(एक मई को टिप्पणीकार का पहले भाग लिखा था / पेश-ए-खिदमत है दूसरा भाग /जब गलियां ही खाना है तो यह क्रम तो निरंतर चलेगा ही )
टिप्पणीकार को टिप्पणियाँ देकर, साहित्यकार का, उत्साहवर्धन करना ही चाहिए /जब हम क्रिकेट खिलाड़ियों का हौसला बढाने हजारों मील दूर जा सकते हैं , और यह जानते हुए भी कि , मैच-फिक्सिंग में, हमारा कोई शेयर नहीं है , खिलाडियों का उत्साह बढाते हैं ,वहां न जा सके तो घर में ही टीवी के सामने बैठ कर उत्साह बढाते है /वाह यार क्या (चौका छक्का जो भी हो ) मारा है ,तुझसे यही उम्मीद थी / उनका तो बस नहीं चलता वरना टीवी में घुस कर खिलाडियों की पीठ ठोंक आयें / और वही बैठ कर चाय की फरमाइश करेंगे ,सोफा पर बैठ कर ही रोटी खायेंगे ,टीवी के सामने से नजर नहीं हटायेंगे /बीबियाँ झल्लाएं नहीं तो क्या करें ?
जब पीडा से बाल्मीकि और प्रेरणा से तुलसी बना जा सकता है तो प्रोत्साहन से साहित्यकार क्यों नहीं बना जा सकता ?
और छोटे छोटे बच्चे बच्चियां २२-२२-२४-२४ साल के अपनी पढाई छोड़ कर या पढाई से ध्यान हटा क़र ,कैरियर की परवाह न करते हुए ,या उधर रूचि कर दिखलाते हुए ,यहाँ आकर चाँद -तारों ,हुस्नो-इश्क ,गुलाब जैसा चेहरा गोभी के फूल जैसा चेहरा ,वगैरा वगैरा लिख रहे हैं, बेचारे कितने परेशान हैं दिन-दिन भर कम्प्यूटर पर बैठना पड़ता है और इस वजह से नल, बिजली का बिल जमा करने ,चक्की पर गेहूं पिसवाने, बूढे बाप को भेजना पड़ता है , क्या प्रोत्साहन के हकदार नहीं है ? इन्हें रात दो दो बजे तक इंटरनेट पर बैठना पड़ता है और सुबह नौ बजे तक सोना पड़ता है /बार बार ब्लॉग खोल कर देखना पड़ता है कि कोई टिप्पणी आई क्या और खास तौर पर ........की आई क्या ? होबी अच्छी बात है मगर जीवन पर ,नौकरी पर ,विद्यार्जन पर हावी नहीं होना चाहिए /
यह जानते हुए भी कि सौ ब्लॉग की रचनाएँ पढने पर भी संघ लोक सेवा आयोग या राज्य लोक सेवा आयोग का एक भी प्रश्न हल नहीं कर पायेंगे /अरे, आई-ए-एस और आई-पी-एस की परीक्षा में भारतीय संबिधान के ४२ वे संशोधन ,नौवीं अनुसूची वाबत पूछा जायेगा या यह पूछा जायेगा कि मेडम क्युरी ने कितनी शादियाँ कीं थी /मगर पढ़ते हैं बेचारे कमेन्ट देते हैं कि कोई आकर हमारी कविता को सराह जाये ,क्या सराहना के हकदार नहीं ?
