किसी साहित्यिक पत्रिका मे लेख या कहानी भेजना और ब्लाग पर लिखने मे अन्तर सिर्फ़ यह है कि वहां संपादक का दखल रहता है और यहां परम स्वतंत्र न सिर पर कोऊ , न कोई दुरुस्ती करने वाला, न गलतियां निकालने वाला ,न रिजेक्ट कर खेद सहित वापस करने वाला ।अब तो खैर पत्रिका वाले भी रचना वापस नही भेजते है वे या तो छापते है या फाड़ फैंकते है ।रचनाये खेद सहित वापस की जातीं थी तब की बात है एक सम्पादक ने 'एक साहित्यकार की कहानी ,इस टीप के साथ वापस कर दी कि "चूँकि ऐसी रचना पूर्व में मुंशी प्रेमचंद लिख चुके हैं इसलिए वे इसे प्रकाशित नहीं कर सकेंगे -इस बात का उन्हें खेद है ।- वे साहित्यकार अभी तक यह नहीं समझ पाये की सम्पादक के खेद की वजह ==नहीं छाप सकना था =या ==मुंशी जी द्वारा लिखा जाना था
।चोरियाँ नाना प्रकार की होती है और चोरी के तरीके भी भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं -रुपया पैसा जेवर आदि की चोरी के नए नए तरीके सिनेमा विभिन्न चेनल और सत्यकथाओं ने प्रचारित व प्रसारित कर दिए हैं -चैन चुराना दिल चुराना आदि पर जबसे फिल्मी दुनिया का एकाधिकार हुआ है -आम आदमी इस प्रकार की चोरियों से महरूम हो गया हैएक कवि ने एक कविता लिखी -उन्होंने प्रकाशनार्थ भेजने के पूर्व अपने मित्र को बतलाया -मित्र ने पूछा छप तो जायेगी -कवि बोले =यदि संपादक ने मेघदूत न पढा होगा तो छप जायेगी और अगर मेरे दुर्भाग्य से उन्होंने पढा होगा तो संपादक को बहुत खेद होगा
।एक दिन एक मित्र मुझसे पूछने लगे -यार इन संपादकों को कैसे मालूम हो जाता है की रचना चोरी की हुई है क्या जरूरी है की सम्पादक ने कालिदास -कीट्स- शेक्सपीयर प्रेमचन्द- शरत आदि सभी को पढा हो। मैने कहा =जरूरी तो नही है मगर वे लेख देख कर ताड़ जरूर जाते हैं । रचना का लिखा कोई वाक्यांश चतुरसेन के सोना और खून से है या नहीं यह भलेही संपादक न बता पाएं मगर यह जरूर बतला देंगे की यह वाक्यांश इस लेखक का नही हो सकता ।
चोरी के मुकदमे में चोर के वकील अक्सर यह प्रश्न पूछा करते हैं की इस प्रकार के जेवरात ग्रामीण अंचलों में पहने जाते है इससे यह सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है की जेवर फरियादी के नहीं वल्कि चोर के है -जेवरात की तरह साहित्यिक विचार एक दूसरे से मेल खा सकते है -बात वही रहती है और अंदाजे बयाँ बदल जाता है -दूसरों के साथ बुरा व्यबहार न करने की बात हजारों साल पहले विदुर जी ने कही अत्म्प्रतिकूलानी ......समाचरेत । फ़िर वही बात अंग्रेज़ी में डू नोट डू ..... अदर्स ।कही गयी । बात वही थी भाषा बदल गयी अंदाजे बयाँ बदल गया । क्या मुज़्तर खैराबादी और बहादुरशाह जफर के खयालात मिलते जुलते नहीं थे ? दोनों के कहे हुए शेर पढ़ कर देख लीजिये। क्या फैज़ अहमद फैज़ और मजरूह सुल्तानपुरी की रचनाओं में समानता नहीं है ? आदमी कन्फ्यूज्ड हो जाता है की ये लिखा किसने है ।
आम तौर पर चोर चोर मौसेरे भाई होते है और दिल के चोर आपस में रकीब होते है क्योंकी दिल एक चुराने वाले दो तो दुश्मनी स्वाभाबिक है -ऐसी बात साहित्य के मामले में नहीं है वे न तो आपस में मौसेरे भाई होते है न दुश्मन होते है वे तो आपस में प्रतिद्वंदी होते है -तूने हजार साल पहले की में से चुराया तो में ईसा पूर्व की में से चुराउगा ।और वैसे भी किसी एक किताब की नकल करदी तो वह चोर ग्रन्थ कहलाता है और अगर २५ किताबों मे से दो दो पेज लिये तो वह शोध ग्रन्थ कहलाता है ।
अत: जो ग्रन्थ लुप्त हुए जा रहे है तो उनमे से कुछ लेकर हम अपने नाम से लिख कर पाठको पर उपकार ही तो करेंगे क्योकि साहित्य के अथाह भंडार से पाठक प्राय अनजान है और सबसे बड़ी बात कोई रोकने टोकने वाला नही है ।यह किसी पर व्यंग्य नही है ।न मेरा यह उद्देश्य है कि कोई ऐसा लिखता होगा ।लेकिन कभी कभी किसी किसी को बुरा लग जाता है
पटैलों के एक सम्मेलन मे एक व्यक्ति ने कह दिया कि पटेल चोर है ।रामपुरा का पटैल उठा और उस व्यक्ति की पिटाई करने लगा _उसने कहा मैने किसी का नाम नही लिया किसी गांव का नाम नही लिया मैने तो केवल यही कहा था कि पटैल चोर है । पटैल ने कहा अच्छा बेटा जैसे कोई जानता ही नही है कि किस गांव का पटैल चोर है ।
इसीलिए कहा गया है ==यदि नहीं कहा गया हो तो अब में कह देता हूँ ==साहित्यिक चोरी चोरी न भवति
Thursday, December 17, 2009
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19 comments:
Bahut dinon baad aapko padha! Ek karara vyang tatha "sahityik choron"ko karara tamacha!
