तो साब लडकी पसंद आगई कुंडली मिल गई - अब आप शादी किस स्तर की चाहते है ?
अरे स्तर काहे का साहब -हम अपनी बहू थोड़े ही ,बेटी ले जा रहे है ।
मगर फिर भी
आपने भी तो कुछ संकल्प किया होगा
हमारा तो पाँच तक का इरादा है
अरे सा’ब पाँच में तो क्लर्क -पटबारी तक नहीं मिलते -
पाँच के साथ पूरा सामान भी तो दे रहे है ।
सामान तो अलग रहता ही है ।कौन सा नया काम कर रहे हो ।सामान दे रहे हो तो अपनी लड़्की को दे रहे हो । आप ऐसा करो, दस और सब सामान करदो
ज्यादा हो जायेगा साहब, इसके बाद मेरी दो बेटियां और है सर पर
ये आपकी समस्या है आप जाने
ठीक है साहब जैसी आपकी मर्जी
हां एक बात और हम बरात लेकर आयेंगे बस का ,ट्रेन का किराया स्वागत ,बरात ठहराना आपको मेह्गा पडेगा,आप एक काम करो लडकी को लेकर यही आजाओ अपन मैरिज हाल बुक बुक कर लेंगे एक डेड के आस पास खर्च आएगा वह आप वहन कर लेना और रिसेप्शन देंगे उसका आधा आधा अपन कर लेंगे ।
मगर सा’ब आपके तो हजार पांच सौ आदमी होंगे हमारे तो दस बारह लोग ही इतनी दूर आपायेंगे
सो तो है मगर यही तो हो रहा है आज कल
ठीक साहब
हां एक बात और कैश हमे एक मुश्त टीका मे चाहिये हमे भी तो कुछ बन्दोबस्त करना है
आपकी मर्जी ,हमको तो देना ही है कभी लेलो ।
टीका बिभिन्न स्थानो में अलग अलग नाम से जाना जाता है कही तिलक समारोह, कही रिंग सेरेमनी,कहीं इंगेजमेन्ट , कही सगाई उद्देश्य सबका एक ही है कि शादी के पहले लडकी वालो से पैसे लेना ताकि रकम खरीदना और भी बहुत इन्तजाम करना । टीका में लड़के के पूरे परिवार को कपडे मगाये जाते है । मिठाई ,फल लड्की वाला स्वेच्छा से लाता है । टीका होते ही लडका दूल्हाराजा हो जाता है ।हर मां की इच्छा होती है कि उसका बेटा बड़ा अफ़सर बने ,अमीर घराने में उसका रिश्ता तय हो ,कैकैई ने भी तो हर मां की तरह अपने बेटे भरत को टीका ही मांगा था ।मगर देखिये आज लड़की का नाम सुमित्रा ,कौशल्या, जानकी मिल जायेगा मगर कैकैई नाम कोई नही रखता -ऐसा कौनसा गुनाह किया उसने ,बेटे का हित ही चाहा ,यह बात कही जा सकती है कि उसने दूसरे बेटे को बनबास मांगा ,जो आवाश्यक भी था राजा को हस्तक्षेप रहित राज्य करना चाहिये , उसने हमेशा के लिये नही केवल एक निश्चित अवधि के लिये मागा था क्योंकि १२ साल तक कोई, किसी स्थान पर ,स्थान के मालिक की जानकारी मे, कब्ज़ा रखता है तो विरोधी आधिपत्य ( एडवर्स पजैशन ) का अधिकारी हो जाता है ।
मै कहां की बात कहां ले जाता हूं ,हां तो टीका मे सारे परिवार के कपड़े ,मिठाई,फल ,ड्राय फ्रूट ,के अलावा, लडके वालों के रिश्तेदारों से, लडकी के पिता की मिलनी करबाई जाती है ,गले मिलो और हाथ मे लिफ़ाफ़ा देते जाओ ,बेचारा डरता डरता लिफ़ाफ़ो की तरफ़ देखता रहता है कम न पड़ जाये ,पैसे तो है मगर लिफ़ाफ़ा खरीदने तो बाजार जाना पडेगा और लड़्के वाला ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलनी कराना चाहता है।हर पास या दूर के रिश्तेदार ,पहिचान वाले को बुला बुला कर मिलनी कराता है ।
