हम समाचारों को चार वर्ग में विभक्त कर सकते हैं । अन्तर्राष्ट्रीय राष्ट्रीय प्रादेशिक और क्षेत्रीय ।क्षेत्रीय समाचार कुछ ऐसे होते है जिन्हे न समाचार कहा जा सकता है न अफवाह मगर इनमें से ही कुछ होती/होते है।ये अफवाह या समाचार न टीवी पर दिखाये जाते है न पेपर में छपते है लेकिन आदमी औरत बूढा बालक सबको मालूम रहता है । मै एसे ही दो क्षेत्रीय समाचारों से आपको अवगत कराना चाहूंगा।
एक वार सुनने में आया कि एक गिलकी सब्जीः से भरा हुआ ट्रक जारहा था । रात का वक्त था सडक पर नाग नागिन का एक जोडा था । ट्रक ने उन्हे कुचल दिया । तो साहब उस जोडे ने श्राप दिया कि गिलकी के पत्तों पर नाग नागिन की छवि उतर आयेगी । लोगों ने गिलकी के पत्ते देखे वाकई सफेद रंग की सर्प जैसी आकृति थी । मैने भी देखी ।यह समझ में नहीं आया कि उस जोडे ने मरने के वाद श्राप दिया या कि मरते मरते ।फिर गलती ड्रायवर की थी दण्ड उसको मिलना चाहिये था अब्बल तो आप रात में सडक पर गये ही क्यों मगर श्राप तो दे चुके तो दे चुके । अब साहब हालत ये कि सव्जी बेचने बाला कहे कि साहब एक रुपये की एक किलो ले लो तो भी कोई तैयार नहीं यहां तक कि कोई गिलकी मुफत में लेने को भी तैयार नहीं । जब तक कृषि विभाग यह तय करता कि यह कुछ नहीं एक कीडे का लार वा है इससे न तो फसल को कोई नुक्सान होता है न सब्जी खाने वाले को कोई नुक्सान है तब तक तो आलू का स्टाकिस्ट जिसके दो साल से आलू कोल्ड स्टोर में पडे थे और कोई खरीददार नहीं मिल रहा था उसके पास एक किलो आलू भी न बचे।
एक वार जब मै अपने नगर गया तो क्या देखा कि सभी के मकानों पर दरवाजे के दौनो तरफ हल्दी के हाथ के निशान बने थे । पूछा भैया ये क्या है तो मालूम हुआ कि एक चुडैल याने भूतनी भिखारन बन कर आयेगी ,वह प्याज और रोटी मांगेगी । जिसके दरबाजे के दौनो ओर ऐसे हल्दी के हाथ बने होंगे उस घर नहीं जायेगी। मै अपने मित्र के घर गया तो वहां भी । मै जानता था वे एसी बातों में विश्वास नहीं करते तो मैने पूछा भाई ये क्या बोले मै इन बातों में विश्वास नहीं करता । मैने पूछा फिर ये हल्दी के हाथ दरवाजे पर \बोले उसमें हर्ज ही क्या है ।कुछ दिन रह कर मै तो वापस आगया फिर पता नहीं चुडैल आई या नही हो सकता है आई हो तो हाथ के निशान देख कर वापस लौट गई हो परन्तु इतना अवश्य पता है कि एक माह वाद होने वाले चुनाव में कांग्रेस उस क्षेत्र से भारी बहुमत से विजयी हुइ थी ।
चलते चलते एक बात और वता दूं कि कुछ लोग भूतों पर विश्वास नहीं करते कहते है यह वहम है लेकिन हुजूर
एक दिन भूत के बच्चे ने भूत से कहा
पापा आज मुझे आदमी दिखा
भूत ने कहा बेटा आदमी वगैरा कुछ नहीं होता है
यंे अपन लोगों का वहम होता है
मै तो दिन में रात में
हाट में बाजार में
राज में दरवार में
गली और मैदान में
खेत और खलिहान में
संसद और विधान में
हर तरफ रहता हूं फिरता
मुझको तो कभी कोई आदमी नहीं दिखता
Friday, October 15, 2010
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29 comments:
अंतिम लाइनें तो दिल छू गयीं भाई जी ! हार्दिक शुभकामनायें !
पता नही लोग क्यो ऎसी बकवास बातो पर विशवास करते हे, ओर इन लोगो मे बहुत पढे लिखे लोग भी होते हे, कुछ साल पहले भारत मे पत्थर की मु्र्तिया भी दुध पीने लगी थी, ओर लोग पागलो की तरह से लाईनो मे लगे थे कब नम्बर आये ओर हम भी अपना जन्म सुधार ले, लोगो को चाहिये की अपने आसपास के लोगो को जागरुक करना चाहिये , ओर इन बातो से दुर रहना चाहिये,
इस सुंदर लेख के लिये आप का धन्यवाद
अच्छी कविता है ।
मनुष्य अभी भी अंध विश्वासों में जीता है ।
ऐसी खबरें खूब उड़ती है. कभी इस मंदिर में ऐसे रंग की साडी चढानी है तो कभी दरवाजे पर कोई आकृति. आदमियों के वहम वाली बात पसंद आई.
aj bhi aisi baaten logon ko bahut prabhavit karati hain..... kai baar to dekhadekhi ke chalate aisa hota hai...