अपनी कविता सबको प्यारी लगती है ,तारीफ़ चाही जाती है =
निज कवित्त केहि लाग न नीका
सरस होइ अथवा अति फीका
वैसे कहते भी हैं अपनी अकल और दूसरों का पैसा ज्यादा दिखता है /कहते तो यह भी है अपना बच्चा और दूसरे की बीबी अच्छी लगती है(मैं नहीं कहता )मैंने तो सुना है पड़ोस के दो छोटे छोटे बच्चे झगड़ रहे थे =
पहला --मेरा डॉगी (कुत्ता ) तेरे डॉगी से सुंदर है /
दूसरा-- नहीं है /मेरा ज्यादा सुंदर है /
पहला - मेरी डॉल तेरी डॉल से सुंदर है /
दूसरा- नहीं है ,मेरी डॉल ज्यादा सुंदर है /
पहला - मेरी मम्मी तेरी मम्मी से सुंदर है
दूसरा - हाँ यह हो सकता है ,पापा भी यही कहते रहते हैं /
तो अपनी कविता सबको प्यारी लगती है और सराहना की हकदार है
वैसे यदि देखा जाय तो कमेन्ट करना सुबोध भी है और सरल भी क्योंकि इसमें जो भाषा ज्यादातर प्रयोग में लाई जाती है वह न तो हिंदी है, न इंग्लिश है न हिंगलिश है =रोमन लिपि कहा जाता है इसे / दादाजी से पूछना (अगर हों तो ? अगर हों तो ईश्वर उन्हें शतायु करे ) वे बतलायेंगे पुराने ज़माने में टेलीग्राम (तार ) इसी लिपि में भेजे जाते थे /अब तो यह टिप्पणी आदि के साथ मोबाईल में एस एम् एस के काम में आती है ,मगर है लिपि भ्रम उत्पादक /
उन्होंने लिखा ==चाचाजी अजमेर गया है
इन्होने पढ़ा == चाचाजी आज मर गया है
रोना धोना कोहराम (कोहराम फिल्म नहीं ) शुरू हो गया /
Sunday, May 10, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
22 comments:
आदरणीय बृजमोहनजी नमस्कार
एक बार फिर आपने मुस्कुराने के लिए मजबूर कर दिया. चाँद -तारों ,हुस्नो-इश्क ,गुलाब जैसा चेहरा गोभी के फूल जैसा चेहरा, बादल और शाम से भरी कवितायेँ (?) और उनपर "साधुवाद" "रामराम" "सुन्दर प्रस्तुति" आदि आदि टिप्पणियां, कोई अपने आप को कैसे कविता (?) लिखने के लिए रात रात भर जगने से रोक पाए.
aadarniya shrivastavji,
roman lipi me hi padhhiye/ is dour ke ham bhi likhaad he, aour tippani dene ke mamle me pahaad he/ kher../ umda rachna kahunga to vyang ka maza kirkira ho jayega// satik kahunga to itni der se beth kar blog par likhne ka jo time aapne khapaya uska KACHRA ho jayega/ fir kahu kya???
jo aapki rachna ke liye poori tarah saartha saabit ho/ bhag -3 ke baad likhunga/kyuki picture abhi baaki he....../
KYA SHANDAAR LIKHTE HE AAP< MAZA AA GAYA>>>kabhi parsaiji ki yaad aati he....to kabhi sharadji ki...//bavjood AAP apni rachna me poore astitva ke saath virajte he/ yahi aapki shrshthta he//
बहुत खूब लिखा है आपने! इसी तरह लिखते रहिये!
इस टिप्पणी चर्चा के बहाने कई महत्वपूर्ण बातें जानने को मिल रही हैं। चलाए रखिए।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary- TSALIIM / SBAI }
इससे बढ़िया तिपन्निकार चर्चा हो सकती है क्या? वास्तविकता के साथ व्यंग... भाई वाह ! मजा आ गया.
बेबाक लिखते है इसलिए मुझे आपका टिप्पणी बहुत भाता है । आप जो लिखते है असर डालता है धन्यवाद
दिलचस्प शैली में हर बार आप मन मोह जाते हैं वकील साब...
एक छोटी सी बात जो अखरती है वो आपका "पूर्ण-विराम" लिखने का स्टाइल। उम्मीद है अन्यथा नहीं लेंगे। पूर्ण-विराम के लिये आप जिस तरह इस " / " कुंजी-पटल को दबाते हैं, उसी तरह अगली बार से "shift" कुंजी के साथ " \ " ये वाली कुंजी दबाइये।
फर्क देखिये....
