'नाना भाति राम अवतारा रामायण सत कोटि अपारा' की भाति नाना प्रकार की कवितायें और नाना प्रकार के कवि । दौनो आकृति में, प्रकृति में भिन्न आकार प्रकार में भी ।
कोई श्रंगार रस में तो कोई हास्य रस मे ही डूबे रहते है। कुछ कवि चुटकुलों को कविता के सांचे में ढाल देते है । कुछ कवि आशु कवि होते है इधर कोई बात सुनी उधर कविता तैयार ।
कुछ कवि फुल टाइम और कुछ पार्ट टाइम कवि होते है। सर्विस करने वाले इतवार को कविताऐं करते है वह उनका छुटटी का दिन होता है कविता लिखने का दिन होता है।
एक कविवर के पिताजी का देहान्त हुआ था तो शोक पत्र उन्हौने अपनी स्वरचित कविता में ही छपवाया था।
कुछ कवि बहुत ज्यादा भावुक होते है कवि के सफेद बाल देख कर चंद्रवदनि मृगलोचनी ने बाबा का सम्बोधन कर दिया ,दिल में टीस लगी और कविता प्रारम्भ।
कुछ कवियों की कवितायें समझने मे थोडी देर लगती है । कवि कह रहा था कि' जब भी वह आती है एक रौनक आजाती है और जब भी वह जाती है मायूसी छा जाती है' ये बात वे लाइट के वारे में कह रहे थे।
कुछ लोग कहते है कवि पैदा होता है बनता नहीं है लेकिन यह भी देखा गया है कि बनते भी है और बन भी सकते है" मै कही कवि न बन जाउ तेरी याद में ओ कविता" । और" मै शायर तो नहीं जबसे देखा मैने तुझको मुझको शायरी आगई।"
कुछ कवि पैसे के लिये लिखते है तो कुछ नाम के लिये। कविता के साथ पत्रिका में नाम ओ फोटो भी छप जाना चाहिये । कुछ का कहना है कि नाम से पेट नहीं भरता।
पुराने जमाने में कई कवियों का कविता पर ही गुजारा होता था। वे आश्रयदाता की तारीफे करते रहते थे जैसे भूषण आदि वे राजकवि कहलाते थे । एक कवि प्रथ्वीराज चौहान के पास थे शायद चंद वरदायी या ऐसे ही कुछ उन्हौने प्रथ्वीराज रासो लिखा बिल्कुल आल्हखण्ड की तरह और 11 साल की उम्र होते होते प्रथ्वीराज की 14 शादियां करादी। कवि कविता पढ कर सुना कर जाने लगता था तो राजे महाराजे उसे विदा स्वरुप राशि दिया करते थे यदि किसी को नही देना होता तो वह कवि से कहता महाराज इस कविता का अर्थ बताओ और केशवदास की कविता दे देता था ।" कवि को देन न चहे विदाई पूछो केशव की कविताई "। केशवदास को कठिन काव्य का प्रेत कहा गया है इतनी क्लिष्ठ कि क्या बतायें आपको। उस जमाने की कवितायें राजनीति को भी प्रभावित करती थीं ।कवि ने जब देखा राज्य की व्यवस्था बिगड रही है और राजा रासरंग में डूवा है तो एक दोहा लिख कर राजा तक पहुंचाया ""......अली कली हीं सों लग्यों आगे कौन हवाल"" राजा होश में आगया और राज्य का विधिवत संचालन करने लगा । आज आप कविता क्या एक खण्ड काव्य लिखदो महा काव्य लिखदो कोई फर्क नहीं । हां उसका विमोचन करने आजायेंगे मगर पढेंगे नहीं, फुरसत ही नहीं है
""तुमने क्या काम किया ऐसे अभागों के लिये जिनके वोटों से तुम्हे ताज मिला तख्त मिला
उनके सपनों के जनाजे में तो शामिल होते तुमको शतरंज की चालों से नहीं वख्त मिला ।""
पुराने कवि बडे रसिक भी होते थे । उनकी नायिका झूला झूल रही है । कैसे ? वह वियोग में इतनी क्षीण हो गई है सांस लेती है तो 7 कदम पीछे और सांस छोडती है तो 7 कदम आगे उसका शरीर आजा रहा है। डर है बेचारी अनुलोम विलोम न करने लगे ,बहुत प्रचार प्रसार है इसका।
