.com

http://kaviyasbyshama.blogspot.com

http://shama-kahanee.blogspot.com

http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogsot.com

संजीव गौतम said...

बिन मांगे सलाह दो अपनी बाट लगवाओ.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...
This comment has been removed by the author.
Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बृ्जमोहन जी, उन भद्र महिला/पुरूष की वो वाली टिप्पणी हमने भी देखी थी। उस समय एक बार तो मन में थोडा गुस्सा भी आया था कि लोग भी पता नहीं क्या कुछ ऊलजलूल बकवास कर जाते हैं।
सच है कि ईश्वर जो करता है,अच्छा करता है। चलिए इसी बहाने, उस टिप्पणी की बदौलत हमें आपकी एक ओर बेहतरीन पोस्ट पढने को तो मिल गई:)

kshama said...

Bada achha aalekh laga..sach hai..paise kamane aaye aur sharmindgee jhel gaye...! Yahee hashr hona tha..andhanukaran se aur kya hoga?

मुकेश कुमार तिवारी said...

आदरणीय बृज सर,

आपके हुनर का पता तो कोई पारखी भी नही लगा सकता कि कब देखते देखते किसी के कान कुतर लें। आपकी कलम चलती रहे बेशक किसी की कुछ खिंचाई हो जाये लेकिन सच तो सच ही है,ईश्वर ने जो कला प्रदत्त की है उसके साथ सच्चा न्याय करने वाले आपसे कम ही लोग मिलते हैं कि पहले अपने गिरेबां में झांकते है और फिर दूसरे का आजमाते हैं।

आप तो पोस्ट लिखिये, पढ़ने वाले हमसे मुरीद हैं आपके।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

गुंजन said...

आदरणीय श्रीवास्तव साहब,

नईदुनिया के पढ़ने वाले आपसे भला कैसे अपरिचित रह सकते हैं।

एक नई साहित्यिक पहल के रूप में इन्दौर से प्रकाशित हो रही पत्रिका "गुंजन" के प्रवेशांक को ब्लॉग पर लाया जा रहा है। यह पत्रिका प्रिंट माध्यम में प्रकाशित हो अंतरजाल और प्रिंट माध्यम में सेतु का कार्य करेगी।

कृपया ब्लॉग "पत्रिकागुंजन" पर आयें और पहल को प्रोत्साहित करें। और अपनी रचनायें ब्लॉग पर प्रकाशन हेतु editor.gunjan@gmail.com पर प्रेषित करें। यह उल्लेखनीय है कि ब्लॉग पर प्रकाशित स्तरीय रचनाओं को प्रिंट माध्यम में प्रकाशित पत्रिका में स्थान दिया जा सकेगा।

आपकी प्रतीक्षा में,

विनम्र,

जीतेन्द्र चौहान(संपादक)
मुकेश कुमार तिवारी ( संपादन सहयोग_ई)

kshama said...

आपका आलेख पढ़ के ही comment दिया किसी और के लिए नही था ये ....जिस कारन शर्मिन्दगी उठानी पड़े , वो काम क्यों करना ..! 'सलाह ' पढ़के ही comment दिया ..और आप एक TV serial,जो चर्चामे है ( मैंने नही देखा , सुना है ),उसीके बारेमे बात कर रहे हैं ,हैना ..?या ग़लत समझी?
Jo oopar shama ji ne baat kahee,usee se sahmat bhee hun..

kshama said...

ऐसी बातें,किसी के भी हित में नही ..! अक्सर परिवार मुखौटे ओढे होते ये भी सही है ...लेकिन उसे सरेआम करना ,ये गरिमा के ख़िलाफ़ है( ऐसा मेरा मानना है.. ..!) अन्य सदस्य जहाँ अपमानित महसूस करें ,ये भी लाज़िम नही.. ...और वो भी 'on camera'...और ये सब दस लाख के लिए..! इस क़दम से किसी को सीख मिले, यह वजह हो तो भी कोई बात है..वरना तो पैसे लो और मुखौटे भी तोड़ो...!

hem pandey said...

आजकल बेहूदगी को बेहूदगी कहना भी बेहूदगी है.

दिगम्बर नासवा said...

Galat ko galat kahna bhi gunaah hai.....Sab gadbad jhaala hai......

Urmi said...

बहुत बढ़िया लेख लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम! आजकल तो लोगों को सलाह देने में भी सोचना पड़ता है क्यूंकि लोग सोचते हैं इसमें हमारा कोई स्वार्थ है ! कुछ लोग तो मज़ाक बनाते हैं और यकीन भी नहीं करते और मानने के लिए इनकार करते हैं तो फिर सलाह देने का क्या मतलब!

Smart Indian said...

आपका भी जवाब नहीं है!

Satish Saxena said...

बहुत बढ़िया विचारणीय लेख !