Saturday, February 19, 2011

गैर हाजिरी मुआफ

जब मेरा स्वास्थ्य खराब हुआ था तभी मै समझ गया था कि न जाने कितने हाथों से गुजरुगा रेल में खरीदे हुये अखबार की तरह और सच ही जो भी तबीयत देखने आया अपने अनुभव और दवाओं की जानकारी साथ लाया । बात मात्र इतनी थी कि पीठ में दर्द हुआ था लेकिन दुष्यंत कुमार जी की मानें तो ** पक्ष औ प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं बात इतनी है कि कोई पुल बना है"। पैथियां इतनी प्रचलित है कि मरीज़ दुबिधा में ही रहता है मैं इधर जाउं या उधर जाउं ।और फिर सलाहकार । कहते है संसार में सबसे ज्यादा दी जाने वाली कोई चीज है तो वह है सलाह और सबसे कम ली जाने वाली कोई चीज है तो वह है सलाह

वैसे तो दर्द सभी खराब होते है मगर पीठ का बापरे न उठ सकते न बैठ सकते चीख निकलजाये जरासी हरकत पर । उनका कहना था कि जल्दी से किसी डाक्टर को बतलादो एक्सरे करवालो । मगर तबीयत पूछने आये एक ने कहा भाभी जी इन डाक्टरों के चक्कर में पड मत जाना ।हमारे चाचाजी को ऐसे ही पीठ में दर्द हुआ था न जाने कैसा इन्जेक्शन लगाया कि लकवा हो गया आज तक घिसट रहे है और एलोपैथी में इसका इलाज है भी नहीं कहदेंगे स्लिप डिस्क है आराम करो दबायें खाओ।एक और ने समर्थन किया कि कि सही बात है एक को डाक्टर ने बतादिया वरट्रीब्रा कलेप्स हो गया है और आपरेशन कर दिया बेचारे ने पूरी जिन्दगी व्हील चेयर पर बिताई।मेरी मानो तो होमियोपैथ को दिखालो।
सही भी है होमियोपैथी एक पध्दति है जिसकी दवायें निरापद होती है केवल दवा का नाम मालूम होना चाहिये लाते रहो खाते रहो। इसीलिये होमियोपैथी का डाक्टर कभी मरीज को पर्चा बना कर नहीं देता है न दवा का नाम ही बताता है नाम लिख दिया तो मरीज को जानकारी हो जायेगी और दस रुपये की दवा के पचास बसूल करने में दिक्कत होगी ।
होमियोपैथी है बडी विचित्र इसके नाम जितने अटपटे है उतने आश्चर्यजनक इनके तत्व होते हैं जैसे एक प्रकार का सर्प चेचक का बीज स्पेन का मकडा धतूरा आदि । घतूरा पर से याद आया एक मरीज के लक्षण मानसिक रोगी जैसे नजर आने पर चिकित्सक ने किताबों के अध्ययन से पाया कि इसे स्ट्रेमोनियम दी जाना चाहिये । चूंकि दवा उसके पास खत्म हो गई थी उस दबाई का कन्टेन्ट था धतूरा तो पास में लगे धतूरे के पत्ते निचोड कर मरीज को पिला दिये । इससे मरीज.......।कुछ बाते इशारे में कही जाती है जैसे कि एक युवक ने टंकी में यह देखने के लिये कि इसमें पैट्रोल है या नहीं । माचिस जलाई । पेट्रोल था। आयु 35 वर्ष। धतूरे को कनक कहते है कहते है इसके खाने से आदमी पागल हो जाता है। स्वर्ण को भी कनक कहते है कहा है ‘‘कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय । ये खाये बौरात है वो पाये बौरात । खैर उस चिकित्सक का मुकदमा तो सुप्रिम कोर्ट तक गया



एक सलाहकार और आये बोले बाबूजी कुछ नहीं तुमने कोई बजन उठा लिया होगा तो चोडरा कुसका चला गया है हमारे ग्रामीण क्षेत्र में पीठ के नीचे हिस्से यानी लम्बर रीजन में अचानक दर्द होने लगने को चोडरा चला जाना या कुस्का चला जाना कहा जाता है । मै तलाश करता हूं अगर कोई व्यक्ति उल्टा पैदा हुआ होगा तो उससे आपकी कमर में लात लगवा देंगे दो दिन में आराम हो जायेगा । मुझे याद आया एक थानेदारसाहब का चोडरा चला गया था तो शहर के जितने गुन्डे बदमाश थे सब पहुंच गये हुजूर हम उल्टे पेदा हुये है
गरज यह कि जितने मुह उतनी दबायें।कहीं की मिटटी लपेटी न जाने कहां कहां के पानी से नहाये।जन्तर मन्तर जादू टोना । उसी बीच मालूम हुआ एक स्थान पर मेला लगा है मरीज इधर से खटिया पर लेटा हुआ जाता है और उधर से दौडता हुआ आता है वहां भी गये हालांकि वहां तो कुछ भेंट नहीं ली जाती थी परन्तु ठहरने की जगह व महगाई महानगर से भी ज्यादा ।
कृपया गैर हाजिरी को माफ़ करें

13 comments:

kshama said...