एक तो बेचारे दूध पीने को तरस गये
'प्रिया के वियोग में प्रियतम बेहाल थे
अन्दर से सांस बहुत ठंडी सी आती थी
दूध का भरा गिलास कई बार उठाया पर
सांसों के लगते ही कुलफी जमजाती थी।'
आदि काल से जितने कवि,शायर ,गीतकार हुये सभी ने बरसात के मौसम पर कुछ ज्यादा ही लिखा है। बादलों पर , रिमझिम फुहारों पर,मोर ,पपीहा सब पर -
यही मौसम क्यों रास आया कवियों को? क्या इस मौसम में बच्चों व्दारा कापी किताब,एडमीशन डोनेशन फीस की मांग नहीं की जाती थी।क्या पत्नियों की ओर से अचार के लिये कच्चे आम और तेल की फरमाइश नहीं की जाती थी? क्या इस मौसम में उनके मकान में सीलन नहीं आती होगी,छत न टपकती होगी? क्या कमरे में पंखे की हवा में कपडे सुखाने ,डोरी बांधने मकान मालिक कील ठोंकने देता होगा ? आखिर इस मौसम पर और इस मौसम में कवितायें ज्यादा रची जाने का कुछ तो कारण होता ही होगा।
हाँ इस मौसम में कवित्व भाव जागृत करने उन्हे वातावरण भी मिलता होगा क्योंकि इन्ही दिनों कीट पतंगे रौशनी की ओर चक्कर लगाते है कवि सोचता होगा एकाध पोस्ट निकलने पर शिक्षित बेरोजगार अपने अपने प्रमाणपत्रों का बंडल लिये हुये चक्कर लगा रहे है।
जगह जगह गडढों में ऐकत्रित हुये पानी को देख कवि सोचता है ऐसे ही कर्मचारी के टेबिल पर फाइले इकटठा होती रहती है। बिजली की चमक ऐसे दिखती होगी जैसे किसी सभा में नेताजी उदधाटन चाटन उपरांत दांत दिखा रहे है या कोई अभिनेत्री किसी टूथपेस्ट का विज्ञापन दे रही हो। बादल की गरज एसी जैसे कोई क्रोधी व्यक्ति पाठ कर रहा है । बडी बडी बूंदे बॉस के गुस्से की तरह और धूप का अभाव जैसे आउट डोर में डाक्टर। कपडे सुखाने तरसते लोग ऐसे दिखते होगे जैसे महगाई भत्ते को कर्मचारी तरसते है।
कवि की तबीयत भी बरसाती हो जाती है वह बूंदों के साथ ऐसे नाचने लगता है जैसे पडौसी के नुक्सान पर पडौसी नाच रहा हो वह मस्त होकर ऐसे गाने लगता है जैसे परीक्षा के दिनों में माइक लगाकर किसी मोहल्ले में हारमोनियम तबला के साथ रात भर अखंड पाठ हो रहा हो। बादलों के साथ उडने लगता है जैसे चुनाव जीत कर लोग हवाईजहाज में उडते है। मोरो के साथ वह ऐसे झूमने लगता है जैसे अपराधी लोगों का कोई बॉस जेल से रिहा हो गया हो। कभी बादल इतने नीचे आजाते है कि आने लगे ' एसी कार से उतर कर मोहल्ले में कोई वोट मांग रहा हो।
बरसात पर सारे गाने लिखे जा चुके और कुछ न बचा तो ""छतरी के नीचे आजा""। आपको तो अनुभव होगा तब का जब आपके पास कार नहीं होती होगी ,छाते खोते बहुत हैं । पानी बरसते में छाता लेकर गये दोपहर बाद पानी बन्द होगया । रोजाना की तरह छै बजते ही दफतर छोड कर भागे छाता भूल गये । दूसरे दिन आकर तलाश करते है। फिर मिलता है क्या ।
मेरे मित्र छाते पर नाम लिखवा रहे थे बोले खोयेगा नहीं । मैने कहा जब कोई इसे ले जायेगा तो यह तेरा लिखा हुआ नाम क्या चिल्ला कर कहेगा कि यह मुझे ले जारहा है। मगर नहीं माने लिखवा ही लिया नाम ।
Sunday, June 26, 2011
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21 comments:
कविता के बहाने उपमाएं देकर समाज का आईना सामने रखा है.
