चार दिन से सब्जी नहीं ,बिन साबुन नहाते हैं
ये बाज़ार जाते नहीं ,ब्लॉग में सर खपाते हैं
चश्मे का नम्बर बढ़ा और सर्वाइकल में दर्द
कमर को धनुषाकार बनाए जाते हैं
ज़्यादा बैठेंगे .डायबिटीज हो जायेगी
लीवर की तो बात ही क्या आंत सिकुड़ जायेगी
एक शक्ति जो मेरी नजर में थोड़ी है
और भी घट जायेगी
फिर असगंध और बिधारा भी काम नहीं आयेगी
इधर में दाल बघारती हूँ ,उधर वो शेखी बघारते हैं
बिना पढ़े कविताओं पर टिप्पणी कर आते हैं
दर दर की ठोकरें खाते हैं ,फिर भी कमेन्ट नहीं पाते है
इनके ब्लॉग पर कोई आता नहीं तो मुझ पर झल्लाते हैं
कमेन्ट को भीख ऐसे मागते हैं जैसे ये जन्म जात याचक है
ब्लॉग को सौत भी तो नहीं कह सकती ,क्योंकि यह तो पुरूष बाचक है
हाँ वो कह सकती हूँ जिस पर सरकार तयार हुई जा रही है
और आई पी सी में से धारा तीन सौ सतहत्तर हटाई जा रही है
Tuesday, October 14, 2008
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14 comments:
हा हा हा ......
बड़ी रोचक रचना है,....क्या सच में बिना पढ़े कमेन्ट देते हैं आप?
इतनी अच्छी लेखनी को पढने कौन नहीं आएगा भला?
एक शक्ति जो मेरी नजर में थोड़ी है
और भी घट जायेगी
फिर असगंध और बिधारा भी काम नहीं आयेगी
हा हा हा ..... एक आम ब्लॉगर की अंदरूनी हालत खोल कर दिखा दी :)))
वाह .......सुंदर व्यंग्य है.टिप्पणियों की चिंता बिल्कुल न करें.सुगंध अधिक समय तक छुपा नही रह पाता.
लाज़बाब लिखा है श्रीवास्तव जी गोया रचना न हो कोई दर्पण है सब साफ़ झलक रहा है सुंदर व्यंग रचना के लिए बधाई स्वीकारें मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन के लिए बहुत बहुत धनयबाद नई रचना हैण्ड वाश डे पढने पुन: आमंत्रित हैं
ब्रजमोहन भाई,
वाह। भाई मजा आ गया। अपने आप पर व्यंग्य करना साधरण बात नहीं। आपकी पीडा को हृदय से महसूस करते हुए मैं आपके ब्लाग पर कमेन्ट करने निश्चित आया करूँगा।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
बड़ी हिम्मत कर के टिपण्णी कर रहा हूँ ;
अगर सब्जी होती तो उससे नहा लेते क्या ?
मन में जो विचार थे कहीं और बहा देते क्या ?
वाह बहुत उम्दा व्यंग !
चार दिन से सब्जी नहीं ,बिन साबुन नहाते हैं
ये बाज़ार जाते नहीं ,ब्लॉग में सर खपाते हैं
चश्मे का नम्बर बढ़ा और सर्वाइकल में दर्द
कमर को धनुषाकार बनाए जाते हैं
wah wah brijmohan ji, bahut khoob......
diwali aapko bhi hardik shubhkamnayen, aapne jo intni aashish mujhe di hain mere liye sambhalana mushkil ho gaya hai.
is prem ke liye dhanyawad.
कमेन्ट को भीख ऐसे मागते हैं जैसे ये जन्म जात याचक है
bahut achhe...
इधर में दाल बघारती हूँ ,उधर वो शेखी बघारते हैं
बिना पढ़े कविताओं पर टिप्पणी कर आते हैं
patni se achi blogger ki psychology koi nahi samajh sakta. aapki rachnaon se Kaka hathrasi ki yaad aa gayi.
क्या कहना! लाजवाब!
Shukriya.
Us clisht Gazal ka arth aapko merekavimitra par mil jayega, thursday ko Gazal wahan post hui thi sher ke arth sahit.
बहुत ही सुंदर लिखा है. वाकई मज़ा आ गया. एक बार और आया आपके द्वारा कहीं किए गये टिप्पणी में:
"" हमें समझाना तो खूब आता है और समझा भी सकते है मगर हमें मालूम तो होना चाहिए के समझाना क्या है =""
http://mallar.wordpress.com
भाई जी !
बड़ी तीखी धार है आपके व्यंग्य में , मजेदार यह कि आप अपने को भी नही बख्शते ! शुभकामनायें ! भाभी जी को बता दीजिये कि प्रतिक्रियाओं की कोई कमी नही न चाहने वालों की !
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