शादी की बात
पहली ही रात
ग्रामीण दुल्हन
आधुनिक दूल्हा
प्रेम का पिटारा खोल उठा
फिल्मी डायलोग बोल उठा
तुमने किया है किसी से कभी प्यार
कभी हुई हैं किसी से आँखे चार
साड़ी में लिपटी
घूंघट में सिमटी
जमीन कुरेदती रही
तिरछी नजर स्वामी को देखती रही
पति उतावला
सुनने को बावला
एक क्षद्म परीक्षा
नकारात्मक उत्तर की अपेक्षा
चुप्पी असहनीय थी
स्थिति दयनीय थी
पुन इसरार हुआ
जिया बेकरार हुआ
प्रश्न बार बार हुआ
ह्रदय कपाट खोल उठी
धीरे से बोल उठी
बताती हूँ
जल्दी मत कीजिये
पहले मुझे
गिन तो लेने दीजिये
Thursday, January 1, 2009
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24 comments:
Hanste hanste sal ki shuruat..
Nav varsh par hardik shubkamnayen.
'बताती हूँ
जल्दी मत कीजिये
पहले मुझे
गिन तो लेने दीजिये'
-पहली ही रात पति को जोरदार तमाचा!
बृजमोहन भाई नमस्कार| अगर ग्रामीण दूल्हा और शहरी दुल्हन होती तो?
दिनों बाद आये बृजमोहन जी...इस रोचक सुहागरात की दास्तां ठहाके लगवा गयी...
Naye saal ki achhi shuruaat.
aapko naye saal ki shubhkaamnaye.
बहुत ही रोचक और मनोरंजक शुरुआत नये वर्ष की.
नये वर्ष की अनेकोनेक शुभकामनाएँ और आपके आशीर्वाद की अपेक्षायें रखते हुये.
मुकेश कुमार तिवारी
...नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
नर्व की हार्दिक शुभकामनाऍं।
मज़ा आगया भाई जी ! आप बहुत हंसाते हो - शुक्रिया !
वाह ! बहुत खूब! हास्य रंग में रंगी कविता बहुत अच्छी है..:)
''नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं "
देरी के लिए माफ़ी चाहूँगा, नये साल की ढेरों शुभकामनाएँ!
---
चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com
बहुत खूब।
मजेदार है।
शादी की बात , पहली ही रात
पति का उतावलापन , पत्नी का भोलापन
पति की उत्सुकता , पत्नी की व्यस्तता
नए साल की शुरुवात में सुंदर व्यंग दिया है
नए साल की शुभ कामनाओ सहित
क्या बात है श्रीवास्तव जी गज़ब करते हो आप तो साल की शुरुआत मैं ही ठोक दिया जोरदार छक्का
क्या गज़ब के भोले अल्हड़पन की झलक दिखाई है आपकी कविता ने.
हा हा हा हा ..................... हँसते हँसते दुहरे हो गए हम तो . लाजवाब ! जबरदस्त !
बहुत बहुत आभार.
सवाल ही धाँसू था ज़वाब तो फांसू मिलाना ही था,बेचारे का हनीमून था हनी का तो पेप्सी बन गया और मून मौन हो गया .........
बृज जी बढ़िया लिखा है ..जयादा लिखूंगा तो आप कहेंगे चने के झाड़ पर चढा दिया
अजी क्या खूब लिखा है. मजेदार
बेचारे पतिदेव की तो पहली रात में ही सिटीपिटी गुम कर दी.हृ्दय कपाट के बजाए उस बेचारे के तो ज्ञानचक्षु खुल गए होंगे.
बहुत खूब, मजा आ गया।
नमस्ते ब्रिज Sir,
आप का ब्लॉग पर आना और रचनाओं पर आप की प्रतिक्रिया पाना हमेशा अच्छा लगता है.
हायकु के बारे में लावण्या जी ने काफी विस्तार से अपने ब्लॉग पर बताया है.
http://www.lavanyashah.com/2009/01/blog-post.html
और डॉ. जगदीश व्योम जी ने भी अभिव्यक्ति हिन्दी साईट www.abhivyakti-hindi.org में इस पर विस्तृत जानकारी दी है.
http://www.abhivyakti-hindi.org/rachanaprasang/2005/hindi_haiku.htm
अभी इस विधा में कविता लिखना सिखा है.
आशा है आप का संशय दूर हो गया होगा.
आभार सहित,
अल्पना
वाह ! बहुत खूब!
ईश्वर का लाख लाख शुक्र है कि मैंने ए प्रश्न आज तक नही पूछा. अब आगे पूछूंगा भी नही. मेरे ज्ञान चक्षु खुल गए.
विनोद श्रीवास्तव
VERY GUD ...COMEDY.I ENJOYED ALOT ..........
कमेंट लिखा
बहुत ही सुंदर
कविता या मैं
really very gud...very funny
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