बेहतरीन है भाई साहब ...पोल खोलती
भाई जी,
टांग-खिचाई की उत्तम उपमाएं ...:-):-):-)
शुभकामनायें!
बहुत रोचक और सटीक...
कवियों के सब रूप दिखा दिए ।
लेकिन हमें तो वही कवि अच्छा लगता है जिसकी बात समझ में आए ।
हमेशा की तरह प्रभावी हास्य-व्यंग्य | आपकी लेखनी का कायल हूँ |
प्रभावी और सटीक...... आजकल तो यही हाल है...
मज़ा आ गया। आज तो आपने कवियों को सही लपेट दिया।
kavita aur kavi laa-jawaab!
aapne sachchaai ujaagar ki hai, dhanyawaad!
...mai videshyatra par hoon..ab wapasi baad hi yahan aana hoga!...anek shubh-kamnaaen!
सच. बिल्कुल सही, कुछ ऐसे ही हालातों से लोगों को रोजाना रुबरू होना पड़ रहा है। व्यवस्था की पोल खोलती हुई सटीक पोस्ट
बहुत बढ़िया, शानदार और रोचक पोस्ट! बड़ा मज़ेदार लगा!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
मैं फिर कहूँगा कि सबसे अच्छी बात आपके पोस्ट में होती हैं एक जगह से शुरू करके फ्लो में निकल जाना. जैसे बात छाते तक पहुंची आज.
बहुत खूबसूरती से कवि /कवयित्री को विशिष्ठ उपमा में ढाला है ।शुभकामनायें!
yah rachna nahin ek saaf aaina hai
बस पद्य में लिखा भर नहीं आपने...नहीं तो वर्षा ऋतु वर्णन क्रम में जो आधुनिक बिम्ब प्रस्तुत किये आपने....
ओह क्या कहूँ...लाजवाब !!!!
आपके आलेख मन हरिया देने,दिन बना देने वाले हुआ करते हैं...
जबरदस्त बेहतरीन...
दोनों ही रूपों में समाज का आइना दीख पडता है्। अच्छी लगी यह चर्चा।
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जादुई चिकित्सा !
इश्क के जितने थे कीड़े बिलबिला कर आ गये...।
mahantam shubhkamnae
बहुत बढ़िया लिखा है....एकदम जबरदस्त....
Is shama ko jalaye rakkhen.
आपने तो रंग जमा ही नहीं दिया वरन खूब बारिश कर दी है रंगों की, इस बरसात के मौसम में.
लेखनी है कि रपटती ही जा रही है,पर पढ़ने का सिलसिला भी लेखनी के साथ दौड लगा रहा है और पढते पढते ही बहुत आनंद आ रहा है.
आपका जबाब नहीं ब्रिज मोहन जी,
'मोहनी विद्या' तो नहीं सीखी आपने.
मेरे ब्लॉग पर तशरीफ लाईये.
tarkik visleshan ke liye bahut bahut badhai.........aaj to apne kisi ko bhi nahi choda.sab ki khair kahabar li hai.....ac
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