जब तक चोरी पकड़ी ना जाये तब तक तो वैसे ही चोरी नहीं होती :)
चोरी तो आखिर चोरी ही है ।
साहित्यिक चोरियां करने वालों के ऊपर तीखा प्रहार…।
पूनम
चिरपरिचित शैली में लिखा गया एक शानदार व्यंग्य ! शुभकामनायें !
पटैल ने कहा अच्छा बेटा जैसे कोई जानता ही नही है कि किस गांव का पटैल चोर है ।
--vah, chori per itani sinajori!
gambhir bat badi rochakata se kah gaye ap. yahi lekhani ka kamal hai.
मियां चिरकीन लखनऊ के नामचीन शायर थे. उनकी कमजोरी थी कि वे लिखने के तुरंत बाद अपनी रचना मित्रों को सुना दिया करते थे. मित्र लोग उसे अपनी शायरी कह कर प्रचारित कर देते थे. आखिर तंग आ कर मियाँ चिरकीन ने सुन्दर रचनाएँ अश्लील शब्दों में कहनी शुरू कर दी.
बहुत ही अच्छे तरीके से आप ने अपनी बात कह भी दी और किसी को[अगर कोई ऐसा भी पढ़ रहा होगा] बुरा भी नहीं लगा होगा.
वैसे चोरी तो चोरी ही है.चाहे कैसी भी हो.उदाहरण के लिए दिए प्रसंग भी रोचक हैं.
बड़ी बड़ी बातों को सरलता से कह जाना आपकी खूबी है. बात चल ही रही है तो ज़रा मुलाहिजा फरमाईये दो-एक दिन के अंतर में लिखे गए इन दो पत्रों को
1. किशोर चौधरी के नाम...
2. अनाम के नाम (दो दिन बाद)
जो लोग ऐसी साहित्यिक चोरियां कर रहे हैं या पहले कर चुके हैं उनके ऊपर अच्छा प्रहार है यह्।काफ़ी पहले
आजकल में ऐसी साहित्यिक चोरियों पर एक लेख था ।जिसमें किस साहित्यकार ने कहां से क्या चुराया ----इसका पूरा उल्लेख दोनों उदाहरणों के साथ किया गया था।
हेमन्त कुमार
बड़ा ही रोचक और सटीक प्रहार
वकील साब, आपके इसी अंदाज का बेसब्री से इंतजार था।
चोर ग्रंथ और शोध-ग्रंथ की तुलनात्मक विवेचना ने मन मोह लिया सरकार।
बहुत ही बेहतरीन रचना
बहुत बहुत आभार
और वैसे भी किसी एक किताब की नकल करदी तो वह चोर ग्रन्थ कहलाता है और अगर २५ किताबों मे से दो दो पेज लिये तो वह शोध ग्रन्थ कहलाता है ।
Baat ki baat me aapne kya baat kah di...wwwwwwaaaaaahhhhh !!!
Aapka likha padh din khushnuma ho jaya karta hai....
Respected Sir,आपको और आपके परिवार के लिए नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.
आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत बढ़िया लिखा है आपने!
आपका अंदाज़ सच में निराला है ...... बहुत सहला सॅल्हा कर मारते हैं .......... पूरी पोस्ट के बाद बहुत मज़ा आता है ........
आपको नया साल बहुत बहुत मुबारक हो .......
अच्छा समापन किया आपने साहित्यिक चोरी चोरी न भवति ....
Brij mohan ji ;
Bahut sahee vyangya ke maadhyam se kaha hai aapne.Iske liye dhanyavaad .
pt.Nehru kahte the ki,choree karna paap nahee hai ,lekin choree karke pakde jana paap hai.shayad isee liye aapne kaha hai ki,25granthon se 2-2prashth lekar naya granth banana SHODH-research hai.
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