रहिये अब ऐसी जगह चल कर जहाँ मच्छर न हों -पत्नी का यह शायराना अंदाज़ भलेही मुझे अच्छा लगा, किंतु मेरा कहना यह था की जायें तो जायें कहाँ ? उनका कहना यह था की अपने यहाँ जैसे और जितने मच्छर कहीं भी नहीं होंगे, इसलिए मकान या मोहल्ला बदलना ही होगा| मेरा सोच यह है कि शेर -सांप -बिच्छू –मच्छर, आदि से डर कर नहीं वल्कि इंसान -इंसान से डर कर मोहल्लों का परित्याग किया करते हैं |
उनकी परेशानी अस्वाभाविक नही थी -औसत मच्छर से बडे और मक्खी के आकार से कुछ छोटे, आम मच्छर से हट कर यानी ख़ास मच्छर, गोया बहुत ही खतरनाक मच्छर -अगरबत्ती व टीकियों की खुशबू व बदबू को नज़रंदाज़ कर देते है -प्याज काट कर बल्ब के पास लटका दो तो उसके इर्द-गिर्द ऐसे मंडराने लगते हैं जैसे प्याज प्याज न होकर कोई फूल हो और वे स्वयम भँवरे हों - घर में धुआं कर दो तो, वे यथास्थित रहे और आदमी घर से भागने लगे -किसी की आँख में जलन -किसी को आंसू -किसी को छींक -किसी को खांसी | मेरे द्वारा एक दिन धुआं कर देने पर मेरे बीबी बच्चों का मुझ पर नाराज़ हो जाना तो स्वाभाविक था क्यों कि वे मेरे अपने थे , किंतु आश्चर्य बिल्डिंग के अन्य लोग भी नाराज़ नजर आए | दीवालें काली हो रही हैं -कमरों में बैठना मुश्किल है -अजीब किरायेदार आया है -धुआं कितना घातक होता है जानता ही नहीं है -आक्सीजन की कमी हो गयी आदि इत्यादि|
|मच्छरदानी कोई अज़नवी चीज़ नहीं मगर उसके बाबद मेरा सोचना है कि मच्छरदानी -खरीद तो ली मगर इसे बंधोगे कहाँ -अव्वल तो बांस के चार डंडे मिलना मुश्किल , लोहे की रोड लगवाने लायक पलंग नहीं ,दूसरे मकान मालिक दीबारों में कील ठोकने नहीं देगा ,अथवा तो कीलें स्वयम नहीं ठुकेंगी थोडा सा पलस्तर उखाड़ कर टेडी हो जायेंगी और उचट कर ऐसी जगह गिरेंगी की ढूंढते रह जाओगे | और ठोकने वाले का अंगूठा !मरहम पटटी का इंतजाम पहले कर लेना चाहिए |वैसे कायदा तो यह है कि, दीवार में कील ठोको तो कील पत्नी को पकडाओ |
मच्छरदानी बाँध कर सर्ब प्रथम उसके अंदर उपस्थित मच्छरों की समुचित व्यवस्था करने में सब बुद्धिमता विसर्जित हो जाती है | ऐसा मालूम पड़ता है जैसे मच्छर दानी में कोई ताली बजा बजा कर कीर्तन कर रहा हो |इधर ज़ोर की ताली से अपने हाथ लाल, और मच्छर गायब -वह ऊपर मछर दानी के कोने में -और कोने वाले को मारने की कोशिश की तो मच्छर दानी की डोरी टूटी या कील उखडी|चारों तरफ मच्छर दानी गद्दे के नीचे दबाने के बाद समस्या यह की लाईट आफ कैसे करें -लाईट बंद करने गए यानी दो बार मच्छर दानी हटाई और इधर द्रुत वेग से उनकी प्रविष्ठि हुई, फिर रात भर गाते रहिये "जानू जानू री छुपके कौन आया तेरे अंगना " जाली में फंसा वह प्राणी कितना दुर्दांत -खूंखार और आक्रामक हो जाता है -भुक्तभोगी ही जानता है |
पत्नी का यह यह कहना (वह भी गाकर ) कि "नाली बनाने वाले जाने चले जाते हैं कहाँ " और यह भी की " नाली बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई -काहे को नाली बनाई ""और अगर बनवाई तो इसे ढकवाते क्यों नहीं | मैं समझाना चाहता हूँ "तुम सुनहु ग्रह मंत्री स्वरूपा, नाली बनहि बजट अनुरूपा "" और बजट आजायेगा तो ढकवा देंगे| और बजट के अंदर व समय सीमा में कभी काम पूरा होता नहीं है क्यों ?
तो चलो 'फिर दूसरी जगह चलो | मैंने कहा अरे वाह, कल को तुम कहोगी की ऐसी जगह चलो जहाँ हत्या, बलात्कार, चोरी, डकेती, अपहरण, न होते हों |दूसरे नालियों में कचरा सब्जी छिलके तुम डालो ऊपर से शिकायत| इसीलिये तो किसी ने कहा है “”इस आग को कैसे कहें ये घर है हमारा -जिस आग को हम सब ने मिलकर हवा दी है””
Monday, August 31, 2009
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15 comments:
आदरणीय बृज सर,
क्या खींच के मारा है, बेचार इन्सान एक मच्छार के हाथों परेशां, श्री नाना पाटेकर ने भी एक फिल्म में मच्छर के पराक्रम को गाया है कि " स्साला एक मच्छर ......"
