चला चलता रहा
कंटकपथ,पथरीली राहें,दलदल
कटा, फटा, जुडा, सिला ,सहा भी
पीड़ा, वेदना, ताप
थका ,गिरा ,उठा ,गिरा
अपना सुख विस्मृत कर ,निवाहा भी
जन्म-सिद्ध कर्तव्य
अब जर्जर ,चिर-पथझड़,परवशता भी
निराश्रित ,उपेक्षित ,बेकार
क्या हूँ ?
रिटायर
या
रिजेक्टेड टायर
Saturday, November 22, 2008
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11 comments:
बढिया रचना है।
बस re-tier और re-ejected tyre चलता रहा
और
यूँ अनजान राहों में जीवन मचलता रहा
zindagi ka yah padaaw jane kitne mayus sawaal de jaata hai.....kalpurje dheele hue aur prashn.......
क्या बात है बंधु जी... बढ़िया रचना... साधुवाद
... बढिया एवँ रोचक अभिव्यक्ति है।
बहुत हि भावपूर्ण अभिव्यक्ति, बधाई स्वीकार करे.
ईश्वर से कामना करता हू कि rejected tyre बनने कि कभी नौबत ना आये.
मेरे ख्याल से न tired,न retired.
क्या बात है ब्रीजमोहन जी...भई वाह सुंदर सिमली का इस्तेमाल
ये बताइये आपने अपना "हंस" वाला खत देखा कि नहीं...वो आपका ही खत ही था ना
शानदार अभिव्यक्ति दर्द की, जो कोई महसूस नही करता बड़े भाई !
bahut khoob brij ji,
thanks for writing on "gali door tak khamosh hai".... aapka sawaal tha ki main andar tak kyun nahi gaya, chapplen dekh kar kyun laut gaya...ब्रिज जी काश जा पता. अन्दर जाने के लिए भी तो कलेजा चाहिए था, मैं इतनी हिम्मत नही जुटा पाया.
वाह वाह वाह !
अद्भुद.इतने भावपूर्ण ढंग से इतने कम शब्दों में जो पूरी एक कथा,मनोव्यथा वर्णित कर दी........लाजवाब.
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