Monday, September 22, 2008

मात्र हास्य तुकबंदी

घूंघट में वो सिमटी बैठी
सोचा मैंने इससे जीवन डोर बंधलूँ
पर घूंघट में समझ न पाया
विधुबदनी है या म्रगनयनी ,,चंद्रवदन म्रगसावकनयनी
मनभावन सुंदर है या यौवन में अलसाई
प्रेम लालाइत बाला है अथवा है सुखदाई
रुचिकर और मनोरम है या है सलज्ज मुस्कान
सुंदर दंतअवलि बाली है या है रस की खान
प्रेम पूर्ण चितवन है या फ़िर है चितवन मुस्कान भरी
तिरछी चितवन है या सीधी या फ़िर है उल्लास भरी
झिलमिल करती गौर देह है या फ़िर है सुकुमार सलोनी
देवलोक की स्वर्ण अप्सरा या फ़िर है कोई अनहोनी
घूंघट में सिमटी बैठी वो मुहं को करके नीचे
मैंने उसके पैर ही देखे ...एडी आगे पंजे पीछे

3 comments:

seema gupta said...

मैंने उसके पैर ही देखे ...एडी आगे पंजे पीछे
" ha ha ha ha raelly wonderful, but aisee too bhutnee hotee hai na, ???"

Regards

परमजीत सिहँ बाली said...

हाहा....मैंने उसके पैर ही देखे ...एडी आगे पंजे पीछे - लगता है कोई भूतनी होगी;)

Satish Saxena said...

बहुत खूब ! बहुत अच्छा सस्पेंस बना कर रखा आखिर तक !