मैने सुना है मिलनी पहले भी होती थी मगर पहले लडके के मामा से लडकी के मामा की , फूफा से फूफ़ा की ,चाचा से चाचा की , ,जीजा से जीजा की मिलनी कराई जाती थी । ऐसे ही एक आयोजन मे एक लडका नशे में बिल्कुल टुन्न हो रहा था मिलनी वाले स्थान पर पहुंचा और बोला में दूल्हे का यार ,दुलहन के यार को बुलाओ मै भी मिलनी करूंगा ।
Saturday, January 23, 2010
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28 comments:
पता नही लोग केसे दहेज देते है ओर केसे लेते है, फ़िर मांगने वाले केसे बेशर्म हो कर मांगते है...बहुत सुंदर लगी आप की यह पोस्ट
@ राज भाटिया
अब आप यह न कहें
कि लोग कैसे दहेज देते हैं
कैसे लेते हैं
बेशर्म होकर कैसे मांगते हैं
इस पोस्ट में सारी पोल
ढोल के बाहर परोसी गई है।
गज़ब. वैसे कोई बेशर्म यह भी पूछ सकते हैं कि आज के वैज्ञानिक युग में बेटी पैदा ही क्योँ की थी. विवाह संस्था के समर्थक कहाँ हैं?
आपके व्यंग की धार तो कहाँ से हो कर कहाँ तक जाती है ....... टीका, तिलक से निकाल कर बहुत खूबसूरती से रामायण और फिर अड्वर्स पाजेशन ........ जाने कहाँ कहाँ से पर विषय को मजबूती से पकड़े हुवे ......... आपका व्यंग कमाल का है .... सामाजिक रीति और समय के चलते कुछ सड़े गले परंपराओं में उलझे ........ मायने खो चुके नियम ....... बहुत अच्छा लिखा है आपने ..... और फिर अंत ... मिलनी को उतावले दूल्हे के दोस्त ....... मज़ा आ गया बृजमोहन जी ..............
bilkul sachcha aur karara vyangya. bahut achcha likha hai,aabhaar.aapke blog par shayad 1st time ana hua bahut achcha laga.
dahej.., teeka..,
vyangy...aour kadava sach ./
sochta hu, jesi karni vesi bharni hoti he..., dahej to kabhi dekha nahi..beti kaa pitaa hu..shayad..bhavishya me esi koi bimari se palaa naa pade.., hope best.
sateek vygy .
milni lene vale bhi to ham hi hai kyo lete hai milni ?
बहुत सुन्दर लिखा है आपने! मुझे बेहद पसंद आया! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई!
आदरणीय श्रीवास्तव जी,
आपने हमेशा मेरी रचनाओं पर अपने विचार देकर हमेशा मेर उत्साहवर्धन किया है और तुल्नात्मक दृश्टि से भी हमेशा मेरी सराहना ही की हैजिसके लिये मैं आपकी ह्र्दय से आभारी हूं।मेरी इस रचना में मैने आज के समाज में होने वाली गतिविधियों का प्रतिबिम्ब ही उजागर करने की कोशिश की है।
अच्छे पोस्ट के लिये दिल से बधाई।
पूनम
आप ने सही वर्णन किया है.....दहेज की समस्या जाने कब तक लोगों को तंग करती रहेगी.....
Gantantr diwas kee anek shubhkamnayen!
कुछ अधूरा सा लगा.
आपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
दहेज़ समाज में फैला एक अभिशाप है।
लेकिन लेते समय कितने लोग ऐसा महसूस करते हैं, यह ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।
इस विषय पर और भी बात होनी चाहिए।
आपने सही मुद्दा उठाया है।
गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें।
ये बताइये अंदर की बात आपको पता कैसे चली :) और कहाँ की बात कहाँ ले जाते हैं आप. ये आज आपने भी मान ही लिया !
ये बताइये अंदर की बात आपको पता कैसे चली :) और कहाँ की बात कहाँ ले जाते हैं आप. ये आज आपने भी मान ही लिया !
एकदम सटीक विवरण प्रस्तुत कर दिया आपने.......अब इसपर आगे और कुछ कहने लायक कहाँ...
बातों को घूमा कर कटाक्ष करने का आपका अंदाज तो उफ़्फ़्फ़...क्या कहने!
वाह श्रीवास्तव जी लपेट लपेट के जूते मारे हैं आपने इन लड़के वालों के मुंह पर लेकिन ये बेशर्म जूते खा कर भी कहाँ सुधरते हैं...बेहद कमाल का लेख लिखा है आपने...बधाई...
नीरज
करारा व्यंग्य. बधाई.
बहुत ही अच्छा लेख है.
अच्छा नंगा किया है इन लालची लोगों को, ठीक इससे तरह बेशर्मी के साथ सौदेबाजी होती है , और लोग देते भी खुश होकर हैं ! इस तरह लडकी बालों को निचोड़ कर उनकी बेटी घर में " बेटी " बना कर लाई जाती है !
इसके बाद इस लडकी से उम्मीद की जाती है कि वह इस घर को एक रखने का प्रयत्न करेगी और बड़ों का सम्मान ! कैसे विद्रूप मानसिकता है हम सबकी ! मैं भी इस गंदगी के बीच एक पुत्री की तलाश कर रहा हूँ , भाई जी ! लोग मेरी बात का यकीन नहीं कर पाते के मैं बिना दहेज़ के शादी करूंगा ! कथनी और करनी पर से लोगों का विश्वास उठ चुका है ! अंतिम लाइन से आपनी हंसी दिला दी !
शुभकामनायें !
... अब क्या कहें ...सब कुछ तो आप ने अभिव्यक्त कर दिया है.... इस बे-सिर-पैर के सिस्टम के लफ़डे मे लोग क्यों पड जाते हैं ऎसे लालची लोगों से रिश्ता बनाना ही नही चाहिये... लडकी के मां-बाप अपनी लडकी को मरने के लिये खुद ही ढकेलते हैं... सही मायने मे दहेज हत्या के प्रकरणों मे ससुरालियों के साथ-साथ इनको भी चार्ज करना चाहिये क्योंकि जब बुनियाद रखी गई तब इन्होने भी नींव का पत्थर रखा है(इस संदर्भ मे मैने एक कविता लिखी है बाद मे पोस्ट करूंगा)।
katu sach kahne kee aapkee adda niralee hai...
Hi re hamara samaj !
bina aawaz ke lathi marna ,shadi ek barbadi to nahi ,dahej ke pichhe bhagti duniya ,kahi pagal to nahi .badhiyaa
very nice!
"श्रीवास्तवजी आपका शानदार व्यंग पढ़ा,लेकिन कई दिनों से आपका नया लेख पढ़ने को नहीं मिला क्या कलम को विश्राम दिया गया है...?"
प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com
aadarniya shrivastava ji,
aajki samaaj ki sachchai ko hubhu pesh kar diya aapaneto.ekbeti ka pita jyada maanghone par apane siir ki pagadi ko ladke ke pita ke pairron me rakh deta hai fir bhi dahej mangane waalo ko sharm nahin aati kyonki unke aankh ka paani mar chuka hota hai .to ladaki ke pita ka dard kaise samjhenge.unka muhan to bhand sa khula jo kabhi band nahin hota hai.
poonam
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