और यह बात कि हत्या, चोरी, बलात्कार से भागते हुये जहाँ भी जायेंगे मच्छर तो वहाँ भी होंगे ही। बड़ा करारा व्यंग्य है कि इससे तो बेहतर हो कि केवल मच्छर भर ना हो बाकी तो सब अब रोजमर्रा की चीजें हैं, हो तो भी हमें क्या?
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
Machhar ya saanp bichhu ke kate ka ilaj hai..insaan jise kaat le, uskee ya maut pakee ya pagal pan...pagal kuttene katan se bhi badttar!
अच्छा मच्छर पुराण रहा.
आदरणीय श्रीवास्तव जी,
आपके व्यंग्य की खासियत है की वह सिर्फ हंसाता नहीं बल्कि पाठकों को सोचने पर भी मजबूर कर देता है...अच्छा व्यंग्य ....शुभकामनाएं.
हेमंत कुमार
आपकी सारी बातें तो सही हैं, पर भाभी जी को समझाने की हिमाकत कैसे करें, हम तो यही सोच रहे हैं.
वैसे आपको एक बात बताएं, बांस के चार डंडे भले ही न मिले, अलुमिनियम के चार राड आपको हर हार्डवेयर की दुकान पर मिल जायेंगें, साथ ही इसको पलंग पर लगाने के लिए, मस्कीटो नेट सपोर्ट सेट और थ्री वे जोइंट ये सभी एल्यूमिनियम के भी हार्डवेयर वाले के यहाँ मिल जायेंगें. इनको लगाने में न हतौडे का काम है, न कील ठोकना है, बस पेचकस की सहायता से स्क्रू टाइट करना है.
आसा है भीजी की संतुस्ती के लिए आप इसी उपाय को अजमा कर अनुग्रहित करेंगे.
सुन्दर और गहरी सोंच को दर्शाता आपका यह व्यंग बेहद पसंद आया.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
इस आलेख पे तो comment दे दिया था !
आपका सुझाव सही है ..मैंने 'बिखरे सितारे ' पे 10 तथा 11 क्रमांक दे दिए हैं . धन्यवाद !
अगली कड़ी लिखनी है ..मेरी अपनी मसरूफियत के वजह से नही लिख पा रही हूँ ...गर हो सका तो आज रात लिख दूँगी ..वरना कलसे out of station हूँ ..!
आदरणीय बृज JI
ITNA JABARDAST VYANG .... VO BHI KOMAL SHABDON MEIN ... KAMAAL HAI SIR AAPKA ..... SACH MEIN AGAR MACHHAR PADH LE TO SHARM SE APNE AAP BHAAG JAAYE ..... BAHOOT KHOOB
"वैसे कायदा तो यह है कि, दीवार में कील ठोको तो कील पत्नी को पकडाओ|"
बृ्जमोहन जी, आपके इस व्यंग्य सागर में से हमने तो अपने लिए मोती चुन लिया है। अब जब भी घर में कहीं कील ठोंकने की जरूरत पडेगी तो इसी कायदे के अनुसार ही ठोकी जाएगी:)
बेहतरीन व्यंग्य रचना!!
आभार्!
इस आग को कैसे कहें ये घर है हमारा -जिस आग को हम सब ने मिलकर हवा दी है””
Waah !!! Kya baat kahi...man khush ho gaya...
Lajawaab vyangy hai....sachmuch lajawaab !!
Hansakar baaten man par chhap dene aur katu yatharth ki bakhiya udherne ki kala ise kahte hain.Waah !!!
Mudraon ke vishy me koi jigyasa ho to aap mujhe ranjurathour@gmail.com par patra likh poochh sakte hain..
Ek machchhar kya kyaa karwa leta hai.
( Treasurer-S. T. )
सही कहा आपने।
इस शमा को जलाए रखें।
{ Treasurer-S, T }
Hemant ji(creativekona) ki baton se sahmat hoon.
जब IAS के अफसर,( कलेक्टर के under training होते हैं) , उतने दिन Dy. कलेक्टर( या कहीं,कहीं अस्सिटेंट) कहलाते हैं। ये अवधि केवल कुछ माह का होता है ...उसके बाद कलेक्टर ही कहलाते हैं ...जो All India Services में IPS के अफसर भी होते हैं, वो भी ASP( assitent SP ) कहलाते हैं।
हाँ, १२ वा भाग अधिक बड़ा हो गया,क्योंकि, एक सिलसिला बनाये रखना था...इसलिए १३ वाँ भाग छोटा रहा। आप अच्छे सुझाव देते हैं...शुक्र गुजार हूँ!
( Bikhare sitare' pe kiye comment ka jawab de rahee hun...)
हमेशा की तरह आपके कटाक्षों ने मुग्ध किया वकील साब...
"इस आग को कैसे कहें ये घर है हमारा -जिस आग को हम सब ने मिलकर हवा दी है" आह!
मच्छर और मच्छरदानी की गाथा मजेदार लगी..आशा है इसे कोई नगरपालिका का कर्मचारी भी पढ़ ले और कुछ असर हो!..खैर हमें यहाँ इस गरम देश में मच्छरों की कोई समस्या नहीं है..इतनी गरमी में ये टिकते ही नहीं और बारिश होती नहीं तो पानी जमाव वाली समस्या ही नहीं है......
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