Ham aako miss to bahut kar rahe the...gair maujudgee kee wajah to pata nahee thee!
Ekkahawat hai Marathi me jiska bhashantar kuchh aisa hoga" Bheek na de,kutte ko to pakad!"Jab muft kee hazaaron salahe milne lagtee hain to ye kahawat yaad aatee hai!Salahon se to rog behtar!

सोमेश सक्सेना said...

इतने दिनों बाद आपको देखकर अच्छा लगा। हमें तो लगा था आपने ब्लॉगिँग ही छोड़ दी। व्यंग्य भी अच्छा है।

राज भाटिय़ा said...

अरे इतने अच्छॆ अच्छॆ सलाहकार आये कि आप को तो भगवान ने ही बचाया, वर्ना इन की बाते सुन कर अच्छे अच्छॆ हिल जाते :)इस लिये सुनी सुनाई बातो पर या ऎसी सलाह पर कभी ध्यान नही देना चाहिये, ओर लोगो को भी बेकार मे बिन मंगे सलह नही देनी चाहिये, मेरी तरह से:) चलिये हमारी शुभकामनाऎ, अब जल्दी से बिलकुल चुस्त हो जाये

Smart Indian said...

वापसी की स्वागत है, स्वास्थ्य का ख्याल रखिये!

दिगम्बर नासवा said...

अच्छा लगा aapke vyng और आपको dubaara dekh कर ...
आशा है अब tabiyat अपने likhon की धार की tarah ठीक होगी ... बहुत बहुत shubhkaamnaayen ...

रंजना said...

अरे... अभी कैसी तबियत है,यह तो बताया नहीं आपने ????

आपके पोस्टों ने आपकी जो प्रतिछवि बनायीं है, वह है एक उछलते कूदते,एनर्जी से भरपूर मस्त मौला इंसान की..जिसके बारे में अनुमानित करना मुश्किल हो जाता है, ब्लॉग न लिखने का कारण अस्वस्थता होगी..

चिंता हुई...कृपया वर्तमान की अवस्था बताएं...

रंजना said...

आपका लिखा पढने को तो हम प्रतीक्षारत रहते हैं,सो अब पोस्ट पर क्या टिपण्णी करें..

vijai Rajbali Mathur said...

यदि वस्तुतः आप बीमार थे तो चिंता की बात है.उम्मीद है अब ठीक होंगे. स्वास्थ्य का पहले ध्यान रखें क्योंकि सब को आपके व्यंग्य का इन्जार रहता है.आपका स्वस्थ रहना सब के हित में है.हम सदैव आपके मंगल-स्वास्थ्य की कामना करते हैं.

अभिन्न said...

welcome back sir,aapki anupsthiti bahut khalti thi,ab aap ka swasthay kaisa hai kripya khyal rakhiyega. aapka blog par aana aur comment chhodna bahut motivating hota hai..haan zanaab humne vo jalte hue chitr ko nikal diya.aapke achchhe swasthy ki kaamna karte hue.

vijai Rajbali Mathur said...

आप सब को भी होली की हार्दिक मंगलकामनाएं.

ज्योति सिंह said...

holi parv ki dhero badhai aapko .

डॉ० डंडा लखनवी said...

श्री ब्रजमोहन जी!
आपका लेख पढ़ा। अच्छा लगा। व्यंग्य की आपमें पर्याप्त प्रतिभा है। हास/उपहास से प्राय: व्यंग्य की धार कुंद हो जाती है। अपने शब्दों से लक्ष्य को घेरिए। कलम की धार से उसका मुखौटा नोचिए। इस प्रकार उसकी असंगतियों/विसंगतियों की सही पहचान समाजिकों हो जाती हैं और समाज में चल रहे छल-छ्द्म से आम जन सचेत हो जाता है। समाज को जाग्रत करना साहित्यकार की बहुत बड़ी जुम्मेदारी है। आप में इस जुम्मेदारी को निभाने का हौसला है। आपको साधुवाद।
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

Pravin Dubey said...

आपका ब्लॉग पसंद आया....
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-