जब पीडा से बाल्मीकि और प्रेरणा से तुलसी बना जा सकता है तो प्रोत्साहन से साहित्यकार क्यों नहीं बना जा सकता ?
बिलकुल सत्य वचन.
बनना तो बहुतेरे प्रधान मंत्री भी चाहते हैं पर जनता की सहानुभूति ही नहीं मिलती.
मंदी के दौर में लोग बाग नौकरी चाहते है पर देने वालों में सहानुभूति ही नहीं जगती........
बिना सहानुभूति के क्या होगा.....................
चाहा तो चाहत मंझदार में होगा.
सुन्दर व्यंगात्मक प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें
चन्द्र मोहन गुप्त
'यह जानते हुए भी कि सौ ब्लॉग की रचनाएँ पढने पर भी संघ लोक सेवा आयोग या राज्य लोक सेवा आयोग का एक भी प्रश्न हल नहीं कर पायेंगे 'और रोमन लिपि के बारे में भी पढ़ कर..मुस्करा कर रह गए..
बहुत बढ़िया व्यंग्य है..मगर सच्चाई भी छुपी है इस लेख में..कई बार मैं भी यही सोचती हूँ कि आखिर ब्लॉग्गिंग से नुक्सान ज्यादा हैं या फायदे?
aadarniya brijmohan ji
namaskar ,
aapki ye post padhkar main ye sochne par mazboor ho g aya ki kaise hamari yuva peedhi ....dhaara me bahi jaa rahi hai ..
aapke lekhan ko badhai .
meri nayi kavita " tera chale jaana " aapke pyaar aur aashirwad bhare comment ki raah dekh rahi hai .. aapse nivedan hai ki padhkar mera hausala badhayen..
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
aapka
vijay
अरे, आप रूक गये क्या। आगे चलते रहें।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आदरणीय बृज सर,
टिप्प्णी की बखिया उधेड़ कर रख दी, ऐसे कसे हुये व्यंग्य बाण मारे की सारी चूलें हिल गयी पर मजा आता रहा।
मुझे एक बात आपसे बांटते हुये शर्म नही आ रही है, बात पुरानी है जिस उम्र का आपने जिक्र किया है उसी उम्र में मुझे भी इसी रोग ने डसा था। एक दिन कुछ लिखा और शाम पिताजी को बताया, फिर तो वही सब हुआ जो आज तक याद है। पिताजी ने बड़ी शिद्दत से समझाया कि तुम्हें अव्वल तो पढना है, इंजिनियर बनना है फिर बाद में जो जी में आये वो करना।
बात गांठ बांध ली थी तो आज महसूस करता हूँ कि ठीक कहा था।
अब क्या है जो जी में आता है लिखता हूँ, किसी टिप्पणीकार ने अच्छा कह दिया तो वाह नही तो फिर लिखने लगता हूँ।
बडा अच्छा लगा पढ करके।
आशीर्वाद बनाये रखें
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
यह व्यंग्य लिखने के बाद आपको भी टिप्पणियों की अपेक्षा तो हुई ही होगी.
Hamesha ki tarah bahut achche.
bahut badyia.
आदरणीय बृज सर,
मैंने पीछे फोन भी किया था, पर उस पर कोई उत्तर नही मिला। करीब महीने भर से आप ना तो नेट पर आये हैं और ना ही कहीं अपनी उपस्थिती दर्ज कराई है, क्या बात है?
सर, कोई नाराजगी या परेशानी तो नही?
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
ब्रजमोहन जी, गज़ब लिखे हैं आप.
बहुत खूब ...
मजा आ गया...
बहुत दिन बाद आ पाया ! क्षमाप्रार्थी हूँ, हमेशा की तरह आपको पढ़ कर मज़ा आगया बड़े भाई !
निम्न लिंक पर आपको उधृत किया है आशा है जरूर देखेंगे !
http://lightmood.blogspot.com/2009/06/blog-post.html
बहुत सुन्दर लिखा है. आभार
Post a Comment