"बेटा आदमी वगैरा कुछ नहीं होता है
...
मुझको तो कभी कोई आदमी नहीं दिखता"
गज़ब! आपकी तेज़ नज़र और अनूठी शैली वाकई गज़ब है।
सच्ची सपाट बात.........
अन्धविश्वास, विश्वास...........
सभी कुछ हाज़िर है इस दुनिया में...........
सुन्दर प्रस्तुति पर आपका हार्दिक आभार ..........
चन्द्र मोहन गुप्त
आपका व्यंग्य प्रहार ...उफ़ !!!
वैसे यह गिलकी क्या होती है...कृपया बताइयेगा..
गहरा कटाक्ष है बृजमोहन जी ... सच है बस आदमी ही है नज़र आता आज ... यूँ तो भीड़ का लंबा काफिला रहता है संसार में .... आपका व्यंग लिखने का अंदाज़ लाजवाब है ....
बहुत अच्छा लगा ये व्यंग्य आपका कि आदमी कहीं नहीं मिलता सही है आज के इन्सान में इंसानियत बहुत कम देखने को मिलती है
आप सब को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
हम आप सब के मानसिक -शारीरिक स्वास्थ्य की खुशहाली की कामना करते हैं.
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Very unique presentation !
Happy diwali
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आपके दीपावली पर हार्दिक शुभकामनायें !
सुन्दर .दीप पर्व की हार्दिक बधाई।
सुंदर रचना
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
आदरणीय श्रीवास्तव जी,
आपको, परिजनों एवम मित्रों को दीवावली मंगलमय हो!
धन्यवाद, आपको भी सपरिवार दीपावली की शुभकामनायें. आपके कमेन्ट की रिप्लाई कर रहा था तो पता चला आपका ईमेल एड्रेस ही नहीं है उसमें. लौट आई ईमेल. फिर हमने सोचा चलो ये बक्सा तो है ही.
श्रीवास्तव जी, मैं तो "शारदा' का रास्ता भूल-सा गया था, याद दिलाने के लिए शुक्रिया। आपको भी दीपावली, गोवर्धन, चित्रगुप्त और भैया दूज की हार्दिक शुभकामना।
रंजीत
मेरा भारत महाण जहाँ रंगरगीले मतवाले लोग हैं। धन्यवाद।
ता नहीं चुडैल आई या नही हो सकता है आई हो तो हाथ के निशान देख कर वापस लौट गई हो परन्तु इतना अवश्य पता है कि एक माह वाद होने वाले चुनाव में कांग्रेस उस क्षेत्र से भारी बहुमत से विजयी हुइ थी ।
बहुत खूब ....!!
आपको दीपावली की हार्दिक शुभ-कामनाएं । ब्लाग पर आने का शुक्रिया ।
आपको एवं आपके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें ...
..गली और मैदान में
खेत और खलिहान में
संसद और विधान में
हर तरफ रहता हूं फिरता
मुझको तो कभी कोई आदमी नहीं दिखता
कभी मिल जाये तो तस्वीर खिंच कर हम लोगों को भी दिखाएँ.बहुत खूब.शुभकामनायें.
बृजमोहन जी ,
आपका ब्लाग वास्तव में ढोंग -पाखण्ड पर करारा व्यंग्य कर रहा है .पढ़ कर खुशी हुयी .आपको मकान की वास्तु समस्या का समाधान शायद मेरे नए पोस्ट में मिल सके .
वैसे आज -कल कई सरकारी दस्तावेजों जैसे जनगणना आदि में माँ का नाम लिखा जा रहा है .
अच्छा व्यंग्य है। अगला समाचार कब सुनायेंगे?
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ....
कविता अच्छी लगी सर| कस्बों में डायन चुड़ैल का आतंक तो आम है|
'हर तरफ रहता हूं फिरता
मुझको तो कभी कोई आदमी नहीं दिखता '
-बहुत सही .
'आदमी/इंसान ' रह ही कितने गए हैं?जो बचे हैं उन्हें भी शैतान अपने जैसा बनाने में लगा है या मजबूरन उन्हें बन जाना पड़ता है या फिर अपना अस्तित्व की लड़ाई में हार कर छुप जाना..तो कहाँ दिखेंगे आदमी?
ब्रज मोहन जी
आप भी बस कमाल हैं .
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